• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • दो शब्द
    • आत्म्-सत्ता और उसकी महान महत्ता
    • हमारा जीवन लक्ष्य, आत्म-दर्शन
    • जीवनोद्देश्य से विमुख न हों
    • शरीर का ही नहीं, आत्मा का भी ध्यान रखें
    • अमर हो तुम, अमरत्व को पहचानो
    • मन से छीनकर प्रधानता आत्मा को दीजिए
    • मनुष्य और उसकी महान शक्ति
    • जीवन का दूसरा पहलू भी भूलें नहीं
    • आत्मा की पुकार अनसुनी न करें
    • आत्मा की पुकार सुनें और उसे सार्थक करें
    • आत्म-ज्ञान की आवश्यकता क्यों?
    • आत्म-ज्ञान से ही दुःखों की निवृत्ति संभव है
    • सत्यं, शिवं सुंदरम्—हमारा परम लक्ष्य
    • शक्ति के स्रोत—आत्मा को मानिए
    • आत्मा को जानिए
    • आत्म-शक्ति का अकूत भंडार
    • शक्ति का स्रोत हमारे अंदर है
    • सच्चे हृदय से आत्मा का उद्बोधन करे
    • चेतन, चित्त—न, चिंतन
    • आत्मा और परमात्मा का संबंध
    • ईश्वर अंश जीव अविनाशी
    • परमात्मा को जानने के लिए अपने आप को जानो
    • अहं और उसकी वास्तविक सत्ता
    • बिंदु में सिंधु समाया
    • अपूर्णता से पूर्णता की ओर
    • क्या आत्—कल्याण के लिए गृहत्याग आवश्यक है?
    • आत्म-बल हमारी सबसे बड़ी वैभव-विभूति
    • जिन खोजा तिन पाइयां, गहरे पानी पैठ
    • आत्म-विकास के लिए व्रत पालन की आवश्यकता
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • दो शब्द
    • आत्म्-सत्ता और उसकी महान महत्ता
    • हमारा जीवन लक्ष्य, आत्म-दर्शन
    • जीवनोद्देश्य से विमुख न हों
    • शरीर का ही नहीं, आत्मा का भी ध्यान रखें
    • अमर हो तुम, अमरत्व को पहचानो
    • मन से छीनकर प्रधानता आत्मा को दीजिए
    • मनुष्य और उसकी महान शक्ति
    • जीवन का दूसरा पहलू भी भूलें नहीं
    • आत्मा की पुकार अनसुनी न करें
    • आत्मा की पुकार सुनें और उसे सार्थक करें
    • आत्म-ज्ञान की आवश्यकता क्यों?
    • आत्म-ज्ञान से ही दुःखों की निवृत्ति संभव है
    • सत्यं, शिवं सुंदरम्—हमारा परम लक्ष्य
    • शक्ति के स्रोत—आत्मा को मानिए
    • आत्मा को जानिए
    • आत्म-शक्ति का अकूत भंडार
    • शक्ति का स्रोत हमारे अंदर है
    • सच्चे हृदय से आत्मा का उद्बोधन करे
    • चेतन, चित्त—न, चिंतन
    • आत्मा और परमात्मा का संबंध
    • ईश्वर अंश जीव अविनाशी
    • परमात्मा को जानने के लिए अपने आप को जानो
    • अहं और उसकी वास्तविक सत्ता
    • बिंदु में सिंधु समाया
    • अपूर्णता से पूर्णता की ओर
    • क्या आत्—कल्याण के लिए गृहत्याग आवश्यक है?
    • आत्म-बल हमारी सबसे बड़ी वैभव-विभूति
    • जिन खोजा तिन पाइयां, गहरे पानी पैठ
    • आत्म-विकास के लिए व्रत पालन की आवश्यकता
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Books - जीवन की सर्वोपरि आवश्यकता आत्मज्ञान

Media: TEXT
Language:
TEXT


ईश्वर अंश जीव अविनाशी

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 21 23 Last


जन्म से बालक में जो गुण और संस्कार पाए जाते हैं, वे अधिकांश उसके पिता के गुणों और संस्कारों की प्रतिच्छाया ही होते हैं। बीज और फल में शक्ति, गुण और स्वाद की विशेषता प्रायः एक जैसी ही होती है। मीठे फल के बीज से उत्पन्न वृक्ष भी मीठे फल ही प्रदान करने वाले होते हैं। वातावरण, जलवायु तथा आहार-विहार के क्रम में विशेष परिवर्तन न हो तो, वैज्ञानिकों और डॉक्टरों का मत है कि संतान के शरीर के न केवल सूक्ष्म गुणों में ही समानता पाई जाती है, वरन् स्थूल द्रव्य में भी एकता के सभी लक्षण दिखाई दे जाते हैं।

जीवात्मा के संबंध में आत्म-विद्या विशारद आचार्यों का भी यह मत है। वेद, शास्त्र, उपनिषद्, गीता, पुराण, रामायण—इन सब ग्रंथों में आत्मा के संबंध में जो विवेचना हुई है, वह एक जैसी ही है। सबने स्वीकार किया है कि जीव अविनाशी तत्त्व है, वह ईश्वर का अंश है। यह जीवात्मा का पहला गुण है। उसमें परमात्मा के सब गुण बीज रूप से विद्यमान हैं। जीव को अनंत सुखी, चेतन तथा निर्मल बताया गया है। यह गुण उसके पिता परमात्मा के ही गुण हैं।

किंतु यदि किसी मनुष्य के जीवन को देखें, तो उसमें इन गुणों का अभाव ही दिखाई देता है। आजकल तो विषमता और भी तीव्र हो गई है। सुख की चिर-अभिलाषा रखते हुए भी लोग दुखी हैं। कष्ट और पीड़ाओं से छटपटा रहे हैं। हर व्यक्ति अशांत और उद्विग्न ही दिखाई देता है, ऐसी स्थिति में कोई भी यह मानने के लिए तैयार न होगा कि प्रस्तुत जीवन में भी ईश्वरीय चेतना का अंश विद्यमान है।

जीव का दूसरा गुण चेतना, विचार और भावनाओं की शक्ति भी यद्यपि बीज रूप में उसमें देखने को मिलेगी, पर यह गुण भी प्रायः किसी में उपयुक्त मात्रा में देखने को नहीं मिलता। लोगों में विचार और भावनाएं तो उठती हैं, पर उनमें अनंत आकाश को मथ डालने की शक्ति नहीं होती। विचारों की शक्ति किसी से छिपी नहीं है। विचारों में संसार में भयानक हलचल करने वाली शक्ति है, वैसी ही शक्ति भावनाओं में है। भावनाओं की शक्ति से इस देश में भक्ति के ऐसे सूक्ष्म पर सशक्त स्पंदन पैदा किए गए हैं—जो इस अधः पतित युग में भी धर्म और संस्कृति को निरंतर जीवन प्रदान कर रहे हैं। जहां इन दोनों गुणों का मेल होता होगा, वहां की शक्ति का तो कहना ही क्या? जीव में चेतनता का यह गुण बड़ा महत्त्व रखता है, पर वह आज बहुत कम लोगों में देखने को मिलता है।

जीव के मूल स्वरूप न होने में मुख्य कारण उसमें तीसरे गुण अर्थात् निर्मलता का अभाव है। माया, अविद्या या अज्ञान सब इसी के नाम हैं। मनुष्य को चाहे जिन शब्दों से निंदित किया जाए, पर मुख्य बात एक ही है कि उसने अपने आप को अंधकारमय अथवा विकारयुक्त कर लिया है। इसीलिए वह अपने मूल स्वरूप को पहचानने में असमर्थ है। गंदे जल में सूर्य का प्रतिबिंब नहीं दिखाई देता, दर्पण मैला हो तो मुखाकृति साफ न दिखाई देगी। जीव मायाग्रस्त, अविद्या या मलग्रस्त हो तो उसकी भी ऐसी दशा होती है। वह अपने ईश्वरीय स्वरूप को पहचानने में असफल ही रहता है।

शाश्वत, मुक्त और अमर जीवात्मा अज्ञानता या माया के वश में होकर वैसी ही क्रियाएं करता रहता है, जैसे बंदरवाला बंदर को बांधकर नचाता रहता है। यद्यपि यह माया कोई दृश्य रूप में नहीं है, फिर भी वह लोगों को नचाती रहती है, यह कहने की अपेक्षा अब यह कहना अधिक उपयुक्त है कि लोग स्वयं ही अज्ञान में भटक रहे हैं। ‘हमें क्या करना चाहिए’? इस ज्ञान का अभाव ही अविद्या है, इसी कारण लोग गलत कार्य करते और दंड भुगतते हैं।

