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Magazine - Year 1959 - Version 2

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तर्पण—विधि

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प्रातःकाल ब्रह्ममुहूर्त में उठ कर शौच, स्नान आदि नित्य कर्मों से निवृत्त होकर धुले हुए वस्त्र पहनने चाहिए। पूर्व की ओर मुख करके सन्ध्योपासना आदि करने के पश्चात बाँये और दाँये हाथ की अंगुलि में

ॐ पवित्रेस्थो वैष्णाव्यौ सवितुर्वः प्रसवऽउत्पु नाभ्यच्छिद्रेणासूर्यस्य रश्मिभिः। तस्यतेपवित्रपते—पवित्र पूतस्य यत्कामः पुनेतच्छकेयम्॥

के मन्त्र को पढ़ते हुए पवित्री को धारण करना चाहिए। इसके बाद हाथ में जल, चावल, जौ और तीन कुश लेकर नीचे लिखे मंत्रों से संकल्प पढ़ना चाहिए।

ॐ विष्णवे नमः 3 । हरिः ॐ तत्सदद्यैतस्य श्रीब्रह्मणो द्वितीयपरार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे जम्बूद्वीपे भरतखण्डे आर्यावर्तैकदेशे कलियुगे कलिप्रथमचरणे अमुकसंवत्सरे अमुकमासे अमुकपक्षे अमुकतिथौ अमुकवासरे मुकगौत्रोत्पन्नः अमुकशर्मा (वर्मा, गुप्तः) अहं श्रीपरमेश्वरप्रीर्त्यथं देवर्षिमनुष्यपितृतर्पणं करिष्ये।

संकल्प के पश्चात् तुलसीदल, फूल, चावल, सफेद चन्दन, चाँदी या ताँबे के पात्र में रख कर उसके ऊपर पूर्वाभिमुख एक बालिश्त लम्बे तीन कुश रखने चाहिए। पात्र में तर्पण के लिए जल भर कर तीनों कुशाओं और तुलसी दल को दांये हाथ में लेकर बाँये हाथ से ढक लेना चाहिए और निम्नलिखित मन्त्रों का उच्चारण करते हुए देवताओं का आवाहन करना चाहिए।

ॐ विश्वेदेवास आगत शृणुता म इमँ हवम्। एदं बर्हिर्निषीदत॥ (यजु0 7। 34)

ॐ विश्वेदेवाः श्रृणुतेम हूँ हवं में ये अन्तरिक्षे य उप द्यविष्ठ ये अग्निजिह्वा उत वा यजत्रा आसद्यास्मिन्वर्हिषि मादयध्वम्॥ (यजु0 33। 53)

आगच्छन्तु महाभागा विश्वेदेवा महाबलाः।

ये तर्पणोऽत्र विहिताः सावधाना भवन्तु ते॥

देवताओं का आवाहन करके तर्पण वाले पात्र में से कुशों द्वारा दायें हाथ की अंगुलियों के अग्रभाग से चावल मिला हुआ एक-एक अंजलि जल लेकर नीचे लिखे देवताओं के नाम मन्त्र पढ़ते हुए दूसरे पात्र में गिराना चाहिए।

देव दर्पण

ॐ ब्रह्मा तृप्यताम् । ॐ विष्णुस्तृप्यताम् । ॐ रुद्रस्तृप्यताम्। ॐ प्रजापविस्तृप्यताम्। ॐ देवास्तृप्यन्ताम्। ॐ छन्दाँसितृप्यन्ताम्। ॐ वेदास्तृप्यन्ताम्। ॐ ऋषयस्तृप्यन्ताम्। ॐ पुराणाचार्यस्तृप्यन्ताम् । ॐ गन्धर्वास्तृप्यन्ताम्। ॐ इतराचार्यास्तृप्यन्ताम्। ॐ संवत्सरः सावयवस्तृप्यन्ताम्। ॐ देव्यस्तृप्यन्ताम्। ॐ अप्सरसस्तृप्यन्ताम् । ॐ देवानुगास्तृप्यन्ताम् । ॐ नागस्तृप्यन्ताम्। ॐ सागरास्तृप्यन्ताम्। ॐ पर्वतास्तृप्यन्ताम्। ॐ सरितस्तृप्यन्ताम्। ॐ मनुष्यास्तृप्यन्ताम्। ॐ यक्षास्तृप्यन्ताम। ॐ रक्षाँसितृप्यन्ताम्। ॐ पिशाचास्तृप्यन्ताम्। ॐ सुपर्णान्तृप्यन्ताम् । ॐ भूतानि तृप्यन्ताम्। ॐ पशवस्तृप्यन्ताम्। ॐ वनस्पतयस्तृप्यन्ताम्। ॐ ओषधयस्तृप्यन्ताम्। ॐ भूतग्रामश्चतुर्विधस्तृप्यन्ताम्।

