Monday 23, June 2025
कृष्ण पक्ष त्रयोदशी, आषाढ़ 2025
पंचांग 23/06/2025 • June 23, 2025
आषाढ़ कृष्ण पक्ष त्रयोदशी, कालयुक्त संवत्सर विक्रम संवत 2082, शक संवत 1947 (विश्वावसु संवत्सर), ज्येष्ठ | त्रयोदशी तिथि 10:10 PM तक उपरांत चतुर्दशी | नक्षत्र कृत्तिका 03:16 PM तक उपरांत रोहिणी | धृति योग 01:17 PM तक, उसके बाद शूल योग | करण गर 11:46 AM तक, बाद वणिज 10:10 PM तक, बाद विष्टि |
जून 23 सोमवार को राहु 07:06 AM से 08:50 AM तक है | चन्द्रमा वृषभ राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 5:22 AM सूर्यास्त 7:17 PM चन्द्रोदय 2:46 AM चन्द्रास्त 5:24 PM अयन उत्तरायण द्रिक ऋतु वर्षा
V. Ayana दक्षिणायन
- विक्रम संवत - 2082, कालयुक्त
- शक सम्वत - 1947, विश्वावसु
- पूर्णिमांत - आषाढ़
- अमांत - ज्येष्ठ
तिथि
- कृष्ण पक्ष त्रयोदशी
- Jun 23 01:22 AM – Jun 23 10:10 PM
- कृष्ण पक्ष चतुर्दशी
- Jun 23 10:10 PM – Jun 24 06:59 PM
नक्षत्र
- कृत्तिका - Jun 22 05:38 PM – Jun 23 03:16 PM
- रोहिणी - Jun 23 03:16 PM – Jun 24 12:54 PM

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परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
आप यह मत सोचिए कि हम आपसे अलग हो जाएंगे। तो आप अपने मन में यह ख्याल करते हों कि चलो अच्छा हुआ, छुट्टी मिली। गुरु जी की रोज चिट्टियां आती थीं, कभी यह कहते थे, कभी यह कहते थे, कभी यह कहते थे। चलो अब कोई कहने वाला तो नहीं है। नहीं, कहने वाले तो हम रहेंगे। अभी, अभी अब हम भूत की तरीके से रहेंगे।
भूत आपने सुने हैं? कभी देखे? तो हमने भी नहीं हैं, पर शायद आपने सुने तो होंगे। भूत तो किसी के ऊपर आता है, तो यह कहता है, "यह करूंगा, यह करा लूंगा, यह करूंगा।" सिर हिलाता है, उठा-उठा कर फेंक देता है आदमियों को। ऐसा मैंने भूतों के बारे में सुना है। हम भूतों के तरीके से अगर आपमें जिंदगी है, तब। जिंदगी नहीं है, मरे हुए आदमी हैं, तब। मरे हुए आदमियों को तो गंगा जी में बहा देते हैं। उनकी हड्डियों को बहा दें, तो क्या? और जिंदा को फेंक दें?
तो अगर आप जिंदा हैं, तो हम आपका पीछा छोड़ने वाले नहीं हैं। अगर आप बुद्धिजीवी हैं, तो हम आपको नहीं छोड़ेंगे। कोई भी बुद्धिजीवी होगा, आगे से जाकर के अपनी सूक्ष्म शक्ति को इतना विकसित कर लेने के बाद में, हम खाली छोड़ने वाले नहीं हैं। कोई बुद्धिजीवी होगा, उसको हम झकझोरेंगे और कहेंगे कि भगवान ने आपको अकल दी है। इस अकल का इस समय इस्तेमाल कीजिए। इससे बढ़िया समय फिर कभी नहीं आएगा।
राजनेता हैं आप? शासन से आपका संबंध है? आप राजनेता हैं? अगर हैं, तो आप विश्वास रखिए, हम आपको तंग करेंगे। हम आपको काम कराएंगे। आपसे बहुत काम कराएंगे। आप कौन हैं? राजीव गांधी? कोई भी हों, हमें क्या मतलब है। लेकिन जो कोई भी है, राजनीति वाले, उनको हम चैन से नहीं बैठने देंगे।
जो हमारे मन में गुबार है, जो हमारे मन में भरा हुआ है, वह आपके ऊपर हम सींचते जाएंगे और उड़ेलते जाएंगे। और फिर हम आपसे काम कराएंगे। आप कौन हैं? कलाकार हैं? वक्ता हैं? गायक हैं? कवि हैं? कोई भी आप हैं। अब हम इससे अगले वाले दिनों में फिर आपसे संपर्क घना करेंगे। और घना इस कदर घना करेंगे कि आपको, आपके साथ में, उठक पटक का भी मौका आ सकता है।
आप कौन हैं? आप संपन्न हैं? मालदार आदमी हैं? अच्छा। तो मालदार आदमी को पैसे की बहुत सख्त जरूरत है, भाई साहब। इन दिनों इसकी जरूरत नहीं है कि आप मजा उड़ाएं और पैसे से अपने बेटे के लिए, पोतों के लिए, नातियों के लिए कुछ सामान रखें, और ये जेवर बनवाएं, और घर बनवाएं। इसकी जरूरत नहीं है। पैसे की दूसरे कामों के लिए बड़ी जरूरत है।
अगर आपके पास पैसा है, तो हम आपको तंग करेंगे और हम आपको उठा-उठा कर फेंक देंगे। और कौन है? सबसे बड़ी एक और चीज हो जाती है — भावना। भावना शील अगर आप हैं, तो आपकी भावनाओं को और किसी काम में खर्च नहीं होने देंगे। बल्कि समाज की आवश्यकताएं और राष्ट्र की आवश्यकताएं, विश्व की आवश्यकताएं जिस तरीके से इस समय हैं, हम उसी तरीके से आपकी शक्तियों को और इस तरीके से इस्तेमाल करेंगे। और आपकी शक्तियों का उपयोग ऐसे करेंगे, जिससे कि हमारे दो उद्देश्य पूरे हो जाएं।
अखण्ड-ज्योति से
मनुष्य को अपनी कार्य-सिद्धि के लिए जैसा उत्साह होता है वैसा उत्साह उसे कर्म-फल के लिए होता है वैसा ही उत्साह उसे कर्म करने में भी होना चाहिये। लोक-सेवा का स्वाभाविक फल यश की प्राप्ति है। अतएव यदि कोई यश प्राप्त करना चाहता है तो उसे लोक-सेवा में भी वैसी ही रुचि प्रदर्शित करनी चाहिए। यदि कोई दानी कहलाने की उत्कट इच्छा रखता है तो उसे दान देते समय अपना हाथ भी न सिकोड़ना चाहिये। किंतु बहुधा यह देखा जाता है कि मनुष्यों में कर्म-फल-भोग के लिए जो उत्साह देखा जाता है वैसा उत्साह कर्म करने के लिए नहीं। जहाँ कर्मोत्साह नहीं होता और कर्म-फल-भोग की भावना प्रबल होती है, वहाँ मनुष्य भटक जाता है और अधर्म करता है।
जिस मनुष्य के हृदय में अपने उद्देश्य की सिद्धि के लिए जितनी अधिक बलवती इच्छा होती है वह मनुष्य अपने उद्देश्य की सिद्धि के लिए उतनी ही तीव्रगति से अग्रसर होता है, किंतु यदि उसे अधर्म में प्रवृत्त नहीं होना है तो उसे अपने आपको तीव्रगति से कर्म में नियोजित करना चाहिए। उसे उद्देश्य को “येन केन प्रकारेण” सिद्ध कर लेने की इच्छा को भी अपने वश में रखना होगा। इच्छा की तीव्रता के कारण अन्याय-पूर्वक सफलता पा लेने के लोभ का भी संवरण करना होगा।
जोश के साथ यह होश भी उसे रखना होगा कि कहीं वह अनीति की राह पर न चल पड़े। उसे अपना कार्य भी सिद्ध करना है पर इसके लिए अनीति-पूर्ण, सरल और छोटे मार्ग पर भी नहीं चलना है। उसे अपना इष्ट साधन करना है पर उसमें आसक्त भी नहीं होना है। अतएव उसे अपने उद्देश्य को सिद्ध करने के लिए केवल इसी शर्त पर आगे बढ़ना चाहिए कि वह केवल न्याय-संगत साधनों का पर उद्देश्य के सरलतापूर्वक मिल जाने पर भी उसे अस्वीकार कर देगा।
अखण्ड ज्योति 1995 अगस्त पृष्ठ 31
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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