• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • वेदमाता गायत्री की महिमा।
    • गायत्री अंक के सम्बन्ध में
    • आदि शक्ति को प्रणाम
    • सतोगुणी ब्राह्मी शक्ति
    • वेदमाता गायत्री
    • गायत्री की उत्पत्ति
    • आत्मबल और परमात्मा की प्राप्ति
    • नौ निद्धियों की प्राप्ति
    • भूतल पर स्वर्गीय सुख
    • विपत्तियों से छुटकारा
    • अनिष्ट का कोई भय नहीं
    • साधना की पाँच शर्त
    • दीक्षा और गुरु मंत्र
    • द्विजों का नित्य नियम
    • गायत्री और यज्ञोपवीत।
    • ब्रह्म सन्ध्या
    • विघ्न विदारक-अनुष्ठान
    • सवा लक्ष जप का अनुष्ठान
    • सर्व शुभ गायत्री यज्ञ
    • समस्त मंत्रों का लाभ
    • गायत्री की त्रिविधि साधना
    • गायत्री की आरती
    • Kavita
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • वेदमाता गायत्री की महिमा।
    • गायत्री अंक के सम्बन्ध में
    • आदि शक्ति को प्रणाम
    • सतोगुणी ब्राह्मी शक्ति
    • वेदमाता गायत्री
    • गायत्री की उत्पत्ति
    • आत्मबल और परमात्मा की प्राप्ति
    • नौ निद्धियों की प्राप्ति
    • भूतल पर स्वर्गीय सुख
    • विपत्तियों से छुटकारा
    • अनिष्ट का कोई भय नहीं
    • साधना की पाँच शर्त
    • दीक्षा और गुरु मंत्र
    • द्विजों का नित्य नियम
    • गायत्री और यज्ञोपवीत।
    • ब्रह्म सन्ध्या
    • विघ्न विदारक-अनुष्ठान
    • सवा लक्ष जप का अनुष्ठान
    • सर्व शुभ गायत्री यज्ञ
    • समस्त मंत्रों का लाभ
    • गायत्री की त्रिविधि साधना
    • गायत्री की आरती
    • Kavita
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1948 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


सर्व शुभ गायत्री यज्ञ

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 18 20 Last
अग्नि होत्रं तु गायत्री मंत्रेण विधिवत् कृतम्। सर्वेष्वेव सरेष्वेव शुभमेव मते बुधैः।

(गायत्री मंत्रेण) गायत्री मंत्र से (विधिवत्) विधिपूर्वक (कृतं) किया गया (अग्निहोत्रं) अग्निहोत्र (सर्वेषु) सभी (अवसरेषु) अवसरों पर (बुधैः) विद्वानों ने (शुभं मतं) शुभ माना है।

गायत्री मंत्र से किया हुआ अग्निहोत्र सब अवसरों पर शुभ है। भारतीय धर्म में प्रत्येक शुभ कार्य के साथ यज्ञ को संबंधित किया गया है, कारण यह है कि शुभ कार्य वही हो सकता है जिसके साथ यज्ञ भावनाएं संमिश्रित हों। यज्ञ कहते हैं- त्याग को। लोक हित के लिए, जनता जनार्दन की सेवा के लिए, परमार्थ के लिए, अपने भौतिक स्वार्थों का, पदार्थों का त्याग करना यज्ञ कहलाता है। अग्नि होत्र उस भावना का एक प्रतीक है।

