
प्रार्थना से बल प्राप्त कीजिये।
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बिजली के बारे में थोड़ी सी जानकारी रखने वाले जानते हैं, कि ऋण (नेगोटिव) और धन (पाजेटिव) दो प्रकार की धाराएं मिलकर स्फुरण उत्पन्न करती हैं, मनुष्य शरीर में यह दोनों प्रकार की धाराएं विद्यमान हैं और उन्हीं के आधार पर जीवन के सारे कार्यों का आँदोलन होता है।
किसी मनुष्य को देखकर उसके गुणों को जानकर हम आसानी से मालूम कर सकते हैं, कि उसमें किस धारा का बाहुल्य है। नेगेटिव को अनिश्चयात्मक और पाजेटिव को निश्चात्मक कहा जाता है। बाह्य प्रभावों से तुरन्त प्रभावित हो जाना और हर प्रकार की हवा के प्रवाह में बहने लगना यह अनिश्चयात्मक स्वभाव हुआ और अपने निश्चय पर दृढ़ बने रहना यह निश्चयात्मक स्वभाव कहा जाता है।
मनुष्यों के शरीरों की बनावट एक सी दिखाई देने पर भी उनमें छोटे बड़े का जो असाधारण अन्तर देखा जाता है, उसका कारण और कुछ नहीं, केवल इन धाराओं का मिलना और उनकी मात्रा की न्यूनाभिकता है। बेशक विद्या, बुद्धि, धन और बल का भी अपना स्थान है, पर इन चारों वस्तुओं की भी जो जननी है और अनेक प्रकार की योग्यताओं का जिसमें से उद्भव होता है, उनका वह केन्द्र इन विद्युत धाराओं में ही है।
जिस व्यक्ति का निश्चयात्मक भाव है, जिसके अन्दर धन विद्युत का बाहुल्य है, वह हर प्रकार की कठिनाइयों का मुकाबला करता हुआ, सुख-दुख को बराबर समझता हुआ, कर्त्तव्य पथ पर आरुढ़ रहेगा और मन को गिरने न देगा, किन्तु जो ऋण विद्युत वाला है, उस अनिश्चित स्वभाव के मनुष्य को अपना छोटा सा कष्ट पहाड़ के समान दिखाई देगा और जरा सी विपत्ति आने पर कि कर्त्तव्य विमुख हो जायगा। आज एक इरादा किया है। कल उसे बदल देगा और तीसरे दिन नया प्रोग्राम बना लेगा।
इस प्रकार की उन्नति और सफलता एवं पतन और विफलता के बीच इन्हीं ऋण-धन स्वभावों में निहित है। क्या व्यापार, क्या नौकरी, क्या राज स्वकीय धर्म सभी कामों में उत्साही पुरुष सन्तोषजनक फल प्राप्त करेगा। किन्तु निराशा और निर्बलता के चंगुल में फँसा हुआ व्यक्ति प्राप्त की हुई सफलताओं को भी गंवा देगा। इसलिये जो मनुष्य अपने जीवन को तेजस्वी और प्रतिभाशाली बनाना चाहते हैं, उनके लिये आवश्यक है, कि अपने अन्दर धन विद्युत की मात्रा में वृद्धि करें, इच्छा शक्ति को बढ़ावें।
बीमारी से बचने और उसे अन्ततः अच्छा कर लेने में भी यही नियम काम करता है। जिन्हें आत्म विश्वास है और इच्छा शक्ति के बलवान बनाये हुए हैं वे अपनी मानसिक दृढ़ता के द्वारा ही छोटे-मोटे रोगों को मार भगायेंगे और बीमारी से बचे रहेंगे। कदाचित् बीमार पड़े भी तो बहुत जल्दी अच्छे हो जायेंगे, जब कि निराशावाद मामूली अपनी बीमारी को अपने आप इतनी बढ़ा लेते हैं कि वही उनकी प्राण घातक तक बन जाती है।
जिस प्रकार लोग पैसा कमाना अपना कर्त्तव्य समझते हैं, उसी प्रकार उन्हें चाहिए कि इच्छा शक्ति निश्चयात्मक स्वभाव धन-विद्युत का भी बढ़ाने का प्रयत्न करें। पैसे के समान यह योग्यता आँखों से दिखाई नहीं पड़ती तो वह उसी के समान, बल्कि उससे भी अनेक गुना अधिक उपयोगी है।
स्वभाव की निर्बलता को दूर करने का सबसे उत्तम उपाय है—ईश्वर प्रार्थना करना। इसका अर्थ यह नहीं, कि हम कुछ शब्दों को तोते की तरह रटते रहें और एक नियमित कवायद करके उठ बैठे।
प्रार्थना हृदय के अन्तस्थल से होनी चाहिए, क्योंकि अदृश्य जगत् में से उपयोगी तत्वों को खींचने की चुम्बक शक्ति उसी स्थान में है। सच्चे हृदय से पूर्ण मनोयोग के साथ की हुई प्रार्थना कभी निष्फल नहीं जा सकती, उसका फल अवश्य ही मिलेगा। प्रार्थना की वैज्ञानिक विवेचना यह है कि, वस्तु की हमें आवश्यकता है उसे अक्षय भण्डार से प्राप्त करना। प्रभु का अक्षय भण्डार अपने पुत्रों के लिये सदैव खुला हुआ है, उसमें से हर कोई अपनी इच्छित वस्तु मनमानी मात्रा में ले सकता है, बशर्ते कि वह लेना चाहे और लेने के लिये प्रयत्न करे। इस चाहने ओर प्रयत्न करने का नाम ही प्रार्थना है।
तुम्हें ईश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए कि—”प्रभो! हमें ऐसी शक्ति दीजिए जिसके द्वारा सत्य पालन और पाप का संहार कर सकें। आप सच्चिदानन्द हैं, हमें भी अपने समान बनाइये, जिससे अपना और दूसरों का कल्याण कर सकें” जब किसी के घर में चोर घुस आता है तो वह चोर से आत्म रक्षा करने के लिए लाठी आदि साधन ढूँढ़ता है, तदुपराँत उसे भगाने का प्रयत्न करता है। इस प्रकार हमें अपनी त्रुटियों को हटाने और सर्वतोमुखी उन्नति प्राप्त करने के लिये प्रार्थना को अपनाना चाहिये।
जिन्हें निश्चयात्मक स्वभाव प्राप्त करने की इच्छा है, उन्हें चाहिये कि निष्ठापूर्वक ईश्वर की प्रार्थना करते रहें। विशुद्ध भाव से की हुई प्रार्थना इच्छित फल देने की परिपूर्ण योग्यता रखती है, इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है।