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Magazine - Year 1954 - Version 2

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नवरात्रि की गायत्री उपासना

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गायत्री संस्था के सदस्य प्रत्येक नवरात्रि में यथा सम्भव अपनी पूजा में कुछ न कुछ अभिवृद्धि करते हैं। जिन्हें अधिक अवसर है वे इन दिनों जप, हवन, उपवास, मौन, तप, दान आदि के अधिक आयोजन करते हैं। जिन्हें कम अवसर है वे भी अपनी परिस्थितियों के अनुसार उपासना का कोई न कोई विशेष कार्यक्रम बनाते हैं। आश्विन की नवरात्रि समीप है। उसके सम्बन्ध में निम्न सूचनाएं हैं-

(1) उपासना की नवरात्रि में पूरे नौ दिन होते हैं। तिथियों के घटने बढ़ने से नवरात्रि घटती बढ़ती नहीं। इस बार दो प्रतिपदा हो जाने से एक दिन बढ़ा है पर उपासना ता. 27 सितम्बर चन्द्रवार से आरम्भ होकर 5 अक्टूबर मंगलवार तक ही रहेंगी। इन नौ दिनों में जो साधना की जाय उसकी पूर्णाहुति अन्तिम दिन की जा सकती पर यदि उतना समय न हो तो दसवें दिन 6 अक्टूबर को भी हवन कर लें।

(2) इन दिनों अपना आचरण, व्यवहार, आहार, विहार अधिकतम शुद्ध और सात्विक रखना चाहिये। बुराइयों से जितना अधिक बच सकना सम्भव हो उतना प्रयत्न करना चाहिए। इन नौ दिनों ब्रह्मचर्य तो रखना ही चाहिए। उपवास करना जिनके लिए सम्भव हो वे वैसा करें। अन्यथा मिर्च, मसाले, उत्तेजक, गरिष्ठ, राजसिक और तामसिक वस्तुओं को तो हटा देना ही चाहिए। सादा सरल, सुपाच्य, कम मात्रा में, अधिक शुद्धतापूर्वक भोजन की व्यवस्था अपनी परिस्थिति के अनुसार करनी चाहिए। जो अब तक कुछ भी साधना नहीं करते उन्हें, भी नवरात्रि में थोड़ी बहुत गायत्री उपासना अवश्य करनी चाहिये।

(3) कुछ तपश्चर्याएं भी इन दिनों करने योग्य हैं जैसे (अ) भूमि या तख्त पर शयन (ब) चमड़े की वस्तुओं का त्याग (स) अपनी शारीरिक सेवाएं स्वयं करना, कपड़े धोना, हजामत बनाना, भोजन बनाना आदि कार्यों में दूसरे मनुष्यों की सेवा न लेकर इन सब कार्यों को स्वयं ही करना। मौन, एकान्त सेवन, ब्रह्मचर्य, पशुओं की सवारी पर न बैठना, स्वाध्याय, आत्मचिन्तन, उपासना आदि तप करने से मन तथा शरीर की विशेष शुद्धि होती है।

(4) नौ दिन में 24 हजार गायत्री मन्त्र जप का लघु अनुष्ठान बहुत ही उत्तम है। प्रतिदिन 23 माला जप करने से यह पूरा होता है। इतना जप करने में कम से कम 2 घण्टा और अधिक से अधिक 4 घण्टे लगते हैं। प्रातः काल एक ही बार अथवा प्रातः साँय दोनों समय करके इतना जप कर लेना कुछ अधिक कठिन नहीं है।

(5) नौ दिन में 108 पाठ गायत्री चालीसा के करने में प्रतिदिन 12 पाठ होते हैं। इसमें करीब डेढ़ दो घण्टे लगते हैं।

(6) नौ दिन में 2400 मन्त्र का भी एक अनुष्ठान हो सकता है। प्रतिदिन 265 मन्त्र लिखे जाते हैं। यह करीब 4 घण्टा प्रतिदिन का काम है।

(7) अनुष्ठान करने वाले यदि पूर्व सूचना दे देंगे तो उनकी साधना का संरक्षण, पथ प्रदर्शन, तथा विधि-विधान में रही हुई त्रुटियों का दोष परिमार्जन मथुरा में किया जाता रहेगा। इससे अनुष्ठान की पूर्णता अधिक सुनिश्चित हो जाती है। जो सज्जन अपना हवन स्वयं न कर सकते हों उनकी सूचना आने पर उनके निमित्त शास्त्रोक्त हवन गायत्री तपोभूमि में कर दिया जायेगा।

(8) अनुष्ठान के अन्त में हवन के अतिरिक्त कुछ दान पुण्य ब्राह्मण भोजन आदि करना भी आवश्यक होता है। पुण्य वाली छोटी गायत्री प्रचार पुस्तिकाओं का वितरण अन्नदान आदि से उत्तम है। साधारणतया ज्ञान की पुस्तकें अनुष्ठान कर्त्ताओं को वितरण करें तो ब्राह्मण भोजन और प्रसाद वितरण की आवश्यकताएं पूर्ण हो सकती हैं।

(9) (अ) जिन सज्जनों ने ग्राहक बढ़ाने का प्रयत्न किया है उनके लिये अनेक धन्यवाद, (ब) जुलाई का गायत्री अंक अब बिल्कुल समाप्त हो गया है, उसे भेजने में लाचारी है, (स) गायत्री मन्दिर की इस मास की सहायताएं अगले मास छपेंगी।

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