समिधा कहते हैं-बल को। हवन में ढाक, छोंकर, आम, पीपल, गूलर अपामार्ग, आक की समिधाएं प्रधानतः काम आती हैं। यह समिधाएं शारीरिक, मानसिक, आर्थिक, धार्मिक, सामाजिक, राजनैतिक और आध्यात्मिक बल की प्रतीक हैं। जब मनुष्य के अन्दर सुदृढ़ बल होते हैं। सूखी समिधाएं होती हैं, तब उनमें अग्नि का, ब्रह्म का तेज प्रकट होता है। जब समिधाओं में अग्नि प्रज्वलित हो गई, तब हवन सामग्री की हव्य की आवश्यकता होती है, आध्यात्मिक भाषा में हव्य कहते हैं सत् प्रवृत्तियों को। श्रेष्ठ गुण कर्म और स्वभावों का शाकल्य इस अग्नि में होमा जाता है। बल सम्पादन करके, उस बल को ब्रह्म तेज से, आध्यात्मिकता से, समन्वित करके उसमें सत् वृत्तियों का, श्रेष्ठ गुण कर्म स्वभावों का, समन्वय करते हैं इस हव्य सामग्री में एक और वस्तु मिलानी आवश्यक होती है वह है मधु। मधुर खाँड़ मिश्री या बूरा मिलाये बिना काम नहीं चल सकता। इसका अर्थ है-मधुरता का मिश्रण। हमारी प्रत्येक वाणी एवं क्रिया मधुर, मीठी, प्रिय, विनय युक्त होनी चाहिए। कोई कितनी ही ऊंचा महान् धनी, विद्वान क्यों न हो यदि उसमें मधुरता नहीं तो उसका सारा वैभव निरर्थक है। इस मधुर हव्य के पड़ने से अग्निहोत्र प्रदीप्त होता है उसकी लपटें ऊपर उठती हैं, अर्थात् जीवन को ऊर्ध्व गति की ओर अग्रसर करती हैं। इस हवन में आहुतियों के साथ साथ घृत भी होमा जाता है। घृत का दूसरा नाम है स्नेह। स्नेह अर्थात् प्रेम, आत्मभाव, वात्सल्य। अपने जीवनोद्देश्य से, धर्म से, कर्तव्य से, स्वजन संबंधियों से, प्राणिमात्र से निस्वार्थ सतोगुणी प्रेम होना, दिव्य वृत्त है, जिससे जीवन यज्ञ की पूर्णता होती है।

अपनी उपार्जित संग्रहीत वस्तुओं को हम हवन करते हैं, किसी प्रत्यक्ष स्वार्थ या लाभ के लिए नहीं-वरन् एक अदृश्य परमार्थ के लिए। दूर दृष्टि से, दिव्य दृष्टि से, त्याग का महत्व समझते हुए यह सब करते हैं। यज्ञ का यही दृष्टिकोण है। आहुति मंत्र के अन्त में स्वाहा कहने के पश्चात् ‘इदन्नमम’ का उच्चारण होता है। इसका अर्थ है “यह मेरा नहीं है। अर्थात् सब कुछ परमात्मा का है।” इस त्याग भावना से हमारा जीवन ओत प्रोत होना चाहिए, यज्ञमय जीवन इसी को कहते हैं। इस जीवनोद्देश्य का, आत्मिक आदर्श का, भौतिक प्रतीक है-अग्नि होत्र। इसीलिए अग्निहोत्र के साथ किये हुए कार्य शुभ होते हैं।

हवन करने में जिन वस्तुओं की आहुति दी जाती है वे नष्ट नहीं हो जाती वरन् सूक्ष्म होकर अनेक गुनी शक्तिशाली बनती हैं और चारों ओर आकाश में फैल जाती हैं। लाल मिर्च एक स्थान पर रखी रहे तो उसकी शक्ति सीमित हैं पर यदि उसे अग्नि में जलाया जाय तो वह सूक्ष्म होकर दूर दूर तक फैलेगी और लोग अनुभव करेंगे कि उन तक मिर्च जलने की गंध आ रही है। इसी प्रकार हवन सामग्री भी सूक्ष्म होकर आकाश में फैल जाती है उससे आकाश वायु, जल आदि तत्वों की शुद्धि होती है फल स्वरूप स्वास्थ्यकर वातावरण उत्पन्न होता है। नाना प्रकार की बीमारियाँ जो अदृश्य आकाश में मंडराती रहती हैं, यज्ञ धूम्र से नष्ट होती हैं और अच्छी वर्षा होती है एवं अच्छे अन्न उत्पन्न होते हैं। यज्ञ की त्याग भावना जो मंत्रों के साथ आकाश में गुँजित की गई है देव तत्वों को उल्लसित एवं प्रस्फुटित करती है वे प्रसन्न होकर, पुष्ट होकर, संसार के लिए सुख शान्ति की प्रेरणा करते हैं। इस प्रकार यज्ञ कल्याण के लिए बड़ा ही उत्तम मार्ग सिद्ध होता है। इसमें खर्च किया हुआ धन और समय अगणित गुने सत्परिणाम उत्पन्न करता है। इन तत्वों के आधार पर ही हमारे पूजनीय ऋषियों ने प्रत्येक शुभ कार्य के साथ यज्ञ का समावेश किया है। कोई भी संस्कार, व्रत, अनुष्ठान, पूजन, उत्सव ऐसा नहीं हैं जिसके लिए हवन आवश्यक न हो। नित्य कर्मों में पंचयज्ञों का विधान है। जिसकी चिह्न पूजा अब भी भोजन बनाते समय स्त्रियाँ पहली रोटी के पाँच ग्रास चूल्हें में डालकर करती हैं।

गायत्री अनुष्ठान के अन्त में या अन्य किसी भी शुभ अवसर पर ‘गायत्री यज्ञ’ करना चाहिए। जिस प्रकार वेदमाता की सरलता, सौम्यता, वत्सलता, सुसाध्यता प्रसिद्ध है उसी प्रकार गायत्री हवन भी अत्यन्त सुगम है। इसके लिए बड़ी भारी मीन मेख निकालने की या कर्मकाण्डी पण्डितों का ही आश्रय लेने की अनिवार्यता नहीं है। साधारण बुद्धि के साधक इसको स्वयमेव भली प्रकार कर सकते हैं।

कुण्ड खोद कर या वेदी बना कर दोनों ही प्रकार हवन किया जा सकता है। निष्काम बुद्धि से आत्म कल्याण किये जाने वाले हवन कुण्ड खोद करना ठीक है और किसी कामना से, मनोरथ की पूर्ति के लिए किये जाने वाले यज्ञ वेदी पर किए जाने चाहिए। कुण्ड या वेदी की लम्बाई चौड़ाई साधक के अंगुलों से चौबीस 2 अंगुल होनी चाहिए। कुण्ड खोदा जाय तो उसे चौबीस अंगुल ही गहरा भी खोदना चाहिए और इस प्रकार तिरछा खोदना चाहिए कि नीचे पहुँचते पहुँचते चार अंगुल चौड़ा और चार अंगुल लंबा रह जावे। वेदी बनानी हो तो पीली मिट्टी की चार अंगुल ऊंची वेदी चौबीस 2 अंगुल लम्बी चौड़ी बनानी चाहिए। वेदी या कुण्ड को हवन करने से दो घंटे पूर्व, केवल पानी से इस प्रकार लीप देना चाहिए कि वह समतल हो जाये ऊंचाई नीचाई अधिक न रहे। कुण्ड या वेदी से चार अंगुल हटकर एक छोटी नाली दो अंगुल चौड़ी दो अंगुल गहरी खोद कर उसमें पानी भर देना चाहिए। वेदी या कुण्ड के आस पास गेहूँ का आटा, हल्दी, रोली, आदि माँगलिक द्रव्यों से चौक पूर कर चित्र विचित्र बना कर अपनी कला प्रियता का परिचय देना चाहिए। यज्ञ स्थल को अपनी सुविधानुसार मंडप, पुष्प पल्लव आदि से जितना सुन्दर एवं आकर्षक बनाया जा सके उतना अच्छा है।

वेदी या कुण्ड के ईशान कोण में कलश स्थापित करना चाहिए। मिट्टी या उत्तम धातु के बने हुए कलश में पवित्र जल भर कर उसके मुख में आम्र पल्लव रखने चाहिए और ऊपर ढक्कन में चावल, गेहूँ का आटा, मिष्ठान्न अथवा कोई अन्य मंगलीक द्रव्य रख देना चाहिए। कलश के चारों ओर हल्दी से स्वास्तिक (सथिया) अंकित कर देना चाहिए। कलश के समीप एक छोटी चौकी या वेदी पर पुष्प और गायत्री की प्रतिमा, पूजन सामग्री रखनी चाहिए।

वेदी या कुण्ड के तीन ओर आसन बिछा कर इष्ट मित्रों बन्धु बान्धवों सहित बैठना चाहिए। पूर्व दिशा में जिधर कलश और गायत्री स्थापित हैं उधर किसी श्रेष्ठ ब्राह्मण अथवा अपने वयोवृद्ध को आचार्य वरण करके बिठाना चाहिए। वह इस यज्ञ का ब्रह्मा है। यजमान पहले ब्रह्मा के दाहिने हाथ में सूत्र (कलावा) बाँधे, रोली या चंदन से उनका तिलक करे, चरण स्पर्श करे तथा पुष्प, फल, मिष्ठान का एक छोटी सी भेंट उनके सामने उपस्थित करे। तदुपरान्त ब्रह्मा उपस्थित सब लोगों को क्रमशः अपने पास बुलाकर उनके दाहिने हाथ में कलावा बाँधे, मस्तक पर रोली का तिलक करे और उनके ऊपर अक्षत छिड़क कर आशीर्वाद के मंगल वचन बोले।

यजमान को पश्चिम की ओर बैठना चाहिए उसका मुख पूर्व को रहे। हवन सामग्री और घृत अधिक हो तो उसे कई पात्रों में विभाजित करने के लिए कई आदमी हवन करने बैठ सकते हैं। सामग्री थोड़ी हो तो यजमान हवन सामग्री अपने पास रखे और उसकी पत्नी घृत पात्र सामने रखकर चम्मच (श्रुवा) संभाले। पत्नी न हो तो भाई या मित्र घृत पात्र लेकर बैठ सकता है। समिधाएं सात प्रकार की होती हैं यह सब प्रकार की न मिल सकें तो जितने प्रकार मिल सकें उतने प्रकार की ले लेनी चाहिए। हवन सामग्री त्रिगुणात्मक साधना लेख में दी हुई है वे तीनों गुण वाली लेनी चाहिए पर आध्यात्मिक हवन हो तो सतोगुणी सामग्री आधी और चौथाई चौथाई रजोगुणी तमोगुणी लेनी चाहिए। यदि किसी भौतिक कामना के लिए हवन किया गया हो रजोगुणी आधी और सतोगुणी तमोगुणी चौथाई चौथाई लेनी चाहिए। सामग्री को भली प्रकार साफ कर धूप में सुखा कर जौ कुट कर लेना चाहिए। सामग्रियों की किसी वस्तु के न मिलने पर या कम मिलने पर उसका भाग उसी गुण वाली दूसरी औषधि को मिला कर किया जा सकता है।

उपस्थित लोगों में जो हवन की विधि में सम्मिलित हों वे स्नान किये हुए हों। जो लोग दर्शक हों वे थोड़ा हटकर बैठें। दोनों के बीच में थोड़ा फासला रहना चाहिए।

हवन आरंभ करते हुए यजमान ब्रह्मसंध्या के आरंभ में प्रयोग होने वाले पंच कोषों (आचमन, शिखाबन्ध, प्राणायाम, अघमर्षण तथा न्यास) की क्रियाएं करें। तत्पश्चात् वेदी या कुण्ड पर समिधाएं चिन पर कपूर की सहायता से गायत्री मंत्र के उच्चारण सहित अग्नि प्रज्वलित करें। सब लोग साथ साथ मंत्र बोलें और अन्त में स्वाहा के साथ घृत तथा सामग्री वाले उनका हवन करें। आहुति के अन्त में चम्मच में से बचे हुए घृत की एक दो बूँदें पास में रखे हुए पात्र में टपकाते जाना चाहिए और ‘आदि शक्ति गायत्र्यै इदन्नमम’ का उच्चारण करना चाहिए। हवन में साथ साथ बोलते हुए मधुर स्वर से मंत्रोच्चारण करना तो उत्तम है पर उदात्त अनुष्ठान और त्वरित के अनुसार होने न होने की इस सामूहिक सम्मेलन में शास्त्रकारों से छूट दी हुई है।

आहुतियाँ कम से में 125 होनी चाहिए। अधिक इसके दो तीन चार या चाहे जितने गुने किये जा सकते हैं। सामग्री कम से कम प्रति आहुति के लिए तीन मासे के हिसाब से 32 तोले अर्थात् करीब 6 छटाँक और घृत एक मासे प्रति आहुति के हिसाब से 2 छटाँक होना चाहिए। सामर्थ्यानुसार इससे अधिक चाहे जितना बढ़ाया जा सकता है। ब्रह्म माला लेकर बैठे और आहुतियाँ गिनता रहे जब पूरा हो जाय तो आहुतियाँ समाप्त करा दे। उस दिन बने हुए पकवान मिष्ठान्न आदि में से अलौने और मधुर पदार्थ लेने चाहिए। नमक मिर्च मिले हुए शाक, आचार, रायते आदि का अग्नि में निषेध है। इस भोजन में से थोड़ा थोड़ा भाग लेकर वे सभी लोग चढ़ावें जिन्होंने स्नान किया है और हवन में भाग लिया है। अन्त में एक नारियल की भीतरी गिरी का गोला लेकर उसमें छेद करके यज्ञ शेष घृत भरना चाहिए और खड़े होकर पूर्णाहुति के रूप में उसे अग्नि में समर्पित कर देना चाहिए। यदि कुछ सामग्री बची हो तो वह भी सब इसी समय चढ़ा देनी चाहिए।

इसके पश्चात् सब लोग खड़े होकर यज्ञ की चार परिक्रमा करें। और ‘इदन्नमम’ का पानी पर तैरता हुआ घृत उंगली ले लेकर पलकों पर लगावें, हवन की बुझी हुई भस्म लेकर सब लोग मस्तक पर लगावें। कीर्तन या भजन गायन करें और कुछ प्रसाद वितरण करके सब लोग प्रसन्नता और अभिवादन पूर्वक विदा हों। यज्ञ की सामग्री को दूसरे दिन किसी पवित्र स्थान में विसर्जित करना चाहिए। यह गायत्री यज्ञ, अनुष्ठान के अन्त में ही नहीं, अन्य समस्त शुभ कर्मों में भी किया जा सकता है।

----***----

First 18 20 Last


Other Version of this book



Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • वेदमाता गायत्री की महिमा।
  • गायत्री अंक के सम्बन्ध में
  • आदि शक्ति को प्रणाम
  • सतोगुणी ब्राह्मी शक्ति
  • वेदमाता गायत्री
  • गायत्री की उत्पत्ति
  • आत्मबल और परमात्मा की प्राप्ति
  • नौ निद्धियों की प्राप्ति
  • भूतल पर स्वर्गीय सुख
  • विपत्तियों से छुटकारा
  • अनिष्ट का कोई भय नहीं
  • साधना की पाँच शर्त
  • दीक्षा और गुरु मंत्र
  • द्विजों का नित्य नियम
  • गायत्री और यज्ञोपवीत।
  • ब्रह्म सन्ध्या
  • विघ्न विदारक-अनुष्ठान
  • सवा लक्ष जप का अनुष्ठान
  • सर्व शुभ गायत्री यज्ञ
  • समस्त मंत्रों का लाभ
  • गायत्री की त्रिविधि साधना
  • गायत्री की आरती
  • Kavita
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj