
वीरता और स्वास्थ्य का त्यौहार विजयादशमी
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भारतीय संस्कृति में लौकिक और पारलौकिक दोनों प्रकार की उन्नति के उचित स्थान हैं। उसके लिए उचित शिक्षा दीक्षा का विधान है। अध्यात्म को मुख्य उद्देश्य स्वीकार करते हुए भी भौतिकता की अवहेलना नहीं की जाती। जीवन उपयोगी वस्तुओं को प्राप्त करने का भी आदेश दिया गया है। हमारे पर्व, त्यौहार और संस्कार भी हमारे मस्तिष्क पर सामूहिक रूप से दोनों प्रकार की छाप डालते हैं। अनेकों त्यौहार और संस्कार हमें जीवन को श्रेष्ठ बनाने की प्रेरणा देते हैं, कुछ संगठन बना कर अत्याचारियों से रक्षा के लिए, संयम और ब्रह्मचर्य पूर्वक रहने से और व्यायाम आदि द्वारा स्वास्थ्य सुधारने की ओर संकेत करते हैं। इनमें से विजयादशमी का त्यौहार, जोकि हर वर्ष आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी को मनाया जाता है, हर्ष और उल्लास का त्यौहार है, इससे हमारे अंदर वीरता और साहस की वृद्धि होती है, अपने शरीर को बलिष्ठ और बलवान बनने की प्रेरणा मिलती है। अपने पूर्वजों की याद आने पर मन में एक नवीन उत्साह उदय होता है, शिथिल अंग फड़कने लगते हैं और सूखी नसों में तीव्र गति से रक्त का संचार होने लगता है। इससे राष्ट्रीय भावना का प्रसार होता है। किसी देश, जाति राष्ट्र के उत्थान के लिए यह आवश्यक अंग हैं।
यह दिन भारतवर्ष के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि कहा जाता है कि इस दिन भगवान राम ने ऋषि-मुनियों और सन्त-महात्माओं पर अत्याचार करने वाले उनके रक्त को कर रूप में लेने वाले जिसके राज्य के सत्य, न्याय और दया प्रस्थान कर चुके थे, रावण जैसे अजेय और शक्तिशाली शत्रु पर विजय प्राप्त की थी। इसी आश्विन मास में पाण्डव दुर्योधन द्वारा दिये गये अज्ञातवास के बाद प्रकट हुए थे, उसी दिन अन्यायी दुर्योधन व उसके राज्य को नष्ट करने के लिए महाभारत युद्ध का आरम्भ हुआ था। उसी विजयादशमी के शुभ अवसर पर इन्द्र ने वृत्तासुर का वध किया था। प्राचीनकाल में राजा लोग भी वर्षा के कई महीनों से एक स्थान पर रुकी हुई सेना को विजयादशमी के दिन कूच करने की आज्ञा देते थे। यह मान्यता है कि इस दिन किया गया कोई भी कार्य असफल नहीं होता। इसीलिए व्यापारी लोग इस दिन अपने कार्य को शुरू करते हैं, किसान अपने खेतों में बीज बोते हैं व अन्य कार्य करते हैं।
यह शुभ त्यौहार प्रति वर्ष हमारे लिये उत्तम और कल्याणकारी सन्देश लाता है, हमारी सोई हुई शक्तियों को जगा देता है, हमारे ठण्डे पड़ गये खून में उत्तेजना उत्पन्न करता है, एक नई शक्ति का संचार करता है, अपने पूर्वजों के चिन्हों पर, जिन्होंने कठिन परिस्थितियों में साहस, उत्साह, निर्भयता और बुद्धि से काम लेकर वानरों का संगठन करके शक्तिशाली राक्षसों का संहार किया था, चलने की प्रेरणा देता है। उनके आदर्श चरित्र की स्मृति में हम दशहरे या विजयादशमी का उत्सव तो धूमधाम से मना लेते हैं, परन्तु जो महत्वपूर्ण भावना, उसके पीछे निहित है, उस पर बहुत कम लोग ध्यान देते हैं। हमने गौण वस्तु को मुख्य और मुख्य को गौण मान लिया है इसलिए उससे कोई विशेष लाभ नहीं उठा पाते। होना तो यह चाहिये कि स्थान-स्थान पर रामायण की कथाएँ हों, सभाओं के आयोजन किये जायें, जिसमें भगवान राम के उज्ज्वल चरित्र का गुणगान किया जाय। जनता को एक गलत दृष्टिकोण दिया जाता है कि केवल रामायण का पाठ करने और भगवान राम का चरित्र सुनने से हमारा कल्याण हो जायगा। कथा में केवल उन घटनाओं का वर्णन किया जाता है जिनको सुनने से जनता को कुछ भी शिक्षा प्राप्त नहीं होती, यह अवश्य होता है कि उनका मनोरंजन हो जाता है और उनका समय अच्छी तरह से व्यतीत हो जाता है। इसके बजाय जनता का अमूल्य समय नष्ट न कर उनके सामने सही दृष्टिकोण रखना चाहिए कि भगवान राम ने अपने जीवन में यह आदर्श कार्य किये हैं, जो हम को भी करने चाहिएं। सत्य, क्षमा, सहनशीलता, सर्वदा प्रसन्न चित्त रहने, भोग में त्याग, करने, पिता की आज्ञा पर संपूर्ण राज्य को ठुकरा देने, एक पत्नी व्रत, पराई स्त्री पर कुदृष्टि न डालने माता, स्त्री, भाइयों आदि से आदर्श व्यवहार करने का विवेचन करना चाहिए ताकि हम उनके जीवन से प्रेरणा प्राप्त करके उनको अपने जीवन में उतार सकें।
विजयादशमी के दिन राजघराने तथा सामन्तों के परिवारों में शस्त्रास्त्र, हाथी, घोड़े, स्वर्ण आदि का पूजन किया जाता है। कहीं-कहीं तलवार का पूजन होता है। भाव रक्षा का हथियारों से है। विदेशों से रक्षा का भार तो सरकार पर है। अस्त्र-शस्त्रों का बिना लाइसेन्स के रखना भी जुर्म है।
इसलिए आधुनिक परिस्थितियों को देखते हुए लाठी की पूजा करनी चाहिए। यह हमारे बहुत काम आ सकती है। चोरी और डाके की तो नित्य वारदातें होती ही रहती हैं। उन से बचने के लिए सामूहिक संगठन बनाने चाहिए। इस शुभ त्यौहार पर व्यायामशालाओं का उद्घाटन करना चाहिए जिनमें मुद्गर, डंबल, नाल, स्प्रिंग, पैरलेल बार, वेट लिफ्टर आदि सामान रखना चाहिए। स्वास्थ्य सुधार के नियमों और व्यायाम की महत्ता पर पर्चे छपवाकर जनता में बाँटने चाहिए। सभा सम्मेलनों का आयोजन करना चाहिए जिसमें स्थानीय विद्वानों और डॉक्टरों को बुलाकर उनके प्रवचन कराने चाहिए कि देश के जन मानस के बिगड़ते हुए स्वास्थ्य को किस प्रकार से सुधारा जाय। यह स्वास्थ्य का त्यौहार है, उस दिन लोगों से नियमित डंड बैठक, आसन, प्राणायाम, घूमने व आहार में संयम रखने के संकल्प लेने चाहिए। शारीरिक स्वास्थ्य सुधार राष्ट्र उत्थान का एक आवश्यक अंग है। इस पर पूरा ध्यान देना चाहिए।