Saturday 12, July 2025
कृष्ण पक्ष द्वितीया, श्रवण 2025
पंचांग 12/07/2025 • July 12, 2025
श्रावण कृष्ण पक्ष द्वितीया, कालयुक्त संवत्सर विक्रम संवत 2082, शक संवत 1947 (विश्वावसु संवत्सर), आषाढ़ | द्वितीया तिथि 01:46 AM तक उपरांत तृतीया | नक्षत्र उत्तराषाढ़ा 06:36 AM तक उपरांत श्रवण | विष्कुम्भ योग 07:31 PM तक, उसके बाद प्रीति योग | करण तैतिल 02:00 PM तक, बाद गर 01:46 AM तक, बाद वणिज |
जुलाई 12 शनिवार को राहु 08:56 AM से 10:39 AM तक है | चन्द्रमा मकर राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 5:29 AM सूर्यास्त 7:16 PM चन्द्रोदय 8:45 PM चन्द्रास्त 7:33 AM अयन उत्तरायण द्रिक ऋतु वर्षा
V. Ayana दक्षिणायन
- विक्रम संवत - 2082, कालयुक्त
- शक सम्वत - 1947, विश्वावसु
- पूर्णिमांत - श्रावण
- अमांत - आषाढ़
तिथि
- कृष्ण पक्ष द्वितीया
- Jul 12 02:08 AM – Jul 13 01:46 AM
- कृष्ण पक्ष तृतीया
- Jul 13 01:46 AM – Jul 14 01:02 AM
नक्षत्र
- उत्तराषाढ़ा - Jul 11 05:56 AM – Jul 12 06:36 AM
- श्रवण - Jul 12 06:36 AM – Jul 13 06:53 AM

भावी सम्भावनायें और हमारा कर्त्तव्य | Bhavi Sambhavnaye Aur Hamara Kartavya | Rishi Chintan Youtube

अमृत सन्देश:- नए युग की तैयारी | Naye Yug Ki Taiyari
गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन







आज का सद्चिंतन (बोर्ड)



आज का सद्वाक्य




नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन

!! शांतिकुंज दर्शन 12 July 2025 !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!

अमृतवाणी: हर क्षेत्र में जरूरी है मनोयोग | पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड-ज्योति से
नारी को भी मनुष्य माना जा सके। दोनों के बीच भेदभाव बरती जाने वाली सामन्तवादी अन्धकार युग की मान्यता को उलटकर सतयुगी प्रचलन के साथ जोड़ा जा सके। आज तो लड़की-लड़के के सम्बन्ध में दृष्टिकोण का असाधारण अन्तर है। लड़की के जन्मते ही परिवार का मुँह लटक जाता है और लड़का होने पर बधावा बँटने और नगाड़े बजने लगते हैं। लड़का कुल का दीपक और लड़की पराए घर का कूड़ा समझी जाती है। वरपक्ष दहेज की लम्बी चौड़ी माँगें करते हैं और लड़की के अभिभावक विवशता के आगे सिर झुकाकर लुट जाने के लिए आत्म समर्पण करते है। पति के तनिक में अप्रसन्न होने पर उन्हें परित्यक्ता बना दिया जाता और रोते-कल्पते जैसे-तैसे भला-बुरा जीवन जीने की घटनाएँ इतनी कम नहीं होती जिनको आजादी दी जा सके।
दहेज के लिए यातनाएँ दिए जाने की कुछ घटनाएँ तो अखबारों तक में छप जाती है। पर जो भीतर ही भीतर दबा दी जाती है, उनकी संख्या छपने वाली घटनाओं से अनेक गुनी अधिक है। पतिव्रत पालन के लिए लौह अंकुश रहता है पर पत्नीव्रता का कहीं अता-पता नहीं। विधुर प्रसन्नता पूर्वक विवाह करते है पर विधवाओं को ऐसी छूट कहाँ? नारियाँ सती होती है, पर नर वैसा उदाहरण प्रस्तुत नहीं करते। नारियाँ घूँघट मार कर रहती है। नाक, कान छिदवाकर सजधज से रहने के लिए उन्हें इसलिए बाधित किया जाता है कि वे अपना रमणी, कामिनी, भोग्या और दासी होने की नियति का स्वेच्छा पूर्वक उत्साह पूर्वक मानस बनाए जा सकें।
लोक मानस का यह लौह आवरण हटे बिना नारी को नर के समतुल्य बनाने और उन्हें अपनी प्रतिभा का परिपूर्ण परिचय देकर प्रगति पथ पर कंधे से कंधा मिलाकर चलते रहने का अवसर आखिर कैसे मिल सकता है? आवश्यकता इस लौह आवरण के ऊपर लाखों करोड़ों छैनी हथौड़े चलाने की है, ताकि निविड़ बंधनों ने आधी जनसंख्या की मुश्कें कसकर जिस प्रकार डाली हुई है, उनसे छुटकारा पाने के लिए उपयुक्त वातावरण बन सके। अपने मिशन का नारी जागरण अभियान इसी गहराई तक पहुँचने का प्रयत्न कर रहा है। उसका मन विष वृक्ष की जड़ काटने का है। पत्तों पर जमी धूलि पोंछ कर चिन्ह पूजा कर लेने से तो आत्म प्रवंचना और लोक विडम्बना भर बन पड़ती है।
नारी जागरण अभियान के लिए जो महिला मंडल गठित किए जा रहे है। उनका शुभारम्भ श्रीगणेश तो हल्के फुल्के कार्यक्रम को हाथ में लेकर ही किया जा रहा है। पर यह नव सृजन का भूमि पूजन मात्र है। वस्तु स्थिति अवगत कराने के लिए उस आन्दोलन को जन्म देना पड़ेगा जो मानवी स्वतंत्रता और समता का लक्ष्य पूरा करके ही विराम ले।
क्रमशः जारी
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड ज्योति अक्टूबर 1988 पृष्ठ 59
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