इसी प्रकार से नीचे दिये मंत्र वाक्यों से ऋषियों को भी एक एक अंजलि जल देना चाहिए।

ॐ मरीचिस्तृप्यताम्। ॐ अत्रिस्तृप्यताम्। ॐ अंिगरास्तृप्यताम्। ॐ पुलस्त्यस्तृप्यताम्। ॐ पुलस्तृप्यन्ताम्। ॐ क्रतुस्तृप्यताम्। ॐ वसिष्ठस्तृप्यताम्। ॐ प्रचेतास्तृप्यताम्। ॐ भृगुस्तृप्यताम्। ॐ नारदस्तृप्यताम्

दिव्य मनुष्य तर्पण-

इसके पश्चात् यज्ञोपवीत को गले में माला की तरह कर लेना चाहिए और उत्तर की ओर मुख करके पहिले वाली कुशों को दायें हाथ की कनिष्ठिका अंगुलि के मूल भाग में रख कर निम्नाँकित मंत्र वचनों को दो-दो बार उच्चारण करके जौ सहित दो-दो अंजलि जल दिव्य मनुष्यों के लिए अर्पण करना चाहिए।

ॐ सनकस्तृप्यताम् ॥ 2 ॥ ॐसनन्दनस्तृप्यताम् ॥ 2॥ ॐ सनातनस्तृप्यताम् ॥ 2 ॥ ॐ कपिलस्तृप्यताम् ॥ 2 ॥ ॐ आसुरिस्तृप्यताम् ॥ 2 ॥ ॐ वोढुस्तृप्यताम् ॥ 2 ॥ ॐ पञ्चशिखस्तृप्यताम् ॥ 2 ॥

दिव्य पितृतर्पण

पहिले वाली कुशों को बटने के बाद उन्हें अंगूठे और तर्जनी के बीच में दक्षिण की ओर रख लेना चाहिए। तर्पण करने वाले को दक्षिण की ओर मुख करके दायें घुटने को भूमि पर रख कर यज्ञोपवीत को बांये कन्धे पर कर लेना चाहिए। तर्पण वाले पात्र में काले तिल मिला कर दिव्य पितरों के लिए अंगूठे और तर्जनी के मध्य भाग से नीचे दिये मंत्र वाक्यों का उच्चारण करते हुए तीन-तीन अंजलि अर्पण करना चाहिए।

ॐ कव्यवाडनलस्तृप्यताम् इदं सतिलं जलं (गंगाजलं वा) तस्मै स्वधा नमः ॥ 3 ॥ ॐ सोमस्तृप्यताम् इदं सतिलं जलं (गंगाजलं वा) तस्मै स्वधा नमः॥ 3 ॥ ॐ यमस्तृप्यताम् इदं सतिलं जलं (गंगाजलं वा) तस्मै स्वधा नमः ॥ 3 ॥ ॐ अर्यमा तृप्यताम् इदं सतिलं जलं (गंगाजलं वा) तस्मै स्वधा नमः ॥ 3 ॥ ॐ अग्निष्वात्ताः पितरस्तृप्यन्ताम् इदं सतिलं जलं (गंगाजलं वा) तेभ्यः स्वधा नमः ॥ 3 ॥ ॐ सोमपाः पितरस्तृप्यन्ताम् इदं सतिलं जलं (गंगाजलं वा) तेभ्यः स्वधा नमः॥ 3 ॥ ॐ बर्हिषदः पितरस्तृप्यन्ताम् इदं सतिलं जलं (गंगाजलं वा) तेभ्यः स्वधा नमः॥ 3 ॥

यम तर्पण

उपरोक्त विधि से ही नीचे दिये मन्त्र वाक्यों से चौदह यमों के लिए तिल सहित तीन-तीन अञ्जलि जल अर्पण करना चाहिए।

