
तपोभूमि-समाचार
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गायत्री तपोभूमि में नवरात्रि साधना सदा की भाँति बड़े आनन्द से सम्पन्न हुई। यों साधकों की यही इच्छा रहती है कि तपोभूमि के परम पवित्र वातावरण में ही नवरात्रि उपासना करें। पर इससे यह हानि होती है कि प्रभावशाली उपासकों के मथुरा चले आने से उनके स्थानों पर कोई सामूहिक कार्यक्रम नहीं हो पाता। अतएव इस बार जहाँ कोई और साधक नहीं है, गायत्री परिवारों का संगठन नहीं है वहाँ के साधकों को ही मथुरा आने की स्वीकृति दी गई और जहाँ अन्य उपासक भी हैं वहाँ के लोगों को यह प्रेरणा की गई कि वे अपने यहाँ ही जप हवन प्रवचन सामूहिक आयोजन करें। आगे भी नवरात्रि के संबंध में यही नीति रहेगी। समस्त गायत्री परिवार का वार्षिक सम्मेलन गायत्री जयन्ती जेष्ठ सुदी 10 पर हुआ करेगा उन दिनों गर्मी तो अवश्य कुछ अधिक पड़ती है पर व्यापारी किसान, अध्यापक, छात्र, सरकारी कर्मचारी सभी को छुट्टी एवं फुरसत का समय रहता है।
उपरोक्त नीति के कारण इस नवरात्रि में गतवर्ष जैसी तिल रखने लायक जगह न बचने देने वाली भीड़ नहीं थी। एक सौ के भीतर ही साधक यहाँ रहे और जप, हवन, प्रवचन आदि के कार्यक्रम शान्तिपूर्वक हुए। शतचण्डी और सहस्रलक्ष्मी का आयोजन भी विधिवत् हुआ।
संस्कृति विद्यालय का कार्यक्रम ठीक प्रकार चल रहा है। कार्तिक कृष्ण पक्ष में भी श्री सूक्त से लक्ष्मी यज्ञ हो रहा है, जिसकी पूर्णाहुति दिवाली को होगी। कार्तिक शुक्ल पक्ष में पुरुषसूक्त से विष्णु यज्ञ पन्द्रह दिन चलेगा जिसकी पूर्णाहुति पूर्णिमा के दिन होगी।
इस बार यमुना में भयंकर बाढ़ आ जाने से तपोभूमि के चारों ओर इतना पानी आ गया कि फटक के आगे सड़क पर नावें चलने लगी। पिछली ओर के सात कमरों में पानी भर गया। जमीन में से पानी उबल पड़ने के कारण तहखाने में भी पानी आ गया। चार दिन इस प्रकार का प्रकोप रहने के बाद पानी उतरा और रास्ता साफ हुआ। इस जल प्रकोप से तपोभूमि की इमारत को प्रत्यक्षतः कोई बड़ी हानि तो प्रतीत नहीं हो रही है।
गत मास छात्रों द्वारा धर्म प्रेमियों के लिए दो घंटा अनुष्ठान करके स्वावलम्बन पूर्वक अपना भोजन उपार्जित कर लेने की जो योजना प्रकाशित की गई थी उसके अंतर्गत अब तक नौ छात्रों के लिए दो दो घन्टे जप की व्यवस्था बन गई है। 24 छात्र रखने की इच्छा है। 15 छात्रों के लिए इसी प्रकार की व्यवस्था और हो जाय तो विद्यालय की एक बड़ी समस्या हल हो जाय। छात्रों में बिना घी दूध के भोजन में 12 रु. मासिक और घी समेत भोजन में 15 रु. मासिक खर्च पड़ता है। गायत्री मंत्र, चण्डी सूक्त , नवार्ण मंत्र, मृत्युञ्जय जप या और कोई उपासना कराने वाली सज्जन यदि 6 मासिक दें तो एक विद्यार्थी एक घंटा प्रतिदिन उनके लिए वह उपासना ठीक रीति से ठीक पथ प्रदर्शन, शास्त्रोक्त विधि और कड़े नियंत्रण में करता रह सकता है। दो ढाई घन्टे का यह परिश्रय मिल जाने से छात्र अपना भोजन परिश्रमपूर्वक कमाते हुए संस्कृति विद्यालय की महत्वपूर्ण शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं। छात्र वृत्ति, ब्राह्मण भोजन, संस्कृति सेवा, आत्म कल्याण इन चारों ही दृष्टियों से इस प्रकार की सहायता करना एक ऊंचे दर्जे का पुण्य फलदायक दान है। जिनकी श्रद्धा तथा सामर्थ्य हो वे इस योजना के अंतर्गत अपनी ओर से जप, आदि कराने की कृपा करें।
लक्ष चण्डी सूक्त पाठ यज्ञ के संकल्प के अनुसार पाठ आरंभ हो गये हैं। नवार्ण जप तथा सहस्र चण्डी आयोजन के अंतर्गत जप तथा पाठ प्रारम्भ किये जा रहे हैं। इस संकल्प के एक वर्ष में पूरा होने की संभावना है।
गायत्री परिवारों का संगठन
देश भर में गायत्री परिवारों के संगठन और शाखा स्थापना का कार्य उत्साह पूर्वक हो रहा है। पिछले अंकों में अखंड ज्योति के परिजनों से अनुरोध किया गया था कि अपने क्षेत्र के गायत्री उपासकों से पत्र सदस्यता भरवाने और स्थान स्थान पर शाखाऐं स्थापित करने का प्रयत्न करें। प्रसन्नता की बात है कि उस प्रार्थना को उपेक्षा की दृष्टि नहीं परन्तु एक सामयिक आवश्यकता समझकर सभी धर्म प्रेमियों ने ध्यान दिया और अपने यहाँ की नहीं दूर-दूर जाकर गायत्री परिवार के सदस्य बनाने तथा शाखाऐं स्थापित करने का कार्य उत्साह पूर्वक किया है। गत अंक में जिन स्थानों में शाखा संगठनों का उल्लेख हो चुका है उनके अतिरिक्त इस मास इन स्थानों में गायत्री परिवार की शाखाऐं और भी स्थापित हुई हैं-
फलोदी [राजस्थान] वकानी [झालावाड़] धुधडका [मन्दसोर] खोरासा [सौराष्ट्र]। लक्ष्मीपुरी [अलीगढ़]। भैरोंपुर [होशंगाबाद]। जोबट [झाबुआ] कुलाला [देवास] करंगामाल [कालाहाँडी] कटनीं (जबलपुर) धामन्दा (राजगढ़)। पारादान (फतेहपुर) रूरा (कानपुर)। मानपुर [इन्दौर]। धरडानाखुर्द [झूँझनु] बैकुँठपुर (सरगुजा)। सतना (विध्य प्रदेश)। वसडाहाँ (आरा)। मालेगाँव (नासिक) दतौद (विलासपुर)। गंगोरी [अलीगढ़]। अरुआ खास [आगरा]। खेड़ी (बुलढ़ाना)। श्रीपुरा [कोटा]। कोलुआगाढ़ा [उन्नाव]। बिलासपुर [म. प्र.]। रिनोक [ससिकम]। हरनावाड़ा [मुजफ्फरपुर] कोयला कोटा। औरंगाबाद [सीतापुर]। कराहल (मुरेंना)। गदड़ा स्वामीं नारायण (सौराष्ट्र)। ड्वरा (म. भा.)। रूरा (कानपुर) पाँडातराई (विलासपुर)। नवाबगंज (बरेली)। मोरवी (सौराष्ट्र)। भुसावल (पूर्व खानदेश)। चिचौंड़ा (बेतूल)। दुगारी (बूँदी)। इन्द्रगढ़ (कोटा)। चाँदपुर (बिजनौर)। वलोला (झाबुआ)। खरगोंन (निभाड़) ऊन (निमाड़) चेचट (कोटा)। दानातुर (पटना)। पचम्बा (हजारीबाग)। आरंग (रायपुर)। मेहसाना [गुजरात]। साकरवाड़ी [अहमदनगर]। इटारसी (होशंगाबाद)। भिण्ड (ग्वालियर) जमशेदपुर (सिंडभूमि)। जहाँगीराबाद (बुलन्दशहर)। वापी (सूरत)। गीजगढ़ (जयपुर)। मोलनाकित्ता (दुमका) मोतिया (संथाल परगना)। पचोरी [विलासपुर]। असनावर [झालावाड़]। कालीबावड़ी [धार]। शिवपुरी [म.भा.]। बेवर [उन्नाव]। रठि [हमीरपुर] कौंड़ [फतेहपुर]। महोवा [हमीरपुर] जिरौली [अलीगढ़]। प्यूलरिय [बरेली]। बरुड़ [निमाड़]। भुम्भली [सौराष्ट्र]। विसनगर [गुजरात]। धनीरामपुर [कानपुर] खूड़ [सीकर]। उमरिया (शहडोल) डेरापुर (कानपुर]। कनवार [इलाहाबाद]। समेली [पुनिया] कोटा [सहारनपुर] स. ई(छतरपुर) बरडिया [राजस्थान] नागपुर [म. प्र.]। कसरावाद [निमाड़]। बड़ेरासुपान (गिर्द)। बाराँ [कोटा] बानपुर [झाँसी]। नियाना [कोटा]। माथनी [कोटा]। महुड़िया [मन्दसौर]। भिडारी [सागर]। ढोंडवाड़ा [बेतूल]। लखनऊ [म.प्र.]। रीझौन [झालावाड़]। मझरिया (चम्पारन) कुरावली (मैंनपुरी)। खरगोंन [निमाड़]। ढकियारघा [शाहजहाँपुर]। माकडोंन [उज्जैन] कुर्रा [हमीरपुर]। आगर [शाजापुर]। बुलन्दशहर (उ.प्र.]। चुरहा [हमीरपुर]। भद्रपुर [फतेहपुर]। सिरपुर-कागजनगर [हैदराबाद]। टीकापट्टी [पुर्णियाँ)।
अभी अनेक स्थानों में कार्य होना बाकी है। जहाँ पहले से ही बहुत गायत्री उपासक हैं वहाँ से अभी सदस्यता फार्म भरके नहीं आये हैं। कितने ही ऐसे सज्जन हैं जिनने अपने क्षेत्र में 10-10 किन्हीं ने 24-24 शाखाऐं स्थापित कराने का संकल्प किया है। उनका कार्य भी सामने आने ही वाला है। एक हजार शाखाऐं स्थापित हो जाने से एक गायत्री सहस्रचण्डी का आवर्भाव होगा इनके द्वारा प्रतिदिन 24 लक्ष जप और 24 सहस्र आहुतियों का हवन बड़ी आसानी से होते रहने की आशा है। इतना आयोजन बन जाने पर विश्वव्यापी अनेक कठिनाइयों के सरल होने में भारी सहायता मिलेगी। जिन उपासकों ने अभी अपने सदस्यता पत्र नहीं भेजे हैं उनसे अब भेजने की प्रार्थना है।
शाखायें क्या करें?
जहाँ-जहाँ शाखाऐं स्थापित हो गई हैं वहाँ उनके संचालकों तथा सदस्यों को चाहिए कि साप्ताहिक पारिवारिक सत्संगों की व्यवस्था करें। प्रत्येक रविवार को एक-एक सदस्य के घर पर क्रमशः साप्ताहिक सत्संग होते रहें। सामूहिक गायत्री जप, हवन, कीर्तन के अतिरिक्त व्याख्यानों की, किन्हीं सद्ग्रंथों की अथवा गायत्री साहित्य या अखण्ड ज्योति के लेखों का वाचन करने की व्यवस्था करनी चाहिए। इसमें खर्च कम से कम हो ताकि निर्धन सदस्यों को भी अपने घर सत्संग कराने में भार न पड़े। अभी इस एक बात पर ही सबसे अधिक ध्यान देना चाहिए। संगठन बन जाने, सदस्यों की संख्या बढ़ने, उपासना में उत्साह उत्पन्न होने, सदस्यों में परस्पर प्रेम भाव विकसित होने पर अनेक धार्मिक और साँस्कृतिक सत्कार्यों की व्यवस्था सहज ही बन सकती है। एक साथ बहुत से कार्यक्रम बना लेने से किसी की भी पूर्ति नहीं होती। अभी अपनी शाखाऐं मजबूत करने, सदस्य बढ़ाने नई शाखाऐं स्थापित करने, तथा पारिवारिक साप्ताहिक सत्संगों का आयोजन करने का कार्यक्रम ही सामने रहना चाहिए और पूरे उत्साह से इसमें लगना चाहिए।
शाखाऐं दो कार्य और भी आरम्भ करें, एक कार्य मंत्र लेखन का दूसरा गायत्री चालीसा पाठ का। गायत्री तपोभूमि में 124 करोड़ हस्तलिखित गायत्री मन्त्र स्थापित करने का संकल्प था। इसमें से करीब 90 करोड़ संग्रह हुआ है। लगभग 5 करोड़ अभी शेष हैं। यह इस वर्ष गायत्री जयन्ती तक पूरा हो जाना चाहिए। जेष्ठ सुदी 10 को गायत्री परिवार सम्मेलन जब मथुरा में होगा तब सभी शाखा संचालक अपने सदस्यों द्वारा किये हुए मन्त्र लेखन की श्रमदान भरी श्रद्धाञ्जलियाँ अपने साथ लेकर आवें। मन्त्र लेखन में स्नान, समय आदि का प्रतिबन्ध न होने के कारण किसी भी फुरसत के समय करने लगना साधकों के लिए सुगम भी पड़ता है। प्रतिदिन 24 मन्त्र भी लिखने लगें तो 100 दिन में 2400 मन्त्रों की एक श्रद्धाञ्जलि हो जाती है। एक भी सदस्य ऐसा न बचे जिसने कम से कम एक श्रद्धाँजलि गायत्री तपोभूमि को भेंट न की हो। अधिक श्रद्धाँजलियाँ जो दे सकते हों वे और भी अधिक दें। ऐसी 24 श्रद्धाँजलियों का एक परिपूर्ण पुरश्चरण कहा जा सकता है।
स्त्रियों, बच्चे, वृद्धों, रोगियों के लिये गायत्री चालीसा का पाठ सुगम तथा सुबोध है। हाथ, पैर, मुँह धोकर यह पाठ कभी भी किया जा सकता है। उसके पाठ में गायत्री भक्ति उत्पन्न करने वाले भाव रहने के कारण माता के प्रति भक्ति भावना उत्पन्न होती है जो आगे चलकर साधना की श्रद्धा भरी लीक ही बन जाती है। इस दृष्टि से आरंभिक साधकों में गायत्री चालीसा का अधिकाधिक प्रचार होना चाहिए उसके समय-समय पर सामूहिक जप, पाठ कीर्तन भी हों। गायत्री चालीसा का मूल्य –) है। पर प्रचारार्थ वितरण करने के उद्देश्य से मँगाने वाली शाखाओं को यदि वे कम से कम पाँच सौ मँगालें तो लागत में भी घाटा सहकर उन्हें 2 रु. सै. अर्थात् 540 दस रुपये में दिये जावेंगे। इसका रेल भाड़ा जो करीब 1-1॥ रुपया लगेगा मँगाने वालों को ही देना होगा। डाक से मँगाने पर पाँच सौ पर डाक खर्च 7) के करीब बैठेगा। स्मरण रहे अन्य पुस्तकों के साथ या अलग से मँगाने, किसी भी प्रकार इस रियायती मूल्य में चालीसा का पोस्टेज फ्री न किया जा सकेगा। क्योंकि वह तो करीब-करीब मूल्य के बराबर हो जाता है। कई शाखाऐं मिलकर अधिक संख्या में एक रेल पार्सल मँगावें तो लाभ है सदस्यगण चालीसाओं का मूल्य आपस में इकट्ठा करके अधिक संख्या में मँगावें और वितरण करने का प्रयत्न करें यह गायत्री प्रचार का एक सरल उपाय है।
