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Magazine - Year 1958 - Version 2

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छठी इन्द्रिय और उसकी चमत्कारी शक्ति

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(प्रो. अवधूत, गोरेगावं बम्बई)

सन् 1939 के अगस्त मास में एक दिन लाहौर विश्वविद्यालय का सेनेटहाल, विद्यार्थियों, प्रोफेसरों और सरकारी अफसरों से खचाखच भरा था। गवर्नर और डिवीजनल कमिश्नर भी वहाँ उपस्थित थे। प्रोफेसर हबीब ने छठी इन्द्रिय के कुछ चमत्कार दिखलाने की घोषणा की थी। समय हो जाने पर प्रो. हबीब ने कमिश्नर से कहा कि आप अपने मन से कोई भी पुस्तक उठा लीजिए और उसका कोई पन्ना खोल लीजिए, मैं उस पृष्ठ में लिखे मजमून को आपसे बहुत दूरी पर खड़ा रह कर अक्षरशः पढ़कर सुना दूँगा।

कमिश्नर को विश्वास न हुआ। बिना देखे भला किसी पुस्तक को कैसे पढ़ा जा सकता है? और यदि कोई ऐसी पुस्तक उठाई जाय जिसे प्रोफेसर हबीब ने कभी देखा भी न हो तब? उन्होंने सचमुच एक ऐसी ही पुरानी पुस्तक निकाल कर उसका एक अध्याय खोला। प्रो. हबीब ने उसे लगभग 22 फीट की दूरी पर खड़े रहकर उस पुस्तक को इस तरह स्पष्ट रूप में बाँच कर सुना दिया मानो वह उनके सामने ही खुली रखी हो।

उस सभा में एक अंग्रेज ऐसा भी था जिसे हबीब को पुस्तक पढ़ते देखकर भी विश्वास न हुआ। उसने खड़े होकर कहा- “क्या आप बता सकते हैं कि मेरा घर कहाँ है? मेरे घर का दरवाजा किस तरफ है? मेरी स्त्री का नाम क्या है और मेरे कितनी सन्तानें हैं?”

एक ऐसे व्यक्ति के घर और परिवार का हाल बतलाना जो सात समुद्र पार रहता हो वास्तव में असम्भव ही जान पड़ता था। पर आश्चर्य कि प्रो. हबीब ने थोड़ी देर विचार करने के बाद सब बातें बतला दीं और उस अंग्रेज को स्वीकार करना पड़ा कि वे सब बिल्कुल ठीक थी।

भन्ना भील

सिकन्दराबाद (हैदराबाद) के एक गाँव में एक भील रहता है जिसका नाम है भन्ना। वह भी अपनी छठी इन्द्रिय की सहायता से अनेक गुप्त बातों को सरलतापूर्वक बता सकता है। गढ़ा हुआ धन, जमीन में कहाँ पानी है और कितनी गहराई पर है, ये सब बातें वह ऐसे ढंग से बता देता है मानों उसकी आँखें जमीन के भीतर का हाल देख सकने में समर्थ है। आपके घर में अगर चोरी हो गई हो तो भन्ना भील से बात करो, वह तुरन्त आपको बतला देगा कि चोर कौन है और वह इस समय कहाँ होगा? इतना ही नहीं वह यह भी बता सकता है कि अमुक स्त्री के गर्भ से लड़का पैदा होगा या लड़की?

इस प्रकार बिना देखी या बिना जानी वस्तुओं के विषय में ठीक-ठीक बतला देने की शक्ति को अंग्रेजी में ‘सिक्सथ सेन्स’ अर्थात् छठी इन्द्रिय कहते हैं। देश और काल की सीमा ही नहीं, इसके द्वारा आप किसी भी व्यक्ति के मन और मस्तिष्क के गुह्य प्रदेश की बातें भी जान सकते हैं। अनेक लोग प्रश्न करेंगे कि क्या वास्तव में ऐसी बात सत्य हो सकती है? ऊपर के उदाहरणों से इसकी सत्यता में सन्देह नहीं किया जा सकता। ऐसे ही और भी अनेक व्यक्तियों के उदाहरण हमारे सुनने में आये हैं।

जयपुर राज्य के चिड़ावा नगर में कुछ वर्ष पहले एक पं. गणेश जी महाराज हो गये हैं। उनमें भी बिना देखी बातों को जानने की दैवी शक्ति स्वाभाविक रूप से प्रकट हो गई थी। एक दिन नगर के बाजार में बैठे बैठे वे अचानक जोर से बोल उठें- ‘अरे रे, वह तो कूद ही पड़ा और मर गया। जाओ! सब मस्तक के बाल मुँडा डालो।” उन दिनों में राजस्थान की रियासतों में यह प्रथा थी कि अगर राजा मर जाय तो छोटे बड़े सब मस्तक मुड़ावें। श्रीगणेश जी महाराज ने जिस समय उपरोक्त शब्द कहे थे उसी समय खेतड़ी के राजा ने ताजमहल की मीनार से कूद कर जान दे दी थी। इसकी खबर चिड़ावा में कई दिन बाद आई, पर गणेश महाराज को वह घटना उसी समय दिखलाई पड़ गई थी।

इस प्रकार की एक नहीं सैकड़ों घटनायें समाचार पत्रों और पुस्तकों में देखने को मिलती हैं। स्विट्जरलैंड की एक स्त्री को अपनी बहिन की मृत्यु का आभास उसी समय हो गया था, यद्यपि उसकी बहिन कई हजार कोस की दूरी पर अमरीका में मरी थी। जावा में भी एक आदमी को अपनी माता की मृत्यु की इसी प्रकार खबर पड़ गई थी, यद्यपि उसकी माँ दक्षिण केरोलिना में थी। इन घटनाओं में जिन व्यक्तियों को दूर की घटनाएं दिखलाई पड़ी, उनमें यह शक्ति सदैव नहीं पाई जाती थी, पर उस समय किसी मानसिक आकर्षण के कारण उनको अपने प्रियजन के देहान्त की सूचना दैवी रीति से मिल गई।

ऐसी छठी इन्द्रिय की शक्ति कुछ पशुओं में भी उत्पन्न हो जाती है। अमरीका के रिकमेंड नगर में रहने वाली श्रीमती सी. डी. फोडानी के पास एक घोड़ी है। जो ऐसी-ऐसी बातों का जवाब दे सकती है कि दर्शक दंग रह जाते हैं। इसी तरह जापान के प्रधान सेनापति जनरल टोजो के पास एक बिल्ली थी जो नक्शा पर पैर रखकर यह बतला देती थी कि युद्ध में जापानी फौज को किस तरफ बढ़ना चाहिये। जनरल टोजो प्रायः उसके संकेत के अनुसार अपनी फौज को धावा करने का हुक्म देते थे और उनको बराबर सफलता मिलती थी, लोगों ने उसका नाम ‘मैप रीडिंग केट’ (नक्शा पढ़ने वाली बिल्ली) रख दिया था।

प्रत्येक मनुष्य में सामान्यतः पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ होती हैं। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि मनुष्य अपनी इन्द्रियों द्वारा ही स्पर्श, स्वाद, गन्ध, श्रवण और देखने का कार्य करता है। पर इनके सिवाय मनुष्य में दो अन्य शक्तियाँ भी होती हैं, जिनका प्रयोग करना अभी वह नहीं सीख सका है। ये शक्तियाँ कम या अधिक मात्रा में प्रत्येक व्यक्ति में पाई जाती हैं, और कभी-कभी संयोगवश किसी में विकसित होकर प्रकट भी हो जाती हैं। चिकित्सा विज्ञान के अंतर्गत इन शक्तियों की ग्रन्थियों को ‘पीनियल’ और ‘पिट्युटरी’ ग्रन्थि कहा जाता है। इन्हीं दोनों के सम्मिश्रण से अन्तर दृष्टि उत्पन्न हो जाती है।

अमरीका के ड्यूक विश्व विद्यालय की प्रयोगशाला में डॉक्टर हाइन छठी इन्द्रिय के विषय में प्रयोग कर रहे हैं। इन प्रयोगों द्वारा वे यह मालूम करना चाहते हैं कि मनुष्य किस प्रकार इस शक्ति को प्राप्त कर सकता है? डॉक्टर हाइन के सिवाय अन्य अनेक वैज्ञानिक भी इस सम्बन्ध में खोज कर रहे हैं। जिस दिन इन लोगों को अपने कार्य में सफलता मिल जायगी उस दिन यन्त्र युग से बढ़कर एक आश्चर्यजनक युग का आरम्भ होगा, जिसकी अद्भुत संभावनाओं की अभी हम कल्पना भी नहीं कर सकते।

यद्यपि अभी पश्चिमी वैज्ञानिक इस विषय की बाहरी सीमा पर भी नहीं पहुँचे हैं, पर भारतवासियों ने इस विज्ञान की बहुत पहले खोज कर ली थी। हमारे देश में जो योग विद्या प्रचलित है, यह उसका एक बहुत छोटा अंग है। पाठको में से अनेकों ने कुण्डलिनी शक्ति का नाम सुना होगा। इसी कुण्डलिनी को जागृत करने से यह दूरदर्शन की शक्ति ही नहीं, वरन् और भी अनेक अद्भुत शक्तियाँ-जैसे परकाया प्रवेश-उत्पन्न हो जाती हैं। योग की इस शक्ति को भारतीय ही स्वीकार नहीं करते, वरन् कलकत्ता हाईकोर्ट के भूतपूर्व जज सर जान वुडरफ जैसे अंग्रेज महापुरुष भी उसका अध्ययन और मनन कर चुके हैं और उन्होंने इस सम्बन्ध में ‘सर्पेण्टाइल पावर’ नाम का बहुत बड़ा ग्रन्थ भी लिखा है जो आज भी सभ्य संसार में आदरणीय स्थान रखता है। हमारे देश के तो बहुसंख्यक व्यक्ति आज भी योगाभ्यास की कितनी ही क्रियाओं को करके लाभ उठाते रहते हैं और वे चाहें तो कुण्डलिनी योग द्वारा अपनी छठी इन्द्रिय को विकसित करके दूरदृष्टि द्वारा कुछ उपकार कर सकते हैं।

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