
कुविचारों से छुटकारा कैसे मिले?
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(श्री विश्वमित्रजी वर्मा)
बहुतों को चिंता, भय, शोक, द्वेष, ईर्ष्या आदि के विचार सताते रहते हैं-वे इन विचारों को हटाने का प्रयत्न भी लाखों करते हैं तो भी दूर नहीं होता वे इन बुरे विचारों को, उन्हीं का चिंतन बार-बार करके हटाने का प्रयत्न करते हैं-कि ये विचार हट जायें-परन्तु ऐसा कदापि नहीं होता और हो भी नहीं सकता। इस प्रकार हम बुरे विचारों को नहीं हटा सकते। हमें चाहिए कि जब हममें बुरे विचार आवें-तो उन्हें हटाने का कभी प्रयत्न न करें बल्कि तुरन्त ही शुभ विचार करना आरंभ कर दें।
हमें यह अच्छी तरह मालूम है कि जब बच्चा अप्रसन्न हो जाता है, रोता है। तब हम उसे यदि कहें कि प्रसन्न हो जाओ। रोना बन्द करो, तो वह ओर भी अधिक अप्रसन्न होगा, अधिक रोवेगा। इस बला से दूर होने के लिए जब हम बच्चे को अच्छी मिठाइयाँ खाने को देते हैं या बाजा या खिलौना उसके हाथ में दे देते हैं तो वह झट से रोना बंद कर देता है-प्रसन्न हो जाता है और उन्हीं खिलौनों से खेलने लगता है उसका मन उन्हीं खिलौनों में रम जाता है, फिर यदि उसे उसके रोने की बात याद दिलाई जाय तो वह पहले तो ध्यान ही नहीं देता-फिर जब हम बार-बार उसे उसी बात की याद दिलाते हैं तब रोना आरंभ करता है। देखा आपने शुभ और अशुभ संकल्पों का प्रभाव?
पहले उसके मन में अप्रसन्नता के विचारों ने स्थान पा लिया था-जो एक शुभ संकल्प-मन बहलाव से नहीं हटे-जब बार-बार उसका मन शुभ विचारों मिठाई और खिलौनों द्वारा बहलाया गया-तब बुरे विचारों ने भागना आरंभ किया क्योंकि नया विचार आना आरम्भ हो गया था-ज्यों-ज्यों नये शुभ विचार आने लगे-बुरे विचारों का स्थान मन में से खाली होने लगा-यहाँ तक कि शुभ विचारों के आधिक्य से बुरा विचार एक भी न रह सका और बच्चा प्रसन्न हो गया-हम बच्चे के मन में प्रसन्नता के विचार भेजते रहे-विचारों ने उसके मन में दृढ़ता प्राप्त कर ली। पुनः जब किसी दूसरे बहकाने वाले आदमी ने बुरे विचार प्रचारित करना आरम्भ किया तो पहले कुछ देर तक तो असर ही न पड़ा, जैसे शुभ विचार रोते समय देने में पहले असर न पड़ा था। फिर जब बार-बार उसको रोने की बात याद दिलाई तो शुभ विचारों को अशुभ विचारों ने भगा दिया-इस प्रकार त्यों-त्यों शुभ विचारों का स्थान मन में से रिक्त होता जाता है और रोने के लक्षण अधिकाधिक आने लगे-जब शुभ विचार एक भी न रहा-अशुभ विचारों ने पूर्ण मन पर स्थान पा लिया तब बच्चा फिर रो दिया।
एक मनुष्य या कोई भी प्राणी अपनी ही जाति वाले के साथ-अपनी ही बराबरी वाले व्यक्ति के साथ रहेगा-छोटे बड़े शुभ-अशुभ, कौआ और हंस का संयोग कभी नहीं हो सकता और निभ भी नहीं सकता। यही बात हमारे विचारों के संबंध में लागू होती है जब हम कोई बुरा विचार अपने मन में लाते हैं तो उससे अन्य भी बुरे विचार व बुरे काम कराने वाले विचार उत्पन्न होते हैं-फिर उसके फलस्वरूप हमारे मुँह से उसी के सजातीय बुरे शब्द भी निकलते हैं। फिर बार-बार वह विचार मन में आने में अपनी जड़ जमा लेता है और दृढ़ हो जाता है जिससे हम बुरा काम कर बैठते हैं।
चिंता, भय, शोक द्वेष, ईर्ष्या आदि के कुविचार जब मन में अपना अड्डा जमा लेते हैं तो और भी अनेकों प्रकार के बुरे-बुरे कुविचार आने लगते हैं जिनके कारण बेचैनी और व्याकुलता बनी रहती है और जीवन बड़ा अशान्त एवं कष्टमय बन जाता है। इस स्थिति से छुटकारा पाने के लिए हमें निर्भयता, प्रसन्नता, प्रेम एवं आत्मीयता की भावनाएं मन में धारण करनी चाहिए। अच्छे विचारों को मन में भरने से दुर्भाव और कुविचार अपने आप चले जाते हैं।