साँस्कृतिक विद्यालय की पूरी नियमावली छप गई है। हर शाखा को एक-एक प्रति भेजी जा रही है। इस अपनी शाखा के सभी सदस्यों को तथा उन सज्जनों को जिनकी अभिरुचि इस शिक्षा की ओर होने की संभावना हो इसे पढ़ाना चाहिये। हर शाखा को यह प्रयत्न करना चाहिये कि उसके आस पास के कुछ छात्र तपोभूमि में शिक्षा प्राप्त करने अवश्य जावें ताकि वे शिक्षा प्राप्त करने के उपरान्त साँस्कृतिक पुनरुत्थान के कार्य को उस क्षेत्र में बढ़ा सकें, यों छात्र यहाँ आते ही रहते हैं पर ऐसे प्रतिभाशाली शिक्षार्थियों का महत्व अधिक है जो आलसी, मन्दबुद्धि निकम्मे न होकर उत्साही; परिश्रमी, भावनाशील, सेवाभावी एवं सद्गुणी होने के साथ-साथ देश धर्म के लिये कुछ काम करने का अरमान रखते हों। ऐसे छात्र ढूंढ़ निकालना और उन्हें मथुरा भिजवाना भी साँस्कृतिक सेवा का एक महत्वपूर्ण कार्य है।
संस्कृति विश्वविद्यालय
तपोभूमि मथुरा में 24 छात्रों का एक संस्कृति विद्यालय चल रहा है जिसमें अधिकतम 24 छात्र एक समय में रखे जाने की व्यवस्था है। यह भारतीय संस्कृति की सेवा, प्रशस्ति और विस्तृति करने वाले सेवा भावी कार्यकर्ताओं का एक शिक्षण शिविर पात्र हैं। इसके द्वारा कुछ उपयोगी कार्य सम्पन्न होने की आशा की जाती है इतने से ही काम चलने वाला नहीं है साँस्कृतिक पुनरुत्थान योजना के अंतर्गत भारतीय संस्कृति के तत्वज्ञान, आदर्श, लक्ष, दृष्टिकोण, आचार, विचार, व्यवहार, शिष्टाचार आदि अंग प्रत्यंगों के संदेश एवं प्रकाश को घर घर में, जन जन के मन मन में, पहुँचाना पड़ेगा। विचार भूमिका के पश्चात् उस प्रकाश को अन्तःकरणों इतनी गहराई तक प्रवेश कराना पड़ेगा कि ये आदर्श मनुष्यों के जीवन व्यवहार में प्रत्यक्ष परिलक्षित होने लगें।
इस आवश्यकता की पूर्ति के लिए भारतीय संस्कृति के वास्तविक स्वरूप के बड़े पैमाने पर व्यापक शिक्षण की व्यवस्था करनी पड़ेगी। गायत्री तपोभूमि इस तैयारी में लग गई है और गायत्री परिवारों के संगठन के उपरान्त संभवतः 1 जनवरी से उस योजना का कार्य रूप में परिणत कर दिया जायगा। इस शिक्षण का कार्य आरम्भ में गायत्री परिवार से शुरू किया जायगा। प्रति सप्ताह एक लम्बा पत्र परिवार के हर सदस्य के नाम लिखा जाया करेगा। सुविधा की दृष्टि से इसे छपा लिया जाया करेगा। यह “आचार्य जी की चिट्ठी” शाखा संचालकों की मारफत प्रत्येक सदस्य के पास पहुँचा करेगी वे उसे ध्यान पूर्वक पढ़ेंगे और रविवार के सत्संगों में उस पत्र के आधार पर पारस्परिक विचार विनिमय चला करेगा। इस प्रकार प्रत्येक सदस्य के पास 52 सप्ताहों में 52 पत्र पहुँचेंगे। जिनकी पृष्ठ संख्या यदि पुस्तक साइज में रही तो 220 के करीब होगी। इन्हें सुरक्षित रखने के लिए एक सुन्दर फाइल भी उसी साइज की यहीं से भेजी जायगी। इस प्रकार प्रति वर्ष भारतीय तत्वज्ञान की प्रेरणा से परिपूर्ण 220 पृष्ठ का सजिल्द ग्रन्थ हर सदस्य के पास बिना मूल्य पहुँचता रहेगा।
इन पत्रों में कोई व्यक्तिगत बात न होगी वरन् भारतीय संस्कृति के आदर्श और संदेशों की महानता वैज्ञानिकता एवं उपयोगिता को समझाते हुए उन्हें जीवन में ढालने के व्यवहारिक, बुद्धि संगत एवं सरल उपायों को सुझाया जायगा और आशा की जायगी कि सदस्य गण उन्हें पढ़ कर मनोरंजन मात्र न करेंगे वरन् जिस प्रकार अपने कुलपति का आदर करते हैं उनकी सलाह को उपयोगी मानते हैं उसी प्रकार इन पत्रों में सन्निहित प्रेरणा को भी अपने जीवन में उतारने का प्रयत्न करेंगे।
यह पत्र छपे विज्ञापन मात्र न होंगे वरन् कोई विशेष व्यक्ति इन पत्रों को अमुक सदस्यों तक पहुँचाने के साथ साथ उन्हें उस विषय को समझाने एवं उपस्थित उलझनों को सरल करने में भी सहायता करने के लिए नियुक्त किये जायेंगे। इन विशेष व्यक्तियों को “उपाध्याय” कहा जायगा। संस्कृति विश्व विद्यालय का रूप फिलहाल पत्र व्यवहार द्वारा भारतीय संस्कृति की शिक्षा देना होगा। पाठ्य पुस्तक का कार्य साप्ताहिक रूप से पहुँचने वाली “आचार्य जी की चिट्ठी” होंगी। पर उसे पढ़ाने वाले तो “उपाध्याय” लोग ही होंगे। परिवार के सदस्यों में से ही ऐसे उत्साही, प्रभावशाली, चरित्रवान, सुशिक्षित व्यक्ति उपाध्याय नियुक्त कर दिये जायेंगे। यह सभी अवैतनिक होंगे। प्रत्येक उपाध्याय के पास साधारणतः 10 छात्र (सदस्य) रहेंगे। विशेष परिस्थिति में यह संख्या न्यूनाधिक भी हो सकती है। साधारणतः शाखा मंत्री ही उपाध्याय होंगे जहाँ सदस्य संख्या अधिक होगी वहाँ शाखा मन्त्री अन्य उपाध्यायों की भी नियुक्ति करेंगे। उपाध्यायों को सुन्दर नियुक्ति पत्र (प्रमाण पत्र) तपोभूमि से भेजे जावेंगे और वे अपने शिक्षण कार्य की प्रगति की मासिक रिपोर्ट भेजते रहेंगे। प्रति वर्ष छात्रों की वार्षिक परीक्षा के रूप में तपोभूमि से सांस्कृतिक विश्व विद्यालय के प्रश्न पत्र भेजे जावेंगे। शाखाओं में नियमित परीक्षा हुआ करेगी। हर वर्ष एक, कक्षा उत्तीर्ण करते चलने का अवसर रहेगा और अन्ततः 12 कक्षाऐं इस विश्व विद्यालय की 12 वर्ष में पूर्ण हो जावेगी। हर वर्ष उत्तीर्ण छात्रों को प्रमाण पत्र उस प्रान्त के प्रान्तीय संस्कृति सम्मेलन के समय दिये जाया करेंगे।
10 शाखाओं के संयोजक, निरीक्षक एवं पथ प्रदर्शक महोपाध्याय, कहलायेंगे, उपाध्यायों और महोपाध्यायों को शिक्षण विधि की आवश्यक ट्रेनिंग एक भिन्न पुस्तिका के द्वारा तथा गायत्री जयन्ती पर हर वर्ष होने वाले अ. भा. गायत्री परिवार सम्मेलन से मौखिक रूप से हुआ करेगा। एक बार सभी कार्यकर्ता आपस में मिल लिया करें इसके लिए, अखिल भारतीय, प्रान्तीय एवं क्षेत्रीय गायत्री सम्मेलनों के आयोजन किये जाते रहेंगे।
इस योजना के अंतर्गत कार्य करने के लिए सभी शाखा संचालकों को अभी से तैयार हो जाना चाहिए अब बातों का नहीं काम का समय है। हर गायत्री परिवार के सदस्य की पाँच प्रतिज्ञाओं में एक चौथी प्रतिज्ञा यह है कि वह कुछ समय परमार्थ के लिए संस्कृति सेवा के लिए लगाया करेगा। वह प्रतिज्ञा पूरी कराने के लिए यह कार्यक्रम अभी प्रारम्भ किया जा रहा है। परिवार के प्रत्येक सदस्य का साँस्कृतिक विश्व विद्यालय में के लिए प्रत्येक छात्र का यह कर्त्तव्य होगा कि वह स्वयं उस पाठ्य क्रम को पढ़कर संतुष्ट न बैठ जाय वरन् चौथी प्रतिज्ञा के अनुसार उस पाठ्यक्रम को ‘आचार्य जी की चिट्ठी को अधिक से अधिक लोगों को पढ़ाकर स्वयं भी उपाध्याय बनने का प्रयत्न करें। इस प्रकार यह शृंखला बढ़ते हुए भारतवर्ष के घर घर में पहुँच सकती है और साँस्कृतिक पुनरुत्थान योजना का महान लक्ष पूरा करने के लिए कुछ कहने योग्य कार्य हो सकता है। विचारों के फैलने के पश्चात वैसे कार्यक्रम भी स्वयं प्रस्फुटित होंगे और व्यक्तिगत तथा सामूहिक जीवनों में साँस्कृतिक पुनरुत्थान का प्रकाश प्रत्यक्ष परिलक्षित होगा।
इस महान योजना में सहयोग के लिए कटिबद्ध हो जाने को हम प्रत्येक अपने परिजन से परिपूर्ण आग्रह के साथ आमंत्रित करते हैं। इन दो महीनों में हमें परिवारों का संगठन व्यवस्थित करना है और तदुपरान्त साँस्कृतिक विश्व विद्यालय की घर घर पहुँचने वाली योजना को सफल बनाने के लिए कमर कसकर जुट जाना है। अब आलस्य उपेक्षा का समय नहीं, धर्म और संस्कृति की पुकार पर हमें कुछ करने के लिए उठ खड़ा होना होगा। आइए, उठें, चलें, और आदर्श के लिए करें-मरें।
प्रकृति का विक्षोभ
इन दिनों दैवी प्रकोपों के कारण चारों ओर हाहाकार सा मचा हुआ है। अतिवृष्टि, बाढ़, भूकम्प दुर्घटना आदि का ताँता लगा हुआ है उनके कारण अपार धन जन की क्षति हो रही है। रोगों की बाढ़ पूरे जोर पर है। सरकारी आँकड़े बताते हैं कि 25 लाख व्यक्ति इन दिनों केवल क्षय रोग से ग्रसित हैं, ऐसी ही अन्य प्राणघातक रोगों से ग्रसित लोगों की संख्या मिलकर करोड़ों तक पहुँचती है। जितनी आयुवृद्धि के लिए समृद्धि, उन्नति, सुख शान्ति के लिये मानवीय प्रयत्न होते हैं उससे कहीं अधिक क्षति प्रकृति के प्रकोपों द्वारा हो जाती है, इस प्रकार मानवीय भौतिक प्रयत्नों के बावजूद, सुखी बनने की दिशा में कुछ प्रगति नहीं हो पा रही वरन् कष्ट ही बढ़ते जा रहे हैं। आगामी वर्षों में तो इन कष्टों के और भी अधिक बढ़ने की सम्भावना है। इसके तीन कारण हैं।
1- परमाणु आयुधों के परीक्षण के द्वारा आकाश तत्व को विषाक्त करने का कुकृत्य महोन्मत्त राष्ट्रों द्वारा हो रहा है वह उसका एक कारण है, संसार भर के वैज्ञानिक यह बता रहे हैं कि अणु-आयुधों के परीक्षण की इस आपाधापी का परिणाम समस्त विश्व के लिए अतीव भयंकर होने वाला है। उसके फलस्वरूप कुछ ही वर्षों में मनुष्यों को भारी पीड़ा देने वाले, अल्पायु, विकलाँग बनाने वाले अस्थि क्षय, प्रजनन व्याघात, रक्त चाप, हृदयरोग, सरीखे रोग उठ खड़े होंगे और जिस विज्ञान पर गर्व किया जा रहा है, वही कल गले की फांसी बन जायगा।
2- वर्तमान काल में भौतिकवादी विचार धारायें बढ़ने से मनुष्य बड़ा स्वार्थी, वासनाग्रस्त, लोलुप,तृष्णा मग्न हो रहा है। अपने लाभ के लिये, बुरे से बुरा दुष्कृत्य करने में उन्हें संकोच नहीं होता। इस प्रवृत्ति की विचारधारा तथा क्रियाओं की व्यापक तरंगों से आकाश के सूक्ष्म अन्तराल में एक प्रकार की पापमयी घटाऐं जम गई हैं वे जब भी बरसती हैं तब उसके परिणाम विक्षोभ, शोक, युद्ध, द्वेष, अकालमृत्यु, महामारी, दुर्भिक्ष, अतिवृष्टि अनावृष्टि जैसे होते हैं। आज ऐसी ही स्थिति सर्वत्र देखने को मिल रही है।
3- गत दो महायुद्धों से लाखों मनुष्यों और करोड़ों पशुओं का वध हुआ है उनके चीत्कारों, वारूदों, विषैली गैसों से वायु मंडल व्याप्त हो रहा है।
जिस प्रकार समुद्र, तालाब, घर, वस्त्र, शरीर आदि की गन्दगी को साफ करके स्वच्छता के लिए झाडू, लाल दवा, साबुन, जल आदि की आवश्यकता होती है वैसे ही आकाश में मनुष्यों की दुष्प्रवृत्तियों, युद्धजन्य हाहाकारों, विषाक्त गैसों से दूषित हुए वातावरण की शुद्धि के लिए यज्ञों की आवश्यकता होती है। प्राचीनकाल के ऐसे अनेकों उदाहरण हैं कि जब प्रजा दैवी प्रकोपों से बहुत संत्रस्त हुई और मनुष्य के प्रयत्न उन्हें रोकने में असमर्थ रहे तो तत्व-दर्शियों ने दैवी प्रकोप के मूल कारण ‘आकाश अशुद्धि’ की निवृत्ति के लिए बड़े-बड़े यज्ञों के आयोजन कराये तब उन दैवी प्रकोपों का समाधान हुआ। रामायण और महाभारत में बड़े युद्धों के बाद विजेताओं ने भारी भारी यज्ञ कराये थे पूर्वकाल में दुवृत्तियां युद्ध, अणु संघात आदि बहुत कम होते थे तो भी यज्ञों की आवश्यकता रहती थी आज तो इन दूषणों के बढ़ जाने के कारण पहले की अपेक्षा बहुत बड़े परिमाण में यज्ञों की आवश्यकता है। पर खेद है कि बहुत समय से यह मानव जीवन की अत्यन्त उपयोगी प्रक्रिया सर्वथा बन्द नहीं तो मन्द अवश्य हो गई है। फलस्वरूप बाढ़, अतिवृष्टि, अनावृष्टि, महामारी आदि के उपद्रव बढ़ रहे हैं। रक्त और मस्तिष्कों में वह आकाशीय दर्पण धुलता जा रहा है जिससे जन साधारण में विशेषतया नई पीढ़ी में, असहिष्णुता, आवेश, क्रोध, द्वेष एवं अनीति की भावनाऐं बढ़ रही हैं और शारीरिक रोगों की भारी बढ़ोत्तरी होती जाती है।
मनुष्यकृत उपायों द्वारा इन उपद्रवों को रोकने के लिए करोड़ों रुपया हर साल खर्च करने पर भी संतोष जनक परिणाम नहीं निकलता। यदि हम इसका उपाय पूर्व कालीन इतिहास में ढूंढ़े तो यज्ञ ही एक श्रेष्ठ समाधान मिलता है। इसकी आधुनिक समस्याओं के हल के लिए भारी आवश्यकता है। यज्ञ ‘घी और सामग्री को फूँकना’ नहीं यह मानव जीवन की महान् आवश्यकता है। यज्ञ को श्रेष्ठतम कर्म इसीलिए माना गया है कि इतने कम श्रम और व्यय में इतना व्यापक और महान लाभ संसार की अन्य किसी क्रिया से नहीं हो सकता। यज्ञ कर्ता का व्यक्तिगत तथा विश्वव्यापी परमार्थ का महान लाभ दोनों का इसमें महत्व पूर्ण समन्वय है। गायत्री तपोभूमि का यज्ञ आन्दोलन समय की एक भारी आवश्यकता को पूर्ण करने के लिए है। धर्म प्रेमियों को इन आयोजनों में उत्साह पूर्वक तत्परता के साथ कटिबद्ध होना चाहिए। इस प्रयत्न से दैवी प्रकोपों से पीड़ित प्रजा का भारी उपकार हो सकता है। जिस प्रकार बाढ़ पीड़ितों, आपत्ति ग्रस्तों के लिए तात्कालिक अन्न वस्त्र आदि की पूर्ति करना एक आवश्यक कर्तव्य है उसी प्रकार प्रकृति के विक्षोभ को शान्त करने के लिए बड़े-बड़े यज्ञों की भी आवश्यकता है। छोटे प्रयोजन के लिए छोटे हथियारों की और बड़े प्रयोजन के लिए बड़े अस्त्रों की आवश्यकता पड़ती है, उसी प्रकार आकाश में व्याप्त विकृतियों को शान्त करके, दैवी प्रकोपों से प्रजा को बचाने के लिए यज्ञों की आवश्यकता है। इस सामयिक आवश्यकता की पूर्ति की ओर धर्म प्रेमियों को समुचित ध्यान देना चाहिए।
नवरात्रि का पुनीत पर्व
नवरात्रि का पुनीत पर्व आध्यात्मिक साधनाओं के लिए सर्वोत्तम समय है। इस आश्विन की नवरात्रि में गायत्री परिवार द्वारा सर्वत्र बड़े उत्साह से सामूहिक साधनाऐं की गईं। “तपोभूमि आकर साधना करने की अपेक्षा नवरात्रि में सब लोग अपने अपने यहाँ ही आयोजन करें इस प्रेरणा से अब की बार सर्वत्र बड़े पैमाने पर और अधिक उत्साह से नवरात्रि के सामूहिक आयोजन हुए। एक ने दूसरे का उत्साह बढ़ाया और पुराने तथा नये साधकों ने ब्रह्मचर्य, उपवास, नियम, संयमों के साथ 24 हजार के अनुष्ठान किये। अधिकाँश स्थानों पर ऐसा हुआ कि लोग अलग-2 अपनी-2 कोठरियों में इकट्ठे होने की अपेक्षा किसी एक स्थान पर जमा होकर साथ साथ पूजन, जप अनुष्ठान करते रहे और अन्त में हवन भी सब ही किया। अलग अलग रहने की, अलग अलग काम करने की अपेक्षा साथ साथ सामूहिकता, सहकारिता, सामाजिकता की भावना सब दृष्टियों से प्रशंसनीय है। प्राचीन काल में त्यौहार, पर्व तीर्थ सत्संग, कथा, हवन आदि के आधारों पर एक समय अधिक इकट्ठे होकर धार्मिक कृत्य करने की प्रथा को अधिक महत्व दिया जाता था। इससे प्रेम भाव बढ़ता है और अधिक उत्साह रहता है। आज तो चारों ओर व्यक्तिवाद की स्वार्थ पूर्ण अलगाव की जो हवा चल रही है उसको ध्यान रखते हुए सामूहिकता पर और भी अधिक जोर दिया जाना चाहिए। हमें भारी प्रसन्नता है कि साधना और उपासना के क्षेत्र के कर्मवीर अब गायत्री माता की प्रेरणा “धियोयोनः” में “नः” – “हम सब” के तत्वज्ञान को समझने का प्रयत्न कर रहे हैं और एकान्त सेवी अलगाव की प्रकृति को बदल कर सहयोग की प्रेम गंगा का अवतरण कर रहे हैं।
प्राप्त सूचनाओं से प्रतीत होता है कि कई सौ स्थानों पर नवरात्रि के सामूहिक आयोजन हुए जहाँ सामूहिक संगठन नहीं थे वहाँ साधकों ने विशेषतया महिलाओं ने अपने अपने घरों में अलग अलग ही साधनाऐं की ऐसी सूचना हजारों की है। इन सामूहिक एवं व्यक्तिगत साधनाओं और आयोजनों का उत्साहवर्धक विवरण छपना उचित प्रतीत होता है पर उनका दो-दो चार-चार लाइनों में भी परिचय कराया जाय तो पूरी एक अखंड ज्योति ही उससे भर जायेगी। इसलिए उन शुभ प्रयत्न कर्ताओं को हार्दिक धन्यवाद देते हुए सर्व शक्तिमान माता से साधकों की भावनाओं को और अधिक विकसित करने के लिए प्रार्थना करते हैं।
जहाँ अलग-अलग छुट पुट साधनाऐं हुई हैं उनका उल्लेख न करते हुए जहाँ सामूहिक अनुष्ठान और यज्ञ हुए हैं उन स्थानों के नाम तारीख 20 तक प्राप्त सूचनाओं के आधार पर नीचे दे रहे हैं:—
खामगाँव (बरार) अतरौली (अलीगढ़) घरौला (शाजापुर) सुसनेर (म. भा.) तारानगर (राजस्थान) मदीसा (नरबर) भिण्ड (ग्वालियर) दिगौड़ा (टीकमगढ़) सुकेत (कोटा) पाड़ा तराई, सेन्धवा (निमाड) वरिगँवा (फतेहपुर) झालावाड़ (राजस्थान) आरंग (रायपुर) शाहजहाँपुर (उ. प्र.) हटा (सागर) महोवा (हमीरपुर) टीकर (खीरी) कानपुर (उ. प्र.) बालकवाड़ा, बडोवा, अचराँवा, लखनऊ, बड़ौदा, (गुजरात) बडोरा, करंगामाल (कालाहाँडी) बुलन्दशहर, आगरा (मालवा) लखनदौन (छिन्दवाड़ा) इटैलिया, उमरिया (विन्ध्य प्रदेश) गनेशगंज (टीकमगढ़) कसरावाद( निमाडे) जोधपुर (मारवाड़) बरुर (खंडवा) नवाबगंज (बरेली) भिलाड़िया कलाँ (होशंगाबाद) डबरा (ग्वालियर) एरिया (मन्दसौर) खलाई (म.भा.) टबलाई (धार) खलघाट (धार) बाराँ (कोटा) सतना (विंध्य प्रदेश) बैकुँठपुर (सरगुजा) वापी (सूरत) पिछोर (झाँसी) औरंगाबाद (सीतापुर) झाँसी (उ. प्र.) ढोडबाड़ा (बेतूल) बसेली (सीतापुर) मन्सूरपुर (मुजफ्फरनगर) पहुआ (खीरी) खरगौन (म. भा.) लखनी (नीमच) सटई (छतरपुर) नागपुर, सदर बाजार (देहली) बिसनगर (उत्तर गुजरात) भुसावल (खानदेश) कोटा (राजस्थान) काली बावड़ी (धार) अजीतगढ़ (तोरावाटी) बडैरा सुपान (गिर्द) मानपुर (इन्दौर) बहादुर गंज (पुर्नियाँ) करंगामाल, पाँडातराई, चाँदपुर (बिजनौर) छवड़ा (कोटा) हरनवाड़ा (मुजफ्फर नगर) कराहल (ग्वालियर) बरडिया (मन्दसौर) करडावाद (झावुओं) जोबट (मध्य भारत) इकलेरा (कोटा) सटकेश्वर (खलघाट) लक्ष्मीपुरी (अलीगढ़) अलावलपुर (बुलन्दशहर) कुलाला मालेगाँव (नासिक ) जबलपुर [म. प्र.] व्यावर [अजमेर] अम्बिकापुर [सरगुजा] कटनी [जबलपुर] कसहीवहरा [रायपुर] भावनगर [सौराष्ट्र] मोरबी [सौराष्ट्र] पारादान [फतेहपुर] बिजनौर, पिपरोंदा [वलिया] रायपुर [उ. प्र.] पटना, सलकिया [हवड़ा] अमरावती [बरार] गोबिंन्दगढ़ [म. भा] नाथद्वारा [मेवाड़] वेगमगंज [बाराबंकी] नवाबगंज [गोंड़ा] जलपाई गुडी [बंगाल] जलगाँव, हैदराबाद, करनाल [पंजाब] गंगापुर [जयपुर] झुझंनू [बीकानेर] गोंड़ल, समस्तीपुर [दरभंगा] चिखलदा [म. भा.] अमृतसर, मण्डी [हिमाचल] छपरा [बिहार] आरा [बिहार] टाटानगर [सिंहभूमि] गढ़मुक्तेश्वर [उ. प्र.] बाँसडीह [बिहार] राजीवपुर [वस्ती] बहराइच [उ. प्र.] हरद्वार [उ. प्र.] नलगोड़ा [द. भा.] घाटकोपर [बम्बई] इटारसी [हाँशंगाबाद] मालपुरा [टोंक] भीलवाड़ा, वारमेड़ [जोधपुर ] जालोर [राजस्थान] सालुम्वर [उदयपुर] रींर्गस [सींकर] मोठ [झाँसी] पट्टी [प्रतापगढ़] लालगंज [मिर्जापुर] लेंसडोन [गढ़वाल] रंभापुर [झावुआ] खरियार [छत्तीसगढ़] पेन्ड्रा [बिलासपुर] परासिया [छिन्दवाड़ी] मान्धाता [निमाड़] चान्दा, पुसद [यबतमाल] शाहगढ़ [सागर] जमुई [मुँगेर] मोतीपुर [मुजफ्फरपुर] डेहरी [शाहाबाद] खंजूरी [पलामू] झरिया [मानभूमि] भेलागंज [पुर्णियाँ] बैरागनियाँ [चम्पारन] यशपुर [म. प्र.] वाँकुरा [बंगाल] अजीतगढ़ [मुर्शिदाबाद] मेदनीपुर [बंगाल] डुमरी [हजारीबाग] लोहरबाग [राँची] खूँटी [राँची] मचेल (काश्मीर) चम्बा [पंजाब] सूरतगढ़ (गंगानगर) कुमाना (बीकानेर) दुहरोह (जैसलमेर) हरदोई (उ. प्र.) काँदला (कच्छ) वधवन (गुजरात) सिरोंज (भोपाल) दतिया (म. भा.) रीवा (विन्ध्य) सैलाना (म. भा.) फुलेरा (जयपुर) खुर्जा (बुलन्दशहर) महेन्द्रगढ़ (पटियाला) डूँगरपुर (उदयपुर) पाली (मारवाड़) फजिलका (पंजाब) बसेडी (धौलपुर) आनन्द (गुजरात) दमोह (सागर) पिहानीं (हरदोई)
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यहां पेज छूटा होने की सम्भावना है।
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राजस्थान प्रान्तीय यज्ञ
गत आश्विन सुदी 15 को राजस्थान प्रान्तीय यज्ञ की 101 हवन कुण्ड में 24 लक्ष आहुतियों के हवन की पूर्णाहुति रामगंज मंडी में होने वाली थी। पर उसी समय अचानक भयंकर अतिवृष्टि का प्रकोप हुआ। दो दिन में लगभग 12 इंच पानी बरस पड़ा जिससे जल-थल एक हो गये। 101 हवन कुण्डों की यज्ञशालाएं तथा निर्धारित यज्ञ-भूमि भी जलमग्न हो गये। निदान उस समय यज्ञ स्थगित करने के अतिरिक्त और कोई चारा न रहा। जहाँ तक बन पड़ा तार तथा चिट्ठियों से आने वाले सज्जनों को सूचना देकर उस अवसर पर आने से रोका गया, फिर भी सूचना न मिलने के कारण गुजरात, मध्य-प्रदेश आदि से कितने ही सज्जन पधारे। उनको जो कष्ट हुआ उसके लिए रामगंज मंडी के यज्ञ