Wednesday 16, July 2025
कृष्ण पक्ष षष्ठी, श्रवण 2025
पंचांग 16/07/2025 • July 16, 2025
श्रावण कृष्ण पक्ष षष्ठी, कालयुक्त संवत्सर विक्रम संवत 2082, शक संवत 1947 (विश्वावसु संवत्सर), आषाढ़ | षष्ठी तिथि 09:02 PM तक उपरांत सप्तमी | नक्षत्र पूर्वभाद्रपदा 05:46 AM तक उपरांत उत्तरभाद्रपदा 04:50 AM तक उपरांत रेवती | शोभन योग 11:57 AM तक, उसके बाद अतिगण्ड योग | करण गर 09:53 AM तक, बाद वणिज 09:02 PM तक, बाद विष्टि |
जुलाई 16 बुधवार को राहु 12:23 PM से 02:06 PM तक है | चन्द्रमा मीन राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 5:31 AM सूर्यास्त 7:15 PM चन्द्रोदय 10:53 PM चन्द्रास्त 11:45 AM अयन उत्तरायण द्रिक ऋतु वर्षा
V. Ayana दक्षिणायन
- विक्रम संवत - 2082, कालयुक्त
- शक सम्वत - 1947, विश्वावसु
- पूर्णिमांत - श्रावण
- अमांत - आषाढ़
तिथि
- कृष्ण पक्ष षष्ठी
- Jul 15 10:39 PM – Jul 16 09:02 PM
- कृष्ण पक्ष सप्तमी
- Jul 16 09:02 PM – Jul 17 07:09 PM
नक्षत्र
- पूर्वभाद्रपदा - Jul 15 06:26 AM – Jul 16 05:46 AM
- उत्तरभाद्रपदा - Jul 16 05:46 AM – Jul 17 04:50 AM
- रेवती - Jul 17 04:50 AM – Jul 18 03:39 AM

अमृतवाणी:- भविष्य की चिंता और आदमी की भूमिका | Bhavishay Ki Chinta Aur Admi Ki Bhumika पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य

क्या कुंडलिनी जागरण वास्तव में ध्यान के लिए बेहतर है? अमृतवाणी
गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन







आज का सद्चिंतन (बोर्ड)




आज का सद्वाक्य




नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन

!! शांतिकुंज दर्शन 16 July 2025 !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!

अमृतवाणी: अध्यात्म की कसौटी | पं श्रीराम शर्मा आचार्य
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
बेटे हमारे गुरु ने हमको बहुत ज्ञान दिया है बहुत ज्ञान दिया है विद्या के भंडार हमको बड़े दिए हैं लेकिन उसने देने से पहले यह पूछा है इस ज्ञान का तू करेगा क्या? करेगा क्या? जब उसने इस बात का विश्वास कर लिया है कि जिस काम के लिए जिस काम के लिए उसको दी जा रही है ठीक उसी काम में खर्च करेगा तो मुझे ज्ञान के भंडार डाल दिए बेटे पैसे के बाबत मैं अपना सबूत देता रहा हूँ पाँच आदमी हम अपने घर में रहे हैं हम और हमारी धर्मपत्नी एक हमारी बूढ़ी माँ जो 92 वर्ष की उम्र पा करके उस वक्त मरी जब मैं यहाँ आया तीन दो हमारे बच्चे पाँच आदमी थे हम पाँच आदमियों में, दो सौ रुपया मासिक खर्च करते थे गरीब हम नहीं हैं हमारे पास दो हजार बीघा जमीन थी उसका जब पैसा खत्म हुआ तो बेटे हमने वहाँ जमा कर दिया, गायत्री तपोभूमि में और इससे पहले जो हम घर से आए हैं तो हमारे पास अस्सी बीघे जमीन थी जो पाँच हजार प्रति बीघे के हिसाब से बिकी और उससे चार लाख रुपया आया और वो चार लाख रुपये की दौलत हमने अपने गाँव की हाई सेकेंडरी स्कूल में खर्च कर दी हम गरीब नहीं है कंगाल नहीं है कंगाल नहीं है अभी भी अभी भी हम किसी प्रकाशक को लिखने लगे दो हजार रुपये महीना यहाँ घर बैठे दे जाएगा हमको कुछ करना चाहे तो लेकिन बेटे हमने गरीबी की जिंदगी जी क्यों? गरीबी की क्यों जिंदगी जी? दो सौ रुपये महीने की हमने क्यों जिंदगी जी? एक-एक पैसा एक-एक पैसा हमने यह समझ के रखा कि कितना कीमती है हम अपने लिए अनावश्यक कामों में, विलासिता में और दूसरी फिजूलखर्ची में खर्च कर दें इसकी अपेक्षा यह पैसा कहाँ खर्च हो सकता है? कहाँ जा सकता है? इसका क्या उपयोग हो सकता है? बेटे हमारी अक्ल ने यह अध्यात्म हमारे ऊपर दिया अध्यात्म उस कसौटी का नाम है जो कुछ मिला हुआ है उसकी पात्रता पहले साबित करिए नई चीजें माँगिए मत बंद कीजिए नई चीजें माँगे मत बंद कीजिए इससे पहले यह बताइए आप करेंगे क्या? और करेंगे क्या यह जवान के बाद भी हम नहीं मानते पहले सबूत दीजिए आपका व्यक्तित्व इस लायक है कि आपको कीमती चीजें, भगवान का दिया हुआ अनुग्रह, उसको आप पाकर के आप हजम कर सकते हैं यह उन्ही कामों में खर्च कर सकते हैं जिसके लिए एक भगवान अथवा देवता दीया करते हैं और दे रहे हैं और देंगे उसमें आप खर्च कर सकते हैं?
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड-ज्योति से
सतत अभ्यास द्वारा शरीर एवं मन को इच्छानुवर्ती बनाया जा सकता है तथा उन्हें असामान्य कार्यों के कर सकने के लिए भी सहमत किया जा सकता है। प्रतिभा-योग्यता के विकास में बुद्धि आवश्यक तो है, सर्वसमर्थ नहीं। बुद्धिमान होते हुए भी विद्यार्थी यदि पाठ याद न करे, पहलवान व्यायाम को छोड़ दे, संगीतज्ञ, क्रिकेटर अभ्यास करना छोड़ दें, चित्रकार तूलिका का प्रयोग न करे, कवि भाव संवेदनाओं को सँजोना छोड़ बैठे, तो उसे प्राप्त क्षमता भी क्रमश: क्षीण होती जायेगी और अंतत: लुप्त हो जायेगी, जबकि बुद्धि की दृष्टिï से कम पर सतत अभ्यास में मनोयोगपूर्वक लगे, व्यक्ति अपने अन्दर असामान्य क्षमताएँ विकसित कर लेते हैं। निश्चित समय एवं निर्धारित क्रम में किया गया प्रयास मनुष्य को किसी भी प्रतिभा का स्वामी बना सकता है। जबकि अभ्यास के अभाव में प्रतिभाएँ कुंठित हो जाती हैं, उनसे व्यक्ति अथवा समाज को कोई लाभ नहीं मिल पाता।
मानव शरीर अनगढ़ है और वृत्तियाँ असंयमित। इन्हें सुगढ़ एवं सुसंयमित करना ही अभ्यास का लक्ष्य है। अनगढ़ काया एवं मन अनभ्यस्त होने के कारण सामान्यतया किसी भी नए कार्य को करने के लिए तैयार नहीं होते। उलटे अवरोध खड़ा करते हैं। उन्हें व्यवस्थित करने के लिए निरंतर अभ्यास की आवश्यकता पड़ती है। अभ्यास से ही आदतें बनती हैं और अंतत: संस्कार का रूप लेती हैं। परोक्ष रूप से अभ्यास की यह प्रक्रिया ही व्यक्तित्व का निर्माण करती है।
कितने ही व्यक्ति किसी भी कार्य को करने में अपने को असमर्थ मानते हैं। उन्हें असंभव जानकर प्रयास नहीं करते हैं। फलस्वरूप कुछ विशेष कार्य नहीं कर पाते, अपनी मान्यताओं के अनुरूप हेय एवं असमर्थ ही बने रहते हैं। जबकि किसी भी कार्य को करने का संकल्प कर लेने एवं आत्मविश्वास जुटा लेने वाले व्यक्ति उसमें अवश्य सफल होते हैं। आत्म विश्वास की कमी एवं प्रयास का अभाव ही मनुष्य को आगे बढऩे से रोकता तथा महत्त्वपूर्ण सफलताओं को पाने से वंचित रहता है।
मानवीय काया परमात्मा की विलक्षण संरचना है। सर्वसमर्थता के बीज उसके अन्दर विद्यमान है। उसे जैसा चाहे ढलाया, बनाया जा सकता है। सामान्यतया लोग कुछ दिनों तक तो बड़े उत्साह के साथ किसी भी कार्य को करने का प्रयास करते हैं, पर अभीष्टï सफलता तुरन्त न मिलने पर प्रयत्न छोड़ देते हैं। फलस्वरूप अपने प्रयत्नों से असफल सिद्ध होते हैं। जबकि धैर्य एवं मनोयोगपूर्वक सतत अभ्यास में लगे व्यक्ति असामान्य क्षमताएँ तक विकसित कर लेते हैं। अभ्यास आदतों का रूप लेने पर चमत्कारी परिणाम प्रस्तुत करते हैं। अभ्यास की प्रक्रिया द्वारा शारीरिक- मानसिक क्षमताओं का विकास ही नहीं, रोगों का निवारण भी किया जा सकता है। शरीर एवं मनोभावों की प्रतिक्रियाओं के आधार पर स्वयं को उपयोगी अभ्यासों के लिए सहमत करता है।
मानवीय काया एवं मन में शक्ति भण्डार छिपे पड़े हैं। विकास की असीम सम्भावनाएँ हैं। निर्धारित लक्ष्य की ओर प्रयास चल पड़े और उसमें धैर्य एवं क्रमबद्धता का समावेश हो जाय, तो असंभव समझे जाने वाले कार्य भी सम्भव हो सकते हैं। पहलवान, विचारवान, कवि, लेखक, वक्ता, चित्रकार, वैज्ञानिक, अध्यापक कोई अकस्मात नहीं बन जाते, वरन्ï उन्हें उसके लिए सतत प्रयास करना पड़ता है। शरीर एवं मन को निर्धारित लक्ष्य के लिए अभ्यस्त करना होता है। प्रयत्न करने पर कोई भी व्यक्ति अपने अनगढ़ शरीर एवं मन को प्रशिक्षित कर सकता है। अनगढ़ शरीर एवं मन को सुगढ़ एवं व्यवस्थित करने के लिए पूरे धैर्य के साथ सतत अभ्यास की आवश्यकता होती है।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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