जिह्वा के स्वाद, नेत्रों की सौंदर्य-लिप्सा, कानों की मधुर संगीत सुनने की इच्छा तथा कामवासना आदि विषयों में आसक्ति हो जाने के कारण विद्या-अविद्या की बात विलुप्त हो गई। जड़-चेतन में ऐसी गांठ पड़ गई कि उनका पृथक अस्तित्व भी समझ में नहीं आता। चेतना ने अपने आप को जड़ मान लिया और जड़ता के काम करने लगी। यद्यपि जड़त्व की, अपने आप को मात्र शरीर मानने की बात नितांत मिथ्या, भ्रम, अज्ञान है तो भी लोग उसे छोड़ने के लिए तैयार नहीं। युग-युगांतरों से अभ्यास में आने वाला स्वभाव-गुण एकाएक छूट भी नहीं सकते। जीव ने संसारी होने का अपना विश्वास इतना पुष्ट कर लिया है कि जड़-चेतनता के बीच जो ग्रंथि पड़ गई है, वह छूटती नहीं और जब तक यह भ्रम दूर नहीं होता, तब तक कष्ट भी दूर नहीं होते।

महापुरुषों, श्रुतियों, पुराणों ने तरह-तरह के उपाय और अनेक प्रकार के साधन बताए, पर जीव के हृदय में सांसारिक सुख, भोग, मोह आदि का अंधकार इतना सघन होकर छा गया कि वह इनसे छूटने का प्रयत्न करने की अपेक्षा और भी उलझता गया। मुक्त होने के लिए उसने कुछ प्रयास भी न करना चाहा।

ईश्वर की कृपा या किन्हीं देव-पुरुषों के अनुग्रह से कदाचित इस प्रकार का विचार मन में आ जाए कि आत्म-ज्ञान प्राप्त करना चाहिए, अपना रहस्य जानना चाहिए, परमात्मा का दर्शन करना चाहिए, तो उसे अनेक जन्मों के शुभ संस्कारों का प्रतिफल या ईश्वर की कृपा दृष्टि ही समझनी चाहिए। उस पर यदि किसी के अंतःकरण में श्रद्धा जाग्रत हो जाए, तो उसे अपना बड़ा सौभाग्य मानना चाहिए।

श्रद्धा का उदय होना निश्चय ही अनेक जन्मों के पुण्यों का प्रतीक है, पर अकेली श्रद्धा ही आत्म-कल्याण नहीं कर देती, वह तो अपने जीवनलक्ष्य की ओर उन्मुख करने वाला प्रकाश मात्र है। उनको उस यात्रा पथ पर चलने की भी आवश्यकता है। शास्त्र इस क्रिया को धर्माचरण बताते हैं। अर्थात् श्रद्धा उदय हो तो मनुष्य को जप, तप, व्रत, यम, नियम आदि साधनों का आश्रय लेकर जीवन जीने और आत्म-शोधन की प्रक्रिया प्रारंभ कर देनी चाहिए। संसार में जितने भी शुभ कर्म हैं, वे सब धर्म का आचरण कहलाते हैं, इनसे आत्मा का बल बढ़ता है और उसमें सबलता आने लगती है।

आत्म-कल्याण की साधनाएं भावनाओं का रस पाकर शीघ्र फलदायिनी होती हैं, यों इन सब साधनाओं में उदासीनता हो तो भी प्रगति तो होती ही है, किंतु जब भावनाओं का सम्मिश्रण हो जाता है, तो साधना से ही एक अलौकिक आनंद की रसानुभूति होने लगती और लक्ष्यप्राप्ति के लिए जो समय की दूरी थी, वह कम अखरने लगती है। भावना मनुष्य की साधना में सफलता की आशंका को भी कम कर देती है। ‘‘मैं तेरा हूं, अब तुझे छोड़कर कहां जाऊं? मुझे अज्ञान से निकाल और मानव जीवन के उपयुक्त आचरण करने की क्षमता प्रदान कर। अब मेरे जीवन का सर्वस्व तू ही है।’’ इस प्रकार की भावनाएं आत्म-कल्याण के पथिक को बड़ा बल प्रदान करती हैं। विश्वास बढ़ाती हैं और मन में चढ़े कुसंस्कारों के ढेर को बात की बात में जलाकर खाक कर डालती हैं। साधना काल में भावनाओं का होना इसी दृष्टि से बड़ा शुभ और लाभजनक माना जाता है। भावनाएं जिसे मिल जाएं, उसे अपने आप पर ईश्वरीय विशेष कृपा ही माननी चाहिए।

