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Friday 22, August 2025

कृष्ण पक्ष चतुर्दशी, भाद्रपद 2025




पंचांग 22/08/2025 • August 22, 2025

भाद्रपद कृष्ण पक्ष चतुर्दशी, कालयुक्त संवत्सर विक्रम संवत 2082, शक संवत 1947 (विश्वावसु संवत्सर), श्रावण | चतुर्दशी तिथि 11:56 AM तक उपरांत अमावस्या | नक्षत्र आश्लेषा 12:16 AM तक उपरांत मघा | वरीयान योग 02:35 PM तक, उसके बाद परिघ योग | करण शकुनि 11:56 AM तक, बाद चतुष्पद 11:42 PM तक, बाद नाग |

अगस्त 22 शुक्रवार को राहु 10:43 AM से 12:20 PM तक है | 12:16 AM तक चन्द्रमा कर्क उपरांत सिंह राशि पर संचार करेगा |

 

सूर्योदय 5:53 AM सूर्यास्त 6:47 PM चन्द्रोदय 4:35 AM चन्द्रास्त 6:29 PM अयन दक्षिणायन द्रिक ऋतु वर्षा 

 

  1. विक्रम संवत - 2082, कालयुक्त
  2. शक सम्वत - 1947, विश्वावसु
  3. पूर्णिमांत - भाद्रपद
  4. अमांत - श्रावण

तिथि

  1. कृष्ण पक्ष चतुर्दशी   - Aug 21 12:45 PM – Aug 22 11:56 AM
  2. कृष्ण पक्ष अमावस्या   - Aug 22 11:56 AM – Aug 23 11:36 AM

नक्षत्र

  1. आश्लेषा - Aug 22 12:08 AM – Aug 23 12:16 AM
  2. मघा - Aug 23 12:16 AM – Aug 24 12:54 AM


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हरि ॐ तत्सत् हरि ॐ तत्सत् | Hariom Tatsat Hariom Tatsat |

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अमृत सन्देश:-  श्रद्धा की शक्ति | Shraddha Ki Shakti

अमृत सन्देश:- श्रद्धा की शक्ति | Shraddha Ki Shakti

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गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन

गायत्री माता
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गायत्री माता - अखंड दीपक
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गुरुजी माताजी
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चरण पादुका
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प्रज्ञेश्वर महादेव - देव संस्कृति विश्वविद्यालय
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शिव मंदिर - शांतिकुंज
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हनुमान मंदिर - शांतिकुंज
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आज का सद्चिंतन (बोर्ड)

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आज का सद्वाक्य

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नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन


अमृत सन्देश : 24 घंटे का कार्य नियोजन | 24 Ghante Ka Karya Niyojan

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!! शांतिकुंज दर्शन 22 August 2025 !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!

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परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश



आप बंटवारा कर दीजिए। अब तक बेइंसाफी जो चली, वो चली। आगे से मत कीजिए। आप लोग यहां से बिदा होंगे। आप यह बंटवारा बना करके जाइए कि आपकी जिंदगी—जो कीमती जिंदगी है, भगवान का सबसे बड़ा उपहार है, भगवान के यहां इससे बड़ा कोई उपहार नहीं है, भगवान के यहां इससे बड़ा हीरा कोई नहीं है—जो आपको और हमको मिला हुआ है, इंसानी जीवन। इसके जो लाभ हैं, फायदे हैं, इसका एक हिस्सा शरीर को दीजिए और एक हिस्सा जीवात्मा की भूख को पूरा करने के लिए दीजिए। दोनों को बाँटिए।

समय आपके पास जो संपत्ति है—हमारे पास तो कुछ भी नहीं है। बेटे, तेरे पास ढेरों सामान हैं। क्या सामान है? तेरे पास कई दौलतें हैं और इतनी कीमती दौलतें हैं कि भगवान के बेटे को यह कहने का अधिकार नहीं है कि हम गरीब हैं। भगवान के बेटे को खुद को गरीब नहीं कहना चाहिए और अपने बाप की बेइज्जती नहीं करनी चाहिए। हमारे पास दौलत है जिसे असली दौलत कह सकते हैं—हमारे पास है श्रम, हमारे पास है समय, हमारे पास है अक्ल, हमारे पास है प्रतिभा। यह हमारी सब चीजें हैं, यह हमारी दौलत है। इन दौलतों को तुम बाँट दीजिए।

इन्हीं के आधार पर तो हम कमाते हैं। इन्हीं के आधार पर तो हम सिनेमा देखते हैं। इन्हीं के आधार पर तो हमने मकान बना लिया। इसी के आधार पर तो हम बड़े आदमी हो गए हैं। इसी के आधार पर तो हम पैसा कमाते हैं। सब इन्हीं चीजों की कीमत पर कमाते हैं।

भगवान की दौलत—यह हमारा असली कॉइन है जो कि हम भगवान के यहां से लेकर आए हैं। इन्हीं चीजों की कीमत पर हमने जो कुछ भी कमाया है, इन्हीं चीजों पर कमाया है, और कोई दौलत हमारे पास नहीं थी। भगवान इन दौलतों को छीन ले—समय को छीन ले, श्रम को छीन ले, अक्ल को छीन ले—फिर मैं देखूंगा तुम क्या कमाकर लेते हो। बेटे, यह असली दौलतें हैं।

वो केवल रूपए के रूप में या अमुक चीज़ों के रूप में फेरबदल हो गया है, लेकिन दौलतमंद हो तुम—यह मत कहिए दौलत हमारे पास नहीं है। आप इस दौलत के लिए बंटवारा रखिए। बंटवारा कीजिए और यह निश्चय कीजिए कि हम अपने शरीर का कितना हिस्सा, कितना हिस्सा—सुबह का कितना हिस्सा—इस शरीर के लिए खर्च करेंगे और कितना जीवात्मा के लिए खर्च करेंगे। समय बाँटिए। 24 घंटे आपके पास समय है, आशा है 24 घंटे हैं तो आप बाँटिए समय।

12 घंटे भगवान को दीजिए और 12 घंटे शरीर को दीजिए। नहीं साहब, 12 घंटे तो बहुत ज्यादा होंगे—तो कितना देंगे फिर? बता महाराज जी—मैं तो रूपए में चार आने दूंगा भगवान को और बारह आने अपने बचाकर रखूंगा। चार आने नहीं दे दोगे चलो? हम भगवान से कह देंगे—“भाई यह बड़ा वैसा आदमी है, यह तो चार आने नहीं देना चाहता है।” 12 घंटे का स्वयं मालिक हो जाए 24 घंटे में। यह 6 घंटे भगवान को दे दो और 18 घंटे तू खा जा। नहीं महाराज जी, यह तो बहुत ज्यादा हो गया—25% तो मैंने ख्याल नहीं किया था। 6 घंटे तो बहुत होते हैं। आप कम कर दो—कम कर दूँगा। कितना दोगे? तँहा? 12.5% देंगे भगवान को? 12.5% भगवान को दे दो और तू फिर कितना—86.5% तू खा जा। इतना तो दोगे कि इतना भी नहीं दोगे? नहीं महाराज जी, इतना तो दे दूँगा—तो दे चल। चल, आठवां हिस्सा तो दोगे—कम से कम दो आने तो दोगे 24 घंटे में। 24 घंटे में 3 घंटे दो। किसके लिए दोगे? किसके लिए दोगे, बेटे? वह तो तुझमें शामिल है। उसको मैं भजन में कभी शामिल नहीं करूंगा। भजन को मैंने कभी शामिल नहीं किया और भजन को मैं व्यक्तिगत आवश्यकता मानता हूँ।

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अखण्ड-ज्योति से



 प्रगति के मार्ग में अवरोध का- विशेषतया श्रेष्ठ सम्भावनाओं में अड़चने आने का अपना इतिहास है, जिसकी पुनरावृत्ति अनादिकाल से होती रहीं हैं। जिस प्रकार आसुरी सक्रमणों को निरस्त करने के लिए दैवी सन्तुलन की सृजन शक्तियों का अवतरण होता हैं उसी प्रकार श्रेष्ठता की अभिवृद्धि को आसुरी तत्व सहन नहीं कर पाते। उसमें अपना पराभव देखते हैं और बुझते समय दीपक के अधिक तेजी के साथ जलने की तरह अपनी दुष्टता का परिचय देते हैं।

 मरते समय चींटी के पंख उगते हैं। पागल कुत्ता जब मरने को होता हैं तो तालाब में डूबने को दौड़ता हैं। पागल हाथी पर्वत पर आक्रमण करता हैं और उससे टकरा-टकराकर अपना सिर फोड़ लेता हैं। आसुरी तत्व भी जब अन्तिम साँस लेते हैं और एक वारगी मरणासन्न की तरह उच्छास खींचकर अपनी शक्ति का प्रदर्शन करते है। अवतारों में पुष्प-प्रक्रियाओं भी निर्बाध रीति से बिना किसी अड़चन के सम्पन्न नहीं हो तो जाती, उसमें पग-पग पर अवरोध और आक्रमण आड़े आते है।

 भगवान कृष्ण पर जन्म काल से ही एक के बाद एक आक्रमण हुए। वसुदेव जब उन्हें टोकरी में रखकर गोकुल ले जा रहें थे तो सिंह गर्जन, घटाओं का वर्षण, सर्पों का आक्रमण जैसे व्यवधान उत्पन्न हुए। इसके बाद पूतना, वृत्तासुर, तृणावत, कालिया, सर्प आदि द्वारा उनके प्राण हरण की दुरभिसन्धियाँ रची जाती रही। कस, जरासंध, शिशुपाल जैसे अनेकों शत्रु बन गये। चारुढ़, मुष्टिकासुर आदि ने उन पर अकारण आक्रमण बोले। अन्ततः भीलों ने गोपियों का हरण-व्याध द्वारा प्रहार करने जैसी घटनाएं घटित हुई।
             

 कृष्ण की चरित्र-निष्ठा और न्याय-निष्ठा उच्च स्तरीय थी तो भी उन्हें रुक्मिणी चुराने का दोष लगाया गया। चरित्र हनन की चोट भगवान राम को भी सहनी पड़ी। सीता जैसी सती को लोगों ने दुराचारिणी कहा और अग्नि परीक्षा देने के लिए विवश किया। अपवादियों के दोषारोपण फिर भी समाप्त नहीं हुए और स्थिति यहाँ तक आ पहुंची कि सीता परित्याग जैसी दुःखदायी दुर्घटना सामने आई। जयंती ने सीताजी पर अश्लील आक्रमण किया।

 सूर्पणखा राम के स्तर को गिरा कर असुरों के समतुल्य ही बनाना चाहती है। चाहना अस्वीकार करने पर उसने जो विपत्ति ढाई वह सर्वविदित है। सत्यता और कर्त्तव्यों के प्रति राम के व्यवहार में कहीं अनौचित्य नहीं था। फिर भी उसने वह षड़यंत्र रचा जिससे उन्हें चौदह वर्ष के एकाकी वनवास में प्राण खो बैठने जैसा ही त्रास सहना पड़ा। खरदूषण, मारीच, अहिरावण, रावण, कुम्भकरण ने आक्रमण पर आक्रमण किये इनमें से किसी से भी राम की ओर से पहल नहीं हुई थी। वे तो मात्र आत्म-रक्षा की ही लड़ाई लड़ते रहे।

.... क्रमशः जारी
 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
 अखण्ड ज्योति अगस्त 1979 पृष्ठ 53

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