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Magazine - Year 1943 - Version 2

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ईसप की नीति शिक्षा

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(1)

एक बकरी अपने झुण्ड में चर रही थी। झुण्ड का चरवाहा बड़ा उपद्रवी था, उसने एक पत्थर खींचकर बकरी को मारा जिससे उसका सींग टूट गया। अपने दुष्कर्म पर चरवाहा बहुत डरा और बकरी से कहने लगा-बहन! तू मालिक से शिकायत न करना, नहीं तो वह मुझे नौकरी से अलग कर देगा। बकरी ने कहा- न कहने पर भी पाप नहीं छिपता। मेरे चुप रहने पर भी यह टूटा हुआ सींग सारी कथा अपने आप कह देगा।

पाप कर्म प्रकट हुए बिना नहीं रह सकते।

(2)

एक गंजे आदमी के सिर के बाल उड़ गये थे तो उसने अपनी झेंप मिटाने के लिए नकली बालों का गुच्छा बनाकर सिर पर बाँध लिया, ताकि कोई पहचान न सके। एक बार उसका गुच्छा शिर पर से गिर पड़ा तो उसके सब मित्र गंजा शिर देखकर हँस पड़े। वह आदमी भी झेंप मिटाने के लिए मित्रों के साथ हँस पड़ा और बोला जब मेरे असली बाल भी चले गये तो नकली क्या साथ देंगे, इसकी क्या आशा है।

ओ आदमी अपनी सहायता आप करना बन्द कर देता है, दूसरे उसकी भला क्या सहायता कर सकते हैं?

(3)

दो मेंढ़कों में मित्रता थी। उनमें से एक तालाब में रहता था दूसरा मोरी में। तालाब का मेंढक मोरी के मेढ़क से कहता—भाई इस साफ पानी से भरे हुए तालाब में आकर क्यों नहीं रहते? मोरी का मेंढक कहता-तालाब में अधिक खतरे हैं मोरी में कोई विपत्ति नहीं। एक दिन बैलगाड़ी मोरी में होकर निकली मेढ़क पहिये के नीचे आ गया और कुचल कर मर गया। तालाब के मेढ़क ने एक ठंडी सास लेते हुए कहा-अभागा, स्वच्छ पानी का सुख भी न ले सका और विपत्ति में भी न रह सका।

खतरे से डर कर दुरावस्था में पड़े रहने वाले कायर कुत्ते की मौत मरते हैं।

(4)

एक बहेलिया चिड़ियाँ पकड़ने के लिए पेड़ पर चढ़ रहा था कि डाली से लिपटे हुए साँप ने उसे डस लिया। बहेलिया यह कहता हुआ मूर्च्छित होकर जमीन पर गिर गया कि-जो निर्बलों को सताता है उसे बताने के लिए ईश्वर दूसरे बलवान को भेजता है।

(5)

नदी में नहाते-नहाते एक लड़के का पैर फिसल गया वह पानी में डुबकियाँ लेने लगा। इतने में एक पंडित उधर से निकला। वह लड़के को पानी में नहाने की बेवकूफी के लिए फटकारने लगा और स्नान कैसे करना चाहिए यह उपदेश देने लगा। लड़के ने दुखी होकर कहा- महोदय! पहले मुझे पानी में से बाहर निकाल लीजिए तब उपदेश दीजिए। वरना आपके उपदेश सुनने से पहले ही मैं डूबकर मर जाऊँगा।

क्रियात्मक सहायता न करके केवल उपदेश देना बेकार है।

(6)

एक माली मरने लगा तो उसके लड़के ने पूछा-आपका धन कहाँ रखा है। उसने कहा मैंने हर एक पेड़ के नीचे दो-दो रुपये गाड़ कर रखे हैं। आप मर गया तो लड़कों ने सारे पेड़ों को खोद डाला। पर वहाँ एक भी रुपया न मिला, लड़के बाप को झूठा समझने लगे।

जब फसल आई तो हर एक पेड़ न पिछली साल की बजाय दो-दो रुपया ज्यादा के फल दिये। तब बड़े लड़के ने कहा-हमारे बाप ने झूठ नहीं बोला। उसने हमें शिक्षा दी कि मेहनत करने से जरूर फायदा होता है।

परिश्रम ही प्रत्यक्ष धन है।

(7)

एक कुम्हार का गधा बड़ा दुष्ट था। एक बार कुम्हार ने उस पर बर्तन लादे उन्हें तोड़ने के लिये गधा खड्डे की तरफ दौड़ा? कुम्हार ने उसे बहुत रोका और कहा-मेरे बर्तनों से अधिक तेरी देह का नुकसान होगा वह न माना और अपनी जिद पूरी करने के लिए खड्डे में कूद पड़ा और बर्तनों के साथ चूर-चूर हो गया।

दुष्ट लोग दूसरों को नुकसान पहुँचाने के लिए अपना और भी नुकसान कर लेते हैं।

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