• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • समर्थ गुरु रामदास
    • विदेशी शासन से हिंदू धर्म में विकृति
    • विवाह से विरक्ति और गृह-योग
    • पंचवटी में साधन
    • देश भ्रमण और सामाजिक स्थिति का निरीक्षण
    • विभिन्न तीर्थों की यात्रा
    • माता से भेंट
    • समाज की रक्षा प्रथम कर्तव्य है
    • आदर्श साधु जनसेवक के लक्षण
    • राजनीतिक शिक्षा की आवश्यकता
    • सामाजिक कर्तव्यों का पालन
    • त्याग वृत्ति और सेवा भावना
    • राजा भगवान् का नौकर होता है
    • श्री समर्थ गुरु की क्षमा वृत्ति
    • दान लेने में अरुचि
    • अध्यात्मवाद का समर्थन
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • समर्थ गुरु रामदास
    • विदेशी शासन से हिंदू धर्म में विकृति
    • विवाह से विरक्ति और गृह-योग
    • पंचवटी में साधन
    • देश भ्रमण और सामाजिक स्थिति का निरीक्षण
    • विभिन्न तीर्थों की यात्रा
    • माता से भेंट
    • समाज की रक्षा प्रथम कर्तव्य है
    • आदर्श साधु जनसेवक के लक्षण
    • राजनीतिक शिक्षा की आवश्यकता
    • सामाजिक कर्तव्यों का पालन
    • त्याग वृत्ति और सेवा भावना
    • राजा भगवान् का नौकर होता है
    • श्री समर्थ गुरु की क्षमा वृत्ति
    • दान लेने में अरुचि
    • अध्यात्मवाद का समर्थन
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Books - समर्थ गुरु रामदास

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT


विभिन्न तीर्थों की यात्रा

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 5 7 Last
समर्थ गुरु रामदास के जीवन चरित्र में उनके देश-भ्रमण का जो वृत्तांत दिया गया है, उससे मालूम होता है कि उन्होंने सबसे पहले हिंदू-धर्म के केंद्र स्वरूप काशी की यात्रा की। वहाँ जब वे विश्वनाथ जी के मंदिर में पहुँचे तो वहाँ के कुछ पुजारियों ने उनकी वेशभूषा देखकर उन्हें कोई ब्राह्मणों से भिन्न जाति का वैरागी समझा। इससे उन्होंने उनको शिवजी की प्रतिमा के समीप जाने से निषेध किया। इस पर वे-'अच्छा, रामचंद्र की इच्छा' -यह कहकर शिवजी तथा पुजारियों को साष्टांग दंडवत् करके लौट पड़े। कहते हैं कि उनके बाहर निकलते ही पुजारियों को शिवजी की प्रतिमा दिखाई न पड़ने लगी। इससे वे घबड़ाए और दौड़कर समर्थ गुरु से क्षमा-प्रार्थना की। जब वे पुन: मंदिर में आए तो प्रतिमा पुन: दिखाई पड़ने लग गई। इस चमत्कार-जैसी घटना से काशी में उनका, सम्मान होने लगा और उन्होंने एक घाट पर हनुमान जी की मूर्ति की स्थापना कराई। प्रयाग और गया भी गए और फिर अयोध्या पहुँचे, जो उनके मुख्य इष्टदेव श्री रामचंद्र का लीलास्थल था। वहाँ कुछ समय ठहरकर वैरागी-समुदाय की व्यवस्था पर ध्यान दिया। फिर मथुरा, वृंदावन आदि ब्रज के तीर्थों को देखते हुए द्वारिका जा पहुँचे। वहाँ उन्होंने एक राम-मंदिर स्थापित करके एक महंत रख दिया। इसी प्रकार प्रभास क्षेत्र में रामदासी मठ की स्थापना करके लोगों को परमार्थ पथ का उपदेश दिया।

पंजाब का भ्रमण करते हुए वे श्रीनगर (कश्मीर) पहुँचे। वहाँ नानक पंथी साधुओं ने उनका बड़ा आदर-सत्कार किया। उनके व्यावहारिक अध्यात्म के उपदेशों से वे बड़े प्रभावित हुए और उनसे मंत्र-दीक्षा देने की प्रार्थना की। समर्थ गुरु रामदास इस प्रकार अकारण चेलों की संख्या बढ़ाते जाना अनुचित मानते थे। इसलिए उन्होंने उन साधुओं से कहा कि- गुरु नानकदेव ऐसे महान् पुरुष थे, जिन्होंने मुसलमानों से भी 'राम-राम' कहलाया था। उनका उपदेश ही किसी प्रकार कम नहीं है, आप उसी को अपने जीवन में सार्थक करो, तो बहुत बड़ा काम हो सकता है। वहाँ से चलकर वे हिमालय में केदारनाथ, बद्रीनाथ की यात्रा करके एक बहुत ऊँचे शिखर पर चढ़े, जहाँ हनुमान जी का 'श्वेत-मारुति' नामक स्थान बतलाया जाता है। हिमालय की यात्रा आज भी बड़ी कठिन है और अनेक स्थानों में यात्रा करते हुए प्राण संकट स्पष्ट जान पड़ता है। पर समर्थ गुरु रामदास अपनी सहनशक्ति के प्रभाव से, उस जमाने में जब यात्रा के वर्तमान साधनों में से एक भी न था, वहाँ के बड़े-बड़े विकट स्थानों में भ्रमण कर आए। वे अपने समस्त अनुयायियों को भी आरंभिक अवस्था में संयम-नियम, ब्रह्मचर्य तपस्या का जीवन बिताने का उपदेश देते थे, जिक्से आगामी जीवन में सांसारिक कठिनाइयों का अच्छी तरह सामना किया जा सके।

उत्तराखंड की यात्रा करके वे जगन्नाथ जी पहुँचे। पद्मनाभ नामक ब्राह्मण को सुयोग्य समझकर वहाँ भी श्रीराम मंदिर की स्थापना की और उसे व्यवस्थापक बना दिया। फिर पूर्वी समुद्र के किनारे चलते रामेश्वर के दर्शन किए और वहा से लंका पहुँच गए। वहाँ उन्होंने राम-भक्त हनुमान, विभीषण आदि का स्मरण किया और इस सम्बन्ध में कछ पद्य रचना की। लंका से वापस आकर भारतवर्ष के पश्चिमी किनारे होकर केरल, मैसूर, कर्नाटक आदि प्रदेशों को देखते हुए महाराष्ट्र में आ गए। यहाँ उन्होंने गोकर्ण, व्यंकटेश, मल्लिकार्जुन, बाल-नरसिंह, पालन-नरसिंह आदि प्रसिद्ध मूर्तियों का दर्शन। इसके बाद पंपासर, ऋष्यमूक, करवीर-क्षेत्र, पंढरपुर आदि होकर पंचवटी लौट आए।

समर्थ गुरु रामदास की आयु के १२ वर्ष बाल्यावस्था में व्यतीत हुए, जिसमें खेल-कूद कर अपने शरीर और सहज बुद्धि का पूरा विकास किया, फिर बारह वर्ष तपस्या करके मन पर पूर्ण नियंत्रण और आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त की ,उसके बाद १३ वर्ष तक भारत के समस्त भागों में भ्रमण करके देश का निरीक्षण किया, पतन और पराधीनता के कारणों की जाँच की, प्रत्येक स्थान में वे वहाँ के प्रमुख विचारशील सज्जनों से मिले और उनके साथ विचार- विनिमय किया। इस प्रकार देश के विभिन्न भागों की स्थिति का स्वयं निरीक्षण करने और दूसरों की सम्मति सुनने से उन्हें तत्कालीन परिस्थिति का बहुत अच्छा ज्ञान हो गया। उन्होंने उन कारणों की भी खोज की, जिनसे हिंदू-जाति की दिन पर दिन अवनति होती जाती है। यद्यपि वे उस समय सर्वव्यापी साधु के वेष में थे, पर जनता की मनोवृत्ति का विश्लेषण करके उन्होंने यह निर्णय किया कि इस समय हिन्दुओं को निवृत्ति मार्ग के बजाय प्रवृत्ति मार्ग का सच्चा स्वरूप बतलाना और उसके कर्तव्यों का ठीक ढंग से पालन करने की प्रेरणा देना अत्यावश्यक है। जो लोग जगत् को मिथ्या कहकर कहीं एकांत में जा बैठते है, वे देश तथा धर्म के उद्धार की दृष्टि से सर्वथा अयोग्य हैं। उस समय तो उन कर्मवीरों की आवश्यकता थी, जो विपरीत परिस्थितियों के साथ संघर्ष करने को स्वयं तैयार हों और दूसरों को भी वैसी प्रेरणा दे सकें। जनता का संगठन अपने इस कार्यक्रम की के लिए समर्थ गुरु ने सबसे पहले देश में विशेषत: महाराष्ट्र में धर्म-सेवकों का एक विशाल और सुदृढ़ संगठन बनाने की योजना को कार्यान्वित करना आरंभ किया। वे चारों तरफ घूमकर हनुमान जी के मंदिरों और उनके साथ शारीरिक व्यायाम करने के लिए अखाड़ों की स्थापना करने लगे। खास-खास स्थानों पर उन्होंने 'रामदासी मठ' की शाखाएँ भी स्थापित की, जिनका काम अपने आस-पास की कार्यवाहियों का संचालन करना था। कहा जाता है कि इस प्रकार उन्होंने सात-आठ सौ अखाड़ों और मंदिरों की स्थापना महाराष्ट्र में की थी। इससे उस समस्त प्रदेश में जाग्रति की लहर फैल गई और अपने देश तथा धर्म की रक्षा के लिए उद्यत होने लगे। ऐतिहासिकों का मत है कि समर्थ गुरु रामदास ने भारतीय समाज में केवल 'स्वराज्य' की भावना ही नहीं फैलाई वरन् योजनाबद्ध रूप से उस भावना को कार्यरूप में भी परिणत कराया। शिवाजी महाराज ने जब महाराष्ट्र को मुगल बादशाह और बीजापुर के शासक से स्वतंत्र कराने के लिए युद्ध की घोषणा की, उस समय समर्थ गुरु के देशव्यापी प्रचार के फलस्वरूप ही उनको सेना के लिए लाखों शूरवीर सिपाही और अन्य तरह की सहायता प्राप्त हुई थी।

यद्यपि समर्थ गुरु रामदास संसार त्यागकर साधु हो गए थे और उनका मुख्य उद्देश्य परमात्मा का सान्निध्य प्राप्त करना ही था, पर वे यह भी कहते थे कि मनुष्य चाहे जितना बड़ा ज्ञानी बन जाए, उसके लिए चाहे कर्म-अकर्म में किसी प्रकार का भेद न रहे, पर सांसारिक कर्तव्यों का त्याग नहीं करना चाहिए। इस संबंध में वे 'गीता' के सिद्धांत के मानने वाले थे- सक्ता: कर्मण्यविद्वांसो यथा कुर्वन्ति भारत। कुर्याद्विद्वांस्तथाSसक्तश्चिकीर्षुलोर्कसंग्रहम्।। न बुद्धिभेदं जनयेदज्ञानां कर्मसंगिनाम्। जोषयेत्सर्वंकर्माणि विद्वान्युक्तः समाचरन्।। (३- २५ -२६)

"हे अर्जुन ! कर्म में आसक्त हुए सांसारिकजन जैसे कर्म करते हैं, वैसे ही अनासक्त हुआ विद्वान् भी लोक-शिक्षण के उद्देश्य से कर्म करता रहे। उसको इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि आसक्त भाव से कर्म करने वाले 'अज्ञानियों, की बुद्धि में उसके उदाहरण को देखकर किसी प्रकार का भ्रम उत्पन्न न हो जाय। इसलिए उसे परमात्म-तत्त्व को जानते हुए भी समस्त कर्मों को ठीक तरह से करना चाहिए और दूसरों से भी कराना चाहिए।"

इस सिद्धांत के अनुसार समर्थ गुरु रामदास ने संसार से पूर्ण विरक्त होते हुए भी राष्ट्रहित के बडे़-बडे़ कामों को सिद्ध कराया। यद्यपि वे एक कौपीन, खड़ाऊँ और माला के अतिरिक्त अपने लिए कोई सामग्री नहीं रखते थे, पर हिंदू-जाति की रक्षा के लिए उन्होंने महाराज शिवाजी के राज्य-संस्थापन कार्य में हर तरह से सहयोग दिया। श्री महादेव गोविंद रानाडे और श्री राजवाड़े जैसे महाराष्ट्र के इतिहास की खोज करने वाले विद्वानों का कथन है कि-"महाराष्ट्र राज्य के वास्तविक संस्थापक समर्थ गुरु रामदास ही थे, शिवाजी उनकी तुलना की दृष्टि में निमित्त मात्र है। यदि समर्थ गुरु ने अपने प्रचार कार्य द्वारा जनता में हिंदुत्व की गहरी भावना जाग्रत् न की होती और बाद में भी वे सदैव लोगों को प्रेरणा न देते तो महाराज शिवाजी के कार्यक्रम का सफल होना असंभव ही था।"

First 5 7 Last


Other Version of this book



समर्थ गुरु रामदास
Type: TEXT
Language: HINDI
...

સમર્થ ગુરૂ રામદાસ
Type: SCAN
Language: GUJRATI
...


Releted Books



गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Pragya Puran Stories -2
Type: TEXT
Language: ENGLISH
...

Pragya Puran Stories -2
Type: TEXT
Language: ENGLISH
...

विश्व की महान नारियाँ-1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

विश्व की महान नारियाँ-1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

संत विनोबा भावे
Type: SCAN
Language: HINDI
...

संत विनोबा भावे
Type: SCAN
Language: HINDI
...

संत विनोबा भावे
Type: SCAN
Language: HINDI
...

अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान -1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान -1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

आध्यात्मिक कायाकल्प का विधि- विधान-२
Type: TEXT
Language: HINDI
...

दहेज दानव से सामाजिक लड़ाई लड़ी जाय
Type: SCAN
Language: HINDI
...

दहेज दानव से सामाजिक लड़ाई लड़ी जाय
Type: SCAN
Language: HINDI
...

पशुबलि-हिन्दू धर्म एवं विश्व मानवता पर एक कलंक
Type: SCAN
Language: HINDI
...

पशुबलि-हिन्दू धर्म एवं विश्व मानवता पर एक कलंक
Type: SCAN
Language: HINDI
...

वाल्मीकि रामायण से प्रगतिशील प्रेरणा
Type: TEXT
Language: HINDI
...

युग कि मांग प्रतिभा परिष्कार भाग-२
Type: SCAN
Language: EN
...

युग कि मांग प्रतिभा परिष्कार भाग-२
Type: SCAN
Language: EN
...

युग कि मांग प्रतिभा परिष्कार भाग-२
Type: SCAN
Language: EN
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Articles of Books

  • समर्थ गुरु रामदास
  • विदेशी शासन से हिंदू धर्म में विकृति
  • विवाह से विरक्ति और गृह-योग
  • पंचवटी में साधन
  • देश भ्रमण और सामाजिक स्थिति का निरीक्षण
  • विभिन्न तीर्थों की यात्रा
  • माता से भेंट
  • समाज की रक्षा प्रथम कर्तव्य है
  • आदर्श साधु जनसेवक के लक्षण
  • राजनीतिक शिक्षा की आवश्यकता
  • सामाजिक कर्तव्यों का पालन
  • त्याग वृत्ति और सेवा भावना
  • राजा भगवान् का नौकर होता है
  • श्री समर्थ गुरु की क्षमा वृत्ति
  • दान लेने में अरुचि
  • अध्यात्मवाद का समर्थन
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj