Magazine - Year 1951 - Version 2
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Language: HINDI
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विद्या बुद्धि की प्रखरता
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(डॉक्टर -राजाराम शर्मा मार्थू)
गायत्री साक्षात् सरस्वती है। बुद्धि बढ़ाने का, स्मरण शक्ति को तीव्र करने का तथा विद्या के लिए अनेक साधन जुटा देने की उसमें विलक्षण शक्ति है। जो विद्यार्थी अपनी शिक्षा के साथ-साथ गायत्री की थोड़ी बहुत उपासना किया करते हैं उनकी उन्नति बड़े सन्तोष प्रद ढंग से होती चलती है। परीक्षा के दिनों में इस महामंत्र का थोड़ा साधना करना भी बड़ा अच्छा रहता है। इससे परीक्षार्थी को पिछला पढ़ा हुआ आसानी से याद हो जाता है और परीक्षा काल में चित्त शान्त रहने से प्रश्न पत्रों का तात्पर्य भली प्रकार समझने की सुविधा होती है। अक्सर विद्यार्थी लोग परीक्षा काल में उतावली, घबराहट और भय के कारण अपने मानसिक संतुलन को डाँवाडोल कर लेते है। फलस्वरूप अच्छी तैयारी होते हुए भी वैसे उत्तर नहीं लिख पाते जैसे कि लिखे जाने चाहिए। फेल होने का बहुधा यही कारण होता है।
जिन विद्यार्थियों को किसी भी प्रकार की कठिनाई हो उन्हें गायत्री की उपासना करनी चाहिए। क्योंकि यह विद्या का महान मंत्र है। इससे पढ़ाई सम्बन्धी अनेक कठिनाइयों का निवारण होता है। मस्तिष्क की कमजोरी, शरीर की अस्वस्थता, घरेलू विघ्न बाधाएं, आर्थिक अड़चन के कारण जिनकी शिक्षा सम्बन्धी उन्नति रुक रही हो वो विद्यार्थी सच्चे हृदय से वेदमाता की आराधना करें तो उनकी असुविधाएं दूर हो सकती हैं।
अपने परिवार के कुछ अनुभव पाठकों के सम्मुख उपस्थित करता हूँ। मेरी पुत्री सावित्री देवी ने गत वर्ष आयुर्वेद की परीक्षा की तैयारी की, फार्म भर दिया, फीस भेज दी। पर परीक्षा से कुछ ही दिन पूर्व वह टाइफ़ाइड से ऐसी बीमार हो गई कि घर के सब लोगों को बड़ी चिन्ता होने लगी। लड़की को अपनी बीमारी की उतनी चिन्ता न थी जितनी कि परीक्षा की। तीव्र ज्वर में पड़े 2 उसे परीक्षा की ही धुन लगी रहती। रोग और चिन्ता का दुहरा दबाव शरीर पर बुरे रूप से दिखाई देने लगा।
मैंने पुत्री को सलाह दी कि बेटी! मन ही मन गायत्री का जप ध्यान करो। माता की कृपा से बड़े 2 कठिन काम सरल हो जाते हैं। सावित्री जितनी कुशल बुद्धि, अध्ययन प्रिय, परिश्रमी और सद्गुण सम्पन्न है उतनी ही वह धार्मिक एवं श्रद्धालु भी है। मेरी सलाह को उसने उत्साह पूर्वक माना और रोग शय्या पर पड़े 2 ही मानसिक जप आरम्भ कर दिया। परिणाम बड़ा आशाजनक हुआ। बीमारी अपनी मियाद से पहले ही सुलझ गई। फिर भी कमजोरी बहुत अधिक थी। इसलिए हम लोग उसके परीक्षा देने के पक्ष में न थे। पर वह न मानी। उसे भीतर से ऐसा उत्साह उमड़ रहा था कि वह सब से विश्वास पूर्वक कहती कि न तो मेरे स्वास्थ पर कोई बुरा असर पड़ेगा और न मैं अनुत्तीर्ण हूँगी। उसने उसी दशा में परीक्षा दी और अच्छे नम्बरों से पास हुई।
ऐसी ही घटना मेरे पुत्र की है। चि॰ व्यास देव मैट्रिक की पढ़ाई के लिए आग्रह करता था। गाँव में प्राइमरी स्कूल है। दूर शहर में रहकर पढ़ाई में आर्थिक तथा अन्य कठिनाइयाँ थी। फिर भी उसकी आग्रह प्रबल थी। मैंने कहा-बेटा गायत्री माता से सुविधा माँगो वह तुम्हें मार्ग दिखायेगी, उसने एक अनुष्ठान किया और इलाहाबाद चल पड़ा उसकी पढ़ाई का सब प्रबन्ध आसानी से हो गया और वह अपना मनोरथ शीघ्र ही पूरा करने वाला है।
अपने बच्चों पर ही नहीं हमने अनेक बार ऐसे अवसर देखे हैं जब कि मन्द बुद्धि और निर्धन स्थिति के विद्यार्थी गायत्री की कृपा से विद्वान बन कर उन्नति की बनकर उन्नति की ओर अग्रसर हुए हैं।