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Magazine - Year 1954 - Version 2

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अगला शिक्षण शिविर

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साँस्कृतिक शिक्षा का विद्यालय जब तक स्थायी एवं नियमित रूप से न चलने लगे तब एक ऐसा निश्चय किया गया है कि थोड़े-थोड़े दिन बाद ऐसे शिविर किये जाते रहें। आगामी शिविर आश्विन की नवरात्रियों में रखने का निश्चय किया है। यह आश्विन सुदी 1 से लेकर आश्विन सुदी 9 तदनुसार तारीख 27 सितम्बर सोमवार से लेकर तारीख 6 अक्टूबर बुधवार तक 10 दिन रहेगा।

नवरात्रि की पुण्य बेला आत्म निर्माण के लिए बहुत ही उत्तम अवसर है। इन दिनों पृथ्वी पर ऋतु परिवर्तन-ग्रह नक्षत्रों की विशिष्ट किरणों के आगमन पृथ्वी के विशेष राशि स्थल पर भ्रमण करते हुए पहुँचने आदि अनेक सूक्ष्म विज्ञान सम्मत कारणों से कुछ ऐसा अदृश्य वातावरण बन जाता है कि उन दिनों कुछ कार्य बहुत ही सफल होते हैं। शरीर की शुद्धि के लिए जुलाव देने आदि का उपचार वैद्य लोग उन्हीं दिनों करते हैं। आध्यात्मिक साधन की सफलता भी उन्हीं दिनों अधिक होती है। मन्त्र सिद्धि, पुरश्चरण, अनुष्ठान, दीक्षा आदि कार्यों के लिए तो यह समय सर्वोत्तम है ही, ऐसे समय में यदि सच्चे मन से सच्ची आत्माओं में से सच्ची शिक्षा निकले तो उसका प्रभाव दूसरों पर अवश्य ही होता है। समय की, महत्ता की दृष्टि से तथा उन दिनों दशहरा की लम्बी सरकारी छुट्टी भी रहेगी इन दोनों कारणों से अगली शिक्षा सब उपयुक्त समय पर रखी गई है। साधना की दृष्टि से 24 हजार का लघु गायत्री अनुष्ठान भी घर रह कर गायत्री तपोभूमि में करना अधिक उत्तम है। अनुष्ठान के साथ हवन भी आवश्यक होता है उसकी ठीक व्यवस्था हर कोई नहीं करता। यहाँ बड़े सामूहिक यज्ञ में सबको शास्त्रोक्त हवन में सम्मिलित होने का लाभ मिलेगा।

यों जनेऊ तो अनेक लोग कंधे डाले रहते हैं पर यज्ञोपवीत के रहस्य, मर्म, कार्य, कारण, विधान एवं उत्तरदायित्व को कोई विरले ही जानते हैं। यज्ञोपवीत के नौ धागे नवरात्रि के नौ दिनाँक में सम्बंधित है। एक दिन में एक धागे का रहस्य एवं महत्व समझकर यज्ञोपवीत धारण करके यज्ञोपवीत संस्कार कराने का सच्चा लाभ मिल सकता है। जिन लोगों ने विधिपूर्वक यज्ञोपवीत न लिया हो वे इस अवसर पर अभाव की पूर्ति भी कर सकते हैं। प्राचीन काल में घरों पर उपवीत नहीं होते थे वरन् गुरुकुलों को जाकर ही छात्र वेदारम्भ करते हुए उसे आचार्य के हाथों धारण करते थे।

इन 10 दिनों में सभी आगन्तुकों को 24 हजार गायत्री जप का लघु अनुष्ठान करना होगा। हवन में सबको भाग लेना होगा तथा गुरुकुलों में रहने की उपयुक्त तपश्चर्या का पालन करना होगा। समय की पाबन्दी अनुशासन का पालन पारस्परिक सद्भाव तथा सेवाभाव सभी के लिए अनिवार्य है। सबको अपना दस दिन का भोजन व्यय आरम्भ में ही जमा करा देना होगा। सभी की पोशाक एक सी रहेगी सफेद कुर्ता और धोती कंधे पर पीले दुपट्टे पाजामा पेन्ट या नेकर साधना या शिक्षा के समय काम में न लाया जा सकेगा। तपोभूमि में सीमित व्यक्तियों के लायक स्थान है इसलिए जिन्हें आना हो उन्हें अपना पूरा परिचय, नाम, पता, आयु, जाति शिक्षा, स्वास्थ्य, व्यवसाय आदि सब बातों के सहित लिखना चाहिए। एक छोटी सीमित संख्या में ही व्यक्तियों के लिए वहाँ व्यवस्था हो सकती है। इसलिए जिन्हें आना हो उन्हें पहले ही स्वीकृति प्राप्त कर लेनी चाहिए। बिना स्वीकृति पत्र प्राप्त किए कोई सज्जन न आवें।

इस दस दिवसीय ज्ञान सत्र में लघु गायत्री अनुष्ठान, यज्ञ, यज्ञोपवीत शिक्षा आदि धार्मिक कृत्यों के साथ-साथ मथुरा वृन्दावन के प्रमुख स्थानों के दर्शन तथा परिचय भी होगा। आध्यात्मिक, धार्मिक, साधनात्मक प्रवचनों के अतिरिक्त जीवन को उत्तम बनाने के लिए व्यवहारिक एवं मनोवैज्ञानिक शिक्षा की भी व्यवस्था रहेगी। पिछले शिक्षण शिविर में जिन विषयों पर शिक्षा दी गई थी उन सबका भी समावेश रहेगा। अधिकारी, अनुभवी और सुलझे हुए विद्वानों के प्रवचन सुनने एवं अपनी व्यक्तिगत समस्याओं पर परामर्श करने का यह सर्वोत्तम अवसर है। पिछले शिविर में सीमित संख्या में ही छात्र लिये गये थे, इसलिये अनेक प्रार्थना पत्र अस्वीकृत किये गये थे। इस बार भी वैसी ही स्थिति रहेगी, इसलिए जिन्हें आना हो पहले से ही स्वीकृति प्राप्त करने का प्रयत्न करें।

अखण्ड-ज्योति तथा गायत्री परिवार के सदस्यों को समय-समय पर हम यथा अवसर प्रेरणा देते रहते हैं, कार्यक्रम सुझाते रहते हैं तथा योजनाएं करते हैं। परिजनों की हमारे प्रति जो श्रद्धा सद्भावना ममता तथा आत्मीयता है उसके आधार पर इन कार्यक्रमों पर चलने एवं सहयोग देने पर प्रयत्न भी करते रहते हैं, इस प्रकार परस्पर सहयोग से दिन-दिन सदुद्देश्य की ओर प्रगति होती रहती है। यह क्रम आगे और भी उत्साहपूर्वक चलना चाहिए क्योंकि बहुत बड़ा लक्ष्य सामने खड़ा हुआ है उसे छुटमुट कार्यों से ही पूर्ण नहीं किया जा सकता। कंधे से कंधे भिड़ा कर हम लोग अग्रसर होंगे तभी अपने व्यक्तिगत आत्मोन्नति की तथा विश्वव्यापी सुख शान्ति की समस्याओं को हल कर सकना सम्भव होगा। हमारा परिवार इस क्षेत्र में एक बहुत बड़ा उत्तरदायित्व अपने ऊपर लिए हुए है इसलिए कार्य भी उसे ही अधिक करना होगा।

गायत्री उपासना, सद्ज्ञान प्रसार, तपोभूमि निर्माण आदि कार्यों के लिए अब तक परिजनों का उत्साहपूर्वक सहयोग प्राप्त होता है। अब एक कदम और आगे बढ़ाया जाता है। अब हमारी इच्छा है कि अपने परिवार के सदस्यों के हर घर से कम से कम एक व्यक्ति मथुरा में साँस्कृतिक शिक्षा प्राप्त करने के लिए आवे। बाहर के लोगों को तभी यह शिक्षा क्रम व्यापक रूप से अपनाने के लिए कहा जा सकेगा। जब हम अपने परिवार के व्यक्तियों में कुछ आदर्श एवं विशेषता की स्थापना कर सकें। सुधार अपने से आरम्भ होना चाहिए। इसलिए प्राचीन काल की गुरुकुल पद्धति के अनुसार चरित्र निर्माण, आत्मोन्नति, स्वभाव एवं भावनाओं का परिष्कार हमें अपने घर से ही करना उचित है। इसलिए यह चाहना की जा रही है कि अपने परिवार के सभी सदस्य अपने घर का एक व्यक्ति किसी न किसी शिक्षण शिविर में भेजकर साँस्कृतिक शिक्षा प्राप्त करें।

विश्वामित्र-दशरथ से उनके दो पुत्र माँगने गये थे। राजा दशरथ को यह याचना बड़ी कठोर मालूम पड़ी। विश्वामित्र राजा दशरथ को दुख देना नहीं चाहते थे। पर अनेक महत्वपूर्ण कार्यों के लिए उन्हें याचना करनी पड़ी। विश्वामित्र को यह भिक्षा देकर राजा दशरथ का परिवार कुछ घाटे में नहीं रहा था। राजकुमार घर लौटे थे तो अपने साथ प्रसन्नतादायक परिस्थितियाँ ही लेकर लौटे थे। हमारी यह याचना भी वैसी है। यहाँ से शिक्षा प्राप्त करके लौटने वाले छात्र अपने परिवार के लिए प्रसन्नता ही लेकर लौटेंगे।

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