• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • पथिक! महान उद्देश्य को मत भूल।
    • अमर-ज्योति
    • अमर-ज्योति
    • प्रेम और सेवा
    • आश्रम धर्म
    • मुर्दा पन, कायरता छोड़ो।
    • योगियों की आवश्यकता
    • Quotation
    • 20 उंगलियों की कमाई
    • कर्तव्य धर्म में योगसाधना
    • Quotation
    • ऐसा यज्ञ करो!
    • ईश्वर पर विश्वास रखो।
    • शक्ति या सेवा
    • व्यर्थ की बकवाद
    • अमर नारद
    • Quotation
    • राष्ट्रपति गारफील्ड
    • स्वामी रामकृष्ण परमहंस के उपदेश
    • ओ मेघ! बरसो!
    • सफलता पर दुःख
    • तपस्या और सत्संग
    • Quotation
    • शक्ति का उपयोग
    • आत्म-दंड
    • तिब्बत के लामा योगी
    • अपने पैर में जूता पहनो
    • VigyapanSuchana
    • संगठन और लक्ष्मी
    • Quotation
    • सुख के उच्च शिखर पर
    • दूसरों की सेवा क्यों करें?
    • Quotation
    • कहाँ बैठूँ!
    • पाठकों का पृष्ठ
    • देखते हैं-ईश्वर है।
    • जूठे पत्ते
    • जूठे पत्ते
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • पथिक! महान उद्देश्य को मत भूल।
    • अमर-ज्योति
    • अमर-ज्योति
    • प्रेम और सेवा
    • आश्रम धर्म
    • मुर्दा पन, कायरता छोड़ो।
    • योगियों की आवश्यकता
    • Quotation
    • 20 उंगलियों की कमाई
    • कर्तव्य धर्म में योगसाधना
    • Quotation
    • ऐसा यज्ञ करो!
    • ईश्वर पर विश्वास रखो।
    • शक्ति या सेवा
    • व्यर्थ की बकवाद
    • अमर नारद
    • Quotation
    • राष्ट्रपति गारफील्ड
    • स्वामी रामकृष्ण परमहंस के उपदेश
    • ओ मेघ! बरसो!
    • सफलता पर दुःख
    • तपस्या और सत्संग
    • Quotation
    • शक्ति का उपयोग
    • आत्म-दंड
    • तिब्बत के लामा योगी
    • अपने पैर में जूता पहनो
    • VigyapanSuchana
    • संगठन और लक्ष्मी
    • Quotation
    • सुख के उच्च शिखर पर
    • दूसरों की सेवा क्यों करें?
    • Quotation
    • कहाँ बैठूँ!
    • पाठकों का पृष्ठ
    • देखते हैं-ईश्वर है।
    • जूठे पत्ते
    • जूठे पत्ते
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1941 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
SCAN TEXT


तपस्या और सत्संग

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 21 23 Last
वशिष्ठ और विश्वामित्र की पुरानी शत्रुता अब दूर हो चुकी थी। उदार हृदय के मनुष्यों का मन-मुटाव ऐसा नहीं होता जो कभी मिट ही न सके। दुष्ट लोग द्वेष की गाँठ पेट में धरे रहते हैं, पर उदार मनुष्य जब एक बार समझौता हो गया तो पुराने द्वेष को निकाल देते हैं।

दोष विश्वामित्र का ही था। इसलिये उन्होंने वशिष्ठ जी को अधिक संतुष्ट करने के लिये अपने आश्रम में बुलाया और बड़े आदर-सत्कार के साथ बहुत दिनों तक अपने यहाँ रखा और उन्हें विशेष प्रसन्न करने की भरसक चेष्टा करते रहे। जब वशिष्ठ वापिस अपने घर को चलने लगे तो विश्वामित्र ने अपनी एक हजार वर्ष की तपस्या का फल उन्हें भेट-स्वरूप दे दिया।

कुछ दिनों बाद वशिष्ठ ने विश्वामित्र को अपने यहाँ बुलाया और उनकी वैसी ही आवभगत की। जब विश्वामित्र चलने लगे तो वशिष्ठ ने एक घड़ी के सत्संग का फल उन्हें भेंट कर दिया।

विश्वमित्र को यह बात अच्छी न लगी कि वशिष्ठ केवल एक घड़ी का सत्संग मात्र उन्हें भेंट करें जब कि उन्हें दस हजार वर्ष की तपस्या भेंट की गई थी। वशिष्ठ ने उनके मनोभाव ताड़ लिये और उनका संदेह निवारण करने के लिए पाताल लोक चल दिये। उन्होंने विश्वामित्र को भी अपने साथ ले लिया।

दोनों महर्षियों को अपने यहाँ आया हुआ देख कर पाताल पुरी के राजा शेषनाग ने उनका यथोचित सत्कार किया। कुशल समाचार पूछने के बाद शेष जी ने कहा-कहिए भगवन्! मेरे लिये क्या आज्ञा है। विश्वामित्र तो चुप बैठे हुये थे, पर वशिष्ठ जी ने कहा - राजन्! हम आपसे यह निर्णय कराने आये हैं, कि दस हजार वर्ष की तपस्या और एक घड़ी का सत्संग इन दोनों में से किसका मूल्य अधिक है?

शेष जी चतुर थे, वे भी सारा मामला ताड़ गये। उन्होंने कहा-आप में से जिसके पास दस हजार वर्ष की तपस्या का फल है वह उस बल के द्वारा एक घड़ी मेरा भार उठावे। वशिष्ठ जी ने विश्वामित्र की दी हुई तपस्या का जोर लगाया, पर वे शेष जी का भार जरा भी न उठा सके। अब उन्होंने विश्वामित्र को बुलाया और एक घड़ी के सत्संग के बल से पृथ्वी उठाने को कहा। विश्वामित्र ने उस बल का प्रयोग किया तो उठ गया।

शेष जी ने उन्हें समझाया कि सत्संग मूल है और तपस्या पत्त। सत्संग से मनुष्य की जीवन दिशा का परिवर्तन होता है और तप के प्रयत्न से पुष्टि मिलती है। यदि बुरे संग से जीवन दिशा पतन की ओर चल पड़े तो तपस्या से उस पतन में ही तेजी आवेगी। इसलिये सत्संग का महत्व सबसे अधिक है। श्रेष्ठ पुरुषों के पास बैठने, उनके वचन सुनने, दर्शन करने एवं सदग्रन्थों के पठन-पाठन से जितना लाभ होता है उतना लाभ संसार में और किसी साधन से नहीं होता।

First 21 23 Last


Other Version of this book



Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...

Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • पथिक! महान उद्देश्य को मत भूल।
  • अमर-ज्योति
  • अमर-ज्योति
  • प्रेम और सेवा
  • आश्रम धर्म
  • मुर्दा पन, कायरता छोड़ो।
  • योगियों की आवश्यकता
  • Quotation
  • 20 उंगलियों की कमाई
  • कर्तव्य धर्म में योगसाधना
  • Quotation
  • ऐसा यज्ञ करो!
  • ईश्वर पर विश्वास रखो।
  • शक्ति या सेवा
  • व्यर्थ की बकवाद
  • अमर नारद
  • Quotation
  • राष्ट्रपति गारफील्ड
  • स्वामी रामकृष्ण परमहंस के उपदेश
  • ओ मेघ! बरसो!
  • सफलता पर दुःख
  • तपस्या और सत्संग
  • Quotation
  • शक्ति का उपयोग
  • आत्म-दंड
  • तिब्बत के लामा योगी
  • अपने पैर में जूता पहनो
  • VigyapanSuchana
  • संगठन और लक्ष्मी
  • Quotation
  • सुख के उच्च शिखर पर
  • दूसरों की सेवा क्यों करें?
  • Quotation
  • कहाँ बैठूँ!
  • पाठकों का पृष्ठ
  • देखते हैं-ईश्वर है।
  • जूठे पत्ते
  • जूठे पत्ते
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj