• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • युगसाहित्य का सृजन, जिसे किए बिना कोई गति नहीं
    • एक लाख अध्यापकों द्वारा विद्या विस्तार का श्रीगणेश
    • संजीवनी विद्या को व्यापक बनाया जाए
    • महाविद्या का उदय और अभ्युदय
    • जले दीपक ही बुझों को जलाएँगे
    • मूर्च्छना का पुनर्जागरण अनिवार्य है
    • लोकमानस-परिष्कार का प्रशिक्षण
    • पंच दिवसीय साधना का स्थूल और सूक्ष्म स्वरूप
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • युगसाहित्य का सृजन, जिसे किए बिना कोई गति नहीं
    • एक लाख अध्यापकों द्वारा विद्या विस्तार का श्रीगणेश
    • संजीवनी विद्या को व्यापक बनाया जाए
    • महाविद्या का उदय और अभ्युदय
    • जले दीपक ही बुझों को जलाएँगे
    • मूर्च्छना का पुनर्जागरण अनिवार्य है
    • लोकमानस-परिष्कार का प्रशिक्षण
    • पंच दिवसीय साधना का स्थूल और सूक्ष्म स्वरूप
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Books - संजीवनी विद्या का विस्तार

Media: TEXT
Language: EN
SCAN SCAN TEXT


महाविद्या का उदय और अभ्युदय

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 3 5 Last
अग्नि की ऊर्जा जहाँ भी उत्पन्न होती है, वहाँ वह समीपवर्ती वातावरण को ऊर्जायुक्त बनाए बिना नहीं रहती है। सुगंध का भी यह उपक्रम है, वह जहाँ भी रखी जाती है, समीपवर्ती क्षेत्र में भी वैसी ही गंध फैलाती रहती है। विद्या के संबंध में भी यही समझा जाना चाहिए। गंगा भले ही एक चट्टान पर उतरी हो, पर उसकी जलधारा दूर- दूर तक शीतलता- सरसता का विस्तार करती है। यों दुर्बुद्धि भी अपने समीपवर्तियों को लपेट में लेती है, किन्तु सदाशयता का अपना विशेष क्षेत्र और स्वभाव है। वह मलयानिल की तरह दूर- दूर तक अपने प्रभाव का परिचय देती है। सूर्य का प्रकाश भी धरती के हर कोने में पहुँचता रहता है। प्रज्ञा का स्वभाव भी इसी प्रकार विस्तृत क्षेत्र को प्रभावित करने का है।

    बीसवीं सदी में विज्ञान को आगे रखकर किये गये अनाचारों पर नियंता को बहुत क्षोभ है। वे अधिक समय उस अवांछनीयता को उसी रूप में बनी नहीं रहने देना चाहते। यों व्यापक परिवर्तनों की तैयारी हो चली है। इक्कीसवीं सदी के उज्ज्वल भविष्य की संरचना इसी आधार पर होने जा रही है। इस प्रक्रिया का प्रमुख कार्य एक ही होगा, जिसे प्रज्ञायुग का अवतरण कह सकते हैं। विचारक्रांति, ज्ञानयज्ञ जैसे नाम भी इसी को दिये गये हैं। यदि इसी को विद्या विस्तार कहा जाए, तो भी कोई हर्ज नहीं।

    उदरपूर्ति के लिए प्रयुक्त होने वाली विविध जानकारियों का भानुमती वाला पिटारा सिर पर लादे हुए, शिक्षा दिन- दिन प्रगति करती जा रही है। उसे बेचने वाली दुकानें गली- मुहल्लों गाँव- नगरों में तेजी से खुलती चली जा रही हैं। अध्यापकों की विशाल संख्या उसी प्रयोजन के लिए नियुक्त- निरत है। छात्रों की भी कमी नहीं। वे नौकरी पाने की लालसा में बड़ी संख्या में वहाँ पहुँचते हैं। कभी तो प्रवेश मिलना तक कठिन हो जाता है। जो सफल नहीं हो पाते, नौकरी नहीं पा पाते, वे निराशा और खीझ से उद्विग्न ऐसी होकर राह पकड़ते देख गये हैं, जिसे अनुचित और अवांछनीय ही कह सकते हैं। प्रस्तुत शिक्षा- प्रणाली की अपूर्णता को देखते हुए क्रमश: उनके प्रति क्षोभ भी बढ़ता जाता है।