इस प्रकार भक्त धर्म-कर्म करते हुए मन की कामनाओं को मारता और उसे काम, क्रोध, लोभ, मोह, छल, द्वेष, पाखंड, झूठ, बेईमानी आदि दुष्प्रवृत्तियों से विमुक्त करता है। वासनाएं और सांसारिक प्रलोभन उसे बार-बार अपनी ओर आकर्षित करते हैं, वह बार-बार इनसे लड़ता है, इन्हें मारता है, आत्मा के गुणों को बढ़ाता है। दया, क्षमा, करुणा, संतोष, समता, धृति आदि सद्गुणों का विकास करता है। इंद्रियों का दमन करता है और जो दोष-दुर्गुण होते हैं, उन्हें बार-बार ठीक करता है, सत्प्रवृत्तियों की शोध और दुष्प्रवृत्तियों के विरोध का विचार कभी भी मंद नहीं होने देता, वरन् वैसा करते हुए वह उत्साह अनुभव करता है। विचार-मंथन के द्वारा वह सत्य को आग्रहपूर्वक अपने जीवन में धारण करता और दुष्कर्मों, असत् तत्त्वों का परित्याग करता जाता है।

यह विज्ञानमय बुद्धि अंतःकरण की ममता, मद, मोह आदि को जला डालती है, उस अवस्था में केवल ब्रह्म की अखंड और दिव्य ज्योति आत्मा में अनुभव होने लगती है। वह प्रकाश मनुष्य के अज्ञान, अविद्या या माया को भस्म कर डालता है, मनुष्य जीव-भाव से मुक्त होकर पुनः अपने परमपिता परमात्मा की गोद में ही समा जाता है। यह अवस्था अनंत सुख, अनंत आनंद की अवस्था होती है।

***

First 21 23 Last


Other Version of this book



जीवन की सर्वोपरि आवश्यकता आत्म-ज्ञान
Type: SCAN
Language: HINDI
...

जीवन की सर्वोपरि आवश्यकता आत्मज्ञान
Type: TEXT
Language:
...


Releted Books



गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Articles of Books

  • दो शब्द
  • आत्म्-सत्ता और उसकी महान महत्ता
  • हमारा जीवन लक्ष्य, आत्म-दर्शन
  • जीवनोद्देश्य से विमुख न हों
  • शरीर का ही नहीं, आत्मा का भी ध्यान रखें
  • अमर हो तुम, अमरत्व को पहचानो
  • मन से छीनकर प्रधानता आत्मा को दीजिए
  • मनुष्य और उसकी महान शक्ति
  • जीवन का दूसरा पहलू भी भूलें नहीं
  • आत्मा की पुकार अनसुनी न करें
  • आत्मा की पुकार सुनें और उसे सार्थक करें
  • आत्म-ज्ञान की आवश्यकता क्यों?
  • आत्म-ज्ञान से ही दुःखों की निवृत्ति संभव है
  • सत्यं, शिवं सुंदरम्—हमारा परम लक्ष्य
  • शक्ति के स्रोत—आत्मा को मानिए
  • आत्मा को जानिए
  • आत्म-शक्ति का अकूत भंडार
  • शक्ति का स्रोत हमारे अंदर है
  • सच्चे हृदय से आत्मा का उद्बोधन करे
  • चेतन, चित्त—न, चिंतन
  • आत्मा और परमात्मा का संबंध
  • ईश्वर अंश जीव अविनाशी
  • परमात्मा को जानने के लिए अपने आप को जानो
  • अहं और उसकी वास्तविक सत्ता
  • बिंदु में सिंधु समाया
  • अपूर्णता से पूर्णता की ओर
  • क्या आत्—कल्याण के लिए गृहत्याग आवश्यक है?
  • आत्म-बल हमारी सबसे बड़ी वैभव-विभूति
  • जिन खोजा तिन पाइयां, गहरे पानी पैठ
  • आत्म-विकास के लिए व्रत पालन की आवश्यकता
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj