• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • युग के चरण
    • युग के चरण (Kavita)
    • सत्य व्यवहार की अपार शक्ति
    • स्वतंत्रता, समता और न्याय की स्थापना
    • भगवान बुद्ध के कल्याणकारी उपदेश
    • भारतीय संस्कृति का आध्यात्मिक आधार
    • शास्त्रवाद और बुद्धिवाद का समन्वय
    • कर्म और मानवीय प्रगति
    • मंत्र सिद्धि द्वारा आत्म साक्षात्कार
    • कल्पवृक्ष आपके पास ही हैं।
    • छठी इन्द्रिय और उसकी चमत्कारी शक्ति
    • स्नान की लाभदायक विधि
    • क्या रसायन विद्या सच्ची है?
    • गायत्री उपासना के अनुभव
    • यज्ञोपवीत एवं गुरु दीक्षा का स्वर्ण सुअवसर
    • धर्म जागृति के महान् केन्द्र-देव मन्दिर
    • मंत्र लेखन-एक महान साधना
    • धर्म प्रेमियों के सत्प्रयत्न
    • VigyapanSuchana
    • कैसा है वह धर्म फेरता माला चुप-चुप!
    • कैसा है वह धर्म फेरता माला चुप-चुप (Kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1958 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


स्वतंत्रता, समता और न्याय की स्थापना

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 3 5 Last
(संत बिनोवा)

मानव को प्रेरणा उसके मन से मिलती है। लेकिन मन केवल व्यक्तिगत और निजी नहीं होता है, बल्कि सारे समाज का भी एक सामूहिक मन होता है। वह सामूहिक मन दिन व दिन बदलता रहता है। यह परिवर्तन हर एक देश में हुआ है। उस-उस जमाने में उस-उस समाज का मन एक तरफ से काम करता था। आज के जैसे आवागमन के साधन उस समय मौजूद नहीं थे। एक देश से दूसरे देश में खबरें पहुँचने में काफी समय लगता था। आज तो हमारे पास बड़े-बड़े साधन मौजूद हैं, खबरें फौरन पहुँच जाती हैं। दुनिया भर के समाचार हम एक गाँव में बैठकर भी नित्य जान सकते हैं। पुराने जमाने में ये साधन नहीं थे, फिर भी सारी पृथ्वी पर जहाँ-जहाँ मनुष्य बसे हुये थे, करीब-करीब एक ही प्रकार से मानव-समाज का मानसिक विकास होता रहा।

धर्म-संस्थापना की प्रेरणा

अधिक पुराने समय की अस्पष्ट बातें छोड़कर अगर हम ढाई हजार वर्ष पहले के जमाने पर गौर करें तो हमें मालूम होगा कि उस समय भारत में वैदिक, बौद्ध और जैन-धर्म की विचारधारा चलती थी। समाज में खाने, पीने जैसी मामूली बातें तो चलती ही थीं, परन्तु एक ऐसी प्रेरणा भी काम कर रही थी, जिसका मूल रूप भगवान बुद्ध और महावीर बने। उन्होंने धर्म-संस्थापना की। उसी समय चीन में भी लाओत्से, कन्फ्यूशियस आदि ‘ताओ’ के बारे में विचार करते थे, जिससे धर्म-संस्थापना हुई। अर्थात् उस समय वहाँ के लोगों को भी वैसी ही भूख लगी, यद्यपि चीन और हिन्दुस्तान एक दूसरे के विषय में बहुत कम जानते थे। उसी समय ईरान और फिलिस्तीन में हमें उसी प्रकार की प्रेरणा के दर्शन मिलते हैं। हम ईरान में जरथुस्त्र, मिश्र में मूसा और फिलिस्तीन में ईसा को देखते हैं, जिन्होंने पारसी, यहूदी और ईसाई आदि धर्मों की स्थापना की अर्थात् उन दो-तीन सौ या पाँच सौ साल के अन्दर दुनिया के सभी देशों में धर्म-संस्थापना का कार्य होता दिखाई देता है।

