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Magazine - Year 1940 - Version 2

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(ले. श्री. प्रबोधचन्द्र गौतम, साहित्यरत्न, कुर्ग)

पुनर्जन्म की घटनाओं के अनेक प्रत्यक्ष प्रमाण समय-समय पर सर्वत्र देखे जाते हैं। गत वर्ष मैं काश्मीर गया हुआ था। श्रीनगर के पास राधोपुर गाँव में एक ऐसा ही घटना होने का समाचार मुझे मिला। तब मैं वहाँ गया और वास्तविकता का पता लगाने की पूरी जाँच पड़ताल की। मालूम हुआ कि एक वैश्य को छह वर्षीय लड़की अपने पूर्वजन्म का हाल बताती है। मैं उस गाँव के मुखिया के यहाँ गया। और उससे पूछताछ की। मुखिया ने बताया कि अभी पिछले महीने इस गाँव में पीरनगर का एक पंडित आया हुआ था। पंडित इस लड़की के घर के सामने से जा रहा था तो वह दौड़ कर उसके पैरों में चिपट गई और अपनी ग्रामीण भाषा में कहा दादा कहाँ जाते हो ? तुमने मुझे इतने दिनों से तलाश क्यों नहीं किया था ? मैं तो यही हूँ। पंडित को बड़ा आश्चर्य हुआ। उसने यहाँ के लोगों से पूछा कि यह लड़की कौन है ? लड़की के प्रश्नों ने हैरत में डाल दिया था। क्योंकि उसने इससे पूर्व कभी भी इस लड़की को नहीं देखा था।

गाँव वाले काफी तादाद में इकट्ठे हो गये। पंडित भी कौतूहल में था। आखिर वह चबूतरे पर बैठ गया और लड़की को गोद में उठाकर प्यार के साथ उसका आशय जानना चाहा। लड़की ने कहा मुझे इतनी जल्दी भूल गये- मैं आपकी भतीजी जसोदा हूँ। मैं चेचक से मरी थी। आपने और रमुआ भाई ने तो बीमारी के दिनों में मेरी बड़ी देखभाल की थी। अब पंडित की समझ में आया कि यह लड़की पूर्वजन्म में मेरी भतीजी जसोदा थी। उनकी आँखों से आँसू भर आये और उसे गले लगा लिया।

मुखिया ने मुझे बताया कि ऐसी घटना हम लोगों के देखने-सुनने में कभी नहीं आई थी, इसलिए समाचार पाते ही गाँव भर के सभी स्त्री-पुरुष जमा हो गये और वे सब लड़की की बात को अधिक जाँच करना चाहने लगे। निदान यह तय हुआ कि पीरनगर लड़की को ले जाया जाय। पीरनगर इस गाँव से सिर्फ चार मिल के फासले पर था। इसलिए तय हुआ कि कल सबेरे लड़की को साथ लेकर लोग वहाँ जाय और मामले की सचाई जाने। दूसरे दिन करीब 300 ग्रामीण लड़की को लेकर पीरनगर पहुँचे गाँव में घुसते ही लड़की को आगे कर लिया गया और अन्य सब लोग उसके पीछे थे। गाँव में घुसते ही लड़की ने बताना शुरू किया कि यह अमुक का घर है यह अमुक घर है ! वह टेढ़ी-मेढ़ी गलियों को पार करती हुई सीधी अपने घर पहुँची और बिना किसी झिझक के मकान में अंदर घुसती हुई चली गई। वहाँ उसने अपने पूर्वजन्म के बड़े भाई रमुआ को पहिचाना। चाची की गोदी में बैठ कर हिचकी भर कर रोई। कहने लगी मैं तो पास के गाँव में ही थी तब भी तुमने मुझे क्यों नहीं बुलाया। इन आठ वर्षों में मकान में कुछ परिवर्तन हो गया था। सो भी उसने पूछा कि यहाँ पाल थी अब दालान कैसे बन गया? और भी बहुत सी बातें उसने अपने घर वालों से कीं। उनसे मुहल्ले की दूसरी लड़कियों के नाम बताये और उसने मिलने की इच्छा प्रकट की। उन्हें बुलाया गया तो लड़की ने सब को पहचाना और इस बात पर आश्चर्य प्रकट किया कि वह इतनी बड़ी कैसे हो गई है।

जसोदा ग्यारह वर्ष की उम्र में आठ साल पूर्व चेचक की बीमारी में मर गई थी। अब वैश्य के यहाँ जन्म लिये हुए इसे छह वर्ष हो गये अर्थात् पूर्व शरीर त्याग हुए उसे आठ वर्ष व्यतीत हो गये थे। इस बीच में वह सामाजिक ज्ञान को बहुत कुछ भूल गई थी। जैसा कि उसने अपनी सहेलियों से पूछा था कि तुम इतनी बड़ी कैसे हो गई और तुम्हें यह बच्चे कहाँ से मिले। पूर्व जन्म में निश्चय ही वह इन सब बातों को जानती होगी परन्तु इस जनम में यह सब ज्ञान उसने बहुत कुछ अंशों में भुला दिया था। पीरनगर में लड़की की सब सच्ची बातों को जानकर लोग बड़े कौतूहल में थे। छह वर्ष इस जनम के और नौ महीने माता के पेट के इस प्रकार पौने सात वर्ष व्यतीत हुए। बाकी सवा वर्ष उसके कहाँ व्यतीत हुए इस प्रश्न को हल करने के लिए सभी लोगों ने अपनी बुद्धि खर्च की पर कोई संतोषजनक उत्तर न मिल सका। लड़की से भी पूछा गया पर वह भी कुछ न बता सकी। निदान लड़की को उसकी वर्तमान गाँव राधोपुर ले आया गया। लड़की से यह पूछा गया कि क्या वह पीरनगर रहना पसंद करेगी? उसने मना कर दिया। क्योंकि वह अपनी वर्तमान माता के प्रेम को छोड़ने में भी असमर्थ थी।

लड़की के ज्ञान के बारे में जब अच्छी तरह खोज की गई तो सामाजिक, धार्मिक या अन्य प्रकार का साधारण ज्ञान उसे इतना ही था जितना राधोपुर में रह कर वह छह वर्ष में इकट्ठा कर सकी थी। पीरनगर के वातावरण में ब्राह्मण के घर पली हुई ग्यारह वर्ष की लड़की को जितनी जानकारी होनी चाहिए। उतनी उसे नहीं थी। केवल घटनाएं भर याद थीं। इससे पता चलता है कि जिन लोगों को पूर्वजन्म की याद रहती है उन्हें घटनाएं तो ठीक प्रकार स्मरण रहती हैं परन्तु अन्य प्रकार की रीति-रिवाज आदि विस्मरण हो जाते हैं। ऐसा भी देखा गया है कि जिन्हें पूर्व जन्म का ज्ञान याद रहता है वह घटनाओं को भूल जाते हैं। कई प्रतिभावान बालक ऐसे पाये जाते हैं जिन्हें बहुत छोटी उम्र में ही संगीत आदि में असाधारण योग्यता होती है। धर्मग्रन्थों को कंठाग्र कर लेते हैं। परन्तु उन्हें पूर्वजन्म की घटनाएं याद नहीं आतीं।

योगी लोगों में अवश्य ऐसी सामर्थ्य होती है कि वे अपने और दूसरों के अनेक जन्मों के बारे में जानते हैं और ज्ञान एवं घटनाओं को प्रत्यक्ष की भाँति देख लेते हैं।

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