• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • गायत्री महामन्त्र से लाभ उठाने के लिए-इस साहित्य को पढ़िए!
    • सरस्वती यज्ञ
    • सरस्वती यज्ञ (Kavita)
    • साँस्कृतिक पुनरुत्थान की ओर
    • साँस्कृतिक पुनरुत्थान की व्यावहारिक योजना
    • साँस्कृतिक शिक्षण की आवश्यकता
    • भावना का विकास आवश्यक है।
    • सफल तीर्थ यात्रा
    • मेरी आन्तरिक अनुभूति
    • एक सफल प्रयोग
    • अपने मन की बात
    • महत्वपूर्ण शिक्षा
    • शिक्षण शिविर की सफलता
    • नरमेध के लिए आत्मदान का संकल्प
    • अगला शिक्षण शिविर
    • मेरी भावना!
    • मेरी भावना (Kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • गायत्री महामन्त्र से लाभ उठाने के लिए-इस साहित्य को पढ़िए!
    • सरस्वती यज्ञ
    • सरस्वती यज्ञ (Kavita)
    • साँस्कृतिक पुनरुत्थान की ओर
    • साँस्कृतिक पुनरुत्थान की व्यावहारिक योजना
    • साँस्कृतिक शिक्षण की आवश्यकता
    • भावना का विकास आवश्यक है।
    • सफल तीर्थ यात्रा
    • मेरी आन्तरिक अनुभूति
    • एक सफल प्रयोग
    • अपने मन की बात
    • महत्वपूर्ण शिक्षा
    • शिक्षण शिविर की सफलता
    • नरमेध के लिए आत्मदान का संकल्प
    • अगला शिक्षण शिविर
    • मेरी भावना!
    • मेरी भावना (Kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1954 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
SCAN TEXT


साँस्कृतिक शिक्षण की आवश्यकता

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 5 7 Last
(श्री श्यामलाल जी अग्रवाल, मथुरा)

अप्रैल के गायत्री यज्ञ की व्यवस्था सम्बन्धी बहुत सा कार्यभार अपने जिम्मे लेने का मुझे सौभाग्य मिला था। यों अनेक जिम्मेदारियाँ तथा कार्यभारों को मुझे कम ही अवकाश रहता है पर गायत्री महायज्ञ के दिनों में तो सब कार्य छोड़कर मैं पूरी तरह उस पुनीत आयोजन में आदि से अन्त तक लगा रहा।

वह यज्ञ समाप्त होकर ही चुका था कि एक दिन आचार्य जी ने कहा- श्यामलाल जी शीघ्र ही सरस्वती यज्ञ भी की व्यवस्था भी आपको करनी है। मैं हैरान हुआ कि अभी-अभी हम सब इतना श्रम कर चुके है, गायत्री तपोभूमि को पिछले यज्ञ की घटी का बहुत सा उधार पैसा लोगों को चुकाना है। फिर इतनी जल्दी दूसरे सरस्वती यज्ञ की क्या आवश्यकता पड़ गई।

मैं चिन्ता और परेशानी में पड़ा-और कहा अपनी शक्ति और सामर्थ्य के अनुकूल धीरे-धीरे सब काम करना उचित है। कुछ समय बाद जब तक पिछला ऋण चुक जाय और हम लोगों की थकान भी दूर हो जाय तब नया आयोजन करना उचित होगा।

आचार्य जी ने बड़े ही गम्भीर एवं शान्त भाव से कहा- हम लोगों को अपने तन, मन धन सम्बन्धी कठिनाइयों की चिंता न करके राष्ट्र निर्माण के उस कार्य में पूरी तत्परतापूर्वक बिना समय गंवाये लग जाना चाहिए जो आज की विषम परिस्थिति में अतीव आवश्यक है। वह कार्य है साँस्कृतिक पुनरुत्थान का भारतीय संस्कृति जितनी प्राचीन है उतनी ही महान है। इसको भूल जाने का परिणाम ही है कि आज हम उन सब परिस्थितियों से वंचित हो गये हैं जिनके कारण किसी समय हम उन्नति के उच्च शिखर पर चढ़े हुए थे, यदि सचमुच हमें अपना राष्ट्रीय पुनरुत्थान करना है तो वह साँस्कृतिक उत्कर्ष से ही होगा। इस कार्य में हमें अपनी कठिनाइयों का ध्यान करके ईमानदार लोक सेवी की भाँति बिना समय गंवाये तत्परतापूर्वक लग जाना ही उचित है।

