Magazine - Year 1951 - Version 2
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(श्रीमती विद्यावती मिश्र)
वाणी में कैसे बँध पाये माँ तेरा यश गान!
प्रातः की प्रिय पुष्प मलय-सी तेरी गति स्वच्छंद,
फिर भी तू सीमित कण-कण में ज्यों कवि में मकरंद,
उसी भाँति जैसे कि तिमिर में रहता सदा विहान!
वाणी में कैसे बँध पाये माँ तेरा यश गान!
तू सदैव डरती रहती है जड़ चेतन का शोक,
तू भरती है शून्य ध्येय में नव-जागृति आलोक,
तेरी भरती साधना का फल अब जग का कल्याण!
वाणी में कैसे बँध पाये माँ तेरा यश गान!
तेरे दिव्य चरण पर जिनका है अखण्ड विश्वास,
विश्व-वादिनी तू रहती है सदा उन्हीं के पास,
उनके द्वारा ही होता है पावन नव निर्माण!
वाणी में कैसे बँध पाये माँ तेरा यश गान!
तेरी कृपा कोर पर आश्रित है वरदान अशेष,
सत्यं, शिवं, सुन्दरं में अंकित है तेरा सन्देश,
शान्ति, साधना, सुख का देती है तू जन को दान!
वाणी में कैसे बँध पाये माँ तेरा यश गान!