ॐ यमाय नमः ॥ 3 ॥ ॐ धर्मराजाय नमः ॥ 3 ॥ ॐ मृत्यवे नमः ॥ 3 ॥ ॐ अन्तकाय नमः ॥ 3॥ॐ वैवस्वताय नमः ॥ 3 ॥ ॐ कालाय नमः ॥ 3॥ ॐ ॥ सर्वभूतक्षाय नमः ॥ 3 ॥ ॐ औदुम्बराय नमः ॥ॐ ॥ दघ्नाय नमः ॥ 3 ॥ ॐ नीलाय नमः ॥ 3 ॥ ॐ परमेष्ठिने नमः ॥ 3 ॥ ॐ वृकोदराय नमः ॥ 3 ॥ ॐ चित्राय नमः ॥ 3 ॥ ॐ चित्रगुप्ताय नमः ॥ 3 ॥

मनुष्य पितृतर्पण

पितरों का आवाहन इन दो मन्त्रों से करना चाहिए।

ॐ उशन्तस्त्वा निधीमह्यु शन्तः समिधीमहि। उशन्नुशत आवह पितृन्हविषे अत्तवे॥

(यजु0 19। 70)

ॐ आयन्तु नः पितरः सोम्यासोऽग्निष्वात्ताः पथिभिर्देवयानैः। अणिन्यज्ञे स्वधया मदन्तोऽधिब्रुवन्तु तेऽवन्त्वस्मान्॥

(यजु0 19। 58)

इसके बाद पहिले बनाई गई विधि से ही पितरों का नाम व गोत्र बोलते हुए हर एक के लिए तिल सहित तीन-तीन अञ्जलि जल अर्पण करना चाहिए।

अस्मत्पिता (बाप) अमुकशर्मा अमुकसगोत्रों वसुरुपस्तृप्यताम् इदं सतिलं जलं (गंगाजलं वा) तस्मै स्वधा नमः ॥ 3 ॥ अस्मत्पितामहः (दादा) अमुकशर्मा अमुकसगोत्रो रुद्ररुपस्तृप्यताम् इदं सतिलं जलं (गंगाजलं वा) तस्मैं स्वधा नमः ॥ 3 ॥ अस्मत्प्रपितामहः (परदादा) अमुकशर्मा अमुकसगोत्र आदित्यरुपस्तृप्यताम् इदं सतिलं जलं (गंगाजलं वा) तस्मै स्वधा नमः ॥ 3 ॥ अस्मन्माता अमुकी देवी दा अमुकसगोत्रा वसुरुपा तृप्यताम् इदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा नमः ॥ 3 ॥ अस्मत्पितामही (दादी) अमुकी देवी दा अमुकसगोत्रा रुद्ररुपा तृप्यताम् इदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा नमः ॥ 3 ॥ अस्मत्प्रपितामही (परदादी) अमुकी देवी दा अमुक कसगोत्रा आदित्यरुपा तृत्यताम् इदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा नमः ॥ 3 ॥ अस्मत्सापत्नमाता (सौतेली माँ) अमुकी देवी दा अमुकसगोत्रा वसुरुपा तृप्यताम् इदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा नमः॥ 2 ॥

इसके पश्चात् नौ मन्त्रों का उच्चारण करते हुए पूर्वोक्त विधि से जल पृथ्वी पर गिरते रहना चाहिये।

1—ॐ उदीरतामवर उत्परास उन्मध्यमाः पितरः सोम्यासः। असुँ य ईयुरवृका ऋतज्ञास्ते नोऽवन्तु पितरो हवेषु॥

(यजु0 19। 49)

2— अंगिरसो नः पितरो नवग्वा अथर्वाणो भृगवः सोम्यासः। तेषाँ वयँ सुमतौ यज्ञियानामपि भद्रे सौमनसे स्याम॥

(यजु0 19। 50)

3—आयन्तु नः पितरः सोम्यासोऽग्निष्वात्ताः पथिभिर्देवयानैः। अणियज्ञे स्वधया मदन्तोऽधिब्रुवन्तु तेऽवन्त्वस्माम्॥

(यजु0 19। 58)

4—ऊर्जं वहन्तीरमृतं घृतं पयः कीलालं परिस्रु तम्। स्वाधास्थ तर्पयत में पितृन्॥

(यजु0 2। 34)

5—पितृभ्यः स्वाधायिभ्यः स्वधा नमः पितामहेभ्यःस्वधायिभ्यः स्वधा नमः प्रपितामहेभ्यः स्वधायिभ्यः स्वधा नमः। अक्षन्पितरोऽमीमदन्त पितरोऽतीतृपन्त पितरः पितरः शुन्धध्वम्॥

(यजु0 19। 36)

6—ये चेह पितरो ये न नेह याँश्च विद्मयाँ 2॥ उचन प्रविद्द्म त्वं वेत्थ यति ते जातवेदः स्वाधाभिर्यज्ञँ, सुकृतं जुषस्व॥

(यजु0 19। 67)

7—मधु वाता ऋतायते मधु क्षरन्ति सिन्धवः। माध्वीर्नः सन्त्वोषधीः॥

(यजु0 13।27)

8—मधु नक्तमुतोषसो मधुमत्पार्थिवँ रजः। मधु द्यौरस्तु नः पिता॥

(यजु0 13। 28)

9—मधुमान्नो वनस्पतिर्मधुमाँऽअस्तु सूर्यः। माध्वीर्गावो भवन्तु नः॥ (यजु0 13।29) ॐ मधु। मधु। मधु। तृप्यध्वम्। तृप्यध्वम्। तृप्यध्वम्॥

इसके बाद नीचे लिखे मन्त्रों का केवल पाठ करना चाहिए।

ॐ नमो वः पितरो रसाय नमो वः पितरः शोषाय नमो वः पितरो जीवाय नमो वः पितरः स्वधायै नमो वः पितरो घोराव नमो वः पितरो मन्यवे नमो वः पितरः पितरो नमो वो गृहान्नः पितरो दत्त सतो वः पितरो देष्मैतद्वः पितरो वास आधत्त।

(यजु0 2। 32)

द्विवतीयगोत्रतर्पण

पूर्वोक्त विधि से निम्नाँकित वाक्यों का तीन बार उच्चारण करते हुए तीन-तीन अंजलियां तिल सहित जल की द्वितीय गोत्र मातामह आदि को अर्पण करनी चाहिए।

अस्मन्मातामहः (नाना) अमुकशर्मा अमुकसगोत्रो वसुरुपस्तृप्यताम् इदं सतिलं जलं (गंगाजलं वा) तस्मै स्वधा नमः ॥ 3 ॥ अस्मत्प्रमातामहः (परनाना) अमुकशर्मा अमुकसगोत्रो रुद्ररुपस्तृप्यताम् इदं सतिलं जलं तस्मैं स्वधा नमः ॥ 3 ॥ अस्मद्वृद्धप्रमातामहः (बूढ़े परनाना) अमुकशर्मा अमुकसगोत्र आदितयरुपस्तृप्यताम् इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः॥ 3 ॥ अस्मन्मातामही (नानी) अमुकी देवी दा अमुकसगोत्रा वसुरुपा तृप्यताम् इदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा नमः ॥ 3 ॥ अस्मत्प्रमाता मही (परनानी) अमुकी देवी दा अमुकसगोत्रा रुद्ररुपा तृप्यताम् इदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा नमः ॥ 3 ॥ अस्मद्वृद्धप्रमातामही (बूढ़ी परनानी) अमुकी देवी दा अमुकसगोत्रा आदित्यरुपा तृप्यताम् इदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा नमः ॥ 3 ॥

पत्न्यादितर्पण

अस्मत्पत्नी (भार्या) अमुकी देवी दा अमुक सगोत्रा वसुरुपा तृप्यताम् इदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा नमः ॥ 1 ॥ अस्मत्सुतः (बेटा) अमुकशर्मा अमुकसगोत्रो वसुरुपस्तृप्यताम् इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः ॥ 3॥ अस्मत्कन्या (बेटी) अमुकीदेवी दा अमुकसगोत्रा वसुरुपा तृप्यताम् इदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा नमः ॥ 1॥ अस्मत्पितृव्यः (पिता के भाई) अमुकशर्मा अनुकगोत्रो वसुरुप-स्नृप्यताम् इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः ॥ 3 ॥ अस्मान्मातुलः (मामा) अमुकशर्मा अमुकसगोत्रो वसुरुपस्तृप्यताम् इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः ॥ 3॥ अस्मद्भाता (अपना भाई) अमुकशर्मा अमुकसगोत्रो वसुरुपस्तृप्यताम इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः ॥ 3॥ अस्मत्सापत्नभ्राता (सौतेला भाई) अमुकशर्मा अमुकसगोत्रो वसुरुपस्तृप्यताम् इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः ॥ 3 ॥ अस्मत्पितृ-भगिनी (बूआ) अमुकी देवी दा अमुकसगोत्रा वसुरुपा तृप्यताम् इदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा नमः ॥ 1॥ अस्मन्मातृभगिनी (मौसी) अमुकी देवी दा अमुकगोत्रा वसुरुपा तृप्यताम् इदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा नमः ॥ 1 ॥ अस्मदात्मभागिनी (अपनी बहिनी) अमुकी देवी दा अमुकसगोत्रा वसुरुपा तृप्यताम् इदं सतिलं तस्यै स्वधा नमः ॥ 1 ॥ अस्मत्सापत्नभगिनी (सौतेली बहिन) अमुकी देवी दा अमुकसगोत्रा वसुरुपा तृप्यताम् इदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा नमः ॥ 1॥ अस्मच्छ्वशुरः (श्वशुर) अमुकशर्मा अमुकसगोत्रो वसुरुपस्तृप्यताम् इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः ॥ 3 ॥ अस्मैद्गुरुः अमुकशर्मा अमुकसगोत्रो वसुरुपस्तृप्यताम् इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः ॥ 3 ॥ अस्मदाचार्यप्त्नी अमुकी देवी दा अमुकसगोत्रा वसुरुपा तृप्यताम् इदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा नमः ॥ 2॥ अस्मच्छिष्यः अमुकशर्मा अमुकसगोत्रा वसुरुपस्तृप्यताम् इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः ॥ 3 ॥ अस्मत्सखा अमुकशर्मा अमुकसगोत्रो वसुरुपस्तृप्यताम् इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः ॥ 3 ॥ अस्मदाप्तपुरुषः अमुकशर्मा अमुकसगोत्रो वसुरुपस्तृप्यताम् इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः ॥ 3 ॥

इस के पश्चात् यज्ञोपवीत को बायें कंधे पर रख कर पूर्व की ओर मुख करके इन श्लोकों का पाठ करते हुए जल को गिराना चाहिए।

देवासुरास्तथा यक्षा नागा गर्न्धवराक्षसाः। पिशाचा गुह्यकाः सिद्धाः कूष्माण्डास्तरवः खगाः॥ जलेचरा भूनिलया वाय्वाधाराश्य जन्तवः। प्रीतिमेते प्रयान्त्वाशु मद्देत्तेनाम्बुनाखिलाः॥ नरकेषु समस्तेषु यतनासु च ये स्थिरताः। तेषामाप्यायनायैतद्दीयते सलिलं मयाः॥ येऽबान्धवा बान्धवा वा येऽन्यजन्मनि बान्धवाः। ते सर्वे तृप्तिमायान्तु ये चास्मत्तोयकंिगक्षणः॥ ॐ आब्रह्मस्तम्बपर्यन्तं देवर्षिपितृमानवाः। तृप्यन्तु पितरः सर्वे मातृमातामहादयः ॥ अतीतकुलकोटीनाँ सप्तद्वीपनिवासिनाम् । आ ब्रह्ममुवनाल्लोकादिदमस्तु तिलोदकम् ॥ येऽबान्धवा बान्धवा वा येऽन्यजन्मनि बान्धवाः। ते सर्वे तृप्तिमायान्तु मया दत्तेन वारिणाः॥ ये के चास्मत्कुले जाता अपुत्रा गोत्रिणो मृताः। ते गृह्वन्तु मया दत्तं वस्त्रनिष्पीडनोद्कम् ॥

अर्घ्य दान

एक पात्र में शुद्ध जल ले कर उस पर अनामिका अंगुलि से षड्दल कमल बनाने के बाद उस में तुलसीदल, पुष्प, चावल और चन्दन छोड़ना चाहिए। फिर एक दूसरा पात्र ले कर उस पर चन्दन षड्दल कमल बनाना चाहिए और देवताओं का आवाहन पूजन करते हुए पहिले पात्र के जल से अर्घ्यदान देना चाहिए। मन्त्र इस प्रकार है।

ॐ ब्रह्य जज्ञानं प्रथमं पुरस्ताद्वि सीमतः सुरुचो वेन आवः। स बुध्न्या उपमा अस्य निष्ठाः सतश्च योनिमसतश्च विवः ॥ (यजु0 13 । 3) ॐ ब्रह्मणे नमः ब्रह्मणं पूजयामि ॥

