Saturday 28, June 2025
शुक्ल पक्ष तृतीया, आषाढ़ 2025
पंचांग 28/06/2025 • June 28, 2025
आषाढ़ शुक्ल पक्ष तृतीया, कालयुक्त संवत्सर विक्रम संवत 2082, शक संवत 1947 (विश्वावसु संवत्सर), आषाढ़ | तृतीया तिथि 09:54 AM तक उपरांत चतुर्थी | नक्षत्र पुष्य 06:35 AM तक उपरांत आश्लेषा | हर्षण योग 07:15 PM तक, उसके बाद वज्र योग | करण गर 09:54 AM तक, बाद वणिज 09:28 PM तक, बाद विष्टि |
जून 28 शनिवार को राहु 08:52 AM से 10:36 AM तक है | चन्द्रमा कर्क राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 5:23 AM सूर्यास्त 7:17 PM चन्द्रोदय 8:03 AM चन्द्रास्त 10:01 PM अयन उत्तरायण द्रिक ऋतुवर्षा
V. Ayana दक्षिणायन
- विक्रम संवत - 2082, कालयुक्त
- शक सम्वत - 1947, विश्वावसु
- पूर्णिमांत - आषाढ़
- अमांत - आषाढ़
तिथि
- शुक्ल पक्ष तृतीया
- Jun 27 11:19 AM – Jun 28 09:54 AM
- शुक्ल पक्ष चतुर्थी
- Jun 28 09:54 AM – Jun 29 09:14 AM
नक्षत्र
- पुष्य - Jun 27 07:21 AM – Jun 28 06:35 AM
- आश्लेषा - Jun 28 06:35 AM – Jun 29 06:34 AM

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कद व ऋतं कद नृतं कप्रज्जा । - ऋग० १।१०५/५ क्या उचित है या अनुचित यह निरंतर विचारते रहो

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अमृत सन्देश:- आध्यात्मिकता के तीन कोष | Adhyatmikta Ke Teen Kosh पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य
एक समय की बात है, एक खुला विशाल मैदान था जहाँ दूर-दूर तक हरियाली फैली हुई थी। उसी मैदान के बीचोंबीच एक बहुत ही विशाल और घना पेड़ खड़ा था। उसकी शाखाएँ चारों ओर फैली थीं, और उसकी जड़ें बहुत गहराई तक फैली हुई थीं। वह पेड़ अपने आप में बहुत गर्व महसूस करता था। उसके आसपास के छोटे पौधे, झाड़ियाँ, घास के तिनके — सभी उसकी छाया में रहते थे और उसकी ताकत से प्रभावित होकर उसे बहुत आदर देते थे।
पेड़ को लगता था कि वह इस मैदान का राजा है, और बाकी सब केवल उसकी सेवा के लिए हैं। उसके भीतर घमंड भर चुका था। वह अपने से छोटे किसी भी जीव या पौधे को कोई महत्व नहीं देता था।
एक दिन, आकाश में काले बादल छा गए। तेज़ हवाएं चलने लगीं और तूफान आने के संकेत मिलने लगे। सारे पक्षी उड़कर सुरक्षित स्थानों की ओर चले गए। मैदान में खड़े सभी छोटे-बड़े पौधे डर के मारे काँपने लगे।
उसी समय, एक छोटा सा तिनका, जो तेज़ हवा में उड़ रहा था, पेड़ के पास आकर गिरा। तिनका बहुत हल्का था और तूफान के झोंकों में अपना संतुलन खो बैठा था। उसने पेड़ से विनम्रता से कहा,
"हे महान पेड़, मैं एक छोटा और निर्बल तिनका हूँ। यह तूफान मुझे उड़ा ले जाएगा। क्या मैं आपकी जड़ों के पास शरण ले सकता हूँ? आपकी जड़ें तो गहरी हैं, वहाँ मैं सुरक्षित रह पाऊँगा।"
पेड़ ने घमंड भरे स्वर में कहा,
"तिनके, तुम बहुत ही छोटे और तुच्छ हो। मैं इतना विशाल और ताकतवर हूँ। तुम्हारी उपस्थिति मेरे सम्मान को ठेस पहुँचाएगी। जाओ यहाँ से, मुझे तुम्हारी कोई ज़रूरत नहीं।"
बेचारा तिनका दुखी होकर वहाँ से चला गया और पास ही एक चट्टान की दरार में छिप गया। थोड़ी ही देर में तूफान पूरी शक्ति से मैदान पर टूट पड़ा। हवाएं भयानक गति से चलने लगीं। तेज़ वर्षा और गरजती बिजली ने सबको हिला कर रख दिया।
पेड़ ने भी अपनी पूरी ताकत से तूफान का सामना करने की कोशिश की। वह अपने आप को बहुत मजबूत समझता था, परंतु तूफान की शक्ति उससे कहीं अधिक थी। ज़ोरदार हवाओं ने उसकी जड़ों को ढीला कर दिया और अंत में वह विशाल पेड़ जमीन से उखड़ कर गिर पड़ा। उसकी टहनियाँ टूट गईं, और वह मैदान में नष्ट होकर बिखर गया।
तूफान के थमने के बाद, तिनका धीरे-धीरे बाहर निकला और देखा कि वह विशाल पेड़, जो कभी खुद को सबसे ताकतवर समझता था, अब धरती पर पड़ा हुआ है। तिनका शांत था, सुरक्षित था, और उसने सोचा —
"जिसने मुझे तुच्छ समझकर ठुकरा दिया था, उसका घमंड ही उसकी विनाश का कारण बन गया। मैं छोटा हूँ, पर विनम्रता और बुद्धिमत्ता के कारण आज सुरक्षित हूँ।"
सीख:
यह कहानी हमें यह सिखाती है कि अहंकार और घमंड का परिणाम विनाश होता है। जो व्यक्ति विनम्र होता है, वही विपरीत परिस्थितियों में भी सुरक्षित रहता है। हमें कभी भी किसी को छोटा या तुच्छ नहीं समझना चाहिए। हो सकता है, आज जो हमें छोटा लग रहा हो, वही कल किसी बड़ी शिक्षा का कारण बने। जीवन में विनम्रता, दयालुता, और सहनशीलता सबसे बड़ी ताकत होती है।
गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन







आज का सद्चिंतन (बोर्ड)




आज का सद्वाक्य




नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन

!! शांतिकुंज दर्शन 28 June 2025 !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!

अमृतवाणी:सेवा ही सच्ची पूजा है | Seva Hi Sacchi Pooja Hai पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
अपनी युग निर्माण योजना का दूसरा कदम ये है कि लोगों को कुछ रचनात्मक कार्य करने की, सेवा करने की प्रेरणा दी जाए। अपनी ही सेवा न करे आदमी, अपने बेटे की ही न करे बल्कि जिस समाज में पैदा हुआ है, जिस धर्म में पैदा हुआ है, जिस संस्कृति में पैदा हुआ है, जिस विश्व में पैदा हुआ है, उसकी भी सेवा करना उसका फर्ज है। ये बात समझ में आए, और थोड़ा सा समय से लेकर पैसे तक लोकमंगल के लिए खर्च करने लगे, तब ये जानना चाहिए कि हाँ, अब इस आदमी में थोड़ी सी परिपक्वता आई। परिपक्वता का चिह्न सेवा की कसौटी पर कसकर ही जाना जा सकता है। हर आदमी को सेवाभावी होना चाहिए। सेवा ही तो भजन है। कहते हैं सेवा-पूजा करता है कि नहीं। पूजा के साथ सेवा । पूजा की और सेवा न कर सका तो लूली-लंगड़ी, कानी-कुबड़ी पूजा । इसलिए सेवा,सेवा करने की वृत्ति समाज में पैदा करने की शिक्षा और हर आदमी को अपने जीवन का एक अंग मानकर के रचनात्मक कार्यों में जुट जाने की प्रेरणा रचनात्मक कार्य पद्घति की है। यह हमारा दूसरा चरण है। दूसरा चरण यही है कि आदमी को आठ घंटा सोना और आठ घंटा कमाना, आठ घंटे बच जाते हैं, उसमें से कम से कम, कम से कम चार घंटे खर्च करने चाहिए लोक मंगल के लिए। पहले एक घंटे की बात थी। एक घंटा ज्ञान प्रसार के लिए और दस पैसा खर्च करना चाहिए। अब इससे अगला कदम कम से कम चार घंटे खर्च करना चाहिए। और पैसे की दृष्टि से यदि संभव हो तो एक दिन की आमदनी खर्च करनी चाहिए, इन्ही लोक सेवा के कार्यों में। उनतीस दिन की आमदनी वह अपने लिए खर्च कर ले, चलिये कोई बात हुई। लेकिन एक दिन की आमदनी न खर्च कर सके समाज के लिए, ये क्या बात? एक दिन तो आदमी को अपनी आजीविका का खर्च करना ही चाहिए। अगर आदमी 100 रू. रोज कमाता है, तो तीन रूपये उसके हो गए। इतना भी नहीं देगा क्या समाज के लिए? सब बेटे को ही खिला देगा क्या? अपने पेट को ही खिला देगा क्या? क्या समाज का हक कुछ भी नहीं है ? समाज का हक है आदमी की आमदनी के ऊपर। सरकार टैक्स लेती है वो भी समाज का हक है। हर मनुष्य अपनी स्वेच्छापूर्वक समाज के लिए कुछ पैसे से लेकर समय तक का अनुदान दे, यह भी आवश्यक है। तभी तो रचनात्मक कार्य हो पाएंगे। वरना सब एक दूसरे को कहते भर रहेंगे, करेगा नहीं कोई। करने के लिए समय चाहिए , करने के लिए श्रम चाहिए, पसीना चाहिए और पैसा भी चाहिए। ये जो लोग देने लगें , तो समझना चाहिए दूसरा कदम हमारा आगे बढ़ा। व्यक्ति की दृष्टि से और कार्यक्रमों की दृष्टि से भी।
अखण्ड-ज्योति से
इसी प्रकार अध्यात्मवाद के नाम पर नारी तिरस्कार और बहिष्कार की बेवक्त शहनाई बन्द कर देनी चाहिए। जिन भगवान की हम उपासना करते है और जिनसे स्वर्ग मुक्ति सिद्धि माँगते हैं वे स्वयं सपत्नीक हैं। एकाकी भगवान एक भी नहीं। राम, कृष्ण, शिव, विष्णु आदि किसी भी देवता को लें सभी विवाहित हैं। सरस्वती, लक्ष्मी, काली जैसी देवियों तक को दाम्पत्य जीवन स्वीकार रहा है। हर भगवान और हर देवता के साथ उनकी पत्नियाँ विराजमान है फिर उनके मनों को अपने इष्ट देवों से भी आगे निकल जाने की बात क्यों सोचनी चाहिए?
सप्त ऋषियों में सातों के सातों विवाहित थे और उनके साधना काल की तपश्चर्या अवधि में भी पत्नियाँ उनके साथ रही। इससे उनके कार्य में बाधा रत्ती भर नहीं पहुँची, वरन् सहायता ही मिली। प्राचीन काल में जब विवेकपूर्ण आध्यात्म जीवित था तब कोई सोच भी नहीं सकता था कि आत्मिक प्रगति में नारी के कारण कोई बाधा उत्पन्न होगी।
रामकृष्ण परमहंस को विवाह की आवश्यकता अनुभव हुई और उनने उस व्यवस्था को तब जुटाया जब वे आत्मिक प्रगति के ऊँचे स्तर पर पहुँच चुके थे। काम सेवन और नारी सान्निध्य एक बात नहीं है। इसके अन्तर को भली- भाँति समझा जाना चाहिए। योगी अरविन्द घोष की साधना का स्तर कितना ऊँचा था, उसमें सन्देह करने की कोई गुंजायश नहीं है। उनके एकाकी जीवन की पूरी- पूरी साज सँभाल माताजी करती रही। इस सम्पर्क से दोनों की आत्मिक महत्ता बढ़ी ही घटी नहीं। प्रातः स्मरणीय माताजी ने अरविन्द के सम्पर्क से भारी प्रकाश पाया और योगिराज को यह सान्निध्य गंगा के समान पुण्य फलदायक सिद्ध हुआ। प्राचीन काल का ऋषि इतिहास तो आदि से अन्त तक इस सरल स्वाभाविक की सिद्धि करता चला आया है। तपस्वी ऋषि सपत्नीक स्थिति में रहते थे। जब जरूरत पड़ती प्रजनन की व्यवस्था बनाते अन्यथा आजीवन ब्रह्मचारी रहकर भी नारी सान्निध्य की व्यवस्था बनाये रखते। यह उनके विवेक पर निर्भर रहता था, प्रतिबन्ध जैसा कुछ नहीं था।
यह स्थिति आज भी उपयोगी रह सकती है। सन्त लोग अपना व्यक्तिगत जीवन विवाहित या अविवाहित जैसा भी चाहें बिताये पर कम से कम उन्हें इस अतिवाद का ढिंढोरा पीटना तो बन्द ही कर देना चाहिए, जिसके अनुसार नारी को नरक की खान कहा जाता है। यदि ऐसा वस्तुतः होता तो गाँधी जी जैसे सन्त नारी त्याग की बात सोचते। कोई अधिक सेवा सुविधा की दृष्टि से या उत्तरदायित्व हलके रखने की दृष्टि से अविवाहित रहे, तो यह उसका व्यक्तिगत निर्णय है। इससे यह सिद्ध नहीं होता कि ये भी कोई प्रतिबन्ध हो सकता है या होना चाहिए। सच तो यह है कि सन्त लोग यदि सपत्नीक सेवा कार्य में जुटें, तो वे अपना आदर्श लोगों के सामने प्रस्तुत करके उच्च स्तरीय गृहस्थ जीवन की सम्भावना प्रत्यक्ष प्रमाण की तरह प्रस्तुत कर सकते हैं।
... क्रमशः जारी
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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