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Magazine - Year 1945 - Version 2

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जीवनदाता सूर्य

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(ले.- डॉ. श्री जटाशंकर नाँदी)

सूर्य हमारे जीवन और स्वास्थ्य के लिए उपयोगी है। यह हम प्रायः देखा करते हैं कि जो प्राणी और पेड़ पौधे खुली हवा और प्रकाश में रहते हैं वे उन प्राणियों और पेड़ पौधों की अपेक्षा अधिक-अधिक उन्नत, स्वस्थ, लहलहाते और हरे भरे हैं जिन्हें कम धूप और हवा मिलती है। सूर्य ग्रहण के समय प्राणी बड़े भयभीत हो उठते हैं क्यों? केवल इसीलिए कि सूर्य प्रकाश के अभाव में रहने की कल्पना ही जीवन में अनुत्साह ला देती है। खुले प्रकाश में गाय, बछड़े तथा अन्य प्राणी कैसे खेलते-कूदते और किलकते हैं। कैसे प्रसन्न रहते हैं। यह बात किससे छिपी है? जो साग सब्जी खुली धूप में पकती है उसमें सूर्य की किरणों से ‘विटामिन’ जीवन शक्ति बहुत अधिक बढ़ जाती है और उसके सेवन से अनेक रोगों का नाश होता है।

जिन पेड़ पौधों और लताओं को सूर्य का प्रकाश नहीं मिलता वे या तो बढ़ते पनपते ही नहीं और यदि बढ़े, पनपे भी तो उनमें ताजगी नहीं रहती। जिन मजदूरों को कारखानों के भीतर काम करना पड़ता है, अंधेरे जेलखानों में बरसों गुजारने पड़ते हैं, खुली धूप और हवा नहीं मिल पाती, वे ठिगने रह जाते हैं। उनके चेहरे पर उदासी छाई रहती है। उनका स्वास्थ्य बुरी तरह गिर जाता है और शरीर नाना प्रकार के रोगों का शिकार बन जाता है। शरीर को स्वस्थ और रोगमुक्त रखने के लिए सूर्य के प्रकाश की अनिवार्य आवश्यकता है।

मनुष्य-जीवन पर सूर्य का प्रभाव

हमारे यहाँ प्रारम्भ से ही आरोग्य और दीर्घ जीवन की प्राप्ति के लिए सूर्य को एक महान् साधन माना जाता रहा है और हम देवता के रूप में भी सूर्य की पूजा करते आ रहें हैं वेद का सार गायत्री भी सूर्य की पूजा है और उसके जप का विधान भी यह है कि कमर से ऊपर नंगे शरीर होकर किया जाय अर्थात् खुले शरीर पर सूर्य की आरोग्यवर किरणें पड़ने दी जायं। प्रातःकाल सूर्य की किरणों का पवित्र स्नान मुफ्त में मिलने वाले स्वास्थ्य सुख और आनन्द का अनुपम साधन है। इससे रक्त शुद्ध होता है, बल और उत्साह की भी प्राप्ति होती है।

डॉक्टर मूर का कथन है कि “जिस बालक को धूप से बचाकर रखा जाता है, वह सुन्दर और बुद्धिमान बनने की बजाय कुरूप और मूर्ख बनता है। स्विट्जरलैंड में जहाँ सूर्य की सीधी किरणें नहीं पहुँचती वहाँ कि अंधेरी कोठरियों में जो लोग निवास करते हैं, उनकी मूर्खता भरी बातें देख सुनकर वहाँ पर पहुँचने वाले यात्री आश्चर्य से चकित होकर रह जाते हैं। उनमें अनेक लोग साफ-साफ बोल नहीं पाते, अनेक अन्धे होते हैं, अनेक बहरे तथा कुरूप। गाँवों में रहने वाले किसानों का स्वास्थ्य शहर की अंधेरी कोठरियों में रहने वाले लोगों से कहीं अच्छा होता है, इस बात को कौन नहीं जानता?

अंधेरी कोठरियों का अभिशाप

अंधेरी कोठरियों में रहने वाले मनुष्य खुले मकानों में रहने वालों की अपेक्षा अधिक बीमार पड़ते और मरते हैं। इसी कारण यह कहावत बन गई है कि- “Where the sun does not enter; doctor must” अर्थात् जिस घर में सूर्य का प्रकाश नहीं आता उस घर में डॉक्टर को आना ही होगा। सर जेम्सबाई ने कहा है कि- सेन्टपीटर्सबर्ग में जो सैनिक बिना प्रकाश वाले हिस्से में रहते थे वे प्रकाश में रहने वाले सैनिकों से तिगुनी संख्या में मरते थे। महामारी फैलने पर देखा जाता है कि अंधेरे स्थानों में रहने वाले लोग खुले में रहने वालों की अपेक्षा कही अधिक उसके शिकार बनते हैं। अतः जिन लोगों को अपने स्वास्थ्य और दीर्घायु होने की चिंता हो उन्हें चाहिए कि वे ऐसे ही मकानों में रहें और काम करें जहाँ सूर्य का खूब प्रकाश आता हो।

सूर्य महान रोगनाशक वैद्य

हमारे शास्त्रों और आयुर्वेद के ग्रन्थों में सूर्य प्रकाश की बड़ी महिमा गायी गई है। उससे अनेक रोग दूर होते हैं। सूर्य-किरणों के सेवन से मनुष्य वात, पित्त और कफजनित सभी व्याधियों का नाश कर सौ वर्ष तक जीवित रह सकता है। भोजन में जिन तत्वों की कमी रहती है, वे अनेक अंशों में हमें सूर्य-किरणों से मिल जाते हैं।

हमारे देश के अलावा पारसी, मिस्रवासी, यूनान और इटली के निवासी भी चिरकाल से सूर्य को देवता के रूप में पूजते आ रहे हैं। यूनान में सूर्य की उपासना के लिए बना ‘सूर्य-मन्दिर’ तो बहुत प्रसिद्ध था। 2000 वर्ष पूर्व यूनान का प्रसिद्ध वैद्य हिपोक्रेटीज सूर्य की किरणों द्वारा भयंकर रोगों की चिकित्सा किया करता था। अब तो विदेशों में सूर्य की किरणों से चिकित्सा का कार्य खूब चलने लगा है। सूर्य की रंग-बिरंगी किरणों का असाध्य रोगों के निवारण के लिए भरपूर प्रयोग किया जा रहा है। पाचनेन्द्रिय के रोग चर्म रोग, मज्जातंतु के रोग तो सूर्य की किरणों से अच्छे किये ही जाते हैं, क्षय जैसे भयंकर रोग के भी उससे दूर होने के उदाहरण मिले हैं। डॉक्टर रोलियर तो शारीरिक विकृति के लिए भी आपरेशन के बजाय सूर्य-स्नान का ही प्रयोग करते हैं। डॉक्टर फीनसीन भी सूर्य-किरणों द्वारा असंख्य रोग अच्छे करते हैं। उनका कहना है कि बालकों के सम्पूर्ण और सर्वांगीण विकास के लिए सूर्य-किरणों की अनिवार्य आवश्यकता है। जंगली प्राणी भी जब बीमार होते हैं तो सचमुच धूप में आकर पड़े रहते हैं और ठीक हो जाते हैं। फिर मनुष्य क्यों तरह-तरह की दवाओं का प्रयोग कर और अधिक रोगों को निमंत्रण दें? क्यों न वह भी सूर्य की अद्भुत किरणों से लाभ उठायें?

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