ॐ इदं विष्णुर्विचक्रमे त्रेधा निदधे पदम्। समूढमस्यपाँ सुरे स्वाहा ॥ (यजु0 5 । 15) ॐ विष्णवे नमः। विष्णुँ पूजयामि ॥

ॐ नमस्ते रुद्र मन्यव उतो त इषवे नमः। बाहुभ्यामुत ते नमः ॥ (यजु0 16 । 1) ॐ रुद्राय नमः। रुद्र पूजयामि ॥

ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गों देवस्य धीमहि। धियो नः प्रचोदयात् ॥ (यजु ॰ 36 । 3) ॐ सवित्रे नमः । सवितारं पूजयामि ॥

ॐ मित्रस्य चर्षणीघृतोऽवो देवस्य सानसि । द्युम्नं चित्रश्रावस्तमम् ॥ (यजु ॰ 11 । 62) ॐ मित्राय नमः पूजयामि ॥

ॐ इमं में वरुण श्रुधी हवमद्या च मृडय । त्यामवज्ञ्युराचके ॥ (यजु0 21 । 1) ॐ वरुणाय नमः। वरुणं पूजयामि ॥

सूर्योपस्थान

निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करके सूर्य भगवान को प्रणाम व प्रार्थना करनी चाहिए।

ॐ अद्दश्रमस्य केतवो धिरश्मयो जनाँ 2 अनु। भ्राजन्तों अग्नयो यथा। उपयामगृहीतोऽसि सूर्याय त्वा भ्राजायैष ते योनिः सूर्याय त्वा भ्राजाय। सूर्य भ्राजिष्ठ भ्राजिष्ठस्त्वं देवेष्वसि भ्राजिष्ठोऽहम्मनुष्येषु भूयासम् ॥ (यजु0 8 । 40)

हँसः शुचिषद्द्वसुरन्तरिक्षस द्धोता वेदिषदतिथि-र्दुरोणासत्। नृषद्द्वरसदृतसद्वयोमसदब्जा गोजा ऋतजा अद्रिजा ऋतं बृहत॥ (यजु0 10। 24) इसके बाद दिग्देवताओं को नमस्कार करना चाहिए। ‘ॐ इन्द्राय नमः’ प्राच्यै। ‘ॐ अग्नये नमः’ आग्नेय्यै। ‘ॐ यमाय नमः’ दक्षिणायै। ‘ॐ निऋर्तये नमः’ नैऋत्यै। ‘ॐ वरुणाय नमः’ पश्चिमायै। ‘ॐ ईशानाय नमः’ ऐशान्यै। ‘ॐ ब्रह्मणे नमः’ ऊर्ध्वायै। ‘ॐ अनन्ताय नमः’ अधरायै।

इसके पश्चात् जल में नमस्कार करना चाहिए।

ॐ ब्राह्मणे नमः। ॐ अग्नये नमः। ॐ पृथिव्यै नमः। ॐ औषधिभ्यो नमः। ॐ वाचे नमः। ॐ वाचस्पतये नमः। ॐ महद्भ्यो नमः। ॐ विष्णवे नमः। ॐ अद्भ्यो नमः। ॐ अपाम्पतये नमः। ॐ वरुणाय नमः॥

मुख मार्जन

अब शुद्ध जल से मुख को धो डालना चाहिए।

ॐ संवर्चसा पयसा सन्तनूभिरगन्महि मनसा सँ शिवेन। त्वष्टा सुदत्रो विद्धातु रायोऽनुमार्ष्टु तन्वो यद्विलिष्टम् ॥

(यजु0 2। 24)

विसर्जन

देवताओं का विसर्जन निम्न मन्त्र से करें।

ॐ देवा गातुविदो गातुँ वित्त्वा गातुमित। मनसस्पत इमं देव यज्ञं, स्वाहा वाते धाः॥

(यजु0 8। 21)

समर्पण

अब तक का किया गया तर्पण कार्य भगवान को समर्पित करना चाहिए।

अनेन यथाशक्तिकृतेन देवर्षिमनुष्यपितृतर्पणारुयेन कर्मणा भगवान् मम समस्तपितृस्वरूपी जनार्दनवासुदेवः प्रीयताँ न मम। ॐ तत्सद्ब्रह्मार्पणमस्तु। ॐ विष्णवे नमः।

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