
माँगने से मिलता है।
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(पं. चन्द्रकिशोर तिवारी शास्त्री, मथुरा)
बाईबिल में परमात्मा ने कहा है- “यदि वास्तव में सचाई के साथ तुम मेरी खोज करोगे तो मैं निस्संदेह तुमको मिलूँगा। यदि सचाई के साथ तुम मुझसे कोई वस्तु माँगोगे तो वह तुम्हें अवश्य दी जायेगी। ढूँढ़ो मैं तुम्हें अवश्य मिलूँगा। दरवाजा खटखटाओ, वह तुम्हारे लिए अवश्य खोला जायेगा। जो माँगता है वह पाता है।”
इस महावाक्य के ऊपर जितना-जितना हम विचार करते हैं, उतनी ही अत्यन्त सुदृढ़ सचाई इस वाक्य के अन्दर छिपी पाते हैं। इस दुनिया में बहुतों ने बहुत कुछ पाया है। परन्तु जिनने भी जो कुछ पाया है वह अपने निजी प्रयत्न के बल पर पाया है। परमात्मा की स्पष्ट प्रतिज्ञा है कि मैं देता हूँ, मनमानी संपत्तियाँ देता हूँ, पर देता उन्हें ही हूँ जो सच्चे दिल से माँगते हैं, खोज करते हैं, खटखटाते हैं और पीछे पड़ जाते हैं। माता बालक को तब भोजन देती है जब वह रोता है, बिना माँगे माता से रोटी मिलना भी कठिन है।
आवश्यकता आविष्कार की जननी है। जहाँ चाह होती है वहाँ राह निकल आती है। सब लोग अपने कर्मों का फल पाते हैं। शास्त्र में एक महावाक्य है कि- “भला या बुरा जैसा भी कुछ तू है वैसा अपने आप तूने अपने को बनाया है।” मनुष्य अपनी इच्छाशक्ति द्वारा अपने आप को बनाता है। जिसकी आकाँक्षा उन्नति के पथ पर चलने की, गौरवान्वित होने की, सौभाग्यशाली बनने की और सिद्धि समृद्धि प्राप्त करने की है, उसे कोई भी उसके मार्ग से विचलित नहीं कर सकता।
यों तो बहुत से आदमी तरह-तरह के मन के लड्डू बनाते हैं, सुखी, समृद्ध होने के बड़े-बड़े मनसूबे पालते हैं परन्तु उन में से सफल बहुत ही थोड़े मनुष्य हो पाते हैं। शेखचिल्ली के से सपने यदि सफल हो जाया करते तो पुरुष और पौरुष का कोई ही इस संसार में न रहता। कोरी इच्छा, साथ प्रयत्न, पौरुष, लगन और दृढ़ता न हो है। सफलता की देवी ऐसे लोगों की ओर आँख उठाकर भी नहीं देखती। सिद्धि उन्हें मिलती है जो अपनी अभीष्ट वस्तु के लिए जी जान से प्रयत्न करते हैं।
अनुभवियों का कथन है कि- “उद्योगि नं पुरुष सिंह भुपैति लक्ष्मी, दैवेनदेव मति का पुरुषो बदन्ति।” लक्ष्मी उद्योगी पुरुषों को ही प्राप्त होती है और कायर लोग दैव-दैव पुकारा करते हैं। एक अन्य वचन है कि- ‘कायरा इति जल्पन्ति यद्भाव्यं तद्भविष्यति” कायर लोग ऐसी बकवास करते रहते हैं कि जो होना होगा। “न प्रसुप्तस्य सिंहस्य प्रविशंति मुखे मृगाः” सोते हुए सिंह के मुख में हिरन खुद प्रवेश नहीं करते, वरन् सिंह को ही उन मृगों को पकड़ना और खाना पड़ता है। रामायण का कथन है- “दैव देव आलसी पुकारा।” भाग्य के भरोसे बैठे रहने से तरह-तरह की कल्पना और जल्पना करते रहने से, कुछ प्राप्त नहीं होता। इच्छा को पूर्ण करने के लिए जो निरन्तर उत्साहपूर्वक प्रयत्न करते हैं, वे ही सफलता के भागी होते हैं। कवि ने कैसा अच्छा कहा है -
जिन भोजा तिन पाइयाँ, गहरे पानी पैठ।
हौं बौरी ढूंढ़न गई, रही किनारे बैठ॥
जिन्होंने खोजा है, उन्हें मिला है। जो खोजेंगे उन्हें मिलेगा। सफल जीवन महापुरुषों की ओर जब हम दृष्टिपात करते हैं तो प्रतीत होता है कि उन्होंने विघ्न, बाधा, असफलता, कष्ट और कठिनाइयों से पग-पग पर संग्राम किया है। नित्य अप्रत्याशित कठिनाईयाँ उनके मार्ग में आई हैं और नित्य दूने उत्साह के साथ उन्होंने उनसे संग्राम किया है। यदि वे घर के कोने में बैठे-बैठे मन के लड्डू खाते रहते, कठिनाइयों को देखकर घबरा जाते और प्रयत्न छोड़ बैठते तो आज उनका जीवन जैसा सफल दिखाई पड़ता है कदापि वैसा दिखाई न पड़ता।
सिद्धि के-सफलता के इच्छुकों को बाईबिल का यह वचन ध्यान रखना चाहिए कि “जो सचाई से माँगता है उसे दिया जाता है।” सचाई से माँगने का अर्थ है पूरे परिश्रम उत्साह और संयम के साथ इच्छित वस्तु की प्राप्ति में जाँफिसानी के साथ जुट जाना। आप यदि सफल मनोरथ होना चाहते हैं, सिद्धि की सीढ़ी पर चढ़ना चाहते हैं तो घोर प्रयत्न और दृढ़ इच्छा को अपना साथी बना लीजिए, प्रयत्न के ऊपर प्राप्ति निर्भर है। स्मरण कीजिए माँगने वाले को ही मिलता है।