
Shantikunj Swarn Jayanti स्वर्ण जयंती के क्षण में
गुरुवर आपकी सांस बसी है, शांतिकुंज के कण कण में
एक बार आ जाओ फिर से, स्वर्ण जयंती के क्षण में।
नयन हमारे राह तक रहे, कर्तव्यों के इस रण में,
एक बार आ जाओ फिर से, स्वर्ण जयंती के क्षण में।
ज्योति अखंड आवाहन करती, गुरुवर तुम्हें बुलाती है,
सजल नयन के अश्रु पोंछकर, प्रखरतम उन्हें बनाती है।
शीतलता का भान करा दो, दावानल से इस वन में,
एक बार आ जाओ फिर से, स्वर्ण जयंती के क्षण में।
युवाओं की आस तुम्हीं से, नवयुग का विश्वास है,
हम सुधरेंगे युग सुधरेगा, बस इतना ही प्रयास है।
कायाकल्प फिर आज करा दो, इस मानवीय जीवन में,
एक बार आ जाओ फिर से, स्वर्ण जयंती के क्षण में।
गंगा की धारा तुम ही हो, विचार क्रांति अभियान तुम,
मात-पिता और बंधु-सखा तुम, मेरे तो भगवान तुम,
हर पल तुमको देखा मैंने, उज्ज्वल भविष्य आश्वासन में,
एक बार आ जाओ फिर से, स्वर्ण जयंती के क्षण में।
डॉ आरती कैवर्त 'रितु'