यहाँ प्रश्न होता है कि सभी मानवों को धर्म-संस्थापना की यह एक ही प्रेरणा कैसे मिली? इसका जवाब यही हो सकता है कि व्यक्ति के मन की तरह समाज के मन को भी परमेश्वर से प्रेरणा मिलती है। जब मिश्र में मूसा काम कर रहे होंगे तब उन्हें मालूम भी नहीं होगा कि दूसरी तरफ चीन में लाओत्से भी काम कर रहे हैं। उस समय इतनी दूर की खबरों के फैलने और पहुँचने में सैकड़ों वर्ष लग जाते थे। फिर भी एक अव्यक्त हवा सी फैल जाती थी, जिसका कारण एक सर्वान्तर्यामी, सर्व प्रेरक परमेश्वर ही हो सकता है। यदि किसी को ‘परमेश्वर’ शब्द पसन्द न हो तो हम कह सकते हैं कि सब दुनिया की विवेक शक्ति (कॉन्सस) सबको समान प्रेरणा देती है। चाहे हम परमेश्वर कहें या विवेक शक्ति, शब्द दो हैं पर अर्थ एक ही है। ‘परमेश्वर’ शब्द से हम अधिक गहराई में जाते हैं और ‘विवेक शक्ति’ कहने से उतनी गहराई में नहीं जा पाते। इसके सिवा इनमें और कोई भेद नहीं।

एक साथ ध्यान तथा चिन्तन की प्रेरणा

आगे चलकर हम आठ सौ या एक हजार साल पहले का जमाना लें। उस समय मनुष्यों को धर्म संस्थापना की नहीं, बल्कि उपासना की, ध्यान की, चिन्तन की- अर्थात् मन की शक्तियों को एकाग्र करने और उनका विकास करने की प्रेरणा मिली थी। उसे ‘मिस्टिस्ज्मि’ अथवा भक्ति का युग कहा जा सकता है। उस समय कई संत पुरुष पैदा हुए। सिर्फ भारतवर्ष में ही नहीं बल्कि दुनिया के बहुत से देशों में- जैसे मिश्र और इटली में भी- पैदा हुये। हर जगह उसी तरह का ध्यान, वही चिन्तन, भजन दिखाई देता है। अर्थात् मन के अन्दर जो शक्तियाँ थीं उनका आह्वान कर जिन्दगी को शक्ति शाली बनाना और उसका उपयोग दुनिया की भलाई के लिये करना उनका उद्देश्य था। सर्वत्र यह आध्यात्मिक संशोधन कार्य चल रहा था। भारतवर्ष में तुलसीदास, नानक, चैतन्य, तुकाराम आदि अनेक संत हुये। वैसे ही योरोप में भी हुये, पर हम उन्हें नहीं जानते।

उस जमाने में सभी को वैसे ही मानस-शास्त्र में संशोधन करने की प्रेरणा मिली थी, जैसे ढाई हजार वर्ष पहले समाज की धारणा के मूल तत्व खोजने की इच्छा सब को हुई थी। सबको समान प्रेरणा होना, एक ही इच्छा से सबके मन जागृत होना वास्तव में एक अद्भुत बात है। इधर के संतों को उधर के संतों की कोई खबर नहीं मिलती थी, फिर भी एक समान प्रेरणा ने सबको उठाया- सबको जगाया, सबको हिला दिया।

सामाजिक समता का युग

ऐसा ही दृश्य दुनिया में लगभग सौ डेढ़ सौ साल पहले हमने देखा। अब यातायात की सुविधायें पैदा हो चुकी थीं। सब तरह की खबरें एक दूसरे को बहुत कम समय में मिलने लगीं। दुनिया में समता, न्याय और स्वतंत्रता की आवाज सुनाई पड़ने लगी। हम देखते हैं कि जीवन में समता लानी चाहिये, हर एक को स्वतन्त्रता मिलनी चाहिये, यह उद्देश्य आज सबको प्रेरित कर रहा है। सबसे पहले युग में समाज के मूलभूत तत्वों अर्थात् धर्म की स्थापना हो चुकी, बीच के युग में मन की शक्तियों का उन तत्वों को अमल में लाने के लिये कैसे उपयोग किया जा सकता है, इसका भी संशोधन हो गया। अब ऐसा समय आया, जब अपनी इच्छा से जो धर्म-संस्थापना हो चुकी, और उसके प्रयोग के लिये मानसिक शक्तियों का जो संशोधन हुआ, उसके आधार पर हम उन मूलभूत सिद्धान्तों को समाज रचना के काम में लायें। सब में एक ही आत्मा समान रूप से है, इस आध्यात्मिक तत्व को तो हमने प्राचीन काल से मान ही लिया था, पर अब उस तत्व को जीवन में कार्य रूप से परिणित करने की बात थी।

सबके भीतर एक समान ज्योति है, इसकी खोज तो सारी दुनिया कर चुकी थी और उसके लिये मानसिक वृत्तियों का संशोधन भी हो चुका था। लेकिन अब ऐसा समय आया कि जीवन में वह समता प्रत्यक्ष रूप में लाने की बात थी। हर जगह यही एक सी भूख लगी थी। स्वतन्त्रता, समता और न्याय की बातें दुनिया के हर एक देश में फैली हुई थीं। यदि हम ठीक ढंग से, बारीकी से और तटस्थ होकर देखें, तो हमें मालूम पड़ेगा कि हर एक देश में यह तत्व स्वतन्त्र रूप से फैला। सवेरा होने पर जिस तरह काशी का मुर्गा बाँग लगाता है, उसी प्रकार मुम्बई और मद्रास के मुर्गे भी बाँग लगाते हैं। सूर्योदय के कारण सभी मुर्गों को समान रूप से प्रेरणा मिलती है। इसी प्रकार इस जमाने में समता, स्वतन्त्रता और न्याय की प्रेरणा सबको मिली है। हाँ, आज एक बात नई हो गई है, वह यह कि काल की गति में शीघ्रता आ गई है। इसका मतलब यह है कि जो काम पहले दो सौ वर्ष में होता था, वह अब पाँच वर्ष में होता है।

जैसा कुछ अनजान भाई समझते हैं, सामाजिक न्याय और समता के लिये आज जो संघर्ष दिखलाई पड़ रहा है वह किसी विदेशों के आन्दोलन की नकल नहीं है, और न उसमें कोई ऐसी बात है जो हमारे धर्म या संस्कृति के विरुद्ध हो। उसका जन्म तो ईश्वरीय प्रेरणा के फल से ही हुआ है और नये युग में उसकी पूर्ति सामूहिक रूप में अवश्य होगी।

First 3 5 Last


Other Version of this book



Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • युग के चरण
  • युग के चरण (Kavita)
  • सत्य व्यवहार की अपार शक्ति
  • स्वतंत्रता, समता और न्याय की स्थापना
  • भगवान बुद्ध के कल्याणकारी उपदेश
  • भारतीय संस्कृति का आध्यात्मिक आधार
  • शास्त्रवाद और बुद्धिवाद का समन्वय
  • कर्म और मानवीय प्रगति
  • मंत्र सिद्धि द्वारा आत्म साक्षात्कार
  • कल्पवृक्ष आपके पास ही हैं।
  • छठी इन्द्रिय और उसकी चमत्कारी शक्ति
  • स्नान की लाभदायक विधि
  • क्या रसायन विद्या सच्ची है?
  • गायत्री उपासना के अनुभव
  • यज्ञोपवीत एवं गुरु दीक्षा का स्वर्ण सुअवसर
  • धर्म जागृति के महान् केन्द्र-देव मन्दिर
  • मंत्र लेखन-एक महान साधना
  • धर्म प्रेमियों के सत्प्रयत्न
  • VigyapanSuchana
  • कैसा है वह धर्म फेरता माला चुप-चुप!
  • कैसा है वह धर्म फेरता माला चुप-चुप (Kavita)
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj