
स्वामी रामतीर्थ
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वेदान्त साधारण लोगों को इसलिए अपनी ओर खींचता है कि वह उनके धर्मग्रन्थ वेद की शिक्षा है। शिक्षित व्यक्ति को वह इसलिए आकर्षित करता है कि सूर्य के तले दर्शन कहलाने योग्य कोई भी ऐसा दार्शनिक ज्ञान नहीं है जो वेदान्तिक अद्वैतवाद का समर्थन न करता हो और न ऐसा कोई विज्ञान ही है जो वेदान्त अथवा सत्य के पक्ष की पुष्टि और उन्नति न करता हो। पर वह वेदान्त काल्पनिक नहीं व्यावहारिक होना चाहिए। पुस्तकों में छपे हुये और कीड़ों के आहार के लिए अलमारियों में रखे हुये वेदान्त से काम न चलेगा। लाभ प्राप्त करने के लिए तुमको इसे आचरण में लाना होगा। जो वेदान्त तुम्हारी ठण्ड (अकर्मण्यता) को दूर नहीं करता जो आपको प्रसन्नता प्रदान नहीं करता जो आपके बोझ को नहीं उतारता, तो ऐसे वेदान्त को ठुकरा कर अलग कर दो। सच्चा वेदान्त बतलाता है कि आपका कर्म सफल हो इसके लिये आपको उसके परिणाम पर ध्यान नहीं देना चाहिए, आपको उसके फल की परवाह नहीं करनी चाहिए। साधन और उद्देश्य को मिलाकर एक कर दो तो काम ही आपका उद्देश्य या लक्ष्य बन जायगा। बस, परिणाम और फल की परवाह मत करो। सफलता अथवा असफलता मेरे लिए कुछ नहीं है, मुझे काम जरूर करना होगा, क्योंकि मुझे काम प्यारा लगता है, मुझे केवल काम के लिए ही काम करना चाहिए। काम करना मेरा उद्देश्य है, कर्म में प्रवृत्त रहना ही मेरा जीवन है। वही मेरा स्वरूप, मेरी असली आत्मा और शक्ति है। अतः मुझे काम करना ही होगा।
-स्वामी रामतीर्थ
*समाप्त*