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Magazine - Year 1943 - Version 2

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गंगा-जल

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(श्री मदनगोपाल सिंहल)

(1)

हिन्दू धर्मशास्त्रों में भगवती भागीरथी के जल की बड़ी महिमा कही गई है तथा इसमें स्नान करने या जलपान करने को बड़ा सहायक बतलाया गया है। गंगाजल की पवित्रता और उत्तमता को प्रमाणित करने के लिये अब आधुनिक साइन्स की भी बड़ी सहायता मिल सकती है। पाश्चात्य वैज्ञानिकों ने भी गंगाजल का स्थूल शक्ति का निर्णय करके संसार की आँखें खोल दी हैं डॉक्टर सी0ई॰ नल्सन एम0 डी0 महोदय ने ‘गुड हैल्थ’ नामक पत्र में लिखा है ‘गंगा को हिन्दू पवित्र समझते हैं और उनका कहना है कि—गंगाजल शुद्ध है और कभी दूषित नहीं होता। हम लोग गंगाजल को सदा दूषित समझते हैं, क्योंकि भारत के प्रधान नगर पवित्र काशी में ही लाखों मनुष्य अपना धर्म समझकर प्रतिदिन गंगा में स्नान कर उसे गन्दा करते हैं। नालियों के गन्दे जल, शव और कूड़ा कर्कट भी इसमें बहाये और फेंके जाते हैं। इस पर भी एक अद्भुत बात है कि कलकत्ते से इंग्लैंड जाने वाले जहाज इसी गंगा के एक मुहाने हुगली नदी का मैला जल लेकर प्रस्थान करते हैं और यह जल इंग्लैंड तक बराबर ताजा बहता रहता है वह बम्बई पहुँचने के समय तक ताजा नहीं रहता। इंग्लैण्ड से जहाज कलकत्ता की अपेक्षा बम्बई एक सप्ताह पहिले ही पहुँच जाते हैं। जहाजों को पोर्ट सईद, स्हे व अदन पर फिर ताजा पानी लेना पड़ता है, क्या इसका कारण यह है कि गंगा पवित्र है और इससे उसका जल भारत से इंग्लैण्ड की यात्रा में ताजा बना रहता है और टेम्स धारा अपवित्र है इससे उसका पानी भारत पहुँचने तक ताजा नहीं रहता। यह कथन कि गंगाजल इतना दूषित होने पर भी ताजा बना रहता है कुछ अद्भुत सा प्रतीत होता है पर इस संबंध में बैक्टीरिया सम्बन्धी जो अन्वेषण हुए हैं उनसे उपयुक्त कथन की पुष्टि होती है।”

इतना ही नहीं पाश्चात्य वैज्ञानिकों ने आधुनिक चिकित्सा शास्त्र की कसौटी पर कस कर भी गंगाजल को आश्चर्यकारी ही पाया है। भारत में सरकार की ओर से नियुक्त सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक मिस्टर हैं किसने गंगाजल का वैज्ञानिक यन्त्रों द्वारा परीक्षण कर यह सिद्ध किया है कि गंगाजल में हैजे के कीड़ों को नष्ट करने की प्रबल शक्ति विद्यमान है। उन्होंने काशी आकर स्वयं गंगाजल की परीक्षा की और देखा कि काशी के गन्दे नालों का जो जल गंगोत्री में गिरता है उसमें हैजे के लाखों कीट रहते हैं, किन्तु गंगाजल में मिलने के कुछ समय पश्चात् ही सब मर जाते हैं। उन्होंने गंगा में बहते एक मुर्दे को पकड़ कर उसकी परीक्षा की तो उसमें हैजे के कीट पाये, किन्तु कुछ समय पश्चात् ही वे सब नष्ट हो गये। इसके पश्चात् उन्होंने जगह-जगह हैजे के कीट गंगाजल में तथा साथ ही शुद्ध कूप के जल में छोड़े, किन्तु आश्चर्य के साथ देखा गया कि कुछ समय पश्चात गंगाजल में छोड़े गये कीट बढ़कर असंख्य हो गये। यह देखकर उन्होंने आश्चर्य के साथ लिखा कि हिन्दू लोग गंगाजल को जो इना पवित्र और गंगा को देवी मानते हैं, इसके भीतर कुछ तत्व है। स्वेदज कीट विज्ञान का पता प्राचीन काल के हिन्दुओं को कैसे लगा? क्या प्राचीन काल में भी भारत में ऐसे विज्ञान चित् पंडित थे? हमें मालूम होता है कि जिस समय समस्त संसार असभ्यता के अन्धकूप में डूबा हुआ था उस समय हिन्दू जाति की सभ्यता पराकाष्ठा को पहुँची हुई थी।

गंगाजल में हैजे के कीटाणु को नष्ट करने वाले इस पाठ का समर्थन पेरिस के विख्यात डॉक्टर मिस्टर डेरेल ने भी किया है भारत में जब हैजे और आँवले रोग व्यापक रूप से फैले थे और इन रोगों से मरे व्यक्तियों के शव गंगा में फेंक दिये जाते तब उक्त डॉक्टर महोदय ने इन शब्दों के कुछ ही फुट नीचे गंगाजल की परीक्षा करके देखा कि जहाँ ऐसे आँव के लाखों कीटाणुओं के होने की आशा थी वहाँ वास्तव में उनका एक भी कीटाणु नहीं था। डॉक्टर महोदय ने तब इन रोगों के आक्रान्त रोगियों से रोग कीटाणु उत्पन्न किये और उन उत्पन्न किये गये कीटाणुओं पर गंगाजल डाला। उनके आश्चर्य की सीमा न रही जब कुछ समय पश्चात ही उन्होंने देखा कि रोगों के सब कीटाणु मर गये। इससे उन्होंने यह सिद्ध किया कि हैजे और आँव से आक्रान्त रोगियों के लिये गंगाजल औषधि के रूप में प्रयुक्त हो सकता है। डॉक्टर डेरेल के उपर्युक्त कथन की पुष्टि ‘इण्डियन मेडिकल राबट’ ने भी की है।

केवल हैजा ही नहीं, किन्तु अभी पिछले दिनों इंग्लैंड के सुप्रसिद्ध डॉक्टर के0 गिटा ने यह भी सिद्ध किया है कि गंगाजल के प्रयोग से सन्निपात ज्वर और संग्रहणी भी नष्ट हो जाते हैं। उक्त डॉक्टर महोदय ने गंगाजल से ही इन रोगों से पीड़ित अनेक रोगियों की चिकित्सा भी सफलतापूर्वक की है।

अभी पिछले दिनों ‘स्टेट्स मैन’ पत्र में प्रकाशित हुआ था कि—’गंगाजल में दुष्ट द्रण रोपण करने की भी अद्भुत शक्ति है। इसका कारण यह कहा जाता है कि गंगा जल का प्रवाह जिस भूमि भाग पर से आता है उसमें रेडियम से समान वस्तु होनी चाहिये जिससे प्रवाहित जल में उपयुक्त सब दिखाई देता है।’

डॉक्टर रिचर्ड सम ने तो उससे भी अधिक आश्चर्यमयी एक बात लिखी है और वह यह कि ‘गंगा’ ‘गंगा ‘ कहने और उसके दर्शन करने मात्र से मानव हृदय पर उत्तम प्रभाव पड़ता है।

गंगाजल की इन्हीं स्थूल और सूक्ष्म दैवी शक्तियों का अनुभव कर अपने ग्रन्थों में गंगा स्नान और गंगाजल पान का इतना महत्व वर्णन किया है।

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