आचार्य जी की बात मेरी समझ में आई कि सरस्वती यज्ञ से इनका मतलब यह है कि हम एक इस प्रकार का ट्रेनिंग कैम्प लगावें जिसमें लोगों को प्राचीन भारतीय संस्कृति को बताया जा सके और आज के युग में हम किस प्रकार अपने-अपने विचारों को आदतों को बनावें जिससे हम सफलता से जीवन व्यतीत कर सकें। सच्चे सुख की प्राप्ति कर सकें और अपने देश को बुराइयों से दूर करके उन्नति की ओर बिना राजनीति की दलदल में पड़े हुए, बिना चुनाव आदि के संघर्षों में पड़े हुए देश को सच्ची उन्नति के मार्ग पर अग्रसर कर सकें।

इतिहास का विद्यार्थी और बालकपन से भारतीयता का पुजारी होने के नाते मैं सोचने लगा कि यद्यपि देश को स्वतन्त्र हुए सात वर्ष हो गये। देश की बागडोर भी हमारे जन नायकों के हाथ में आ गई फिर भी देश में शान्ति क्यों नहीं है, लोगों में भाईचारा, आत्म विश्वास और प्रेम की भावना क्यों जागृत नहीं हुई है? बहुत सोचते मैंने सोचा कि एक हजार वर्ष की गुलामी के समय में हमारे समाज में इतनी सामाजिक बुराइयाँ घुस गई है कि हम अपनी सभ्यता धर्म और संस्कृति को बिल्कुल भूल गये हैं। इस समय हिन्दुओं में दो प्रकार की विचारधाराओं के लोग हैं एक तो वे जिन्हें हम रूढ़िवादी कह सकते हैं जो धर्म के नाम पर अनेक प्रकार के अंधविश्वास, सामाजिक, संकीर्णता और पोंगापंथी में फंसे हुए हैं, इनसे भी गये बीते विचार के वे लोग हैं जिन्हें भारतीय धर्म, दर्शन, सभ्यता, संस्कृति, भाषा रीति रिवाज आदि सब हेय लगती है जिनकी जिह्वा पर हर समय ‘गॉड, वेरीगुड, थैंक्यू’ आदि शब्द रहते हैं। पाश्चात्य सभ्यता के पुजारी हमारे इन भाइयों को ऐसा लगता है मानो भारत में तो सब जंगली ही जंगलीपन है और पश्चिम में सभी अच्छाइयाँ है।

इस प्रकार हमें अपने देश में आवश्यकता इस बात की है कि हम अपने देशवासियों को अपने प्राचीन ऋषि मुनियों का पवित्र संदेश दें, आज के अर्थवाद के युग में हम श्रम के महत्व को समझें और श्रम करने में अपना अपमान नहीं वरन् मान का अनुभव करें, अपनी सीमित आमदनी के अनुसार ही अपने जीवन को ऐसे ढांचे में ढालें कि हमारी दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति हमारी सीमित आय में ही हो सके, साथ ही हमें आवश्यकता इस बात की है हम प्राचीन ऋषियों द्वारा प्रतिपादित धर्म के सच्चे अर्थों को समझें। न तो सारी बिगड़ी हुई धर्म के नाम पर चलने वाली आज की पोंगापंथी को चलने दें और न सबको ढकोसला और व्यर्थ बताकर उसे गंगा में बहाएं। भारतीय संस्कृति के चार स्तम्भ है ‘धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष’ की प्राप्ति करना।

यदि हम धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के वास्तविक अर्थों को समझ सकें और सच्चे रूप में इनके अनुसार अपने जीवन को चला सकें तो संदेह नहीं कि हमारा जीवन आदर्श बन सकता है और हम ही नहीं वरन् हमारा देश और समाज सभी उन्नति कर सकते हैं। परन्तु प्रश्न उठता है कि हम ये सारी बातें कहाँ पावें? पहले समय में हमारे बालक गुरु कुलों में शिक्षा पाते थे जहाँ अनुभवी वानप्रस्थी और संन्यासी अध्यापक शिष्यों को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति के लिए, जीवन को सफल बनाने के लिए किताबी शिक्षा ही नहीं देते थे वरन् व्यावहारिक शिक्षा भी अपने जीवन के अनुभवों के आधार पर देते थे। परन्तु आज हमारे विद्यालय केवल किताबी शिक्षा ही देते हैं। जिनमें व्यवहारिकता का कहीं लेशवेश भी समावेश नहीं होता। सच तो यह है हमारा आज का स्कूल और कालेजी शिक्षा प्राप्त किया हुआ युवक जीवन की वास्तविकताओं से कोसों दूर रहता है, शारीरिक श्रम की बात उसे काटने को दौड़ती है, ‘सादा जीवन उच्च विचार’ की तरह वह इन विद्यालयों से लेकर आता है। साहिबियत, हुकूमत की बू, दम्भ और शान−शौकत। पर ये बातें भारत जैसे निर्धन देश में उन्हें प्राप्त कैसे हों? अतः आज हमारे लाखों नहीं करोड़ों युवक युवती अनेकों मुसीबतों में फंसे हुए हैं, बेरोजगारी का चारों ओर बोलबाला है, और जो चाहता है वह कुर्सी और गद्दे तकियों पर मौज करना चाहता है, जो चाहता वह बहुत तड़कीली भड़कीली जिन्दगी व्यतीत करना चाहता है चाहे इसके लिए कोई भी जघन्य से जघन्य पाप ही क्यों न करना पड़े। आज लोगों को अपनी प्राचीन सभ्यता, संस्कृति, धर्म का ज्ञान न होने के कारण अनेकों मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है। भाई-भाई में प्रेम नहीं है पिता पुत्र में प्रेम नहीं है पति पत्नी में प्रेम नहीं है। आज हम इतने गिर गये हैं कि मुँह से कहते कुछ है और कर्म करते है की उसके विपरीत। बातें लम्बी चौड़ी सेवा और आदर्श की करते है परन्तु मन में यही रहता है कि किसी प्रकार मौका लग जाय कि किसी की सम्पत्ति उड़ा ली जाय। जिसे हम भाई या बहिन कह कर सम्बोधित करते हैं। उसके प्रति हमारे मन में वे भाव होते नहीं हैं। यह सब क्यों केवल इसी कारण कि वह हमारा जीवन बनावटी बहुत अधिक हो गया है वास्तविकता का कहीं पुट भी नहीं रहा है।

अतः अब यह आवश्यक हो गया है कि स्थान स्थान पर इस प्रकार के साँस्कृतिक आयोजन हों जिसमें लोगों को सच्चे अर्थों भारतीय संस्कृति के आधार पर जीवन व्यतीत करने की व्यवहारिक शिक्षा दी जाय जिनमें लोगों को आत्मा का महत्व बताया जाय और बताया जाय कि हमारा आचरण भीतर बाहर समान होना आवश्यक है जिनमें लोगों को शारीरिक श्रम का महत्व बताया जाय और यह बताया जाय कि यदि मनुष्य जीवन में सुख प्राप्त करना चाहता है, यदि वह दीर्घजीवी होना चाहता है उसे श्रम से घृणा नहीं प्रेम करना होगा, उसे अपने हृदय में वह अलौकिक ज्योति जाग्रत करनी पड़ेगी। जिससे वह बाहरी आडम्बरों को छोड़ कर धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति सुगमता पूर्वक कर सके।

सरस्वती यज्ञ और सांस्कृतिक शिक्षण शिविर की उपयोगिता मेरी समझ में भली प्रकार आ गई और पिछले गायत्री यज्ञ की भाँति इस आयोजन को भी सफल बनाने में अपनी सामर्थ्य के अनुसार तत्पर हो गया।

First 5 7 Last


Other Version of this book



Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...

Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • गायत्री महामन्त्र से लाभ उठाने के लिए-इस साहित्य को पढ़िए!
  • सरस्वती यज्ञ
  • सरस्वती यज्ञ (Kavita)
  • साँस्कृतिक पुनरुत्थान की ओर
  • साँस्कृतिक पुनरुत्थान की व्यावहारिक योजना
  • साँस्कृतिक शिक्षण की आवश्यकता
  • भावना का विकास आवश्यक है।
  • सफल तीर्थ यात्रा
  • मेरी आन्तरिक अनुभूति
  • एक सफल प्रयोग
  • अपने मन की बात
  • महत्वपूर्ण शिक्षा
  • शिक्षण शिविर की सफलता
  • नरमेध के लिए आत्मदान का संकल्प
  • अगला शिक्षण शिविर
  • मेरी भावना!
  • मेरी भावना (Kavita)
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj