Wednesday 08, October 2025
कृष्ण पक्ष द्वितीया, कार्तिक 2025
पंचांग 08/10/2025 • October 08, 2025
कार्तिक कृष्ण पक्ष द्वितीया, कालयुक्त संवत्सर विक्रम संवत 2082, शक संवत 1947 (विश्वावसु संवत्सर), आश्विन | द्वितीया तिथि 02:22 AM तक उपरांत तृतीया | नक्षत्र अश्विनी 10:44 PM तक उपरांत भरणी | हर्षण योग 01:32 AM तक, उसके बाद वज्र योग | करण तैतिल 04:08 PM तक, बाद गर 02:23 AM तक, बाद वणिज |
अक्टूबर 08 बुधवार को राहु 12:04 PM से 01:31 PM तक है | चन्द्रमा मेष राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 6:18 AM सूर्यास्त 5:50 PM चन्द्रोदय 6:33 PM चन्द्रास्त 8:32 AM अयन दक्षिणायन द्रिक ऋतु शरद
- विक्रम संवत - 2082, कालयुक्त
- शक सम्वत - 1947, विश्वावसु
- पूर्णिमांत - कार्तिक
- अमांत - आश्विन
तिथि
- कृष्ण पक्ष द्वितीया
- Oct 08 05:53 AM – Oct 09 02:22 AM
- कृष्ण पक्ष तृतीया
- Oct 09 02:22 AM – Oct 09 10:54 PM
नक्षत्र
- अश्विनी - Oct 08 01:28 AM – Oct 08 10:44 PM
- भरणी - Oct 08 10:44 PM – Oct 09 08:02 PM

आदरणीय डॉ. चिन्मय पंड्या जी ने “पीस एंड लीडरशिप कॉन्क्लेव” में भारत का प्रतिनिधित्व किया ।

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गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन







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नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन

Reel_5 उपासना के चार कार्य कौन से हैं 2.mp4

!! शांतिकुंज दर्शन 08 October 2025 !! !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
हमें चार काम करने पड़ते हैं, और चार कामों से हमारी उपासना पूर्ण होती है। चार की संख्या मुझे बहुत अच्छी मालूम पड़ी। क्या है यह? सारे का सारा ज्ञान और विज्ञान गायत्री मंत्र का चार वेदों में आ गया है। चार वेदों में चार उन सिद्धांतों का वर्णन है, जिसको कि मैं आज आपको बताना चाहता हूँ।
क्रिया पक्ष चार वेद। और क्या हैं? हिंदू धर्म है, वर्णाश्रम धर्म कहलाता है। वर्णाश्रम धर्म के चार हिस्से हैं — वर्ण चार और आश्रम चार। दोनों को मिला देने से हिंदू धर्म 'वर्णाश्रम' बन जाता है।
देखो, दिशाएँ चार हैं। और अंतःकरण — हमारा जो जीवन है, चेतना है — यह चार हिस्सों में बँटी हुई है। अंतःकरण चतुष्टय उसे कहते हैं — मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार। इन चारों के अंतःकरण चतुष्टय के चार खंडों से हमारी चेतना बनी हुई है।
हमारे पद-पुरुषार्थ — जो हम याद दिलाया करते हैं आपको — धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष — ये चार हमारे पुरुषार्थ हैं। चार खंडों में, चार कोनों से एक कमरा बनता है। चार दीवार का, चार कोने का कमरा बनता है। चार हमारे पैर-हाथ हैं। जानवरों के चार पैर ही होते हैं। हमारे दो हाथ, दो पैर हैं। बात वही पड़ जाती है।
चार चीजें। चतुष्पदा गायत्री क्या है साहब? फिर बताइए। यह चार हमने युग निर्माण का संकल्प जब प्रकाशित किया था, तब हमने सब साहब को बताया था — आपको करने के लायक सिर्फ चार चीजें हैं। चार आप करेंगे तो आपकी आत्मा निश्चित रूप से... और चार में से एक काम नहीं करेंगे तो मुक्ति नहीं हो सकती।
यह चार काम कौन से थे? यह — जिस दिन, आज से 30 साल पहले, जिस दिन भारत को स्वाधीनता मिली थी — ठीक उसी दिन युग निर्माण परिवार, जो पहले गायत्री परिवार के नाम से विख्यात था, उसका नाम बदल दिया गया।
पहले हम इसको "मुन्ना-मुन्ना" कहते थे। अब उसको हम "बेटा-बेटा" कहते हैं। क्यों साहब? पहले मुन्ना कहते थे, छोटा था तो मुन्ना कहते थे। अब तो बेटा-बेटा कहते हैं। बेटा इसलिए कहते हैं — बड़ा हो गया है।
पहले इसका नाम "गायत्री परिवार" था। अब "युग निर्माण परिवार" हो गया। बात तो एक ही है।
हाँ बेटे, एक ही है। लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा। दो संस्थाएँ नहीं हैं। दो नहीं हैं — एक ही संस्था है। एक ही हमने गठन किया था 30 तारीख को।
तो हमने यह घोषित किया था कि उपासना में क्या करना पड़ता है? और उपासना के लिए आत्मिक प्रगति के लिए करना क्या पड़ेगा? विचारणा — कल बता चुका।
करना क्या पड़ेगा?
करने के लिए चार काम हमने किए हैं, और चार काम हर आध्यात्मवादी को करने पड़ेंगे।
इससे कम में किसी का काम नहीं चलेगा।
चार से कम जो करेगा, उसकी उपासना निरर्थक चली जाएगी।
अखण्ड-ज्योति से
शिष्यों को इसी सत्य के अवगत करने के लिए एक बार गुरु द्रोणाचार्य ने युधिष्ठिर से कहा कि एक बुरा आदमी खोज लाओ और दुर्योधन को एक अच्छा आदमी खोज लाने के लिये भेजा। कुछ देर बाद युधिष्ठिर और दुर्योधन अकेले ही वापिस आ गये और उन्होंने क्रम से बतलाया कि आचार्य उनको कोई बुरा अथवा अच्छा आदमी नहीं मिला।
आचार्य ने शिष्यों को समझाया कि यह दोनों नगर में अच्छे-बुरे आदमियों की खोज करने गये, किन्तु अपनी शुभ मनोभावना के कारण युधिष्ठिर को कोई बुरा आदमी न दीखा और अशुभ दृष्टि-दोष के कारण दुर्योधन को कोई आदमी अच्छा ही न दिखलाई दिया नगर के सारे आदमी वही थे, किन्तु इन दोनों को अपने मनोभावों और दृष्टिकोण के कारण सब अच्छे अथवा बुरे ही दिखाई दिये। संसार में न कुछ सर्वदा अच्छा है और न बुरा, यह हमारे अपने मनोभावों और दृष्टिकोण का ही परिणाम है कि संसार हमको किस रूप में दिखलाई देता है।
दोष-दृष्टि अथवा दूषित मनोभाव रखकर संसार को बुरा देखते रहने से उसका तो कुछ नहीं बिगड़ता, अपनी ही मनःशांति और संतोष नष्ट हो जाता है। सर्वत्र बुरा ही बुरा देखते रहने से जीवन बड़ा ही अशांत एवं प्रतिगामी बनकर रह जाता है। इस दोष के कारण हम संसार में सर्वत्र बिखरे पड़े सौन्दर्य और व्यक्तियों के प्रेम, सौहार्द्र और स्नेह से वंचित हो जाते हैं।
हर ओर विरोध और प्रतिकूलता का ही वातावरण बना रहता है। सर्वत्र अच्छाई के दर्शन करते रहने और दूसरों को आत्मीय दृष्टि से देखने पर बुरे तत्त्व भी अनुकूल बन जाते हैं। अपने से शत्रुता मानने वाले के प्रति भी यदि विरोधी-भाव न रक्खे जायें और हर प्रकार से अपने स्नेह और अनुकूल दृष्टि की अभिव्यक्ति की जाये, तो निश्चय ही शत्रु भी लज्जित होकर विरोध से विरत हो जाये। ऋषियों के आश्रम में शेर, भालू जैसे हिंसक जीव मनुष्यों के साथ हिले-मिले रहते थे। आश्रम-वासियों के अनुकूल मनोभावों के कारण ही उनकी हिंसा-वृत्ति दबी रहती थी और वे उनसे मित्रता का सुख अनुभव किया करते थे। सबके प्रति सद्भाव और अनुकूल दृष्टिकोण रखने के कारण ही धर्मराज युधिष्ठिर अजातशत्रु कहे जाते थे।
.... क्रमशः जारी
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड ज्योति दिसम्बर 1968 पृष्ठ 39
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