शान्त विचारों की शक्ति (भाग 2)
हम जो कुछ सोचते हैं उसका स्थायी प्रभाव हमारे ऊपर तथा दूसरों के ऊपर पड़ता है। शान्त विचार धीरे−धीरे हमारे मन को ही बदल देते हैं। जैसी हमारे मन की बनावट होती है वैसे ही हमारे कार्य होते हैं और हमारी सफलता भी उसी प्रकार की होती है। हम अनायास ही उन कार्यों में लग जाते हैं जो हमारी प्रकृति के अनुकूल हैं, और उन कामों से डरते रहते हैं जो हमारी प्रकृति के प्रतिकूल हैं। अपने स्वभाव को बदलना हमारे हाथ में है। यह अपने शान्त विचारों के कारण बदला जा सकता है। स्वभाव के बदल जाने पर मनुष्य को किसी विशेष प्रकार का कार्य करना सरल हो जाता है।
जिस काम को मनुष्य अपने आन्तरिक मन से नहीं करना चाहता, पर दिखावे के रूप में उसे करने के लिए बाध्य होता है तो उसे अनेक प्रकार की रुकावटें उसे दर्शाती हैं कि तुम्हारा आन्तरिक मन उक्त काम के प्रतिकूल है। शान्त होकर यदि मनुष्य अपनी किसी प्रकार की भूल अथवा कार्य की विफलता पर विचार करे तो वह इसका कारण अपने आप में ही पावेगा। जो काम अनुद्विग्न मन होकर किया जाता है, उससे आत्म विश्वास रहता है और उसमें सफलता अवश्य मिलती है। शान्त मन द्वारा विचार करने से स्मृति तीक्ष्ण हो जाती है और इन्द्रियाँ स्वस्थ हो जाती हैं।
शान्त विचारों का चेतन मन नहीं होता। शान्त विचार ही आत्मनिर्देश की शक्ति हैं। इन विचारों को प्राप्त करने के लिये वैयक्तिक इच्छाओं का नियंत्रण करना पड़ता है। जिस व्यक्ति की इच्छायें जितनी ही नियंत्रित होती है, जिस मनुष्य में जितनी वैराग्य की अधिकता होती है उसके शान्त विचारों की शक्ति उतना ही अधिक प्रबल होती है। जो मनुष्य अपने भावों के वेगों को रोक लेता है वह उन वेगों की शक्ति को मानसिक शक्ति के रूप में परिणत कर लेता है। इच्छाओं की वृद्धि से इच्छा शक्ति का बल कम होता है और उसके विनाश से उसकी शक्ति बढ़ती है। इच्छाओं की वृद्धि शाँत विचारों का अन्त कर देती है।
.... क्रमशः जारी
अखण्ड ज्योति, मई 1955 पृष्ठ 6
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