Friday 27, June 2025
शुक्ल पक्ष द्वितीया, आषाढ़ 2025
पंचांग 27/06/2025 • June 27, 2025
आषाढ़ शुक्ल पक्ष द्वितीया, कालयुक्त संवत्सर विक्रम संवत 2082, शक संवत 1947 (विश्वावसु संवत्सर), आषाढ़ | द्वितीया तिथि 11:19 AM तक उपरांत तृतीया | नक्षत्र पुनर्वसु 07:21 AM तक उपरांत पुष्य | व्याघात योग 09:10 PM तक, उसके बाद हर्षण योग | करण कौलव 11:19 AM तक, बाद तैतिल 10:31 PM तक, बाद गर |
जून 27 शुक्रवार को राहु 10:36 AM से 12:20 PM तक है | चन्द्रमा कर्क राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 5:23 AM सूर्यास्त 7:17 PM चन्द्रोदय 6:55 AM चन्द्रास्त 9:23 PM अयन उत्तरायण द्रिक ऋतु वर्षा
V. Ayana दक्षिणायन
- विक्रम संवत - 2082, कालयुक्त
- शक सम्वत - 1947, विश्वावसु
- पूर्णिमांत - आषाढ़
- अमांत - आषाढ़
तिथि
- शुक्ल पक्ष द्वितीया
- Jun 26 01:24 PM – Jun 27 11:19 AM
- शुक्ल पक्ष तृतीया
- Jun 27 11:19 AM – Jun 28 09:54 AM
नक्षत्र
- पुनर्वसु - Jun 26 08:46 AM – Jun 27 07:21 AM
- पुष्य - Jun 27 07:21 AM – Jun 28 06:35 AM

नारी का सहज सौम्य स्वरूप पुनः प्रतिष्ठित | Nari Ka Sahaj Saumya Swaroop Punah Prasthith गुरुदेव के बिना पानी पिए लिखे हुए फोल्डर-पत्रक से

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अमृतवाणी: युग निर्माण योजना की कार्य पद्घति पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
युग निर्माण योजना की कार्य पद्घति को तीन चरणों में विभाजित किया गया है। पहला चरण ज्ञान यज्ञ-लोगों को दिशाएँ देना, लोगों के विचारों की विकृतियों का समाधान करना, गलत सोचने के तरीके को सही सोचने में परिणत कर देना-यह रहा पहला कदम। आदमी के विचार करने का क्रम यदि सही न हो तो वह अच्छे काम-सही काम नहीं कर सकता। सही काम आदमी करे, इसके लिए उसके चिन्तन की शैली, विचार करने की शैली को परिष्कृ त होना ही चाहिए। इन पिछले दिनों में जब विचारों की विकृृति चारों ओर से फैला दी गई है, क्या धर्म, क्या समाज, क्या राजनीति? हर क्षेत्र में मनुष्य को दिग्भ्रान्त करने की कोशिश की गयी है। उसके विचारों को सुलझाने की अपेक्षा और ओछा और उजड्ड बना दिया। इन उद्विग्न मानसिक परिस्थितियों का समाधान करना आवश्यक है और नये सिरे से पुराने घास-कूड़े और कूड़े -कबाड़े को जो हमारे विचारों, और मान्यताओं और परम्पराओं के रूप में विद्यमान है, उसको हटाकर के उसमें जो विवेकयुक्त और बुद्घिसंगत विचार पद्घति है, उसकी स्थापना करने का काम ज्ञान यज्ञ का है। पहला कार्य अपनी योजना का ज्ञान है। ज्ञान अगर न हो, विचार न हो तो आगे वाले कदम कैसे उठाएँ जा सकते हैं? इसलिए पहला ज्ञानयज्ञ का परिचय बताया जा चुका। ज्ञान ने मनुष्य के जीवन को प्रभावित किया कि नहीं? मनुष्य में उसकी संवेदना उत्पन्न हुई कि नहीं? मनुष्य ने उस पर विश्वास किया कि नहीं, जो सुना था? जो सुना था, उस पर विश्वास किया तो उसके लिए कुछ त्याग करने के लिए, कुछ कष्ट सहने के लिए, कुछ आगे कदम बढ़ाने के लिए तैयार होना ही चाहिए।
अखण्ड-ज्योति से
आध्यात्मिक काम विज्ञान का प्रतिपादन यह है कि अतिवाद की भारी दीवारें गिरा दी जाय और नारी को नर की ही भाँति सामान्य और स्वाभाविक स्थिति में रहने दिया जाय। इससे एक बड़ी अनीति का अन्त हो जायेगा। अतिवाद के दोनों ही पक्ष नारी के वर्चस्व पर भारी चोट पहुँचाते हैं और उसे दुर्बल, जर्जर एवं अनुपयोगी बनाते हैं। इसलिए इन जाल- जंजालों से उसे मुक्त करने के लिए उग्र और समर्थ प्रयत्न किये जाय।
प्रयत्न होना चाहिए कि नारी की माँसलता की अवांछनीय अभिव्यक्तियाँ उभारने वालों से अनुरोध किया जाय, कि वे अपने विष बुझे तीर कृपाकर तरकस में बन्द कर लें। फिल्म वाले इस दिशा में बहुत आगे बढ़ गये हैं। उनने बन्दर के हाथ तलवार लगने जैसी कुचेष्टा की आशंका की, वैसी ही करतूतें आरम्भ कर दी हैं। आग लगा देना सरल है बुझाना कठिन। मनुष्य की पशु प्रवृत्तियों को, यौन उद्वेग और काम विकारों को भड़का देना सरल है पर उस उभार से जो सर्वनाश हो सकता है, उससे बचाव की तरकीब ढूँढ़ना कठिन है। नासमझ लड़के- लड़कियों पर आज का सिनेमा क्या प्रभाव डाल रहा है और उनकी मनोदशा को किधर घसीटे लिये जा रहा है, इस पर बारीकी से दृष्टि डालने वाला दुखी हुए बिना न रहेगा।
कला के अन्य क्षेत्रों में काम करने वाले विभूतिवानों से करबद्ध प्रार्थना की जाय कि वे नारी को पददलित करने के पाप पूर्ण अभियान में जितना कुछ कर चुके, उतना ही पर्याप्त मान लें आगे की ओर निशाने न साधें। कवि लोग ऐसे गीत न लिखें, जिनसे विकारोत्तेजक प्रवृत्तियाँ भड़के। साहित्यकार, उपन्यासकार कलम से नारी के गोपनीय सन्दर्भों पर भड़काने वाली चर्चा छोड़कर सरस्वती की साधना को अगणित धाराओं में प्रयुक्त कर अपनी प्रतिभा का परिचय दें। गायक विकारोत्तेजना और श्रृंगार रस को कुछ दिन तक विश्राम कर लेने दें। सामन्तवादी अन्धकार युग के दिनों उसे ही तो एक छत्र राज्य मिला है। गायन का अर्थ ही पिछले दिनों कामेन्द्रिय रहा है। राज्य दरबारों से लेकर मनचले आवारा हिप्पियों तक उसी को माँगा जाता रहा है।
अब कुछ दिनों से गान विश्राम ले लें और दूसरे रसों को भी जीवित रहने का अवसर मिल जाय तो क्या हर्ज है? कुछ दिन तक घुँघरू न बजें, पायल न खनकें तो भी कला जीवित रहेगी। चित्रकार नव यौवना की शालीनता पर पर्दा पड़ा रहने दें, पतित दुःशासन द्वारा द्रौपदी को नंगा करने की कुचेष्टा न करें, तो भी उनकी चित्रकारिता सराही जा सकती है। चित्रकला के दूसरे पक्ष भी हैं, क्यों न कुशल चित्रकार सुरुचि उत्पन्न करने वाले चित्र बनायें। मूर्तिकार क्यों न मानवीय अन्तर्वेदना को उभारने वाली प्रतिमायें बनायें।
नारी के प्रति हमारा चिन्तन सखा, सहचर और मित्र जैसा सरल स्वाभाविक होना चाहिए। उसे सामान्य मनुष्य से न अधिक माना जाय न कम। पुरुष और पुरुष, स्त्रियाँ और स्त्रियाँ जब मिलते है तो उनके असंख्य प्रयोजन होते हैं, काम सेवन जैसी बात वे सोचते भी नहीं। ऐसे ही नर- नारी का मिलन भी स्वाभाविक सरल और सौम्य बनाया जाना चाहिए। यह स्थिति निश्चित रूप से आ सकती है, क्योंकि वही प्राकृतिक है। इसी प्रकार रूढ़िवादियों से कहा जाना चाहिए कि प्रतिबन्धों से व्यभिचार रुकेगा नहीं, बढ़ेगा। जिस स्त्री का मुँह ढँका होता है उसे देखने को मन चलेगा पर मुँह खोले सड़क पर हजारों लाखों स्त्रियों में से किसी की ओर नजर गड़ाने की इच्छा नहीं होती चाहे वे रूपवान हो या कुरूप।
... क्रमशः जारी
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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