Magazine - Year 1951 - Version 2
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Language: HINDI
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यज्ञ आयोजन की पूर्ति
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(डॉक्टर भगवानदास जी, हटा)
गायत्री उपासना में मेरी बहुत दिनों से रुचि है। निर्धारित विधान के साथ मैं उस महामंत्र की आराधना करता हूँ। मित्र नित्य नियमित आराधना के अतिरिक्त नव रात्रियों में 24 हजार के लघु अनुष्ठान किया करता हूँ।
इस साधना के फलस्वरूप मेरे स्वभाव में आकाश-पाताल का अन्तर हुआ है। जो बुराइयाँ पहले मुझ में थीं, वे अब धीरे-धीरे करके सब समाप्त हो गई हैं और ऐसे नये गुणों का आविर्भाव हुआ है जिनसे मुझे स्वयं हार्दिक प्रसन्नता है और मेरे शुभ चिन्तक उन्हें देखकर फूले नहीं समाते।
पिछली बार जब मेरा अनुष्ठान चल रहा था तब आर्थिक गड़बड़ी के कारण कुछ अड़चन आ रही थी। मैं चाहता था कि अनुष्ठान के अन्त में एक अच्छा समारोह ब्रह्म-भोज दान, एवं गायत्री साहित्य का प्रसाद वितरण करूं। पर आर्थिक स्थिति अनुकूल न थी, जितना खर्च करना चाहता था उतने की व्यवस्था नहीं हो पा रही थी।
इसी चिन्ता में बैठा हुआ था कि मेरे एक बुजुर्ग मित्र गोविंदराम जी आये और चिन्ता का कारण पूछने लगे। मैंने सब बात कह दी। उनने गम्भीर होकर कहा तुम चिन्ता मत करो। माता के लिए जो कोई सच्चे हृदय से कुछ खर्च करना चाहता है, उसकी वे पूर्ति कर देती हैं। तुम अपना कर्तव्य उत्साहपूर्वक करते आओ कोई काम रुका न रहेगा।
अनुष्ठान पूर्ति में केवल तीन दिन शेष रह गये थे। कुछ उपाय सूझ न पड़ रहा था, अकस्मात ऐसा हुआ कि कई चिन्ताजनक रोगों के रोगियों की चिकित्सा के लिए बुलावे आये। दिन भर दौड़-धूप करनी पड़ी रात को 2 ॥ बजे उनसे छुटकारा मिला। पर चिकित्सा में आशाजनक सफलता मिली। फलस्वरूप मुझे एक दिन में ही 90) प्राप्त हुए, शेष जो कमी थी वह भी पूरी हो गई और इच्छानुकूल उत्साह के साथ अनुष्ठान यह पूर्ति का दान पुण्य किया।
तब से माता के चरणों श्रद्धाँजलि चढ़ाने में मुझे बड़ा उत्साह रहता है। जितना मैं इस मार्ग में खर्च कर देता हूँ यह आगे माता के द्वारा निश्चित रूप से पूरा हो जाता है। अपने साधना काल में एक बार मुझे एक बार अर्ध निद्रित अवस्था में माता का साक्षात्कार भी हुआ वे मौलवी साड़ी पहने अत्यंत दिव्य स्वरूप थीं, हाथ में कुछ लिए हुए मुझे दर्शन दिया। मैं उनसे नत मस्तक दर्शन होकर कुछ प्रश्न कर रहा था। जिसे सुनकर काकाजी ने मुझे जगा दिया। जगाने पर मुझे बहुत अफसोस हुआ न जाने माता क्या कह रही थी मैं उसे सुन न पाया।
एक बार मेरे प्रेमी पं॰ घनश्याम जी पाण्डे ने सवा लाख का अनुष्ठान किया उनने स्वप्न में देखा कि माता गायत्री हंस पर सवार होकर मेरे साधना गृह में पदार्पण कर रही हैं। समय 2 पर जो माता की कृपा का परिचय प्राप्त होता रहता है उससे मेरी श्रद्धा निरन्तर बढ़ रही है।