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Wednesday 10, December 2025

कृष्ण पक्ष षष्ठी, पौष 2025




पंचांग 10/12/2025 • December 10, 2025

पौष कृष्ण पक्ष षष्ठी, कालयुक्त संवत्सर विक्रम संवत 2082, शक संवत 1947 (विश्वावसु संवत्सर), मार्गशीर्ष | षष्ठी तिथि 01:46 PM तक उपरांत सप्तमी | नक्षत्र मघा 02:44 AM तक उपरांत पूर्व फाल्गुनी | वैधृति योग 12:45 PM तक, उसके बाद विष्कुम्भ योग | करण वणिज 01:47 PM तक, बाद विष्टि 01:45 AM तक, बाद बव |

दिसम्बर 10 बुधवार को राहु 12:10 PM से 01:25 PM तक है | चन्द्रमा सिंह राशि पर संचार करेगा |

 

सूर्योदय 7:06 AM सूर्यास्त 5:13 PM चन्द्रोदय 11:05 PM चन्द्रास्त 12:07 PM अयन दक्षिणायन द्रिक ऋतु हेमंत

 

  1. विक्रम संवत - 2082, कालयुक्त
  2. शक सम्वत - 1947, विश्वावसु
  3. पूर्णिमांत - पौष
  4. अमांत - मार्गशीर्ष

तिथि

  1. कृष्ण पक्ष षष्ठी   - Dec 09 02:29 PM – Dec 10 01:46 PM
  2. कृष्ण पक्ष सप्तमी   - Dec 10 01:46 PM – Dec 11 01:57 PM

नक्षत्र

  1. मघा - Dec 10 02:22 AM – Dec 11 02:44 AM
  2. पूर्व फाल्गुनी - Dec 11 02:44 AM – Dec 12 03:55 AM


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नहीं स्वर्ग की, सिद्धि की कामना माँ, नहीं मुक्ति की, कर रहे याचना है |

नहीं स्वर्ग की, सिद्धि की कामना माँ, नहीं मुक्ति की, कर रहे याचना है |

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मनुष्य एक भटका हुआ देवता | Manusya Ek Bhatka Hua Devta | आद डॉ. चिन्मय पण्ड्या जी

मनुष्य एक भटका हुआ देवता | Manusya Ek Bhatka Hua Devta | आद डॉ. चिन्मय पण्ड्या जी

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सफलता की जड़: अटूट आत्म-विश्वास । मातृशक्ति के अमृतवचन। Matrishakti ke Amritvachan

सफलता की जड़: अटूट आत्म-विश्वास । मातृशक्ति के अमृतवचन। Matrishakti ke Amritvachan

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“गुरुदेव का सौभाग्य: दिव्य संगति जिसने जीवन बदल दिया | अखण्ड ज्योति की प्रेरक कथा”

“गुरुदेव का सौभाग्य: दिव्य संगति जिसने जीवन बदल दिया | अखण्ड ज्योति की प्रेरक कथा”

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अमृत सन्देश:- संगठन की शक्ति गुरुदेव का आश्वासन। Sangathan ki Shakti, Gurudev ka Aashwasan

अमृत सन्देश:- संगठन की शक्ति गुरुदेव का आश्वासन। Sangathan ki Shakti, Gurudev ka Aashwasan

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प्रज्ञा साहित्य का महत्व :छोटे स्वाध्याय मंडलों की बड़ी तथा महती भूमिका|Rishi Chintan Youtube Channel

प्रज्ञा साहित्य का महत्व :छोटे स्वाध्याय मंडलों की बड़ी तथा महती भूमिका|Rishi Chintan Youtube Channel

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गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन

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चरण पादुका
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अखंड दीपक
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चरण पादुका
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सजल श्रद्धा - प्रखर प्रज्ञा (समाधि स्थल)
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प्रज्ञेश्वर महादेव - देव संस्कृति विश्वविद्यालय
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शिव मंदिर - शांतिकुंज
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हनुमान मंदिर - शांतिकुंज
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आज का सद्चिंतन (बोर्ड)

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आज का सद्वाक्य

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नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन


!! शांतिकुंज दर्शन 10 December 2025 !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!

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अमृतवाणी:- आध्यात्मिक उन्नति की पहली शर्त- आत्मसमीक्षा परम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश



आप दो तरह के विचार करना शुरू कीजिए। यह विचारने की शैली है, यह ध्यान की शैली नहीं है। यह विचारणा है। चिंतन और मनन में विचार करने की गुंजाइश है। मन को भागने की पूरी छूट है। ध्यान में तो एक केंद्र पर करना पड़ता है, पर इसमें केंद्र पर नहीं करना पड़ता। इसके लिए विचार करने के लिए काफी लंबी-चौड़ी गुंजाइश है।
चिंतन उसे कहते हैं जिसमें कि भूतकाल के लिए विचार किया जाता है। भूतकाल हमारा किस तरीके से व्यतीत हुआ, इसके बारे में समीक्षा करिए।
अपनी समीक्षा नहीं कर पाते। आप दूसरों की समीक्षा करना जानते हैं। पड़ोसी की समीक्षा कर सकते हैं, बीवी की नुक्ताचीनी कर सकते हैं, बच्चों की नुक्ताचीनी कर सकते हैं।
सारी दुनिया की गलती बता सकते हैं। भगवान की गलती बता देंगे, भक्त की गलती बता देंगे। कोई भी ऐसा बचा हुआ नहीं है जिसको आप गलती न बताते हों।
लेकिन अपनी गलती! अपनी गलती तो आप विचार भी नहीं करते।
अपनी गलतियों को हम विचार करना शुरू करें, और अपनी चाल की समीक्षा लेना शुरू करें।
अपने आप का हम पर्यवेक्षण शुरू करें तो ढेरों की ढेरों चीजें ऐसी हमको मालूम पड़ेंगी जो हमको नहीं करनी चाहिए थी।
और ढेरों की ढेरों ऐसी चीजें मालूम पड़ेंगी आपको, जो इस समय हमने जिन-जिन कामों को, जिन बातों को अपनाया हुआ है, उनको नहीं अपनाना चाहिए था।
यह कभी विचार आता है?
नहीं। मन की बनावट कुछ ऐसी ही विलक्षण है —
"अपना सो अच्छा, अपना सो अच्छा, बस अपना सो अच्छा!"
यही बात बनी रहती है।
अपना स्वभाव भी अच्छा, अपनी आदतें भी अच्छी, अपना विचार भी अच्छा, अपना चिंतन भी अच्छा — सब अपना अच्छा!
बाहर वालों का गलत।
आमतौर से लोगों की यह मनोवृत्ति होती है।
यह मनोवृत्ति बहुत भयंकर है।
आध्यात्मिक उन्नति में इसके बराबर अड़चन डालने वाला और दूसरा कोई व्यवधान है ही नहीं।
इसलिए आप पहला काम वहीं से शुरू कीजिए — आत्म समीक्षा से।
एकांत में चिंतन के लिए जब आप बैठें तो आप यह विचार किया कीजिए कि:
हम पिछले दिनों क्या भूल करते रहे?
रास्ता भटक तो नहीं गए?
भूल तो नहीं गए?
इसीलिए जन्म मिला था क्या?
जिस काम के लिए जन्म मिला था, वही किया क्या?
पेट के लिए जितनी जरूरत थी, उससे ज्यादा कमाते रहे क्या?
कुटुंब की जितनी जिम्मेदारियां पूरी करनी चाहिए थी, उसको पूरा करने के स्थान पर अनावश्यक संख्या में लोभ बढ़ाते रहे क्या?
और जिन लोगों को जिस चीज की जरूरत नहीं थी, उनको प्रसन्नता के लिए उपहार रूप में लादते रहे क्या?
क्यों? वजह क्या?
यह सब गलतियां — यह गलतियां हैं।
इसी तरीके से, अपने स्वास्थ्य के लिए जो खानपान और आहार-विहार जैसा रखना चाहिए था, वैसे रखा क्या?
चिंतन में, चिंतन की शैली में, जिस तरह की शालीनता का समावेश होना चाहिए था, वह रखा गया क्या?
न! न!
हमने शरीर के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन किया, न अपने मस्तिष्क के प्रति कर्तव्यों का पालन किया, न अपने कुटुंबियों के प्रति कर्तव्यों का पालन किया।
कर्तव्यों की दृष्टि से हम बराबर पिछड़े हुए चले गए।
जहाँ-जहाँ पिछड़े हुए चले गए, उन सबको एक बारगी विचार कीजिए।

परम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य

 

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अखण्ड-ज्योति से



समाज में आपकी खिल्ली उड़ाने तथा सद्मार्ग में बाधाएँ उपस्थित करने वाले मूर्खों की कमी नहीं है। प्रत्येक बड़े से बड़े व्यक्ति को ऐसे व्यक्तियों का सामना करना पड़ता है, जो विद्या, बुद्धि, चरित्र गौरव, निष्ठा, सहानुभूति या योग्यता में आपसे छोटे हैं। इन व्यक्तियों का कुछ ऐसा स्वभाव होता है कि शुभ कार्य में बाधा पहुँचाते हैं। सज्जनों के मार्ग में अड़चनें उपस्थित करते हैं। ईर्ष्या, द्वेष या सस्ती उपहास वृत्ति के वशीभूत होकर आपका मजाक उड़ाते चलते हैं।

इनके साथ आपका व्यवहार उपेक्षा का ही होना चाहिए। आप उनकी आलोचना, टीका टिप्पणी या हँसी मखौल की और ध्यान ही न दीजिए। उन्हें अपना राक्षसी स्वभाव दिखाने दीजिए; आप अपनी साधुता, सज्जनता और शालीनता न छोड़िये। अपने रास्ते चलते रहिये। उनसे व्यर्थ झगड़ा मोल न लेना ही श्रेष्ठ है।

ईर्ष्यालु मूर्खों से प्रभावित न हों :-
“शरीफ “ लोग अक्सर सोचा करते हैं कि अमुक व्यक्ति मुझसे क्यों जलता है; मैंने तो उसका कुछ नहीं बिगाड़ा है। वे सोचते हैं, मैं तो पाक-साफ हूँ। मुझमें किसी भी व्यक्ति के लिये दुर्भावना नहीं है। बल्कि, अपने दुश्मनों के लिये भी मैं भलाई ही सोचा करता हूँ। फिर भी ये मेरे पीछे क्यों पड़े हुए हैं? मुझमें कौन से ऐसे ऐब हैं, जिन्हें दूर करके मैं इन दुष्टों को दूर कर सकता हूँ?”
ईश्वरचन्द्र विद्यासागर जब इस तजुर्बे से होकर गुजरे तो उन्हें एक सूत्र कहा—‘तुम्हारी निन्दा वही करेगा, जिसकी तुमने भलाई की है।’

नीत्से जब इस कूचे से होकर निकला तब उसने जोरों का ठहाका लगाया और कहा कि ‘यार, ये तो बाजार की मक्खियाँ हैं, जो अकारण हमारे चारों ओर भिनभिनाया ही करती हैं। ये सामने प्रशंसा और पीछे निन्दा किया करते हैं। हम इनके दिमाग पर बैठे हुए हैं। ये मक्खियाँ हमें भूल नहीं सकतीं और चूँकि ये हमारे बारे में बहुत कुछ सोचा करती हैं। इसलिए ये हमसे डरती हैं और हम पर शंका भी करती हैं। ये मक्खियाँ हमें हमारे गुणों के लिए सजा देती हैं। ऐब को तो यह माफ कर देंगी, क्योंकि बड़ों के ऐब को माफ कर देने में भी एक शान है, जिस शान का स्वाद लेने को ये मक्खियाँ तरस रही हैं।”
उपरोक्त दृष्टिकोण ही उचित है ये मूर्ख, ये दुष्ट, ये शत्रु, बेचारे बड़े छोटे हैं; निम्न स्तर पर हैं, ना समझ और ईर्ष्या के शिकार हैं। इन मूर्खों की बातों की ओर तो उपेक्षा का भाव ही सर्वश्रेष्ठ है। जो इनकी ओर से चुप्पी साधे रहता है वही सफल रहता है।

इन लोगों से वचन के लिए नीत्से का उपदेश सुनिए—“बाजार की मक्खियों को छोड़कर एकान्त की ओर भागो। जो कुछ अमर तथा महान् है उसकी रचना तथा निर्माण बाजार तथा सुयश से दूर होकर ही किया जाता है। जो लोग नए मूल्यों का निर्माण करने वाले हैं, वे बाजारों में नहीं बसते, वे शोहरत के पास नहीं फटकते। जहाँ बाजार की मक्खियाँ नहीं भिनकतीं।”

“सोने वाले कुत्तों को सोने दीजिए” अँग्रेजी की इस कहावत में गहरा मर्म छिपा है। ये दुष्ट व्यक्ति कटखने कुत्तों की तरह हैं। जितनी देर सोते हैं, इन्हें सोने दीजिये। अन्यथा ये अपनी दुष्टता छोड़ने वाले नहीं हैं। आप अपना सत् कार्य किये जाइये। दूसरों की अनुमति, प्रेरणा, प्रोत्साहन या बढ़ावा दिलाने की क्यों प्रतीक्षा करते हैं? प्रसन्न और सफल हम तभी हो सकते हैं, जब इन्हें उपेक्षित छोड़ कर इनकी आलोचना या उत्साह की परवाह न करते हुए अपनी राह चलते रहें; अपने उद्देश्य की पूर्ति में संलग्न रहें।

प्रत्येक दुष्ट के मन में अहं भाव बड़ी तीव्र मात्रा में होता है। वह उसी दर्प की पूर्ति के लिए आपको छेड़ता है। वह आपसे प्रशंसा चाहता है कभी कभी सहानुभूति के शब्द पाकर वह आपका मार्ग साफ छोड़ सकता है। इस तरीके को भी सोच समझकर अपना सकते हैं। मूर्खों को उनके स्वर्ग में ही रहने दीजिये।

 अखण्ड ज्योति 1952 जनवरी

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