Monday 30, June 2025
शुक्ल पक्ष पंचमी, आषाढ़ 2025
आषाढ़ शुक्ल पक्ष पंचमी, कालयुक्त संवत्सर विक्रम संवत 2082, शक संवत 1947 (विश्वावसु संवत्सर), आषाढ़ | पंचमी तिथि 09:24 AM तक उपरांत षष्ठी | नक्षत्र मघा 07:20 AM तक उपरांत पूर्व फाल्गुनी | सिद्धि योग 05:20 PM तक, उसके बाद व्यातीपात योग | करण बालव 09:24 AM तक, बाद कौलव 09:47 PM तक, बाद तैतिल |
जून 30 सोमवार को राहु 07:08 AM से 08:52 AM तक है | चन्द्रमा सिंह राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 5:24 AM सूर्यास्त 7:17 PM चन्द्रोदय 10:06 AM चन्द्रास्त 11:03 PM अयन उत्तरायण द्रिक ऋतु वर्षा
V. Ayana दक्षिणायन
- विक्रम संवत - 2082, कालयुक्त
- शक सम्वत - 1947, विश्वावसु
- पूर्णिमांत - आषाढ़
- अमांत - आषाढ़
तिथि
- शुक्ल पक्ष पंचमी
- Jun 29 09:14 AM – Jun 30 09:24 AM
- शुक्ल पक्ष षष्ठी
- Jun 30 09:24 AM – Jul 01 10:20 AM
नक्षत्र
- मघा - Jun 29 06:34 AM – Jun 30 07:20 AM
- पूर्व फाल्गुनी - Jun 30 07:20 AM – Jul 01 08:53 AM

अमृत सन्देश:- सांसारिक सफलता का रहस्य | Sansarik Safalta Ka Rehsay

संसार में कैसे रहें, Sansar Me Kaise Rahe | Motivational Story | स्वामी विवेकानन्द
गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन







आज का सद्चिंतन (बोर्ड)




आज का सद्वाक्य




नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन

!! शांतिकुंज दर्शन 30 June 2025 !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!

