Tuesday 24, June 2025
कृष्ण पक्ष चतुर्थी, आषाढ़ 2025
पंचांग 24/06/2025 • June 24, 2025
आषाढ़ कृष्ण पक्ष चतुर्दशी, कालयुक्त संवत्सर विक्रम संवत 2082, शक संवत 1947 (विश्वावसु संवत्सर), ज्येष्ठ | चतुर्दशी तिथि 06:59 PM तक उपरांत अमावस्या | नक्षत्र रोहिणी 12:54 PM तक उपरांत म्रृगशीर्षा | शूल योग 09:35 AM तक, उसके बाद गण्ड योग | करण विष्टि 08:34 AM तक, बाद शकुनि 06:59 PM तक, बाद चतुष्पद |
जून 24 मंगलवार को राहु 03:48 PM से 05:32 PM तक है | 11:45 PM तक चन्द्रमा वृषभ उपरांत मिथुन राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 5:22 AM सूर्यास्त 7:17 PM चन्द्रोदय 3:38 AM चन्द्रास्त 6:36 PM अयन उत्तरायण द्रिक ऋतुवर्षा
V. Ayana दक्षिणायन
- विक्रम संवत - 2082, कालयुक्त
- शक सम्वत - 1947, विश्वावसु
- पूर्णिमांत - आषाढ़
- अमांत - ज्येष्ठ
तिथि
- कृष्ण पक्ष चतुर्दशी
- Jun 23 10:10 PM – Jun 24 06:59 PM
- कृष्ण पक्ष अमावस्या
- Jun 24 06:59 PM – Jun 25 04:01 PM
नक्षत्र
- रोहिणी - Jun 23 03:16 PM – Jun 24 12:54 PM
- म्रृगशीर्षा - Jun 24 12:54 PM – Jun 25 10:40 AM

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गुरु की शक्ति और ज्ञान | Guru Ki Shakti Aur Gyan
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
हम कहां रहेंगे, यह मत पूछना किसी से। हम कहां हैं, यह सवाल आपके लिए बिल्कुल बेबुनियाद है। यह तो उसी तरह का सवाल हो गया जैसे कि हम आपसे पहले मिला करते थे। गुरुजी कब मिलते हैं? कब पूजा से निवृत्त हो जाते हैं? कब बातचीत करते हैं? कब हमसे मिलेंगे?
आप यह मत कहिए। हमारे और आपके संबंध ऐसे रहेंगे, जिसमें हम आपकी बात को बड़े मजे में सुन लें और आप हमारी बात को बड़े मजे में सुन लें। हमारे गुरुदेव हिमालय पर रहते हैं, और देखा तो उनको ज़िंदगी में तीन-चार बार ही है। लेकिन चौबीसों घंटे हमारे संपर्क में रहते हैं। चौबीसों घंटे हमारे साथ-साथ में, हमसे बातचीत करते रहते हैं।
हम आपके साथ बराबर बातचीत जारी रखेंगे, और हम आपकी बात को बराबर सुनेंगे। हमारे कान जैसे भी कुछ हैं, पहले की अपेक्षा अब हमारे कान ज़्यादा साफ हो जाएंगे। ज़्यादा हम आपकी बात को सुन सकेंगे। जो आप कहना चाहते हैं, जो आपके मन में बात है, उसको हम सुन सकेंगे।
और हमारी ताकत भी अब इतनी होगी कि हम आपकी कुछ सेवा, ज़्यादा सेवा कर सकें, सहायता कर सकें। अभी तो क्या, भौतिक चीज़ों में से कुछ कहा होगा — हमारे ऊपर मुकदमा लग गया है, बाल-बच्चा नहीं होता है, मेरे पास पैसे की तंगी आ गई है। ऐसा आपने इन्हीं छोटी-छोटी बातों के लिए कहा होगा।
लेकिन हमारे गुरु ने छोटी-छोटी बातों के लिए हमको नहीं कहा था। हमको बड़ों के लिए कहा था, बड़ी-बड़ी बातों के लिए कहा था। और बड़ी-बड़ी बातों के लिए ही उन्होंने हमसे कहा था।
भगवान बुद्ध के संपर्क में अशोक आए। अशोक को उन्होंने बड़ी शानदार बात बताई — नालंदा विश्वविद्यालय बना देने के लिए। और वह धर्म को कहां से कहां उठा ले जाने के लिए। हर्षवर्धन बुद्ध के संपर्क में आए और उनको न जाने क्या-क्या बता दिया उन्होंने। आम्रपाली उनके संपर्क में आई, न जाने क्या-क्या बता दिया उन्होंने उसको। अंगुलिमाल उनके संपर्क में आया, जाने क्या-क्या बता दिया उन्होंने।
आप हमारे संपर्क में आएंगे, हम जाने क्या-क्या बताएंगे आपको। उन्हीं बातों को मत कहिए। उन बातों को माताजी से कह जाना कभी, या फिर यहां शांतिकुंज में कह जाना। शांतिकुंज में हम छाए रहे हैं, इससे आगे भी छाए रहेंगे।
अखण्ड-ज्योति से
मनुष्य को अपनी कार्य-सिद्धि के लिए जैसा उत्साह होता है वैसा उत्साह उसे कर्म-फल के लिए होता है वैसा ही उत्साह उसे कर्म करने में भी होना चाहिये। लोक-सेवा का स्वाभाविक फल यश की प्राप्ति है। अतएव यदि कोई यश प्राप्त करना चाहता है तो उसे लोक-सेवा में भी वैसी ही रुचि प्रदर्शित करनी चाहिए। यदि कोई दानी कहलाने की उत्कट इच्छा रखता है तो उसे दान देते समय अपना हाथ भी न सिकोड़ना चाहिये। किंतु बहुधा यह देखा जाता है कि मनुष्यों में कर्म-फल-भोग के लिए जो उत्साह देखा जाता है वैसा उत्साह कर्म करने के लिए नहीं। जहाँ कर्मोत्साह नहीं होता और कर्म-फल-भोग की भावना प्रबल होती है, वहाँ मनुष्य भटक जाता है और अधर्म करता है।
सच्ची उद्देश्य-सिद्धि न्याय पूर्ण तरीकों से ही हो सकती है। तभी वह स्थायी भी होती है। न्याय-संगत साधनों के प्रयोग से मनुष्य को न केवल साध्य की ही प्राप्ति होती है बल्कि उसे साधनकाल में अनेकों अन्य वस्तुओं की भी प्राप्ति हो जाती है जिनका कि मूल्य कभी-कभी उद्देश्य से भी कई गुना अधिक होता है। जो व्यक्ति न्यायपूर्ण तरीकों से धनी बनना चाहता है वह धन पाने के अतिरिक्त अध्यवसाय, मितव्ययिता आदि सद्गुण भी प्राप्त कर लेता है। जो विद्यार्थी ईमानदारी से परीक्षा पास होना चाहता है वह न केवल बी.ए., एम.ए. आदि उपाधियाँ ही प्राप्त करता है बल्कि ठोस ज्ञान भी प्राप्त करता है। वह एतर्द्थ ब्रह्मचर्य-धारण करना सीखता है, पूर्ण मनोयोग से कार्य करता है एवं अपने चित्त को विषय-विलासों से विरत रखता है। विद्याभ्यास और ब्रह्मचर्य के ही मिस से वह चित्त-संयम अथवा योग साधन में प्रवृत्त होता है जिसका कि मूल्य परीक्षा पास कर उपाधियाँ पाने और नौकरी पाने से कम नहीं।
जिस वस्तु को हम न्यायपूर्ण तरीकों से कमाते हैं उसकी रक्षा की योग्यता को हम अपने वंशजों को भी दे जाते हैं। यदि हम अन्यायपूर्ण तरीकों से कोई धन-राशि संचित करते हैं तो हममें उसको प्राप्ति के लिए जितने अध्यवसाय और आत्म-संयम की मात्रा होना चाहिए वह न होगी और फिर हमारी संतान में भी इन गुणों के होने की कम सम्भावना है। यदि हमारी संतान में आत्म-संयम का गुण न होगा तो वह उस धनराशि का दुरुपयोग कर उसे नष्ट कर डालेगी। इस तरह हम देखते हैं कि जिसमें किसी वस्तु के न्यायोचित ढंग से प्राप्त करने की योग्यता नहीं होती उसमें तथा उसकी संतान में उसकी रक्षा करने की भी सामर्थ्य नहीं रहती। यही कारण है कि हम बहुधा लक्षाधीशों के पुत्रों को अपने जीवन काल में कंगाल होते देखते हैं और भ्रमवश यह समझते हैं कि लक्ष्मी अकारण ही चंचल है।
अखण्ड ज्योति 1995 अगस्त पृष्ठ 31
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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