
संसार की सामूहिक आत्महत्या
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(श्री रामनाथ एम.ए.)
कई वर्ष पहिले की बात है कि जापान का एक मछली पकड़ने वाला छोटा जहाज अपने देश के किनारे से कुछ सौ मील के फासले पर मछलियाँ पकड़ रहा था। वह अपना काम खत्म कर चुका था और अपने अड्डे की तरफ वापस लौट रहा था कि आकाश से कुछ गर्म सी राख उसके ऊपर गिरी। उस राख में न मालूम क्या तत्व भरा था कि उसके नौ मल्लाह उसी दम मृतप्रायः होकर गिर गये। जहाज के चालक उनको यथासंभव शीघ्र अपने कार्यालय में लाये और तुरन्त अस्पताल पहुँचाया। पर वह राख ऐसी साँघातिक थी कि बड़े-बड़े डाक्टरों की बुद्धि भी उनकी चिकित्सा करने में चकरा गई। वह कई वर्ष तक अस्पताल में पड़े रहे। अमरीका तक के डॉक्टर उनका इलाज करने आये। पर उनमें से कुछ तो जीवन भर को रोगी और निकम्मे हो गये, कुछ निर्बल अवस्था में जीवन व्यतीत करते रहे और कुछ अंत में मर गये।
यह राख देखने में तो साधारण ही थी, पर वह उस एटम बम से निकली हुई थी जिसे अमरीका वालों ने परीक्षणार्थ पैसिफिक के एक निर्जन टापू में चलाया था। इन बमों के धड़ाके से धूल पत्थर, बम के आवरण की राख जो उड़ती है वह आकाश में कई मील ऊपर चली जाती है और वहाँ से सैंकड़ों मील तक उड़ती चली जाती है। वास्तव में वह पृथ्वी के सभी भागों तक पहुँचती है पर उसका, जहाँ तक उसकी सक्रियता विशेष रहती है, वहीं तक उसका घातक प्रभाव पड़ता है। उससे दूरवर्ती भागों में यंत्रों द्वारा उसका अस्तित्व तो जाना जा सकता है, पर मनुष्य के जीवन पर उसका कोई उल्लेखनीय प्रभाव नहीं पड़ता।
जिस दिन से जापान के उक्त माँझी दुर्घटना ग्रस्त हुये उसी समय से संसार के साधारण लोग अणु-अस्त्रों की भयंकरता से परिचित होने लगे। उनको मालूम हो गया कि अब संसार में ऐसे शस्त्र तैयार हो गये जो केवल लड़ने वालों को ही नहीं मारते वरन् सैंकड़ों हजारों कोस पर बैठे हुये, सोये हुए, सर्वथा अनजान लोगों का भी सर्वनाश कर डालते हैं। इस कारण अब सब देशों में अणु सामग्री से निकलने वाली घातक किरणों की खोज की जा रही है और उससे उत्पन्न होने वाले रोगों की चिकित्सा के लिये पृथक डॉक्टर तैयार किये जा रहे हैं।
अब प्रश्न होता है कि आखिर एटम और हाइड्रोजन बमों में ऐसे कौन से तत्व होते हैं जो इस प्रकार अदृश्य रूप से लोगों पर ऐसा घातक प्रभाव डालने की शक्ति रखते हैं? दूसरा प्रश्न यह होता है कि हम उस हानिकारक प्रभाव से किस प्रकार अपनी रक्षा कर सकते हैं? इस विषय का अध्ययन करने के लिये अभी अमरीका में 16 वैज्ञानिकों की एक कमेटी बैठाई गई थी जिसने अपनी रिपोर्ट में इस संबंध की अनेक आवश्यकीय बातों पर प्रकाश डाला था। उसके आधार पर साधारण लोगों की जानकारी के लिये कुछ तथ्य एकत्रित किये थे वे इस प्रकार हैं।
रेडियो विकिरण शब्द का संबंध “रेडियम” से है। संसार में जितने तत्व पाये जाते हैं उनमें से बहुतों के, जैसे सोना, चाँदी, ओषजन आदि के अणु स्थिर दशा में रहते हैं और वे जैसे के तैसे ही बने रहते हैं। परन्तु रेडियम जैसे कुछ तत्व ऐसे हैं जिनके अणु हमेशा अस्थिर दशा में रहते हैं और वे चाहे जब अपने आप विच्छिन्न होने लगते हैं। जब ये अणु छिन्न विच्छिन्न होते हैं तो इनमें से “ऊर्जा” (शक्ति) निकलती है। यह “ऊर्जा, अनेक रूपों में होती है और इनमें से अनेक प्रकार की किरणें निकलती हैं, जिनमें से कुछ तो हानिकारक नहीं होती, पर “गामा” किरणें जो इन्हीं से निकलती हैं, बहुत शक्तिशाली होती हैं। देखने में प्रकाश की साधारण किरणों की तरह ही होती हैं, परन्तु सामान्य प्रकाश की किरणें मानव शरीर को भेद कर अन्दर नहीं जा सकतीं जबकि “गामा” और “एक्स किरणें मानव शरीर को बड़ी सरलता से भेद कर पार कर पारकर जाती हैं। इतना ही नहीं मानव शरीर के जिस तन्तु में से ये किरणें गुजर जाती हैं उनमें अनेक रासायनिक और प्राणी शास्त्रीय परिवर्तन कर जाती हैं, ऐसी सभी किरणों को जो शून्य स्थान में एक जगह से दूसरी जगह शक्ति ले जाती हैं, रेडियो विकिरण कहा जाता है। यहाँ इस शब्द का आशय विशेष रूप से ‘गामा’ किरणों से ही है क्योंकि वे मानव शरीर पर सब से अधिक हानिकारक प्रभाव डालती हैं।
“ये किरणें मानव शरीर पर किस प्रकार प्रभाव डालती हैं रेडियो विकिरण का प्रभाव शरीर पर अनेक रूपों से हो सकता है। यदि इसकी तीव्रता बहुत अधिक हो तो मनुष्य को ल्यूकोमिया जैसे रोग हो सकते हैं और शीघ्र या विलंब से मृत्यु हो जाती है। यदि रेडियो विकिरण की मात्रा अपेक्षाकृत कम हो तो उसका प्रभाव यह हो सकता है कि व्यक्ति का आयुष्यकाल कुछ कम हो जाय, और वह अपने वास्तविक समय से पूर्व ही मर जाय। एक परिणाम यह भी हो सकता है कि सन्तान उत्पन्न करने की क्षमता समाप्त हो जाय कम हो जाय और अंतिम, किन्तु सबसे अधिक दूरगामी भयावह परिणाम यह हो सकता है और प्रायः होता है कि व्यक्ति के शरीर को बनाने वाले सेलों (कोषों) में ऐसा विशेष परिवर्तन हो जाता है जो केवल उस व्यक्ति तक ही सीमित नहीं रहता वरन् जो पीढ़ी दर पीढ़ी चलता चला जाता है जब तक कि उसका वंश ही समाप्त न हो जाय। उदाहरण के लिए यदि रेडियो सक्रियता के कारण किसी के कोषों में ऐसा परिवर्तन हो गया कि जिससे उसकी दृष्टि शक्ति क्षीण हो गई, तो यह त्रुटि उसकी प्रत्येक आगामी पीढ़ी में भी पाई जायगी और प्रत्येक पीढ़ी में अधिकाधिक बढ़ती जायगी। इसी प्रकार यदि किसी के कोषों में परिवर्तन होने से उसकी संतानोत्पादन की शक्ति कम हो जाय तो दो चार पीढ़ी में उसके वंश का समाप्त हो जाना निश्चित ही है।”
ये बातें केवल साधारण लेखकों की कल्पनायें या इधर-उधर से सुनी सम्मतियाँ ही नहीं हैं वरन् बड़े-बड़े राष्ट्रों के कर्णधार भी इनको स्वीकार करते हैं। हमारे प्रधान मंत्री अनेक बार अणुयुद्ध के विरुद्ध चेतावनी दे चुके हैं कि यदि इसकी प्रगति को रोका न गया तो इससे संसार का अधिकाँश में नाश हो जायगा। अब इसी 29 अप्रैल को इंग्लैंड के प्रधान मंत्री मेकमिलन ने कहा है कि “रूस ने जो अणुबमों के परीक्षण किये हैं उनके फल से ब्रिटेन के वायु मंडल की रेडियो सक्रियता बहुत बढ़ गई है, उसका बुरा प्रभाव लोगों के स्वास्थ्य पर और भावी बच्चों पर पड़ रहा है। हड्डी संबंधी रोग बढ़ रहे हैं।” इसी प्रकार 31 मार्च को अमरीका के प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ0 लाइनस पौलिंग ने कहा कि अब अणुओं के परीक्षणों से जितनी रेडियो सक्रियता वाली धूल आकाश में फैल चुकी है, उससे 50 हजार अमरीकन या तो मर जायेंगे या कैंसर से बुरी तरह रोगग्रस्त होंगे। यदि ये परीक्षण जारी रहे तो इससे अनेक गुनी प्राण हानि होगी। अभी तक हुये परीक्षणों का दुष्प्रभाव उन 23000 बच्चों पर भी पड़ेगा जो अभी तक पैदा ही नहीं हुये हैं।
इतना ही नहीं युद्धकाल में शक्तिशाली बमों से रेडियो सक्रियता समस्त विश्व में छा जायगी। उससे मानव शरीरों पर और भी भाँति-भाँति के कुप्रभाव पड़ सकते हैं। उससे लाखों व्यक्तियों के शरीरों में ऐसे परिवर्तन हो सकते हैं कि उनकी संतान अंधी, बहरी या अन्य प्रकार से विकृत अंगों वाली हो। ऐसा होना देश और समाज के लिये बड़ा ही दुर्भाग्यपूर्ण होगा। जनसंख्या के एक भाग का नष्ट हो जाना तो फिर भी सहन किया जा सकता है, क्योंकि प्रयत्न करने पर आबादी को अधिक वेग से बढ़ाया जा सकता है, पर यदि समाज के आधे चौथाई व्यक्ति भी इस प्रकार अपंग या बुद्धिहीन हो जायेंगे तो वे सदैव समाज पर भार बनकर रहेंगे और इससे उस देश का पतन अवश्यम्भावी हो जायेगा।
अणुशक्ति से होने वाली हानियाँ केवल युद्ध में अणु-शास्त्रों के प्रयोग पर ही निर्भर नहीं हैं वरन् अणुशक्ति से काम करने वाली जो मशीनें आजकल लगाई जा रही हैं उनसे भी वही समस्या सामने आती है। अणु-इंजनों में जो राख या अवशेष रहेगा वह भी हद दर्जे का रेडियो सक्रिय पदार्थ होगा और उससे निकलने वाली किरणें भी मनुष्यों को वैसी ही हानि पहुंचायेंगी जैसे कि युद्ध में प्रयोग किए जाने वाले बमों की। अभी तो अणुशक्ति से चलने वाले कारखाने बिल्कुल आरम्भिक अवस्था में हैं और उनको एक प्रकार परीक्षणार्थ चलाया जा रहा है पर यदि लाभ पर दृष्टि रखने वाले व्यवसायियों का बोलबाला रहा तो वे कम खर्च की निगाह से अणु-इंजनों का व्यवहार अवश्य बढ़ायेंगे और इस प्रकार मानव समाज की असीम क्षति करने के उत्तरदायी होंगे।