महान कैसे बनें?
मित्रो ! तुम्हें ऐसे व्यक्तियों का प्रेमपात्र बनने का सदैव प्रयत्न करते रहना चाहिए जो कष्ट पडऩे पर तुम्हारी सहायता कर सकते हैं और बुराइयों से बचाने की एवं निराशा में आशा का संचार करने की क्षमता रख्रते हैं।
खुशामदी और चापलूसों से घिर जाना आसान है। मतलबी दोस्त तो पल भर में इक्कठे हो सकते हैं, पर ऐसे व्यक्तियों का मिलना कठिन है, जो कड़वी समालोचना कर सकें, जो खरी सलाह दे सकें,फटकार सकें और खतरों से सावधान कर सकें । राजा और साहूकारों की मित्रता मूल्यवान् समझी जाती है, पर सबसे उत्तम मित्रता उन धार्मिक पुरूषों की है, जिनकी आत्मा महान् है। जिसके पास पूँजी नहीं है, वह कैसा व्यापारी? जिसके पास सच्चे मित्र नहीं हैं, वह कैसा बुद्धिमान? उन्नति के साधनों में इस बात का बड़ा मूल्य है, कि मनुष्य को श्रेष्ठ मित्रों का सहयोग प्राप्त हो। बहुत से शत्रु उत्पन्न कर लेना मूर्खता है, पर उससे भी बढ़कर मूर्खता है, यह है कि भले व्यक्तियों की मित्रता को छोड़ दिया जाए।
निर्मल बुद्धि और श्रम में श्रद्धा, यही दो वस्तुएँ तो किसी मनुष्य को महान् बनाने वाली हैं। उत्तम गुणों को अपनाने से नीच व्यक्ति उच्च बन सकते हैं और दुर्गुणों के द्वारा बड़े व्यक्ति छोटे हो जाते हैं। निरंतर लगन, सावधानी, समय का सदुपयोग छोटे को बड़ा बना सकते हैं, हीन मनुष्यों को कुलीन बना सकते हैं।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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