• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • मानव जीवन विचारों का प्रतिबिम्ब
    • विचार शक्ति सर्वोपरि है
    • सभी मानसिक स्फुरणाएँ विचार नहीं
    • विचारों का महत्त्व और प्रभुत्व
    • विकास और शोध का श्रेय विचार को
    • अद्भुत उपलब्धियों का आधार
    • दिव्य विचारों से उत्कृष्ट जीवन
    • विचारों का व्यक्तित्व एवं चरित्र पर प्रभाव
    • विचारशील लोग दीर्घायु होते हैं
    • प्रसन्नता का वास्तविक स्वरूप
    • विचार ही चरित्र निर्माण करते हैं
    • श्रेष्ठ व्यक्ति के आधार सद्विचार
    • विचारशक्ति सदा अमोघ
    • सर्वश्रेष्ठ साधना
    • सद्विचारों का निर्माण सत् अध्ययन- सत्संग से
    • निर्वाण् षटकम्
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • मानव जीवन विचारों का प्रतिबिम्ब
    • विचार शक्ति सर्वोपरि है
    • सभी मानसिक स्फुरणाएँ विचार नहीं
    • विचारों का महत्त्व और प्रभुत्व
    • विकास और शोध का श्रेय विचार को
    • अद्भुत उपलब्धियों का आधार
    • दिव्य विचारों से उत्कृष्ट जीवन
    • विचारों का व्यक्तित्व एवं चरित्र पर प्रभाव
    • विचारशील लोग दीर्घायु होते हैं
    • प्रसन्नता का वास्तविक स्वरूप
    • विचार ही चरित्र निर्माण करते हैं
    • श्रेष्ठ व्यक्ति के आधार सद्विचार
    • विचारशक्ति सदा अमोघ
    • सर्वश्रेष्ठ साधना
    • सद्विचारों का निर्माण सत् अध्ययन- सत्संग से
    • निर्वाण् षटकम्
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Books - सद्विचारों की सृजनात्मक शक्ति

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT


श्रेष्ठ व्यक्ति के आधार सद्विचार

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 11 13 Last
अविचारी व्यक्ति कितने ही सुन्दर आवरण अथवा आडम्बर में छिपकर क्यों न रहे, उसकी अविचारिता उसके व्यक्तित्व में स्पष्ट झलकती रहेगी।
नित्य प्रति के सामान्य जीवन का अनुभव इस बात का साक्षी है कि बहुत बार हम ऐसे व्यक्तियों के सम्पर्क में आ जाते हैं जो सुन्दर वेश- भूषा के साथ- साथ सूरत- शकल से भी बुरे और भद्दे नहीं होते, तब भी उनको देखकर हृदय पर अनुकूल प्रतिक्रिया नहीं होती। यदि हम यह जानते हैं कि हम बुरे आदमी नहीं हैं और इस प्रतिक्रिया के पीछे हमारी विरोध भावना अथवा पक्षपाती दृष्टिकोण सक्रिय नहीं है, तो मानना पड़ेगा कि वे अच्छे विचार वाले नहीं हैं। उनका हृदय उस प्रकार स्वच्छ नहीं है जिस प्रकार बाह्य- वेश। इसके विपरीत कभी- कभी ऐसा व्यक्ति सम्पर्क में आता जाता है जिसका बाह्य- वेश न तो सुन्दर होता है और न उसका व्यक्तित्व ही आकर्षक होता है तब भी हमारा हृदय उससे मिलकर प्रसन्न हो उठता है, उससे आत्मीयता का अनुभव होता है। इसका अर्थ यही है कि वह आकर्षण बाह्य का नहीं अन्तर का है, जिसमें सद्भावनाओं तथा सद्विचारों के फूल खिले हुए हैं।
इस विचार प्रभाव को इस प्रकार भी समझा जा सकता है कि जब एक सामान्य पथिक किसी ऐसे मार्ग से गुजरता है जहाँ पर अनेक मृगछौने खेल रहे हों, सुन्दर पक्षी कल्लोल कर रहे हों तो वे जीव उसे देखकर सतर्क भले हो जाएँ और उस अजनबी को विस्मय से देखने लगें किन्तु भयभीत कदापि नहीं होते। किन्तु यदि उसके स्थान पर जब कोई शिकारी अथवा गीदड़ आता है तो वे जीव भय से त्रस्त होकर भागने और चिल्लाने लगते हैं। वे दोनों ऊपर से देखने में एक जैसे मनुष्य ही होते हैं किन्तु विचार के अनुसार उनके व्यक्तित्व का प्रभाव भिन्न- भिन्न होता है।
कितनी ही सज्जनोचित वेशभूषा में क्यों न हो, दुष्ट- दुराचारी को देखते ही पहचान लिया जाता है, साधु तथा सिद्धों के वेश में छिपकर रहने वाले अपराधी, अनुभवी पुलिस की दृष्टि से नहीं बच पाते और बात की बात में पकड़े जाते हैं। उनके हृदय का दुर्भाव उनका सारा आवरण भेद कर व्यक्तित्व के ऊपर बोलता रहता है।
जिस प्रकार के मनुष्य के विचार होते हैं वस्तुतः वह वैसा ही बन जाता है। इस विषय में एक उदाहरण बहुत प्रसिद्ध है। बताया जाता है कि भृंगी पतंग, झींगुर को पकड़ लेता है और बहुत देर तक उसके सामने रहकर गुँजार करता रहता है। यहाँ तक कि उसे देखते- देखते बेहोश हो जाता है। उस बेहोशी की दशा में झींगुर की विचार परिधि निरन्तर उस भृंगी के स्वरूप तथा उसकी गुँजार से घिरी रहती है जिसके फलस्वरूप वह झींगुर भी कालान्तर में भृंगी जैसा ही बन जाता है। इसी भृंगी तथा कीट के आधार पर आदि कवि वाल्मीकि ने सीता और राम के प्रेम को वर्णन करते हुए एक बड़ी सुन्दर उक्ति अपने महाकाव्य में प्रस्तुत की है।
उन्होंने लिखा कि सीता ने अशोक- वाटिका की सहचरी विभीषण की पत्नी सरमा से एक बार कहा— सरमे! मैं अपने प्रभु राम का निरन्तर ध्यान करती रहती हूँ। उनका स्वरूप प्रतिक्षण मेरी विचार परिधि में समाया रहता है। कहीं ऐसा न हो कि भृंगी और पतंग के समान इस विचार तन्मयता के कारण मैं राम- रूप ही हो जाऊँ और तब हमारे दाम्पत्य- जीवन में बड़ा व्यवधान पड़ जायेगा। सीता की चिन्ता सुनकर सरमा ने हँसते हुए कहा— देवी! आप चिन्ता क्यों करती हैं, आपके दाम्पत्य- जीवन में जरा भी व्यवधान नहीं पड़ेगा। जिस प्रकार आप भगवान के स्वरूप का विचार करती रहती हैं, उसी प्रकार राम भी तो आपके रूप का चिन्तन करते रहते हैं। इस प्रकार यदि आप राम बन जायेंगी तो राम सीता बन जायेंगे। इससे दाम्पत्य- जीवन में क्या व्यवधान पड़ सकता है? परिवर्तन केवल इतना होगा कि पति- पत्नी और पत्नी- पति बन जायेगी। इस उदाहरण में कितना सत्य है नहीं कहा जा सकता, किन्तु यह तथ्य मनोवैज्ञानिक आधार पर पूर्णतया सत्य है कि मनुष्य जिन विचारों का चिन्तन करता है, उनके अनुरूप ही बन जाता है। इसी सन्दर्भ में एक गुरु ने अपने एक अविश्वासी शिष्य की शंका दूर करने के लिए उसे प्रायोगिक प्रमाण दिया— उन्होंने उस शिष्य को बड़े- बड़े सींगों वाला एक भैंसा दिखाकर कहा कि इसका यह स्वरूप अपने मन पर अंकित करके और इस कुटी में बैठकर निरन्तर उसका ध्यान तब तक करता रहे जब तक वे उसे पुकारें नहीं। निदान शिष्य कुटी में बैठा हुआ, बहुत समय तक उस भैंसे का और विशेष प्रकार के उसके बड़े- बड़े सींगों का स्मरण करता रहा। कुछ समय बाद गुरु ने उसे बाहर निकलने के लिए आवाज दी। शिष्य ने ज्यों ही खड़े होकर दरवाजे में सिर डाला कि वह अटक कर रुक गया। ध्यान करते- करते उसके सिर पर उसी भैंसे की तरह बड़े- बड़े सींग निकल आये थे। उसने गुरु को अपनी विपत्ति बतलाई और कृपा करने की प्रार्थना की। तब गुरु ने उसे फिर आदेश दिया कि वह कुछ समय उसी प्रकार अपने स्वाभाविक स्वरूप का चिंतन करे। निदान उसने ऐसा किया और कुछ समय में उसके सींग गायब हो गये।
आख्यान भले ही सत्य न हो किन्तु उसका निष्कर्ष अक्षरशः सत्य है कि मनुष्य जिस बात का चिंतन करता रहता है, जिन विचारों में प्रधानतया तन्मय रहता है वह उसी प्रकार का बन जाता है।
दैनिक जीवन के सामान्य उदाहरणों को ले लीजिये। जिन बच्चों को भूत- प्रेतों की काल्पनिक कहानियाँ तथा घटनाएँ सुनाई जाती रहती हैं वे उनके विचारों में घर कर लिया करती हैं, और जब कभी वे अँधेरे- उजेले में अपने उन विचारों से प्रेरित हो जाते हैं तो उन्हें अपने आस- पास भूत- प्रेतों का अस्तित्व अनुभव होने लगता है जबकि वास्तव में वहाँ कुछ होता नहीं है। उन्हें परछाइयों तथा पेड़- पौधों तक में भूतों का आकार दिखाई देने लगता है। यह उनके भूतात्मक विचारों की ही अभिव्यक्ति होती है जो उन्हें दूर पर भूतों के आकार में दिखलाई देती है। अन्धविश्वासियों के विचार में भूत- प्रेतों का अस्तित्व होता है और उसी दोष के कारण वे कभी- कभी खेलने- कूदने और तरह- तरह की हरकतें तथा आवाजें करने लगते हैं। यद्यपि ऊपर किसी बाह्य तत्त्व का प्रभाव नहीं होता तथापि उन्हें ऐसा लगता है कि उन्हें किसी भूत अथवा प्रेत ने दबा लिया है। किन्तु वास्तविकता यह होती है कि उनके विचारों का विकार ही अवसर पाकर उनके सिर चढ़कर खेलने लगता है। किसी दुर्बुद्धि अथवा दुर्बलमना व्यक्ति का जब यह विचार बन जाता है कि कोई उस पर उसे मारने के लिए टोना कर रहा है तब उसे अपने जीवन का ह्रास होता अनुभव होने लगता है। जितना- जितना यह विचार विश्वास में बदलता जाता है उतना- उतना ही वह अपने को क्षीण, दुर्बल तथा रोगी होता जाता अनुभव करता है, अन्त में ठीक- ठीक रोगी बनकर एक दिन मर तक जाता है। जबकि चाहे उस पर कोई टोना किया जा रहा होता है अथवा नहीं। फिर टोना आदि में उनके प्रेत- पिशाचों में वह शक्ति कहाँ जो जीवन- मरण के ईश्वरीय अधिकार को स्वयं ग्रहण कर सकें। यह और कुछ नहीं तदनुरूप विचारों की ही परिणति होती है।
मनुष्य के आन्तरिक विचारों के अनुरूप ही बाह्य परिस्थितियों का निर्माण होता है। उदाहरण के लिए किसी व्यापारी को ले लीजिये। यदि वह निर्बल विचारों वाला है और भय तथा आशंका के साथ खरीद- फरोख्त करता है, हर समय यही सोचता रहता है कि कहीं घाटा न हो जाय, कहीं माल का भाव न गिर जाय, कोई रद्दी माल आकर न फँस जाय, तो मानो उसे अपने काम में घाटा होगा अथवा उसका दृष्टिकोण इतना दूषित हो जायेगा कि उसे अच्छे माल में भी त्रुटि दीखने लगेगी, ईमानदार आदमी बेईमान लगने लगेंगे और उसी के अनुसार उसका आचरण बन जायेगा जिससे बाजार में उसकी बात उठ जायेगी। लोग उससे सहयोग करना छोड़ देंगे और वह निश्चित रूप से असफल होगा और घाटे का शिकार बनेंगे। अशुभ विचारों से शुभ परिणामों की आशा नहीं की जा सकती।कोई मनुष्य कितना ही अच्छा तथा भला क्यों न हो यदि हमारे विचार उसके प्रति दूषित हैं, विरोधी अथवा शत्रुतापूर्ण हैं तो वह जल्दी ही हमारा विरोधी बन जायेगा। विचारों की प्रतिक्रिया विचारों पर होना स्वाभाविक है। इसको किसी प्रकार भी वर्जित नहीं किया जा सकता। इतना ही नहीं यदि हमारे विचार स्वयं अपने प्रति ओछे तथा हीन हो जायें, हम अपने को अभागा एवं अक्षम चिन्तन करने लगें तो कुछ ही समय में हमारे सारे गुण नष्ट हो जायेंगे और हम वास्तव में दीन- हीन और मलीन बन जायेंगे। हमारा व्यक्तित्व प्रभावहीन हो जायेगा जो समाज में व्यक्त हुए बिना बच नहीं सकता।
जो आदमी अपने प्रति उच्च तथा उदात्त विचार रखता है, अपने व्यक्तित्व का मूल्य कम नहीं आँकता, उसका मानसिक विकास सहज ही हो जाता है। उसका आत्म- विकास आत्म- निर्भरता और आत्म- गौरव जाग उठता है। इसी गुण के कारण बहुत से लोग जो बचपन से लेकर यौवन तक दब्बू रहते हैं, आगे चलकर बड़े प्रभावशाली बन जाते हैं। जिस दिन से आप किसी दब्बू, डरपोक तथा साहसहीन व्यक्ति को उठकर खड़े होते और आगे बढ़ते देखें, समझ लीजिए कि उस दिन से उसकी विचारधारा बदल गई और अब उसकी प्रगति कोई रोक नहीं सकता।
विचारों के अनुसार ही मनुष्य का जीवन बनता- बिगड़ता रहता है। बहुत बार देखा जाता है कि अनेक लोग बहुत समय तक लोक प्रिय रहने के बाद बहिष्कृत हो जाया करते हैं। पहले तो उन्नति करते रहते हैं, फिर बाद में उनका पतन हो जाता है। इसका मुख्य कारण यही होता है कि जिस समय जिस व्यक्ति की विचारधारा शुद्ध, स्वच्छ तथा जनोपयोगी बनी रहती है और उसके कार्यों की प्रेरणा स्रोत बनी रहती है, वह लोकप्रिय बना रहता है। किन्तु जब उसकी विचारधारा स्वार्थ, कपट अथवा छल के भावों से दूषित हो जाती है तो उसका पतन हो जाता है। अच्छा माल देकर और उचित मूल्य लेकर जो व्यवसायी अपनी नीति, ईमानदारी और सहयोग को दृढ़ रखते हैं, वे शीघ्र ही जनता का विश्वास जीत लेते हैं और उन्नति करते जाते हैं। पर ज्यों ही उसकी विचारधारा में गैर- ईमानदारी, शोषण और अनुचित लाभ के दोषों का समावेश हुआ नहीं कि उसका व्यापार ठप्प होने लगता है। इसी अच्छी- बुरी विचारधारा के आधार पर न जाने कितनी फर्में और कम्पनियाँ नित्य ही उठती- गिरती रहती हैं।
First 11 13 Last


Other Version of this book



सद्विचारों की सृजनात्मक शक्ति
Type: TEXT
Language: HINDI
...


Releted Books



21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

संत विनोबा भावे
Type: SCAN
Language: HINDI
...

संत विनोबा भावे
Type: SCAN
Language: HINDI
...

अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान -1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान -1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान -1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान -1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान -1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान -1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान -1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान -1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

चेतना सहज स्वभाव स्नेह-सहयोग
Type: SCAN
Language: HINDI
...

चेतना सहज स्वभाव स्नेह-सहयोग
Type: SCAN
Language: HINDI
...

चेतना सहज स्वभाव स्नेह-सहयोग
Type: SCAN
Language: HINDI
...

चेतना सहज स्वभाव स्नेह-सहयोग
Type: SCAN
Language: HINDI
...

युग कि मांग प्रतिभा परिष्कार भाग-२
Type: SCAN
Language: EN
...

युग कि मांग प्रतिभा परिष्कार भाग-२
Type: SCAN
Language: EN
...

युग कि मांग प्रतिभा परिष्कार भाग-२
Type: SCAN
Language: EN
...

युग कि मांग प्रतिभा परिष्कार भाग-२
Type: SCAN
Language: EN
...

युग कि मांग प्रतिभा परिष्कार भाग-२
Type: SCAN
Language: EN
...

युग कि मांग प्रतिभा परिष्कार भाग-२
Type: SCAN
Language: EN
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Articles of Books

  • मानव जीवन विचारों का प्रतिबिम्ब
  • विचार शक्ति सर्वोपरि है
  • सभी मानसिक स्फुरणाएँ विचार नहीं
  • विचारों का महत्त्व और प्रभुत्व
  • विकास और शोध का श्रेय विचार को
  • अद्भुत उपलब्धियों का आधार
  • दिव्य विचारों से उत्कृष्ट जीवन
  • विचारों का व्यक्तित्व एवं चरित्र पर प्रभाव
  • विचारशील लोग दीर्घायु होते हैं
  • प्रसन्नता का वास्तविक स्वरूप
  • विचार ही चरित्र निर्माण करते हैं
  • श्रेष्ठ व्यक्ति के आधार सद्विचार
  • विचारशक्ति सदा अमोघ
  • सर्वश्रेष्ठ साधना
  • सद्विचारों का निर्माण सत् अध्ययन- सत्संग से
  • निर्वाण् षटकम्
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj