
सुभाषचंद्र बोस
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स्वाधीनता के पुजारी- सुभाषचंद्र बोस
महापुरुषों की अनेक श्रेणियाँ होती हैं। कोई विद्या, बुद्धि की दृष्टि से अग्रगण्य होते हैं, तो कोई परोपकार के लिए सर्वस्व अर्पण करने वाले होते हैं। कोई धर्म- कर्तव्य और आदर्श चरित्र की दृष्टि से अनुकरणीय होते हैं और कोई अन्याय के प्रतिकार एवं निर्बलों की रक्षा के लिए आत्म- बलिदान करने वाले होते हैं। इस प्रकार महापुरुष अनेक क्षेत्रों में कार्य करके मानवता की सेवा, सहायता, मार्गदर्शन करके अपने जीवन को सार्थक करते हैं और अन्य लोगों के सम्मुख एक ऐसा उच्च उदाहरण- आदर्श उपस्थित करते हैं, जिससे अनगिनत मनुष्य बहुत समय तक प्रेरणा प्राप्त करते रहते हैं।
नेताजी श्री सुभाषचंद्र बोस ऐसे ही महामानवों में से थे। उनको उच्च विद्या, बुद्धि, पदवी, पारिवारिक सुख, सार्वजनिक सम्मान सब कुछ प्राप्त था। अन्य अनेक माननीय और उच्च- पदवी पर प्रतिष्ठित व्यक्तियों के समान सुख- सुविधा का सार्वजनिक जीवन बिता सकना उनके लिए कुछ भी कठिन न था, पर इस सबका त्याग कर उन्होंने स्वेच्छा से ऐसा जीवन- मार्ग ग्रहण किया जिसमें पग- पग पर काँटे और खाई- खंदक थे। उनका त्याग और साहस इतना उच्चकोटि का था कि इसे देखकर हजारों व्यक्ति उनके सामने ही अपने देशवासियों को मनुष्योचित अधिकार दिलाने के लिए तन, मन धन अर्थात् सर्वस्व अर्पण करने को तैयार हो गये। किसी ने सच ही कहा है कि वास्तविक प्रचार भाषणों, लेखों, वक्तव्यों से नहीं होता, वरन् जो कुछ कहा जाय, उसे स्वयं कार्यरूप में कर दिखाने का ही लोगों पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है और साधारण व्यक्ति भी असाधारण कार्य करने को तैयार हो जाते हैं।
महापुरुषों की अनेक श्रेणियाँ होती हैं। कोई विद्या, बुद्धि की दृष्टि से अग्रगण्य होते हैं, तो कोई परोपकार के लिए सर्वस्व अर्पण करने वाले होते हैं। कोई धर्म- कर्तव्य और आदर्श चरित्र की दृष्टि से अनुकरणीय होते हैं और कोई अन्याय के प्रतिकार एवं निर्बलों की रक्षा के लिए आत्म- बलिदान करने वाले होते हैं। इस प्रकार महापुरुष अनेक क्षेत्रों में कार्य करके मानवता की सेवा, सहायता, मार्गदर्शन करके अपने जीवन को सार्थक करते हैं और अन्य लोगों के सम्मुख एक ऐसा उच्च उदाहरण- आदर्श उपस्थित करते हैं, जिससे अनगिनत मनुष्य बहुत समय तक प्रेरणा प्राप्त करते रहते हैं।
नेताजी श्री सुभाषचंद्र बोस ऐसे ही महामानवों में से थे। उनको उच्च विद्या, बुद्धि, पदवी, पारिवारिक सुख, सार्वजनिक सम्मान सब कुछ प्राप्त था। अन्य अनेक माननीय और उच्च- पदवी पर प्रतिष्ठित व्यक्तियों के समान सुख- सुविधा का सार्वजनिक जीवन बिता सकना उनके लिए कुछ भी कठिन न था, पर इस सबका त्याग कर उन्होंने स्वेच्छा से ऐसा जीवन- मार्ग ग्रहण किया जिसमें पग- पग पर काँटे और खाई- खंदक थे। उनका त्याग और साहस इतना उच्चकोटि का था कि इसे देखकर हजारों व्यक्ति उनके सामने ही अपने देशवासियों को मनुष्योचित अधिकार दिलाने के लिए तन, मन धन अर्थात् सर्वस्व अर्पण करने को तैयार हो गये। किसी ने सच ही कहा है कि वास्तविक प्रचार भाषणों, लेखों, वक्तव्यों से नहीं होता, वरन् जो कुछ कहा जाय, उसे स्वयं कार्यरूप में कर दिखाने का ही लोगों पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है और साधारण व्यक्ति भी असाधारण कार्य करने को तैयार हो जाते हैं।