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Magazine - Year 1958 - Version 2

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मंत्र लेखन-एक महान साधना

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पूर्णाहुति के अवसर पर इस ओर भी ध्यान दिया जाना चाहिए।

ब्रह्मास्त्र अनुष्ठान की पूर्णाहुति के महायज्ञ में सम्मिलित होने के लिये सम्भवतः परिवार के सभी सदस्य उत्सुक होंगे। बड़े मेले-ठेले देखने की मनुष्यों में वैसे ही साधारण प्रवृत्ति होती है, फिर यह इतना बड़ा आध्यात्मिक मेला है, जिसमें ऐसे प्रचण्ड दिव्य तत्व उत्पन्न होने की सम्भावना है जो वहाँ उपस्थित रहने वालों का विशेष कल्याण करेंगे। ऐसे धर्म आयोजन में सम्मिलित रहना आध्यात्मिक दृष्टि से जीवन को धन्य बनाना और लौकिक दृष्टि से सुख शान्ति का पथ प्रशस्त करना, अनेक कठिनाइयों को पार करना है। उच्च कोटि के महात्मा और सिद्ध पुरुष इस अवसर पर आकर अपने तपोबल से आगन्तुकों का कल्याण सम्पादन करेंगे। प्रथम श्रेणी के विद्वानों के प्रवचन भी लोगों की भावनाओं को शुद्ध करने में बड़े उपयोगी साबित होंगे। गायत्री-परिवार के लोग अपने आत्म-बन्धुओं, गुरु-भाइयों को एक साथ एकत्रित देखेंगे जिससे निश्चय ही परिजनों की आत्माएं प्रसन्न होंगी।

इस युग के इस परम पुनीत अवसर पर गायत्री-परिवार के सदस्य तथा उनके परिजन स्वभावतः मथुरा आने को उत्सुक होंगे। अनेकों ने यजमान एवं होताओं के फार्म भी भर दिये हैं और वे निश्चय ही मथुरा पधारेंगे, पर कितने ही सज्जन ऐसे हैं जो कुछ कठिनाई अनुभव कर रहे हैं। इन कठिनाइयों में से एक किराया-भाड़ा खर्च करने की आर्थिक और दूसरी कठिन साधना की पूर्ति करने की है। इनमें से सच्ची श्रद्धा रखने वालों के लिये पहली कठिनाई अवश्य हल होकर रहेगी।

दूसरी कठिनाई साधना सम्बन्धी है। साधना के नियम कुछ कठोर रखे गये हैं। सवा लक्ष जप और 52 उपवास करने वाले यजमान, 2। लक्ष जप करने वाले होता, 1 माला रोज जपने वाले संरक्षक बनने की जो साधना है वह वस्तुतः उतनी कठिन नहीं है जितनी नये साधकों को दीखती है। कई धर्म-प्रेमी व्यक्ति इन साधना सम्बन्धी कठिनाइयों से डरते हैं और महायज्ञ में सम्मिलित होने से हतोत्साह हो जाते हैं।

ऐसे सज्जनों के लिये गायत्री मन्त्र लेखन की साधना बहुत ही सरल है। सवा लक्ष जप के स्थान पर 2400 गायत्री मन्त्र लेखन रखा गया है। अभी 8 महीने या 240 दिन पूर्णाहुति के शेष हैं। 10 मिनट प्रतिदिन लगाकर 10 मन्त्र प्रतिदिन लिखने से तब तक यह साधना आसानी से पूरी हो सकती है। मंत्र लेखन में समय का या स्नान आदि का भी प्रतिबन्ध नहीं है। अपने अन्य काम काज करते हुए 10 मिनट फुरसत कभी भी निकाली जा सकती है। इस प्रकार जिनके जी में महायज्ञ में सम्मिलित होने की इच्छा तो है पर साधना की कठिनाई से डरते हैं उनके लिए यह सबसे सरल साधना है।

दो नवरात्रियों में 9-9 दिन के उपवास और शेष महीनों में प्रति सप्ताह एक उपवास करने से 52 उपवास आसानी से पूरे हो सकते हैं। एक बार बिना नमक का भोजन भी उपवास मान लिया गया है, इस प्रकार वह तपस्या भी उतनी कठिन नहीं है जितनी दीखती है। फिर भी जिन्हें उपवास कष्टकर प्रतीत हो वे 1 उपवास के बदले 10 माला अधिक जपने या 40 मन्त्र अधिक लिखने से उसकी पूर्ति कर सकते हैं। अधिक कमजोर तबियत के लोग भी महीने में एक उपवास तो अवश्य ही करें। शेष की पूर्ति जप या मन्त्र लेखन अधिक करके की जा सकती है। इतने पर भी जप, मन्त्र लेखन या उपवास में कोई कमी रह जाय तो उतनी कमी की साधना तपोभूमि से उधार ले ली जाय और उसकी पूर्ति अगले वर्ष कर दी जाय। ऐसा भी हो सकता है कि कोई व्यक्ति अपना जप, मन्त्र लेखन या उपवास तपोभूमि में रहने वाले ब्रह्मचारियों को पारिश्रमिक देकर पूरा करालें। इन विकल्पों के कारण वह कठिनाई हल हो जानी चाहिए जो साधना सम्बन्धी प्रतिबन्धों के कारण लोगों को निराश करती है। 1250 गायत्री चालीसा पाठ भी सवा लक्ष जप के स्थान पर लिया गया है। 3 पाठ प्रतिदिन से वह पूर्णाहुति तक पूरा हो सकता है। अशिक्षित लोग जिन्हें पूरा मन्त्र शुद्ध रूप से नहीं आता ॐ भूर्भुवः स्वः की पंचाक्षरी गायत्री सवा लक्ष जप कर सकते हैं।

गायत्री मन्त्र लेखन का महत्व कम नहीं मानना चाहिए। मन्त्र-जप से उसका महत्व किसी भी प्रकार कम नहीं है।

अन्य साधनाओं में उंगलियों से जप और जिह्वा से उच्चारण होता है। मन को इधर-उधर भागने की काफी गुंजाइश रहती है। पर गायत्री मन्त्र लेखन में लिखते समय हाथ, आँखें, मस्तिष्क तथा समस्त चित्तवृत्तियाँ एकाग्र हो जाती हैं क्योंकि लिखने का कार्य एकाग्रता चाहता है। मन को वश में करके एकाग्र भाव की साधना मन्त्र लेखन में भली प्रकार बन पड़ती है। इसलिये उसका महत्व भी बहुत माना गया है। शास्त्रों में गायत्री मन्त्र लेखन के सम्बन्ध में ऐसे वचन मिलते हैं :-

मानवो लभते सिद्धि कारणाद्धि जपस्यवै।

जपतो मन्त्र लेखस्य महत्वं तु विशिष्यते॥

अर्थात्- जप करने से मनुष्य को सिद्धि प्राप्त होती है। परन्तु जप से भी मन्त्र लेखन का महत्व विशेष है।

यज्ञात्प्राणस्थितिर्मन्त्रे, जपान्मन्त्रस्य जागृतिः।

अति प्रकाशवाँश्चैव, मन्त्रो भवति लेखनात्॥

हवन से मन्त्र में प्राण आता है, जप से मन्त्र जागृत होता है और लिखने से मन्त्र की शक्ति आत्मा में प्रकाशित हो जाती है।

सिद्धेर्मार्गो अनेकेस्यु, साधनायास्तु सिद्धये।

मन्त्राणाँ लेखनं चैव तत्र श्रेष्ठं विशेषतः॥

साधना की सिद्धि के लिए अनेक मार्ग हैं। उनमें मन्त्रों का लेखन विशेष श्रेष्ठ है।

श्रद्धया यदि वैशुद्धं क्रियतं मंत्र लेखनम्।

फलं तर्हि भवेत्तस्य जपात् दश गुणाधिकम्॥

श्रद्धापूर्वक यदि शुद्ध मंत्र लिखा जाय तो उसका फल निश्चय ही जप से दश गुना अधिक होता है।

गायत्री मन्त्र लेखस्य विधानाच्छ्रद्धयाऽन्वहम्।

सम्प्रसीदति गायत्री वेद माता हि साधके॥

प्रतिदिन श्रद्धापूर्वक गायत्री मंत्र के लिखने से वेदमाता गायत्री साधक पर अति प्रसन्न होती हैं।

उपरोक्त शास्त्र वचनों के आधार पर गायत्री मंत्र लेखन एक अत्यन्त महत्वपूर्ण साधना विधि है। इसमें स्त्री, पुरुष, बाल, वृद्ध सभी प्रसन्नतापूर्वक भाग ले सकते हैं। इसमें कोई विशेष प्रतिबन्ध नहीं है। जब भी समय मिले, मंत्र लेखन किया जा सकता है। जप की अपेक्षा मंत्र लेखन का पुण्य दश गुना अधिक माना गया है। इस प्रकार 24 हजार जप के अनुष्ठान की भाँति ही 24 सौ मंत्र लेखन का एक अनुष्ठान माना जाता है।

मंत्र लेखन की एक सबसे बड़ी विशेषता यह है कि जिस स्थान पर यह कापियाँ स्थापित की जाती हैं, जहाँ इनका नित्य पूजन होता है वह स्थान एक विशेष आध्यात्म-शक्ति से सम्पन्न बन जाता है। गायत्री तपोभूमि में 125 करोड़ हस्तलिखित गायत्री मन्त्र रखे हुए हैं, यह हजारों वर्षों तक सुसज्जित रूप से सुरक्षित रखे रहेंगे। इनका नित्य पूजन होता रहेगा। इन मंत्रों को प्रति वर्ष लाखों तीर्थ यात्री देखते और प्रकाश एवं प्रेरणा प्राप्त करते रहेंगे। इन मन्त्र लेखन कापियों के पन्नों में साधकों की आँतरिक श्रद्धा एवं तपस्या लिपटी रहती है। इसलिये वे कागज सूक्ष्म सतोगुणी शक्ति सम्पन्न एवं प्रकाश पुँज बनकर जहाँ उन्हें स्थापित किया जाय, उस स्थान के वातावरण को बड़ा ही प्रभावशाली एवं शुद्ध बनाते हैं। उस स्थापना स्थान में प्रवेश करने वाला, निवास करने वाला व्यक्ति तुरन्त ही एक असाधारण शक्ति उसी प्रकार प्राप्त करता है जैसे गर्मी से सताया हुआ व्यक्ति बर्फखाने में घुसकर और सर्दी से काँपता हुआ व्यक्ति जलती हुई भट्टी के पास बैठकर प्रसन्न होता है।

गायत्री तपोभूमि में जो लोग आये हैं, यहाँ ठहरे हैं, उन्हें यहाँ के सूक्ष्म वातावरण की पवित्रता एवं दिव्य प्रभाव शक्ति का अनुभव निश्चय ही होता है। इसका बहुत कुछ श्रेय 124 करोड़ गायत्री मन्त्र लेखन की स्थापना को है। साधारण जप से भी लाभ है पर मन्त्र लेखन की यह विशेषता सब से बड़ी है कि जहाँ उनकी स्थापना की जाती है, उस स्थान का वातावरण चिरकाल तक आत्म-शक्ति से प्रभावित रहता है और उसका उपयोग अनेकों लोगों की मानसिक स्थिति को सुधारने में होता रहता है।

गायत्री महायज्ञ की पूर्णाहुति के अवसर पर आने वाले सदस्यों से प्रार्थना है कि वह अपने साथ मन्त्र लेखन की अधिकाधिक श्रद्धाँजलियाँ लाने का प्रयत्न करें। जो लोग मथुरा नहीं आ सकें, वे इस यज्ञ में सहयोग स्वरूप मन्त्र लेखन की कापी श्रद्धाँजलि के रूप में भेजें। जिस प्रकार धन प्रधान कार्यक्रमों में धन संग्रह का महत्व है, उसी प्रकार इस ब्रह्म यज्ञ में साधना-तपस्या संग्रह का महत्व है। मोटे तौर पर यह माना जाना चाहिए कि जिसने जितने मन्त्र लिखकर भेजे उसने उतने रुपये यज्ञ के लिए दिये। 2400 मन्त्रों की श्रद्धाँजलि यहाँ 2400 रुपये दान के बराबर मानी जायगी। यहाँ यज्ञ में मथुरा पधारने वाले लोग अपने साथ मन्त्र लेखन के बड़े-बड़े बस्ते- नोटों के बण्डलों के रूप में साथ लाने का प्रयत्न करें।

इस कार्य के लिए यदि घूमा जाय, याचना की जाय तो अनेकों धर्म-प्रेमी, सहृदय व्यक्ति जो मथुरा नहीं आ सकते अपनी मन्त्र लेखन की श्रद्धाँजलियाँ भेज सकते है। इस बहाने उनको एक महत्वपूर्ण साधना करने का अवसर मिलेगा और वह मन्त्र कापी जहाँ भी रहेगी वहाँ पवित्रता एवं धार्मिकता के तत्वों को बढ़ाती रहेगी। उत्साही व्यक्ति प्रयत्न करें तो अपने क्षेत्र से 21-21 लक्ष, 24-24 लक्ष मन्त्र संग्रह का कार्य आरम्भ कर सकते हैं। यह कार्य यज्ञ के लिए धन देने से किसी भी प्रकार कम महत्व का नहीं है। कौन शाखा कितने अधिक मन्त्र संग्रह करे- इसके लिए एक प्रकार की प्रतिस्पर्धा, प्रतियोगिता, होड़, घुड़-दौड़ आपस में चल पड़नी चाहिए। अधिक साधक बनाने, अधिक गायत्री उपासक उत्पन्न करने, अधिक व्यापक क्षेत्र में गायत्री माता का सन्देश पहुँचाने का यह एक श्रेष्ठ तरीका है।

प्रयत्न यह भी किया जाना चाहिए कि प्रत्येक क्षेत्र में, प्रत्येक गाँव में, एक सामूहिक गायत्री मंदिर हो। जहाँ निज की इमारत बन सके वहाँ सबसे उत्तम है अन्यथा किराये के या माँगे हुए स्थान में भी ऐसे मन्दिर स्थापित किये जा सकते हैं। वहाँ गायत्री तपोभूमि की भाँति उस क्षेत्र का मन्त्र लेखन भी प्रतिष्ठापित रहे और तपोभूमि में जो 2400 तीर्थों का जल रज संग्रह है उसकी भी स्थापना की जाय। ऐसे मन्दिर सच्चे अर्थों में धर्म-प्रचार के केन्द्र एवं सूक्ष्म अध्यात्म शक्ति के प्रेरक बन सकते हैं। जहाँ संभव हो ऐसे मन्दिर स्थापित करने का प्रयत्न किया जाय। उस क्षेत्र से लिखाया हुआ मन्त्र लेखन तपोभूमि उसी मन्दिर के लिए वापिस कर देगी और मथुरा में जो तीर्थों का जल रज एकत्रित है उसमें से भी प्रत्येक मन्दिर को भाग देगी। सस्ती गायत्री मूर्तियाँ एवं बड़े साइज के चित्र बनवाने का भी प्रयत्न किया जा रहा है। यह मन्त्र लेखन आन्दोलन अन्ततः गाँव-गाँव, क्षेत्र-क्षेत्र में गायत्री मन्दिरों की स्थापना के रूप में परिणित होंगे ऐसी संभावना हमें स्पष्ट दिखाई दे रही है।

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