Thursday 26, June 2025
शुक्ल पक्ष प्रथमा, आषाढ़ 2025
पंचांग 26/06/2025 • June 26, 2025
आषाढ़ शुक्ल पक्ष प्रतिपदा, कालयुक्त संवत्सर विक्रम संवत 2082, शक संवत 1947 (विश्वावसु संवत्सर), आषाढ़ | प्रतिपदा तिथि 01:24 PM तक उपरांत द्वितीया | नक्षत्र आद्रा 08:46 AM तक उपरांत पुनर्वसु | ध्रुव योग 11:39 PM तक, उसके बाद व्याघात योग | करण बव 01:25 PM तक, बाद बालव 12:17 AM तक, बाद कौलव |
जून 26 गुरुवार को राहु 02:04 PM से 03:48 PM तक है | 01:39 AM तक चन्द्रमा मिथुन उपरांत कर्क राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 5:22 AM सूर्यास्त 7:17 PM चन्द्रोदय 5:46 AM चन्द्रास्त 8:37 PM अयन उत्तरायण द्रिक ऋतुवर्षा
V. Ayana दक्षिणायन
- विक्रम संवत - 2082, कालयुक्त
- शक सम्वत - 1947, विश्वावसु
- पूर्णिमांत - आषाढ़
- अमांत - आषाढ़
तिथि
- शुक्ल पक्ष प्रतिपदा
- Jun 25 04:01 PM – Jun 26 01:24 PM
- शुक्ल पक्ष द्वितीया
- Jun 26 01:24 PM – Jun 27 11:19 AM
नक्षत्र
- आद्रा - Jun 25 10:40 AM – Jun 26 08:46 AM
- पुनर्वसु - Jun 26 08:46 AM – Jun 27 07:21 AM

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अमृत सन्देश:- हिम्मत और आत्मविश्वास का महत्व | Himmat Aur Aatamvishwas Ka Mehtav पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य
गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन












आज का सद्चिंतन (बोर्ड)




आज का सद्वाक्य




नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन

!! शांतिकुंज दर्शन 26 June 2025 !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!

!! परम पूज्य गुरुदेव का कक्ष 26 June 2025 गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!

!! अखण्ड दीपक Akhand_Deepak (1926 से प्रज्ज्वलित) चरण पादुका गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार 26 June 2025

अमृतवाणी: बेकार की बातों से ऊपर उठिए, सार्थक जीवन अपनाइए पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
इस अमानवीय प्रतिबन्ध की प्रतिक्रिया बुरी हुई। नारी शारीरिक स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत पिछड़ गई। भारत में नर की अपेक्षा नारी की मृत्यु दर बहुत अधिक है। मानसिक दृष्टि से वह आत्महीनता की ग्रन्थियों में जकड़ी पड़ी है। सहमी, झिझकी, डरी, घबराई, दीन- हीन अपराधिन की तरह वह यहाँ- वहाँ लुकती छिपती देखी जा सकती है अन्याय अत्याचार और अपमान पग- पग पर सहते- सहते क्रमशः अपनी सभी मौलिक विशेषताएँ खोती चली गई। आज औसत नारी उस नीबू की तरह है, जिसका रस निचोड़ कर उसे कूड़े में फेंक दिया जाता है। नव यौवन के दो चार वर्ष ही उसकी उपयोगिता प्रेमी पतिदेव की आँखों में रहती है।
तीसरा एक और अतिवाद पनपा। अध्यात्म के सन्दर्भ से एक और बेसुरा राग अलापा गया कि नारी ही दोष- दुर्गुणों की, पाप- पतन की जड़ है। इसलिए उससे सर्वथा दूर रहकर ही स्वर्ग- मुक्ति और सिद्धि प्राप्त की जा सकती है। इस सनक के प्रतिपादन में न जाने क्या- क्या मनगढ़न्त कहानी गढ़कर खड़ी कर दी गई। लोग घर छोड़कर भागने में, स्त्री, बच्चों को बिलखता छोड़कर भीख माँगने और दर- दर भटकने के लिए निकल पड़े। समझा गया इसी तरह योग साधना होती होगी, इसी तरह स्वर्ग, मुक्ति और सिद्धि मिलती होगी। पर देखा ठीक उलटा गया। आन्तरिक अतृप्ति ने उनकी मनोभूमि को सर्वथा विकृत कर दिया और वे तथाकथित सन्त महात्मा सामान्य नागरिकों की अपेक्षा भी गई गुजरी मनःस्थिति के दलदल में फँस गये।
विरक्ति का जितना ही ढोंग उनने बनाया अनुरक्ति की प्रतिक्रिया उतनी ही उग्र होती चली गई। उनका अन्तरंग यदि कोई पढ़ सकता हो, तो प्रतीत होगा कि मनोविकारों ने उन्हें कितना जर्जर कर रखा है। स्वाभाविक की उपेक्षा करके अस्वाभाविक के जाल- जंजाल में बुरी तरह जकड़ गये हैं। ऐसे कम ही विरक्त मिलेंगे जिनने बाह्य जीवन में जैसे नारी के प्रति घृणा व्यक्त की है, वैसे ही अन्तरंग में भी उसे विस्मृत करने में सफल हो पाये हो। सच्चाई यह है कि विरक्ति का दम्भ अनुरक्ति को हजार गुना बढ़ा देता है। बन्दर का चिन्तन न करेंगे ऐसी प्रतिज्ञा करते ही बरबस बन्दर स्मृति पटल पर आकर उछलकूद मचाने लगता है।
... क्रमशः जारी
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
हमारी बातों का ध्यान करना। आप हमारे व्याख्यान सुनने पर ध्यान मत करना। "गुरु जी का व्याख्यान सुनने को नहीं मिला, अब की बार आते तो गुरु जी तो बहुत अच्छा व्याख्यान दिया करते हैं" — खबरदार, बेकार की बातें करते हो। गुरु जी का व्याख्यान सुना था? गुरु जी कौन हैं? नाचने वाले हैं? गाने वाले हैं? कोई जो आपको व्याख्यान सुनाएंगे और कथा सुनाएंगे, भागवत सुनाएंगे?
जो हम कहते हैं, वह आप सुनिए। और आप कहते हैं, वह हम सुनेंगे। हमने अपने गुरु को जो कहना था, सो हमने कहा। और हमारे गुरु को जो कहना था, वह उन्होंने कहा। सेकेंडों में बातचीत खत्म हो गई। और सेकेंडों में बातचीत खत्म हो जाने के बाद, उन्होंने फिर अपना-अपना फर्ज, अपनी-अपनी जिम्मेदारियां और अपने-अपने काम निभाना शुरू कर दिया। हमने अपना फर्ज और जिम्मेदारियां निभाना शुरू कर दिया। और अंतिम समय तक, जब तक हम जिंदा हैं, तब तक निभाते रहेंगे।
आप भी कीजिए ना ऐसा। आप ऐसा नहीं करना चाहते? आपका मन नहीं है ऐसा करने का? आप तो गुरु जी का नाच देखना चाहते हैं। आप तो गुरु जी का व्याख्यान सुनना चाहते हैं। आप तो गुरु जी की शक्ल देखना चाहते हैं। आप तो गुरु जी के साथ में गपबाज़ी करना चाहते हैं। आप तो गुरु जी के साथ में ताश खेलना चाहते हैं?
यह बेकार की बातें मत कीजिए। हमारी कीमत समझिए। अपनी कीमत समझिए। जिन लोगों को हमने ज़िंदगी भर में ढूंढा और तलाश किया है, बहुत शानदार आदमी हैं। और आप भी उन्हीं में से एक शानदार आदमी हैं।
आपको हम जो काम बताने वाले हैं, शानदार काम बताने वाले हैं, जिससे कि आप भी इस संसार की नाव में से पार हो सकें, और अपने कंधों पर बैठा कर के लाखों आदमियों को पार लगा सकें। हमने अपनी ज़िंदगी में हजारों आदमियों को कंधे पर बिठा कर के पार लगाया है, और स्वयं भी हम पार हुए हैं। डूबे नहीं हैं हम।
आप भी डूबिए मत। लोगों की ये जंजीरों में डूबिए मत। लोगों की जंजीरों में डूबिए मत। वासना, तृष्णा और अहंता के भवसागर में डूबिए मत। उठिए ज़रा। हम क्या कहते हैं, उसको सुनिए।
हमारी सफाई आप क्या करेंगे? आप कहां जा रहे हैं? आप कहां जा रहे हैं? आप क्यों नहीं बोलते? आप कहां जा रहे हैं? आप क्यों नहीं बोलते?
अब इन बेकार की बातों से कुछ लेना-देना नहीं है। काम की बातें कीजिए। काम की बातें हमने की हैं।
काम की बातें रामकृष्ण परमहंस ने विवेकानंद से की थीं। काम की बातें शिवाजी से समर्थ गुरु रामदास ने की थीं। काम की बातें चाणक्य ने चंद्रगुप्त से की थीं। काम की बातें गांधी जी ने विनोबा से की थीं।
और हम कुछ काम की बात कह रहे हैं। काम की बात सुन नहीं रहे। दिखाई क्यों नहीं पड़ते? यह बात क्यों नहीं करते? गप्पें क्यों नहीं हांकते?
आप कहां जाएंगे? आप कब बजे सो के उठेंगे? आप खाते क्या हैं? आप सोते कब हैं? आप पहनते क्या हैं?
फिर बेकार की बात से मुझे चिढ़ है, चिढ़ है। हम इतना महत्वपूर्ण काम करने जा रहे हैं, और आप कोई महत्वपूर्ण काम नहीं करेंगे?
आप महत्वपूर्ण काम कीजिए, बस।
अखण्ड-ज्योति से
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