    प्रस्तुत अनौचित्य से निपटने और औचित्य को सक्रिय करने के लिए जिस विद्या की इन दिनों महती आवश्यकता है, इक्कीसवीं सदी के साथ- साथ दिग्- दिग्भ्रांत को आलोकित करने के लिए वह उषाकाल की तरह उभरती चली जा रही है। उसका विस्तार होना ही है। उसे व्यापक बनना ही है। शिक्षा के लिए साक्षरता के संपादन की अनिवार्य आवश्यकता है, किंतु विद्या के साथ जुड़ी हुई आदर्शवादी उत्कृष्टता तो सीधे अंतःकरण में उतर जाती है। निरक्षरता भी उसमें बाधक नहीं होती। शालीनता, सज्जनता, उत्कृष्टता, आदर्शवादिता के सिद्धांतों को हृदयंगम करने के लिए साक्षरता अनिवार्य नहीं है।

    क्षेत्र- विस्तार को देखते हुए इस सरंजाम को जुटाने के लिए बड़े परिणाम में प्रयत्नशीलता अपनानी होगी। प्रश्न किसी क्षेत्र या देश का नहीं, वरन् समूचे संसार को इसी की प्यास है। इस संदर्भ में शिक्षित- अशिक्षित निर्धन और धनाध्यक्ष, सेवक और स्वामी, नर और नारी प्राय: सभी स्तर के लोग संसार भर में एक जैसी रटन लगाए हुए हैं। सभी एक जैसी तृष्णा और आवश्यकता अनुभव करते हैं। मान्यताओं, भावनाओं और आदतों में अनौचित्य का समावेश हो जाने से अगणित समस्याएँ उठ खड़ी हुई हैं। गंदगी की सड़न से अवांछनीय स्तर के कृमि- कीटक उपजते हैं और बीमारियों के विषाणु टिड्डी- दल की तरह दौड़ पड़ते हैं। कुरूपता और दुर्बलता तो उनके साथ जुड़ी ही रहती है। यही है दुर्गति की स्थिति, जो हर जगह न्यूनाधिक मात्रा में देखी जा सकती है। समाधान, निराकरण इसी का होना है, अस्तु न केवल कचरे को बुहारना होगा, वरन् उस स्थान पर चूने की पुताई, गोबर की लिपाई अथवा फिनायल जैसे कृमिनाशकों की छिड़काई भी आवश्यक होगी। यह दोनों कार्य विद्या विस्तार से ही संभव हैं। यहाँ विद्या शब्द का सही अर्थ भी समझना होगा। वह साक्षरता तक सीमित नहीं है। वरन् दूरदर्शी विवेकशीलता और ममतामयी भाव- संवेदना के साथ अविच्छिन्न रूप से जुड़ती है।

    विद्या के लाभ परोक्ष हैं। उसके सहारे विवेक उभरता है, नीर- क्षीर विवेक के राजहंसों जैसी प्रवृत्ति उभरती है, व्यक्तित्व परिष्कृत होता और प्रतिभा निखरती है। सम्पन्नता भले ही सीमित रहे, पर शालीनता इतनी ऊँचाई तक उठ जाती है, जिसे देव मानव की संज्ञा मिल सके, जिसके धारण कर्ता को नर- रत्नों में गिना जा सके। सुधारक उद्धारक, ऐसों को ही समझा जाता है। यह सभी विशेषताएँ उद्देश्य स्तर की होती हैं, इसलिए औसत आदमी उसकी ओर ध्यान नहीं देता। आत्मसंतोष, लोकसम्मान और दैवी अनुग्रह की महान् महत्ता के संबंध में जिनने कभी सुना- समझा तक नहीं, वे भला उसे पाने के लिए ही क्यों प्रयत्न करेंगे? इन दिनों तो पैसा ही परमेश्वर बना हुआ है। अहंकार का उन्माद इस कदर छाया हुआ है, कि उसके लिए समय, श्रम और साधनों को बड़ी से बड़ी मात्रा में निछावर करने के लिए लोग आकुल- व्याकुल देख गये हैं। वासना, तृष्णा और अहंता के अतिरिक्त जब और कुछ सूझ ही न पड़े- लिप्सा लालसा और तृष्णा की ललक जब गहरी खुमारी के रूप में चढ़ी हुई हो, तो विद्या के- ब्रह्म विद्या के -आत्म ज्ञान के स्वर्गीय दृष्टिकोण एवं जीवन- मुक्ति जैसे उच्च स्तर के संबंध में कोई सुने- समझे भी क्यों? उस दिशा में कुछ करने एवं नियम बनाने की बात तो बहुत पीछे आती है।

    जो हो, आज का गुजारा भले ही इस सड़ी कीचड़ में लोट- पोट करते हुए भी हो सकता है, पर कल स्वच्छ वातावरण की आवश्यकता पड़ेगी। उसके बिना उद्धार- निस्तार भी तो नहीं। इतने पर भी यह भूल नहीं जाना चाहिए कि कार्यक्षेत्र अत्यंत विस्तृत है, साथ ही दुरूह भी। उसे संपन्न करने में मानवीय प्रयत्न तो एक सीमा तक ही सफल हो सकते हैं। प्रश्न समूचे संसार का है। समस्या ६०० करोड़ मानवों की है। उनका प्रवाह उल्टी दिशा में चल रहा है। वे ऐसे अंधड़ के साथ उड़ रहे हैं, जो कभी भी कहीं भी करारी पटकनी दे सकता है और हड्डी- पसली तोड़ डालने जैसा संकट खड़ा कर सकता है, इसलिए प्रचलन का परिवर्तन एक प्रकार से अनिवार्य हो गया है।

    ६०० करोड़ मनुष्यों का चिंतन- प्रवाह मानवीय मर्यादाओं के उल्लंघन का अभ्यस्त हो चले, चिंतन में निकृष्टता और चरित्र में भ्रष्टता का अनुपात असाधारण रूप में बढ़ चले, तो उस विशाल कार्य क्षेत्र में लगभग पूरी तरह उलट देने का कार्य नियन्ता की नियति ही कर सकती है, भले उसे संपन्न करने में किन्हीं व्यक्तियों को श्रेय- सौभाग्य पाने का अवसर मिलने लगे।

    ‘विद्या’ की गरिमा का माहात्म्य बताते हुए आप्तजनों ने बहुत कुछ कहा है- विद्ययामृतमश्नुते ‘‘सा विद्या या विमुक्तये’’, ‘‘विद्या ददाति विनयम्’’ आदि- आदि मनुष्य के गुण, कर्म, स्वभाव में चिंतन, चरित्र और व्यवहार में, जो उत्कृष्ट आदर्शवादिता का समावेश कर सके, वही विद्या है। संजीवनी विद्या भी इसी का नाम है। कई व्याख्याकार इसे जीवन जीने की कला कहते हैं। इसी के साथ सुख- शांति और प्रगति के सभी सूक्ष्म तंतु जुड़े हुए माने जाते हैं। इसकी उपेक्षा करने पर न भौतिक प्रगति संभव होती है न आध्यात्मिक उन्नयन की बात बनती है।
First 3 5 Last


Other Version of this book



ಸಂಜೀವನೀ ವಿದ್ಯೆಯ ವಿಸ್ತರಣೆ
Type: SCAN
Language: EN
...

સંજીવની વિદ્યાનો વિસ્તાર
Type: SCAN
Language: EN
...

संजीवनी विद्येचा विस्तार
Type: SCAN
Language: MARATHI
...

संजीवनी विद्या का विस्तार
Type: TEXT
Language: EN
...

sanjivani vidya ka vistar
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books



21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

विश्व की महान नारियाँ-1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

विश्व की महान नारियाँ-1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

विश्व की महान नारियाँ-1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

विश्व की महान नारियाँ-1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

संत विनोबा भावे
Type: SCAN
Language: HINDI
...

संत विनोबा भावे
Type: SCAN
Language: HINDI
...

संत विनोबा भावे
Type: SCAN
Language: HINDI
...

संत विनोबा भावे
Type: SCAN
Language: HINDI
...

दहेज दानव से सामाजिक लड़ाई लड़ी जाय
Type: SCAN
Language: HINDI
...

दहेज दानव से सामाजिक लड़ाई लड़ी जाय
Type: SCAN
Language: HINDI
...

दहेज दानव से सामाजिक लड़ाई लड़ी जाय
Type: SCAN
Language: HINDI
...

दहेज दानव से सामाजिक लड़ाई लड़ी जाय
Type: SCAN
Language: HINDI
...

पशुबलि-हिन्दू धर्म एवं विश्व मानवता पर एक कलंक
Type: SCAN
Language: HINDI
...

पशुबलि-हिन्दू धर्म एवं विश्व मानवता पर एक कलंक
Type: SCAN
Language: HINDI
...

पशुबलि-हिन्दू धर्म एवं विश्व मानवता पर एक कलंक
Type: SCAN
Language: HINDI
...

पशुबलि-हिन्दू धर्म एवं विश्व मानवता पर एक कलंक
Type: SCAN
Language: HINDI
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Articles of Books

  • युगसाहित्य का सृजन, जिसे किए बिना कोई गति नहीं
  • एक लाख अध्यापकों द्वारा विद्या विस्तार का श्रीगणेश
  • संजीवनी विद्या को व्यापक बनाया जाए
  • महाविद्या का उदय और अभ्युदय
  • जले दीपक ही बुझों को जलाएँगे
  • मूर्च्छना का पुनर्जागरण अनिवार्य है
  • लोकमानस-परिष्कार का प्रशिक्षण
  • पंच दिवसीय साधना का स्थूल और सूक्ष्म स्वरूप
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj