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Magazine - Year 1958 - October 1958

Media: TEXT
Language: HINDI
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इस विष से सावधान रहिए।

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First 20 22 Last
जब समुद्र मथा गया था तो उसमें से सबसे पहले विष, फिर वारुणी उसके बाद अन्य रत्न निकले थे। युग निर्माण के लिए, मूर्छित समाज को जागृत करने के लिए भी गायत्री संस्था द्वारा वह अमृत निकालने के लिए समुद्र-मन्थन का कार्य हो रहा है, जिसे पीने से यहाँ के निवासी इस देवभूमि को अमर भूसुरों की निवास-स्थली प्रत्यक्ष रूप में दिखा सकें।

यह समुद्र-मन्थन ठीक प्रकार से चल रहा है या नहीं, इसकी प्रारम्भिक परीक्षा यही है कि इसमें कितना विष निकलता है, यह देखा जाय। जब सड़ी हुई कीचड़ की नाली साफ की जाती है तो उसमें से नाक फाड़ने वाली बदबू उड़ती है। दुर्बुद्धि की, दुर्भावनाओं की स्वार्थपरता और पाखण्ड की कीचड़ बहुत दिनों में हमारे धार्मिक एवं साँस्कृतिक क्षेत्र में पड़ी सड़ रही है, उसे साफ किया जा रहा है तो वे तत्व जिनके स्वार्थों को हानि पहुँचती है, स्वभावतः विरोध करेंगे। असुरता को नष्ट करने वाले जब कभी भी अभियान हुए हैं, उनके प्रतिरोध के लिए असुरों ने पूरी शक्ति से प्रत्याक्रमण किये हैं। त्रेता में इस प्रकार के अभियान में संलग्न ऋषियों को कच्चा चबा-चबा असुरों ने हड्डियों के पहाड़ लगा दिये थे, जिन्हें देखकर रामायण के अनुसार यह दृश्य उपस्थित हुए—

अस्थि समूह देखि रघुराया।

पूछी मुनिन्ह लागि अति दाया॥

निसिचर निकर सकल मुनि खाये।

सुनि रघुवीर नयन जल छाये॥

निसिचर हीन करहु महि, भुज उठाइ पन कीन्ह।

सकल मुनिन्ह के आश्रमन्हि जाइ-जाइ सुख दीन॥

विश्वामित्र के इस प्रकार के अभियान के विरुद्ध मारीच, सुबाहु, ताड़का की पूरी सेना संघर्ष में रत हुई। वह आक्रमण इतने प्रचण्ड थे कि विश्वामित्र घबरा गए, अपने लक्ष की असफलता का असर अनुभव करने लगे। अन्त में दशरथजी के यहाँ जाकर उनके पराक्रमी पुत्रों को सहायता के लिए माँग कर लाए।

क्रिया की महत्ता प्रतिक्रिया से ही जानी जाती है। बुखार की गर्मी को थर्मामीटर से नापा जाता है। गायत्री-परिवार का समुद्र मन्थन कितना शक्तिशाली एवं प्रभावपूर्ण है इसकी एक ही पहचान है कि विरोधी आसुरी तत्व इससे कितने क्षुब्ध हुए और उनने इसे असफल बनाने का कितना प्रयत्न किया है। जहाँ तक सूचनाएं प्राप्त हुई हैं विरोध, निन्दा, आक्रमण के समाचार जगह-जगह से आ रहे हैं। यह बड़े सन्तोष के समाचार हैं, उन्हीं के आधार पर दो बातों का पता लग सकता है—(1)अपना कार्य कितनी उच्च स्थिति में है, यदि अपना कार्य नगण्य होगा तो उसका विरोध भी नगण्य ही होगा। यदि कार्य में कुछ गहराई है तो उसे असफल बनाने के लिए कार्यकर्त्ताओं की श्रद्धा कितनी सच्ची है। यदि ढीले मन के, अस्थिर विचारों के, अधूरे विश्वास के अपने परिजन हैं तो वे आसानी से बहक जायेंगे। मतिभ्रम में उलझकर इस अलभ्य अवसर से हाथ खींच लेंगे। कोई-कोई तो सहयोग छोड़कर विरोधी भी बन जाएंगे। किन्तु जो सच्चे होंगे वे आड़े वक्त में काम आने वाले सच्चे मित्रों की तरह अन्त तक मोर्चे पर अड़े रहेंगे।

कार्य की महत्ता तथा साथियों की श्रद्धा की परीक्षा, विरोधी आक्रमणों के अतिरिक्त और किसी भी प्रकार नहीं हो सकती। चूँकि सचाई में हजार हाथी के बराबर बल होता है और सत्य रूपी प्रह्लाद की रक्षा भगवान नृसिंह स्वयं करते हैं। नृसिंह—मनुष्यों में जो सिंह स्वरूप वीर पुरुष हैं वे धर्म वृक्ष को गिरने न देने के लिए अपना पूरा योग देते हैं। राम और लक्ष्मण, विश्वामित्र रूपी प्रह्लाद के लिए नृसिंह ही थे। जब कभी भी अधर्म धर्म को नष्ट करने वाले कठोर आक्रमण करता है तब संरक्षक नृसिंह भी सामने आ ही जाते हैं और धर्म की नैया डूबते-डूबते बच जाती है।

गायत्री-परिवार के कार्यक्रमों के पीछे, इस महान, यज्ञानुष्ठान के पीछे सत्य की दैवी शक्ति मौजूद है। इसलिए हममें से किसी को भी विचलित होने की रत्ती भर भी जरूरत नहीं है। फिर भी प्रह्लाद की तरह कठिन परीक्षा देने को तैयार रहना ही होगा। सभी शाखाएं तथा गायत्री उपासक इस मास अपने कार्यों की अन्य सूचनाओं के साथ-साथ यह समाचार पूरे विस्तार से लिखें कि उनके धर्म कार्यों को असफल बनाने के लिए आसुरी तत्वों ने क्या-क्या कार्य किये। चूँकि इस युग में तलवार से सिर काटने का असुरता का हथियार काम में नहीं आता, अब तो इसका प्रचार अस्त्र मतिभ्रम पैदा करना, कोई बेसिर पैर की बातें कहकर कोई बेजड़-मूल के लाँछन लगाकर लोगों के नव अंकुरित धर्मोत्साह को समाप्त कर देना ही है। असुरता का यह अस्त्र कहाँ कितनी तेज से घूम रहा है, इसका पूरा विवरण इस मास प्रत्येक गायत्री उपासना केन्द्र से लिखा हुआ आना चाहिए। साथ ही यह भी उल्लेख रहना चाहिए कि उस आक्रमण से अपनी सेना के कितने साथी घायल हो गये, कितने पीठ दिखाकर भाग गये तथा कितनों ने उनका मुकाबला किया। नृसिंह का कार्य किन-किन वीर पुरुषों ने कितनी सीमा तक पूर्ण किया।

युग निर्माण के लिये आध्यात्मिक अमृत निकालने के प्रयोजन से जो समुद्र मन्थन हो रहा है, उसकी शक्ति अब तक किस सीमा तक पहुँच चुकी है इसकी जाँच इस समय करनी है। सभी परिजन अपने क्षेत्र के आसुरी आक्रमणों, उसके परिणामों तथा उनसे बचा लेने के प्रयत्नों की पूर्ण सूचना दें। आगे भी समय-समय पर इस प्रकार के विवरण माँगे जाते रहेंगे ताकि वस्तु स्थिति का पता चलता रहे। संस्था की धर्म सेवाएं जितनी ही तीव्र होती चलेंगी उतनी ही आसुरी प्रतिक्रियाएं भी प्रबल होंगी। इन संघर्षों का भी एक बड़ा ही मनोरंजक एवं उत्साहवर्धक इतिहास बनेगा। युग निर्माण के प्रत्येक अवसर पर भारी संघर्ष हुए हैं। इस बार भी उसका होना अनिवार्य है। अन्तर केवल अस्त्रों का है। इस संघर्ष में विरोधी पक्ष तलवार के बजाय मतिभ्रम फैलाने वाले गोले दागेगा। आत्म रक्षा के लिए हम में से हर एक को सतर्क रहना चाहिए। आज के धर्म क्षेत्र, कुरुक्षेत्र में इस संघर्षात्मक महाभारत का जो सूत्रपात हो रहा है उसमें अपना कार्य यथा भागमव्यवस्थितः’ रहकर हर परिजन को पूरा करना है।

समुद्र मन्थन का विष निकल रहा है। आगे जैसे जैसे मन्थन तीव्र होगा विष और भी वेग के साथ उफनेगा। इससे साधारण श्रेणी के दुर्बल परिजनों को बचाया जाना चाहिए जो विष को समेटने के लिए अपने आपको खतरों में डाल दें। नृसिंह और राम लक्ष्मण न निकले तो यह प्रह्लाद और विश्वामित्र का प्रतीक आन्दोलन संकटपूर्ण स्थिति को पहुँच सकता है। रचनात्मक कार्यक्रमों के साथ-साथ हमें बचाव के सुरक्षा मोर्चे का भी ध्यान रखना होगा। तभी इस चतुर्मुखी संघर्ष के चक्रव्यूह को पार करना सम्भव हो सकेगा।

महायज्ञ की तैयारी

महायज्ञ की तैयारियाँ उत्साहपूर्वक जारी हैं। कितने ही जिम्मेदार कार्यकर्त्ता आयोजन का कार्य सँभालने आ गये हैं और कुछ शीघ्र आ रहे हैं। इन दिनों वर्षा की अधिकता के कारण कुण्ड निर्माण आदि का कार्य तो नहीं हो रहा है। वह तो एक महीने बाद वर्षा बन्द होने पर ही शुरू होगा, पर अन्य सब तैयारियाँ बराबर चल रही हैं। ठहरने के लिए तम्बू, सफाई, रोशनी, बिजली, पानी, भोजन-व्यवस्था, हवन-सामग्री, शुद्ध घी, यज्ञशाला निर्माण आदि की व्यवस्था में तपोभूमि के वर्तमान कार्यकर्ता दिन-रात लगे रहते हैं। कुछ और सुयोग्य सेवा-भावी कार्य कर्त्ता शीघ्र ही इस कार्य में हाथ बटाने के लिए आने वाले हैं। काम बहुत बड़ा है। सब कार्य आपसी सहयोग और श्रमदान द्वारा ही किये जाने हैं, इसलिए जिन्हें अवकाश है ऐसे क्रिया-कुशल, परिश्रमी, शिक्षित, सद्गुणी, अनुशासन में रहने वाले और सेवाभावी कार्यकर्त्ताओं को जरूर ही मथुरा आने को लिखा गया है। आश्विन की नवरात्रि ता. 13 अक्टूबर से जो यज्ञीय शिक्षण-शिविर होने वाला है उसमें बड़ी संख्या में कार्यकर्त्ताओं के आ जाने की आशा है।

First 20 22 Last


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October 1958
Type: TEXT
Language: HINDI
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Version 1
Type: SCAN
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