अमृतवाणी: महाभारत- बाहरी नहीं, आंतरिक युद्ध पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
अब समय ऐसा भी आ गया है जब संघर्ष, एक घनघोर संघर्ष करना पड़ेगा अवांछनीय तत्त्वों के साथ। और ये सहज में निपटने वाले नहीं हैं। शिक्षा से मानने वाले नहीं हैं। ऐसा सन्त कहाँ से आए जो सबको ठीक कर दे? फिलहाल जब तो एक ही बाल्मीकि था उसको तो ठीक कर लिया था सारे के सारे डाकू कहाँ ठीक हो गए डाकू हो तो डाकू को तो हिसाब से लड़ाना पड़ता है हिसाब से ही लड़ाना पड़ता है। उस हिसाब से लड़ाने के लिए संघर्ष की इन दिनों बहुत जरूरत पड़ेगी। संघर्ष करने के लिए मनुष्य और मनुष्य में टक्कर खाने की जरूरत नहीं है, लेकिन विचार और विचारों में घनघोर टक्कर होने ही वाली है। और ये महाभारत जिसका मैं वर्णन करता रहा हूँ और ये कहता रहा कि युग परिवर्तन के साथ-साथ एक बहुत भारी महाभारत की संभावना जुड़ी हुई है; वो महाभारत के लड़ाई- झगड़े के बारे में मैं नहीं कहता, तोप- तलवारों के बारे में नहीं कहता। तोप-तलवार वाले जो युद्घ होते हैं तो उससे कोई समस्या का हल नहीं होता बल्कि नयी-नयी समस्याएँ पैदा हो जाती हैं। कभी भी लड़ाई हुई उससे नयी समस्याएँ पैदा हो गयीं जिससे कि समाज का ढाँचा लड़खड़ा गया।हिन्दुस्तान में महाभारत हुआ। महाभारत के बाद में वो परिस्थितियाँ आ गयीं जो अब तक सँभलने में नहीं आ रही हैं।अब जो दूसरा युद्घ हुआ, उसमें कोई व्यक्ति है क्या जिसको हम मार डालेंगे। लाखों मनुष्य मार डाले जाते हैं, और लाखों मनुष्यों की हत्या हो जाती है, और लाखों मनुष्यों का न जाने क्या से क्या हो जाता है? उससे सारे समाज में विच्छंृृखलता पैदा हो जाती हैं। लाभ नहीं होता है। इसलिए वह भावी युद्ध तो होगा ही लेकिन तमंचों का, और तोपों का और ऐटम बमों का युद्ध होगा, ऐसा मैं कुछ नहीं कहता। होता होगा तो होगा, न होता होगा न होगा। लेकिन सतयुग को लाने के लिए जिस महायुद्घ की जरूरत है, और महाभारत की जरूरत है, वो कुछ अजीब किस्म का होगा। वह उस किस्म का होगा जिसमें हर विचारशील व्यक्ति को हर अविवेकी व्यक्ति के साथ लड़ना और झगड़ना पड़ेगा और जद्दोजहद करनी पड़ेगी। समझाने के साथ हम काम करते हैं और उसकी शुरूआत,उसकी शुरूआत पहले विरोध के रूप होगी। जो आदमी गलत हैं, गलत काम करते हैं, उनका हमको असहयोग करना चाहिए और विरोध भी।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी
अखण्ड-ज्योति से
हिन्दू धर्म में अनेक प्रकार की साधन-प्रणालियाँ प्रचलित है, जिनका उद्देश्य आत्मा की उन्नति के पथ पर अग्रसर होते हुए जीवनमुक्ति की स्थिति को प्राप्त करना बतलाया गया है। अगर विभिन्न सम्प्रदायों और पंथों की दृष्टि से विचार किया जाय तो इन प्रणालियों की संख्या सैंकड़ों तक गिनी जा सकती है, पर जिन प्रणालियों को सब प्रकार के विचारों के विद्वानों ने सर्व सम्मति से श्रेष्ठ और प्रभावशाली स्वीकार किया है वे तीन है- कर्मयोग, भक्तियोग और ज्ञानयोग। कर्म योग का अर्थ है निष्काम भाव से परोपकार और सेवा के कार्य करना। परमात्मा के प्रति एकान्त भाव से भक्तिभाव रखते हुये परमार्थ करना भक्तियोग है।
ज्ञान मूलक कर्म द्वारा भगवान प्राप्ति का प्रयत्न करना ज्ञान योग है। इस प्रकार बाह्य दृष्टि ये तीन पृथक् पृथक् मार्ग है, पर वास्तव में सबका उद्देश्य लोक सेवा और परपीडा निवारण ही माना गया है। अब तक के उदाहरणों पर विचार करने से हमको तो यही दिखलाई देता है कि जिन साम्प्रदायिक विद्वानों अथवा आचार्यों ने इन तीनों की विभिन्नता और किसी एक मार्ग की श्रेष्ठता का आग्रह किया है, उन्होंने विवाद के अतिरिक्त वास्तव में लोकोपकार का कोई कार्य नहीं किया, जब कि वास्तविक कार्य करने वाले महापुरुषों ने कभी इस बात पर विचार ही नहीं किया कि इनमें से कौन मार्ग श्रेष्ठ और कौन साधारण है, अथवा हम किसका अनुसरण करें?
स्वामी विवेकानन्द एक ऐसे ही महापुरुष थे। उनका जीवन आरम्भ से ही आध्यात्मिक नहीं था और एक समय था जब कि वे ईश्वर के अस्तित्व में भी संदेह प्रकट किया करते थे, पर तब भी उनमें निष्कामभाव से सेवाकार्य की भावना मौजूद थी। स्कूल और कालेज में पढ़ते समय से ही वे आवश्यकता पड़ने पर अपने सभी साथियों की हर प्रकार से सहायता करने में दत्तचित्त रहते थे। इसके पश्चात् जब श्रीरामकृष्ण परमहंस के सम्पर्क में आये तब भी उन्होंने अपने समस्त गुरुभाइयों की सेवा करनी और उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये स्वयं अधिक से अधिक परिश्रम और प्रयत्न करना ही अपना लक्ष्य रखा।
क्रमशः जारी
श्री भारतीय योगी
अखण्ड ज्योति- जून 1945 पृष्ठ 27
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