Saturday 09, August 2025
शुक्ल पक्ष पूर्णिमा, श्रवण 2025
पंचांग 09/08/2025 • August 09, 2025
श्रावण शुक्ल पक्ष पूर्णिमा, कालयुक्त संवत्सर विक्रम संवत 2082, शक संवत 1947 (विश्वावसु संवत्सर), श्रावण | पूर्णिमा तिथि 01:24 PM तक उपरांत प्रतिपदा | नक्षत्र श्रवण 02:23 PM तक उपरांत धनिष्ठा | सौभाग्य योग 02:15 AM तक, उसके बाद शोभन योग | करण बव 01:25 PM तक, बाद बालव 12:50 AM तक, बाद कौलव |
अगस्त 09 शनिवार को राहु 09:04 AM से 10:43 AM तक है | 02:11 AM तक चन्द्रमा मकर उपरांत कुंभ राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 5:45 AM सूर्यास्त 7:00 PM चन्द्रोदय 7:19 PM चन्द्रास्त 6:25 AM अयन दक्षिणायन द्रिक ऋतु वर्षा
- विक्रम संवत - 2082, कालयुक्त
- शक सम्वत - 1947, विश्वावसु
- पूर्णिमांत - श्रावण
- अमांत - श्रावण
तिथि
- शुक्ल पक्ष पूर्णिमा
- Aug 08 02:12 PM – Aug 09 01:24 PM
- कृष्ण पक्ष प्रतिपदा
- Aug 09 01:24 PM – Aug 10 12:10 PM
नक्षत्र
- श्रवण - Aug 08 02:28 PM – Aug 09 02:23 PM
- धनिष्ठा - Aug 09 02:23 PM – Aug 10 01:52 PM

अमृतवाणी:- बुराई के विरुद्ध एक स्पष्ट रुख | Burayi Ke Viruddh Ek Espsat Rukh पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य

स्वयं बांधती जीजी राखी | रक्षाबंधन महापर्व शांतिकुंज हरिद्वार | जीजी का स्नेह Shantikunj Video
गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन







आज का सद्चिंतन (बोर्ड)




आज का सद्वाक्य




नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन

!! शांतिकुंज दर्शन 09 August 2025 !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!

💖 !! आप सभी को अखिल विश्व गायत्री परिवार की ओर से रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएँ !!
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
अखण्ड-ज्योति से
श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को ही रक्षा-बंधन का त्यौहार मनाया जाता है। इस दिन उत्तर भारत के प्रायः सभी स्थानों में बहिनें अपने भाइयों के हाथों में राखी बाँधती हैं। पुरोहित अथवा अन्य ब्राह्मण भी राखी बाँधते हैं। इसकी कथा शास्त्रों में इस प्रकार लिखी है-
एक बार युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण भगवान् से पूछा कि "समस्त रोग और अशुभ घटनाओं से वर्ष भर रक्षा करने वाला कोई उपाय बतलाइये।" श्रीकृष्ण जी ने कहा, "हे युधिष्ठिर ! प्राचीन काल में इंद्राणी ने इंद्र की विजय के लिए जो उपाय किया था, उसे मन लगाकर सुनो। देवताओं और असुरों में एक बार बारह वर्ष तक घोर संग्राम होता रहा, जिसमें असुरों ने संपूर्ण देवताओं सहित इंद्र पर विजय प्राप्त कर ली। इस महान् पराजय से दुःखी होकर इंद्र देवगुरु बृहस्पति जी से कहने लगे कि, इस समय न तो मैं ठहरने में समर्थ हूँ और न कहीं भागने का अवसर है।
अतः मुझे लड़ना अनिवार्य हो गया है, चाहे उसका परिणाम कैसा भी बुरा क्यों न हो।" इस बात को सुनकर इंद्राणी बीच में ही बोल उठीं-"प्राणनाथ ! आप निर्भय रहें। मैं एक ऐसा उपाय करती हूँ जिससे अवश्य ही आपकी विजय होगी।" दूसरे दिन प्रातःकाल ही श्रावणी थी। इंद्राणी ने ब्राह्मणों द्वारा स्वस्तिवाचन कराके इंद्र के हाथों में रक्षा की पोटली बाँध दी। रक्षा बंधन से सुरक्षित इंद्र ने जब दैत्यों पर चढ़ाई की, तब वह उनको काल के समान भयंकर जान पड़ा और सब दैत्य उसके सामने से भाग गये। इस प्रकार यह. रक्षा बंधन बड़ा प्रभावशाली और सब प्रकार की आपत्तियों से बचाने वाला है।"
भविष्य पुराण के अनुसार रक्षा बंधन का समय दोपहर के पश्चात् होता है और 'स्मृति कौस्तुभ' के रचयिता ने पूर्णमासी में सूर्योदय होने पर रक्षा-बंधन का समय माना है। आज यद्यपि रक्षा बंधन का रूप हाथ में एक लाल-पीला डोरा अथवा रेशम और कलाबत्तू आदि की बनी बढ़िया राखी बाँध देना ही रह गया है, पर भारतीय इतिहास के मध्य काल में इसका महत्त्व बहुत अधिक था और जो स्त्री जिस पुरुष को राखी बाँध देती थी, वह उसकी प्राणपण से रक्षा करता था। इस संबंध में सबसे प्रसिद्ध घटना चित्तौड़ की रानी कर्णवती की है। जब उसके राज्य पर गुजरात के बादशाह बहादुरशाह ने चढ़ाई की, तो रानी ने दिल्ली के मुगल सम्राट् हुमायूँ के पास राखी भेजी और अपनी रक्षा की प्रार्थना की।
हुमायूँ उसी समय सेना लेकर रवाना हो गया, पर उसके पहुँचने के पहले ही चित्तौड़ का पतन हो गया था और रानी कर्णवती अपनी सहेलियों के साथ जौहर व्रत करके जल मरी थी। तो भी हुमायूँ ने बहादुरशाह पर आक्रमण करके उसको मार भगाया और रानी के पुत्र को चित्तौड़ की गद्दी पर बैठाकर 'राखी बंद भाई' के नाम को चरितार्थ किया। आवश्यकता है कि हमारे देशवासी स्त्री और पुरुष राखी के वास्तविक महत्त्व को समझें और समय पड़ने पर असहाय अबलाओं की रक्षा करने का व्रत ग्रहण करें। इस प्रकार श्रावणी मुख्य रूप से धार्मिक स्वाध्याय के प्रचार का पर्व है। भारतवर्ष का प्राचीन धार्मिक साहित्य संसार में अद्वितीय समझा जाता है और हमारी वर्तमान गिरी हुई अवस्था में भी विदेशियों ने उसकी श्रेष्ठता के सम्मुख मस्तक झुकाया है। पर खेद की बात है कि हम स्वयं अपनी इस अमूल्य ज्ञान-राशि की ओर से उदासीन रहते हैं।
वेदों और उपनिषदों की बात तो दूर रही, गीता और रामायण जैसे बहु प्रचारित ग्रंथों का भी ठीक ढंग से समझकर स्वाध्याय करने वाले बहुत थोड़े निकलेंगे। इसलिए जब तक हम स्वाध्याय का नियम न बना लेंगे तब तक इस दिशा में विशेष सफलता मिलनी संभव नहीं। श्रावणी के पर्व पर हमको स्वाध्याय के लिए कोई भी विशेष समय नियत करके उसका आरंभ करना चाहिए। जिन लोगों को पढ़ने-लिखने का विशेष अभ्यास या आदत नहीं है, उनको उस दिन से किसी विद्वान् पुरुष से सामूहिक कथा के रूप में धर्म-ग्रंथों को सुनना चाहिए। बिना इस प्रकार के स्वाध्याय के हमारी आध्यात्मिक भावनाएँ कभी सुदृढ नहीं बन सकतीं।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
त्योहार और व्रत, पृष्ठ 36
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