Tuesday 17, June 2025
कृष्ण पक्ष षष्ठी, आषाढ़ 2025
पंचांग 17/06/2025 • June 17, 2025
आषाढ़ कृष्ण पक्ष षष्ठी, कालयुक्त संवत्सर विक्रम संवत 2082, शक संवत 1947 (विश्वावसु संवत्सर), ज्येष्ठ | षष्ठी तिथि 02:46 PM तक उपरांत सप्तमी | नक्षत्र शतभिषा 01:01 AM तक उपरांत पूर्वभाद्रपदा | विष्कुम्भ योग 09:34 AM तक, उसके बाद प्रीति योग | करण वणिज 02:47 PM तक, बाद विष्टि 02:14 AM तक, बाद बव |
जून 17 मंगलवार को राहु 03:46 PM से 05:31 PM तक है | चन्द्रमा कुंभ राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 5:20 AM सूर्यास्त 7:15 PM चन्द्रोदय 11:49 PM चन्द्रास्त 11:45 AM अयन उत्तरायण द्रिक ऋतु ग्रीष्म
- विक्रम संवत - 2082, कालयुक्त
- शक सम्वत - 1947, विश्वावसु
- पूर्णिमांत - आषाढ़
- अमांत - ज्येष्ठ
तिथि
- कृष्ण पक्ष षष्ठी
- Jun 16 03:31 PM – Jun 17 02:46 PM
- कृष्ण पक्ष सप्तमी
- Jun 17 02:46 PM – Jun 18 01:35 PM
नक्षत्र
- शतभिषा - Jun 17 01:13 AM – Jun 18 01:01 AM
- पूर्वभाद्रपदा - Jun 18 01:01 AM – Jun 19 12:23 AM

अमृत सन्देश:- अन्नमय कोष- सेहत की असली चाबी | Annamay Kosh Sehat Ki Asli Chabi

गायत्री महामंत्र की शक्ति से जीवन को बदलने का सही तरीका | Pt. Shriram Sharma Acharya
गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन







आज का सद्चिंतन (बोर्ड)




आज का सद्वाक्य




नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन

!! शांतिकुंज दर्शन 17 June 2025 !! !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!

अमृतवाणी: जीवन में एक लक्ष्य पर केन्द्रित रहना जरुरी हैं पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
अनादि काल की, प्राचीन काल की भारतीय परंपरा और भारतीय संस्कृति का नवीनतम संस्करण — हम अपने ढंग से, अपने युग की आवश्यकता अनुसार, अपने ज़माने के व्यक्ति की अक्ल को देखते हुए, अपने समय की परिस्थितियों को देखते हुए, अपने समय के उदाहरणों को प्रस्तुत करते हुए — जिस तरह से प्रत्येक स्मृति का हमने अपने-अपने समय पर कहा है, 24 स्मृतियों की हमने व्याख्या की है।
आप पढ़ लीजिए, पढ़ लीजिए — संविधान हमारे देश में 24 बार, 24 बार बने हैं।
पहली बार संविधान मनु का है।
मनु ने पहला, सबसे पहला दुनिया का मनुष्य जाति के लिए संविधान बनाया — मनुस्मृति के रूप में।
बदलते चले गए, बदलते चले गए, बदलते चले गए।
अंतिम जो है, इस समय का संविधान जो आजकल लागू होता है — यह याज्ञवल्क्य स्मृति है।
याज्ञवल्क्य स्मृति का टीका — यह हमारे वकीलों को पढ़ाया जाता है।
कानून में पढ़ाया जाता है — दाय भाग और उत्तराधिकार भाग।
हिंदू का सारा का सारा कानून उस पर टिका हुआ है।
काहे पर?
याज्ञवल्क्य स्मृति के ऊपर।
यह स्मृति आज की है।
हाँ, पुराने ज़माने की स्मृति — वह स्मृति, बेटे, पुरानी हो गई।
वह तो हो गई आउट ऑफ डेट।
तो उसको अपमान करेंगे?
मारेंगे बेटे?
मारेंगे कैसे?
यह हमारे पिता का चित्र है।
यह हमारे बाबा का चित्र है।
यह हमारे परबाबा का चित्र है — जिसको हम अपमानित नहीं होने दे सकते।
उन्होंने अपने ज़माने में कोई बात कही होगी।
पर पत्थर की लकीर उन्होंने नहीं कही।
यह नहीं कहा कि यही विधान हमेशा चलेगा।
बदल दिया हमने विधान।
और अब हम याज्ञवल्क्य स्मृति का विधान चलाते हैं।
मित्रों, आज के युग के अनुरूप, आज के व्यक्ति के अनुरूप, आज की समस्याओं के अनुरूप, आज की आवश्यकता के अनुरूप —
हम उन प्राचीनतम, प्राचीनतम दो धाराओं का, जिनको हम गंगा-यमुना कह सकते हैं —
ब्रह्म और क्षत्र, ब्रह्मविद्या और ब्रह्मतेज — इन दोनों के समन्वयात्मक प्रभाव और शैली के हिसाब से,
हम यह शिक्षण की नई धारा प्रवाहित करते हैं।
नया संगम शुरू करते हैं,
नया समन्वय शुरू करते हैं — ब्रह्मवर्चस के रूप में,
जिसको कि आप अगले दिनों और भी विकसित रूप में देखेंगे।
अखण्ड-ज्योति से
“तुम्हारा साहस प्रशंसनीय है पुत्री! फिर भी मुझे सन्देह है कि तुम यहाँ टिक पाओगी।” जागरूकता के नगर सेठ अंबपाली ने चुहिया को स्नेह वत्सल दृष्टि से निहारते हुए कहा। उनका स्वभाव जितना मृदुल और सौम्य था। उनकी भार्या बिन्दु मति उतनी की कर्कश और कुटिल थी। कोई भी परिचारिका उनकी गृह सेवा में आज तक एक महीने से अधिक न टिक पायी थी। नगर के सेठ निराश हो चुके थे। और उन्होंने निश्चय कर लिया था कि विन्दुमति को कितने ही कष्ट क्यों न उठाने पड़ें अब और किसी को परिचारिका नियुक्त नहीं करेंगे।
फिर भी एक दिन उनके एक सेवक ने एक निर्धन कन्या को उनके सामने ला खड़ा किया। चौलिया नाम की इस कन्या के माता-पिता स्वर्ग वासी हो चुके थे। आश्रय की खोज में भटक रही इस बालिका को देखते ही उनकी करुणा छलक आयी। उन्होंने उसके सिर पर प्रेम पूर्ण हाथ फेरा और कहा-बेटी! सेविका तो क्या तुम मेरी पुत्री के समान इस घर में रह सकती हो। किन्तु दैवयोग से गृह स्वामिनी का स्वभाव बहुत तीखा और कर्कश है। उसे सहन करना ............अपना वाक्य अधूरा छोड़कर नगर सेठ अनंगपाल उसकी ओर देखने लगे।
आपने मुझे पुत्री कहा-आर्य आपकी यह शालीनता और सज्जनता इतनी बड़ी है कि उसके सम्मुख कोटि कर्कशताएँ भुलाई जा सकती है। यह कहते हुए चौलिया के चेहरे पर एक अद्भुत स्थिरता और शान्ति थी। वह कह रही थी - “सेवा का सच्चा अधिकार भी तो उन्हें ही है जो ऊबे उत्तेजित और संसार से खीझे व निराश जैसे हैं। माताजी के स्वभाव की चिन्ता न न करें। मुझे सेवा का सौभाग्य प्रदान करें।”
वह अब इस घर की परिचारिका बन गयी। घर की एक-एक वस्तु की व्यवस्थित किया उसने। गन्दी-भद्दी-टूटी-काली-कलूटी-बेढंगी वस्तुओं को साफ-सुथरा ठीक किया, सजाया उसने। प्रातः चार बजे जब दूसरे लोग सो रहे होते वह जागती और सायंकाल सबको सुला कर रात गए सोती। एक क्षण भी उसने निरर्थक नहीं खोया, किन्तु बदले में मिला क्या? विनदुमती की फटकार अपमान और मार।
एकान्त पाकर एक दिन अनंगपाल ने उससे कहा-” बेटी! तू मुझसे निर्वाह साधन लेकर कहीं सानन्द रह। इस नारकीय यंत्रणा में क्यों प्राण दे रही है।” चौलिया ने उत्तर दिया-तात! यदि मैंने माँ विन्दुमती की कोख से जन्म लिया होता तो क्या आप मुझे यों हटाते।। मुझसे भूल होती होगी तभी तो माँ जी डाँटती और मारती है, इसमें बुरा मानने की क्या बात!” अनंगपाल चुप हो गए।
... क्रमशः जारी
अखण्ड ज्योति 1995 अगस्त पृष्ठ 2
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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