
श्री समर्थ गुरु की क्षमा वृत्ति
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एक दिन समर्थ निजानंद स्वामी के उत्सव में कहाड़ गए थे। वहाँ का कार्य समाप्त होने पर जब वे २०- २५ शिष्यों के साथ सज्जनगढ़ के किले की तरफ वापस जा रहे थे तो रास्ते में सबको भूख लगी। वहाँ भोजन की कोई व्यवस्था न होने से उन्होंने एक खेत से कुछ भुट्टे तोड़कर खाने की आज्ञा दे दी। जब शिष्य उन भुट्टों को भूनकर खा रहे थे उसी समय खेत का मालिक, जो एक साधारण जमींदार था, वहाँ आ पहुँचा। उसकी इस तरह अपने खेत से भुट्टे तोड़े जाने पर क्रोध आ गया और समर्थ गुरु को सबका मुखिया समझकर एक जार के डंठल से पीटने लगा। इस पर सब शिष्यों ने उसे पकड़ लिया और मारने लगे, पर समर्थ गुरु ने शिष्यों को रोका और खेत वाले को छुड़वा दिया। दूसरे दिन जब शिवाजी महाराज गुरु को स्नान कराने लगे तो उन्होंने उनकी पीठ पर मार पड़ने के निशान देखे। पूछने पर समर्थ गुरु ने कुछ भी नहीं कहा। पर जब समर्थ गुरु विश्राम करने चले गए तो शिवाजी ने एक शिष्य से बहुत आग्रह करके उस घटना का हाल मालूम कर लिया। उसने उसी समय उस जमींदार को पकड़कर लाने की आज्ञा दे दी। जब यह खेत वाला गिरफ्तार होकर दरबार में आया और उसने समर्थ को ऊँचे सिंहासन पर बैठे देखा तो उसे अपनी भूल मालूम हो। वह समझ गया कि उसने जिसे साधारण वैरागी समझकर पीट दिया था, वे महाराज शिवाजी के गुरु थे। वह भय से काँपने लगा और समर्थ गुरु के चरणों पर गिर पड़ा। शिवाजी उसे बहुत कड़ा दंड देने जा रहे थे, पर समर्थ गुरु ने उनको रोक दिया। उन्होंने उसका अपराध तुरंत क्षमा ही नहीं कर दिया वरन् शिवाजी से कहकर उस खेत को सदा के लिए उसको दिला दिया। इस प्रकार बुराई के बदले में भलाई किए जाते देखकर समस्त दर्शकों पर बड़ा प्रभाव पड़ा और उन्होंने जान लिया कि राजनीति में भाग लेने पर भी अध्यात्म की दृष्टि से समर्थ गुरु सच्चे संत है।