
आदर्श साहचर्य
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युग उन्हीं को याद करता है, जो उसके निर्माण में अपना सब कुछ न्यौछावर करने के लिए कृत संकल्प होते हैं। इस निष्ठा पर खरी उतरीं—‘‘प्रभावी’’; सुविख्यात राष्ट्रकर्मी जयप्रकाश नारायण की पत्नी। एक दिन जब ये दोनों गांधी जी के पास राष्ट्र-धर्म की दीक्षा लेने पहुंचे, तो बापू ने कहा—तुम दोनों का उत्साह तो ठीक है...... पर.....।
पर क्या? दोनों ने एक साथ पूछा।
इसे बरकरार रखपाना तभी सम्भव होगा, जब तुम दोनों अपनी भौतिक आकांक्षाओं को त्याग सको, यहां तक कि सन्तान प्राप्ति की कामना भी ठुकरा दो। जयप्रकाश ने मुस्कराते हुए कहा—मैं तो तैयार हूं, बात प्रभा की है। सुना है, नारियों में मातृत्व की कामना कुछ अधिक ही होती है। प्रभावती ने तेज स्वर में कहा—मातृत्व को कोख से बच्चा पैदा होने तक सीमित मत करिए। यह तो नारी की करुणा और ममता का खजाना है, जिसे वह बांटना और फैलाना चाहती है। सही कहा जाय, तो यह सृजन और सेवा का सम्मिलित रूप है—इसे हर किसी स्थिति में अपने मातृत्व को पूरा किया जा सकता है। इसमें बाधा कहां?
‘ठीक कहती हो बेटी—मातृत्व का अर्थ सन्तानोत्पत्ति नहीं है। ऐसी दशा में जबकि लाखों बालक निराश्रय भटक रहे हों, उन्हें ठुकरा कर सन्तान के लिए बेचैन होना विडम्बना ही कही जाएगी। मातृत्व विस्तार है, तो संतान की चाहत-संकीर्णता; दोनों का परस्पर कोई सम्बन्ध नहीं, उलटे विरोधी हैं। एक उजाला है—दूसरा अंधेरा।’ गांधी जी ने अपना मन्तव्य प्रकट किया।
‘‘मैं प्रतिज्ञा करती हूं कि सन्तान की चाहत से विरत रह कर सच्चे मातृत्व का विकास करूंगी’’। अपने कथन की समाप्ति पर प्रभा ने जयप्रकाश की ओर देखा। उन्होंने कहा—‘‘उसमें मेरी पूर्ण सहमति है’’। परस्पर की सहमति और सहयोग के बल पर दोनों असाधारण व्यक्तित्व के धनी हुए। किसी ने किसी पर अधिकार जमाने, बांधकर रखने का दुराग्रह नहीं किया। उन्होंने सत्याग्रह आन्दोलन में अग्रणी महिलाओं का नेतृत्व किया। बिहार, उत्तर-प्रदेश व गुजरात में हुए राष्ट्रीय आंदोलनों में उन्होंने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। स्वतन्त्रता के बाद भी उनमें कहीं शिथिलता, निष्क्रियता नहीं आयी? जब-तक जीवित रहीं—कर्मठता को बनाये रखा। प्रशंसा व पद पाने की आकांक्षा से दूर रहकर निष्काम भाव से लोक सेवा का कार्य करती रहीं। सर्वोदय व भूदान जैसे जनहितकारी कार्यों में उनके जीवन का कण-कण नियोजित हुआ।
पर क्या? दोनों ने एक साथ पूछा।
इसे बरकरार रखपाना तभी सम्भव होगा, जब तुम दोनों अपनी भौतिक आकांक्षाओं को त्याग सको, यहां तक कि सन्तान प्राप्ति की कामना भी ठुकरा दो। जयप्रकाश ने मुस्कराते हुए कहा—मैं तो तैयार हूं, बात प्रभा की है। सुना है, नारियों में मातृत्व की कामना कुछ अधिक ही होती है। प्रभावती ने तेज स्वर में कहा—मातृत्व को कोख से बच्चा पैदा होने तक सीमित मत करिए। यह तो नारी की करुणा और ममता का खजाना है, जिसे वह बांटना और फैलाना चाहती है। सही कहा जाय, तो यह सृजन और सेवा का सम्मिलित रूप है—इसे हर किसी स्थिति में अपने मातृत्व को पूरा किया जा सकता है। इसमें बाधा कहां?
‘ठीक कहती हो बेटी—मातृत्व का अर्थ सन्तानोत्पत्ति नहीं है। ऐसी दशा में जबकि लाखों बालक निराश्रय भटक रहे हों, उन्हें ठुकरा कर सन्तान के लिए बेचैन होना विडम्बना ही कही जाएगी। मातृत्व विस्तार है, तो संतान की चाहत-संकीर्णता; दोनों का परस्पर कोई सम्बन्ध नहीं, उलटे विरोधी हैं। एक उजाला है—दूसरा अंधेरा।’ गांधी जी ने अपना मन्तव्य प्रकट किया।
‘‘मैं प्रतिज्ञा करती हूं कि सन्तान की चाहत से विरत रह कर सच्चे मातृत्व का विकास करूंगी’’। अपने कथन की समाप्ति पर प्रभा ने जयप्रकाश की ओर देखा। उन्होंने कहा—‘‘उसमें मेरी पूर्ण सहमति है’’। परस्पर की सहमति और सहयोग के बल पर दोनों असाधारण व्यक्तित्व के धनी हुए। किसी ने किसी पर अधिकार जमाने, बांधकर रखने का दुराग्रह नहीं किया। उन्होंने सत्याग्रह आन्दोलन में अग्रणी महिलाओं का नेतृत्व किया। बिहार, उत्तर-प्रदेश व गुजरात में हुए राष्ट्रीय आंदोलनों में उन्होंने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। स्वतन्त्रता के बाद भी उनमें कहीं शिथिलता, निष्क्रियता नहीं आयी? जब-तक जीवित रहीं—कर्मठता को बनाये रखा। प्रशंसा व पद पाने की आकांक्षा से दूर रहकर निष्काम भाव से लोक सेवा का कार्य करती रहीं। सर्वोदय व भूदान जैसे जनहितकारी कार्यों में उनके जीवन का कण-कण नियोजित हुआ।