• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • गृहस्थ जीवन में सरसता बनी रहे
    • तलाक कोई समाधान नहीं
    • ये मासूम भटकने न पायें
    • संयुक्त परिवार व्यवस्था को जीवंत बनाए रखें
    • बृहत् परिवार पनपें—पारस्परिक सौहार्द्र बढ़े!
    • परिवार संस्था की एक सुनिश्चित आधार संहिता
    • गृहस्थ एक तपोवन है, जीवन-साधना इसी में रहकर करें
    • नर और नारी परस्पर पूरक
    • आत्मीयता और समर्पण पर निर्भर दाम्पत्य जीवन
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • गृहस्थ जीवन में सरसता बनी रहे
    • तलाक कोई समाधान नहीं
    • ये मासूम भटकने न पायें
    • संयुक्त परिवार व्यवस्था को जीवंत बनाए रखें
    • बृहत् परिवार पनपें—पारस्परिक सौहार्द्र बढ़े!
    • परिवार संस्था की एक सुनिश्चित आधार संहिता
    • गृहस्थ एक तपोवन है, जीवन-साधना इसी में रहकर करें
    • नर और नारी परस्पर पूरक
    • आत्मीयता और समर्पण पर निर्भर दाम्पत्य जीवन
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Books - सद्भाव और सहकार पर ही परिवार संस्थान निर्भर

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT


गृहस्थ जीवन में सरसता बनी रहे

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


2 Last
 
दाम्पत्य जीवन की शुरुआत करते समय भारतीय वर-वधू परस्पर प्रतिज्ञाबद्ध होते हैं कि हम एक दूसरे के प्रति कर्तव्यनिष्ठ रहेंगे, उदार रहेंगे, सहयोग करेंगे और प्रगति पथ पर साथ-साथ आगे बढ़ेंगे। यह प्रतिज्ञा यदि निष्ठापूर्वक दोनों ओर से निभाई जाय तो निश्चय ही दम्पत्ति एक सुदृढ़ सम्मिलित इकाई के रूप में सक्रिय रहते हैं और उनका जीवन आनन्द, प्रकाश तथा प्रगति की सुरभि से महक उठता है। ऐसे दम्पत्ति जिस समाज में रहते हैं, वह समाज एक सुरभित उद्यान बना रहता है।

दाम्पत्य जीवन की सफलता के लिए इन दिनों शारीरिक स्वास्थ्य, आर्थिक समृद्धि, शिक्षा और सौन्दर्य को आधार मानने की रीति है। निस्सन्देह, सांसारिक जीवन को चलाने के लिए ये सभी आवश्यक हैं। पर भौतिक उपकरणों से भी पहले गहन आत्मीयता और सघन सम्वेदना की उपस्थिति दाम्पत्य जीवन की आरम्भिक शर्त है। यदि भावनाओं से पति पत्नी एक दूसरे से अर्द्धांग रूप से जुड़े रहते हैं उनमें प्रेम एवं आत्मीयता भरी रहती तो भौतिक साधन उन्हें सर्वोपरि नहीं प्रतीत होंगे, बाह्य आकर्षण उन्हें उतने आवश्यक नहीं लगेंगे।

प्रेम और आकर्षण दो भिन्न तत्व हैं। शारीरिक गठन वय स्वास्थ्य और सौन्दर्य के अनुपात से घटती-बढ़ती रहने वाली राग वृत्ति को आकर्षण कहते हैं, जबकि प्रेम इससे भिन्न एक आध्यात्मिक तत्व है जो दाम्पत्य जीवन में मधुरता का, कठिन परिस्थितियों में भी सघन आत्मीयता और कर्तव्य निष्ठा का, आनन्द-प्रमोद तथा आह्लाद का संचार करता रहता है। अन्तःकरण का सन्तोष ही उसे पालता है।

यह भूलना नहीं चाहिए कि प्रेम और आत्मीय सघनता का विकास सहयोग, समर्पण और त्याग के धरातल पर ही सम्भव है। सन्तुलन और सामंजस्य एकांगी नहीं होता। एकाकी प्रयत्न से सामंजस्य का प्रयास प्रायः निरर्थक ही सिद्ध होता है। तुला के दो पलड़ों को सन्तुलित रखने के लिए समतुल्य भार की वस्तुयें ही दोनों ओर रखनी होती हैं। नाव के दोनों सिरों पर बैठे लोगों पर परस्पर सन्तुलन न हो तो नाव डगमगाने लगती है और डूबने का खतरा आ खड़ा होता है। दाम्पत्य जीवन में बराबरी का सहयोग और सहकार आवश्यक होता है। इस सघन सद्भाव का विकास तभी होता है, जब दाम्पत्य जीवन का लक्ष्य उद्दात्त हो। यह दोनों के समक्ष स्पष्ट रहे कि हमारे मिलन का अभिप्राय काम सेवन की सुविधा,  रोटी बनाने, घर चलाने की व्यवस्था या एक कमाऊ साथी की प्राप्ति नहीं, अपितु दो आत्माओं का एकीकरण है। पति-पत्नी के बीच विद्यमान आकर्षण का चरम प्रयोजन है—दो व्यक्तित्वों के मिलन की ऐसी अनूठी प्रक्रिया का सम्पन्न होना, जो समाज में एक नई ही वस्तु को, एक नई ही प्रक्रिया को जन्म दे। नर-नारी के बीच ऐसे अद्भुत घुलनशील तत्व हैं कि यदि वे दोनों गहन स्तर तक परस्पर मिल सकें तो एक नया संयुक्त व्यक्तित्व उत्पन्न होता है और उसके प्रभाव से दोनों अपना पुराना स्तर खोलकर नये स्तर के बन जाते हैं। कुमारी अवस्था में लड़की जिस स्तर की थी, उसमें विवाह के बाद कायाकल्प जैसा परिवर्तन होता है और किशोर लड़के विवाह से पूर्व जिस प्रकृति के थे विवाह के बाद इतने बदले पाये जाते हैं कि केवल आकृति ही पुरानी रह जाती है— प्रकृति में जमीन आसमान जैसा अन्तर उपस्थित होता है। इस पर घुलने के लिए मात्र शारीरिक सामीप्य अपर्याप्त है। वह तो एक बहुत ही छोटा अंश भर है। व्यक्तित्वों का घुलना उतने भर से नहीं होता, उसके लिए भावनात्मक सघनता आवश्यक है। यही सघनता वह स्थिति लाती है कि एक प्राण दो शरीर का आभास होने लगे। उस स्थिति में दोनों का ही एक दूसरे पर पूर्ण अधिकार रहता है।

पर सामान्यतः इस प्रक्रिया को उलट दिया जाता है। विवाह के उपरान्त पति-पत्नी पर अपना पूर्ण अधिकार मान बैठता है पत्नी पति पर। इस अधिकार भावना में कर्तव्य भावना की उपेक्षा रहती है, पर कर्तव्य भावना की कमी रहने पर सच्ची आत्मीयता सम्भव नहीं।

पति पत्नी दोनों में गहरी दरार तभी पड़नी शुरू होती है, जब वे एक दूसरे से मात्र अपेक्षायें रखते हैं—अपना कर्तव्य याद नहीं रखते। जहां एक दूसरे के प्रति सम्मान कृतज्ञता एवं समान संवेदना नहीं है, वहां सहजीवन कैसे हो सकेगा? एक दूसरे पर अपनी रुचियों का आरोपण अपनी अपेक्षाओं को ही प्रधानता देना हैं वह कारण है, जिससे दाम्पत्य जीवन का रस स्रोत अवरुद्ध होता तथा सूखता चला जाता है।

यह भली-भांति समझ लिया जाना चाहिए कि नर-नारी दोनों की सार्थकता के मानदण्ड एक ही है और दाम्पत्य जीवन की सफलता, सार्थकता की जिम्मेदारी दोनों की है, किसी एक की नहीं। राम स्वयं पत्नीव्रती थे— इसी लिए सीता रावण की लंका में रहकर भी सदा राम के प्रति निष्ठावान रहीं। जबकि बहुनारी-गामी रावण की महिषी मन्दोदरी को रावण की मृत्यु के बाद विभीषण की पत्नी बनने में तनिक भी झिझक नहीं हुई। क्योंकि उसने जीवन भर एक निष्ठा को व्यर्थ मानने की सीख ही तो रावण से पाई थी।

यों विषम योनियों का मिलन पशु-पक्षियों, कीट-पतंगों सभी में तो होता रहता है। यह एक सामान्य जैविक प्रक्रिया मात्र है, जो प्रकृत रूप से सृष्टि का प्रयोजन सिद्ध करती रहती है। पर नर-नारी के बीच का आकर्षण मात्र यौनतृप्ति एवं प्रजनन की प्रेरणा से ही नहीं होता। क्योंकि मनुष्य चेतना इतनी सत ही नहीं होती।

यह सही है कि प्रजनन प्रक्रिया और शारीरिक संयोग में प्रबल आकर्षण एवं प्रचण्ड आवेश है। किन्तु शिशु सर्जन और वंश विस्तार की आवश्यकतायें भर पूरी करते रहना इस प्रचण्ड प्रेरणा का लक्ष्य नहीं है। अपितु इस प्रबल-आकर्षण का मूल कारण दो लिंगी प्राणियों की अपूर्णताओं का परस्पर पूरक बनकर पूर्णता प्राप्त करने को आध्यात्मिक आकांक्षा है। इस प्रकार नर-नारी के बीच का यह गहरा खिंचाव मूलतः आध्यात्मिक प्रयोजन वाला है और इस आध्यात्मिकता की दृष्टि से ही विवाह को एक धार्मिक संस्कार की गरिमा प्रदान की गई है।

यदि विवाह का उद्देश्य मात्र उच्छृंखल यौन-जीवन ही मान लिया जाय तो उस स्थायी अतृप्ति के लिए भी तैयार रहना चाहिए जो आज पश्चिमी नर-नारी की भाग्य रेखा ही बन गया है। यदि भावनात्मक उद्वेग विवेक रहित है तो उसे सघनता नहीं दुराव ही बढ़ेगा। शरीरों की भिन्नता मिटा डालने की कामना का अर्थ यदि शारीरिक सामीप्य तक सीमित रह गया तो उससे प्राणी की घुलनशीलता सम्भव नहीं और तब दो व्यक्तित्वों के संयोग से उस तीसरे व्यक्तित्व के निर्माण की भी संभावना नहीं रह जाती जो कि दाम्पत्य जीवन की वास्तविक उपलब्धि है।

यह बात भली भांति समझ लेने योग्य है कि दाम्पत्य जीवन की सुख, शान्ति और सफलता का आधार परिष्कृत दृष्टिकोण तथा प्रखर उदात्त भावनायें हैं। पति पत्नी के बीच स्नेह सद्भाव जितना अधिक होगा दाम्पत्य जीवन उतना ही सरस माधुर्य पूर्ण और सुदृढ़ होगा। अन्तःकरण को स्पर्श करने और बांधने वाले से सूत्र जहां जितने ढीले होंगे, वहां उतनी ही अधिक कटुता होगी। परस्पर जीवन पर्यन्त एक दूसरे को बांधे रहने वाले स्नेह सद्भाव रूपी सुखों के टूटते ही दाम्पत्य जीवन के बिखरते टूटते देरी नहीं लगती। पति-पत्नी के बीच आपसी मतभेदों मनोमालिन्य और मनमुटावों में भौतिक कारणों अथवा अभावों की उतनी महत्वपूर्ण भूमिका नहीं होती जितनी की सद्भाव से रहित व्यवहार की होती है। जिसकी चरम परिणति सम्बन्ध विच्छेदों तलाक की घटनाओं के रूप में होती है।

सुमधुर सम्बन्ध के लिए पति-पत्नी के बीच कैसा तारतम्य होना चाहिए इसका एक आश्चर्य जनक किन्तु प्रेरक और अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया है वनस्पति जगत के दो वृक्षों ने समझा यह जाता है कि वृक्ष वनस्पतियां संवेदनाओं से रहित होती हैं पर इस मान्यता को गलत सिद्ध किया है देहरादून के एक वृक्ष युगल ने, देहरादून के वन अनुसंधान संस्थान में गाइड नोकार्डिया ओडोरेटा नामक दो सुन्दर वृक्ष हैं जो अपनी विलक्षणताओं के लिए बहुचर्चित बने हुए हैं। इनमें से एक वृक्ष नर है और दूसरा मादा। दैनिक पत्र पंजाब केशरी 30 सितम्बर 1981 के अंक में प्रकाशित समाचार के अनुसार 15 वर्ष पूर्व एक भयंकर तूफान आया। वन अनुसंधान केन्द्र में लगे उपरोक्त दो वृक्षों में से नर वृक्ष उखड़कर गिर पड़ा। उससे 100 मीटर की दूर पर ही मादा वृक्ष भी खड़ा था। तूफान का तो उसके ऊपर प्रभाव नहीं पड़ा पर तीस वर्षों तक दोनों हमजोली की तरह पति-पत्नी की भांति एक साथ रहते आये थे। तूफान से नर वृक्ष के गिरते की मादा वृक्ष पति वियोग के आघात को सहन न कर सका। बिना किसी कारण वह मुरझाने लगा। अनुसंधान केन्द्र के वैज्ञानिकों के कारण ढूंढ़ने की कोशिश की पर कुछ भी पता न चल सका। वृक्ष किसी प्रकार के रोग से ग्रसित न था और न ही किसी तरह के पोषण का अभाव था। मादा वृक्ष को बचाने के लिए वैज्ञानिकों ने हर सम्भव उपचार और प्रयास कर डाले पर असफल रहे और देखते ही देखते मादा वृक्ष पति वियोग की व्यथा वेदना में झुलसकर सूख गया।

कुछ माह पूर्व केन्द्र में काम करने वाले कर्मचारियों ने देखा कि नर वृक्ष जहां गिरा था वहां उसकी कुछ जड़ें भूमि के नीचे दबी रह गयी थी। उनमें से कोपलें फूटने लगी। वह वृक्ष पुनर्जीवित हो उठा। वैज्ञानिकों को यह देखकर आश्चर्य का ठिकाना न रहा कि मादा वृक्ष जो दीर्घ काल तक सूखा खड़ा था, नर के जीवित होते ही उसमें भी हरियाली आने लगी। कुछ ही माह में पूरा वृक्ष सजीव हो उठा। जब दोनों ही वृक्ष हरे-भरे दिखाई दे रहे हैं। उनमें शीघ्र ही फल आने की सम्भावना है। सबसे अचम्भित करने वाला तथ्य यह है कि एक वृक्ष को जब कभी भी कोई रोग होता है ठीक उसी प्रकार के लक्षण उसी समय दूसरे वृक्ष में भी परिलक्षित होने लगते हैं।

संस्थान के वैज्ञानिकों ने इस आश्चर्य जनक तथ्य पर लम्बे समय तक खोज बीन की। उनका निष्कर्ष है कि दोनों वृक्षों के बीच तारतम्य जोड़ने वाले ऐसे कुछ अदृश्य संवेदनात्मक सूत्र विद्यमान हैं जो परस्पर एक दूसरे को प्रभावित करते हैं। इन वृक्षों का प्रत्यक्ष स्थूल जीवन भी उन सूक्ष्म संवेदनाओं द्वारा परिचालित हैं। इन दो वृक्षों का प्रणय प्रसंग समीपवर्ती क्षेत्र में चर्चा का विषय बना हुआ है। इस घटना से वैज्ञानिक समुदाय यह सोचने पर विवश हुआ है वृक्ष वनस्पतियों को भी स्नेह, प्यार की उतनी ही आवश्यकता है जितनी मनुष्य जाति को।

वृक्ष होकर भी आपसी रिश्ते के प्रति इतने अधिक संवेदनशील सहिष्णु हो सकते हैं तो मनुष्य को तो और भी अधिक सद्भावना का परिचय देना चाहिए। दाम्पत्य जीवन में पति-पत्नी के बीच कैसे सम्बन्ध होने चाहिए यह प्रेरणा और शिक्षा इन वृक्षों से भी ली जा सकती है।
2 Last


Other Version of this book



सद्भाव और सहकार पर ही परिवार संस्थान निर्भर
Type: TEXT
Language: HINDI
...


Releted Books



21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Pragya Puran Stories -2
Type: TEXT
Language: ENGLISH
...

Pragya Puran Stories -2
Type: TEXT
Language: ENGLISH
...

विश्व की महान नारियाँ-1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

विश्व की महान नारियाँ-1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

विश्व की महान नारियाँ-1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

विश्व की महान नारियाँ-1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

संत विनोबा भावे
Type: SCAN
Language: HINDI
...

त्योहार और व्रत
Type: SCAN
Language: HINDI
...

युगसंधि महापुरश्चरण और संकट निवारण
Type: TEXT
Language: HINDI
...

युगसंधि महापुरश्चरण और संकट निवारण
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गर पूछे कोई मुझसे तो मैं कहूँ कि स्वर्ग बस यहीं है
Type: TEXT
Language: EN
...

गर पूछे कोई मुझसे तो मैं कहूँ कि स्वर्ग बस यहीं है
Type: TEXT
Language: EN
...

दहेज दानव से सामाजिक लड़ाई लड़ी जाय
Type: SCAN
Language: HINDI
...

दहेज दानव से सामाजिक लड़ाई लड़ी जाय
Type: SCAN
Language: HINDI
...

दहेज दानव से सामाजिक लड़ाई लड़ी जाय
Type: SCAN
Language: HINDI
...

दहेज दानव से सामाजिक लड़ाई लड़ी जाय
Type: SCAN
Language: HINDI
...

पशुबलि-हिन्दू धर्म एवं विश्व मानवता पर एक कलंक
Type: SCAN
Language: HINDI
...

पशुबलि-हिन्दू धर्म एवं विश्व मानवता पर एक कलंक
Type: SCAN
Language: HINDI
...

पशुबलि-हिन्दू धर्म एवं विश्व मानवता पर एक कलंक
Type: SCAN
Language: HINDI
...

पशुबलि-हिन्दू धर्म एवं विश्व मानवता पर एक कलंक
Type: SCAN
Language: HINDI
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Articles of Books

  • गृहस्थ जीवन में सरसता बनी रहे
  • तलाक कोई समाधान नहीं
  • ये मासूम भटकने न पायें
  • संयुक्त परिवार व्यवस्था को जीवंत बनाए रखें
  • बृहत् परिवार पनपें—पारस्परिक सौहार्द्र बढ़े!
  • परिवार संस्था की एक सुनिश्चित आधार संहिता
  • गृहस्थ एक तपोवन है, जीवन-साधना इसी में रहकर करें
  • नर और नारी परस्पर पूरक
  • आत्मीयता और समर्पण पर निर्भर दाम्पत्य जीवन
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj