Magazine - Year 1963 - Version 2
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Language: HINDI
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युग परिवर्तन ऐसा होगा!
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जिस युग परिवर्तन के लिए अखण्ड ज्योति परिवार के लाखों सदस्य प्राणप्रण से कटिबद्ध हो रहे हैं वह न तो कठिन है और न असंभव। क्योंकि मानव अन्तरात्मा में सत्प्रवृत्तियों की, सद्भावनाओं की कोई कमी नहीं है। उपयुक्त अवसर आने पर वे सहज ही जाग पड़ती हैं। ‘सत्य की जीत’ सदा ही होती रही है। भारत की विजय सुनिश्चित है। प्रश्न केवल समय का है। आज यह श्रेय हमें मिलना है या कल, बात केवल इतनी भर है।
बाहरी आक्रमणकारियों को मार भगाने के लिए यदि जनमानस में तड़पन उठती है तो उसकी तड़प से शत्रु की छाती दहल जाती है, उसे गोली चलाना बन्द करना पड़ता है और पैर पीछे को लौटाने पड़ते हैं। भीतरी शत्रुओं के विरुद्ध, आन्तरिक षडरिपुओं के विरुद्ध, दुष्ट वृत्तियों और दुर्भावनाओं के विरुद्ध यदि इसी प्रकार का मोर्चा जम जाय, यदि उनके प्रति ऐसी ही घृणा-शत्रुता और प्रतिरोध की भावना जागृत हो जाय तो उनको भी चीनियों की तरह ही पराजित होना पड़ेगा।
छोटे लोगों के बड़े दिल—
बर्बरता और दुष्टता के विरुद्ध यदि क्षोभ उत्पन्न हो जाय तो अत्यन्त निर्धन, विपन्न परिस्थितियों में पड़े हुए दीन दुखी समझे जाने वाले लोग भी बहुत कुछ कर सकते हैं। चीनी आक्रमण से जिनकी अन्तरात्मा को चोट लगी उनने कठिन परिस्थितियों में रहते हुए भी बहुत कुछ किया है। इतना किया है जिसे देखकर कोई निराशावादी भी भविष्य के लिए आशान्वित हुए बिना नहीं रह सकता। इन पृष्ठों में हम कुछ ऐसी विशिष्ट घटनाओं का उल्लेख कर रहे हैं जिनसे हमारे अनेक भाइयों के प्रयत्नों को देखकर सबको विशेष प्रेरणा होगी।
होशियारपुर के कोढ़ियों ने आय से 102) रु. रक्षा कोष में दिये हैं। यह रकम देते हुए उन्होंने कहा कि देश के किसी और काम तो वे आ नहीं सकते लेकिन उन्हें अपना देश अन्य लोगों की तरह ही प्यारा है, उनके नेत्र सजल थे। इसी प्रकार बुलन्द शहर जिले के राजघाट (गंगा तट) पर रहने वाले कोढ़ी अपनी बचत का सारा धन कोष में जमा कराने पहुँचे। छपरा के अन्धे भिखारी रतन ने अपने बचाये हुए पाँच रुपये जमा करा दिये। पजिम की एक भिखारिन ने कई दिन भीख माँग कर जो चावल प्राप्त किया था वह रक्षा कोष में दे दिया। रायसेन जिले के चुनेटिया गाँव के एक अंधे तथा लकवा से ग्रस्त 85 वर्षीय वृद्ध गणेशा ने अपनी जमा पूँजी के सारे डडडडडड कार्य के लिए सौंप दिये। दिल्ली स्थित आनन्दग्राम, ताहरपुर, शाहदरा की कुष्ठ-बस्तियों में रखने वाले प्रायः सभी कोढ़ियों ने राष्ट्र रक्षा के लिए अपनी सामर्थ्यानुसार धन भेजा है। उसकी पहली 251) रु0 की थी।
अमृतसर के क्षय अस्पताल के एक रोगी ने 100) रु॰ दिये हैं। दिल्ली के मूक-बधिर संघ ने झण्डा सप्ताह में 200 बक्सों में जो कुछ जमा हो सका सो रक्षा के लिये दे दिया। अल्मोड़ा के कुछ रोगियों ने अपने भोजन में कमी करके 301) बचाया और एक नाटक खेलकर 47) रुपये कमाये वह सब कोष में दे दिये। आगरा के अन्धे भिखारियों ने अपनी कमाई बेलनगंज की एक सुरक्षा सभा के अवसर पर अधिकारियों को सौंप दी। तेजपुर के एक धोबी ने अपना सारा सोना दे दिया। कोएम्बटुर अस्पताल में आँख पुत्री की सोने की चुड़ियाँ सुरक्षा के लिए दे दीं। दिल्ली के अन्ध विद्यार्थियों ने 500) रु॰ कोष के लिये भेजे हैं। पेंन्ड्रा के टी0 बी0 अस्पताल के मरीजों ने अपना भोजन घटा कर 175) दिये हैं।
जबलपुर जिले के खखरी गाँव के दो ग्रामीणों ने अपना खेत जोतने के काम आने वाले दो भैंसे राष्ट्र, रक्षा में दे दिए जिनमें से एक 47) में, दूसरा 40) में नीलाम करके कोष में जमा कर दिये गये। वाराणसी जिले के बहावनी गाँव के एक व्यक्ति ने अपनी बकरी और उसके बच्चे दे दिये। उत्तर काशी जिले के कोठियाल ग्राम के एक किसान श्री शालिग्राम ने अपने एक मात्र बैल को कोष में दे दिया जो 206) में बिका। सहारनपुर गन्ना विभाग के एक कर्मचारी ने अपनी दूध देती गाय रक्षा कोष में दी है। बीकानेर नगर से 10 मील दूर कनासर गाँव में एक दुर्भिक्ष पीड़ित किसान ने अपनी एकमात्र निधि 800 मन घास दान कर दी।
झुझनूँ के पास सूरतगढ़ के एक बूढ़े हरिजन डिंगाराम ने अपना घोड़ा सरकार को सौंपा है। जम्बू क्षेत्र के चानी गांव के सन्तराम, चौकीदार ने अपना पूरा 30) मासिक वेतन लड़ाई चलते तक देते रहने का निश्चय किया है। वह रात को कोई दूसरी मजूरी करके अपना पेट पालेगा। दलिया का एक गरीब कुली जिसे अपने 7 बच्चों का पालन करने में भारी कठिनाई पड़ती है 11) रु ॰ मासिक देता रहेगा। मालोट नहर विभाग के कुछ कर्मचारियों ने बस स्टेण्ड पर कुली का काम करके वह मजदूरी कोष में जमा करने का निश्चय किया है।
सामूहिक सत्प्रयत्नों की शक्ति—
सामूहिक उत्साह और सम्मिलित सत्प्रयत्नों से थोड़ा-थोड़ा करके भी बहुत हो जाता है। बूँद-बूँद से घट भरता है, छोटे-छोटे तिनके मिला कर मजबूत रस्सी बनती है। इस तथ्य का उपयोग जहाँ कहीं जब कभी होता है तभी आशाजनक सत्परिणाम सामने आते हैं।
सहारनपुर के नाइयों ने पंचायत करके महीने में एक दिन की कमाई रक्षा कोष में देते रहने का निश्चय किया है और पहली किस्त 607) की मनीआर्डर द्वारा भेज दी। नरसनेण्ट (बारंगल) के आदि वासियों की पंचायत समिति ने 81024 रुपये तथा तीन सौ ग्राम सोना भेजा है। कानपुर लाठी मुहाल की गायिका श्री प्रेमादेवी के मकान पर एकत्रित कानपुर की वेश्याओं में से प्रत्येक ने अपना एक निजी स्वर्ण आभूषण सुरक्षा कोष में देने का निश्चय किया है। अपनी पहली किस्त के रूप में 931) जमा किये और हर महीने एक हजार रुपये भेजने का प्रबन्ध किया। बेलूर जेल के कैदियों ने अपना भोज घटा कर रक्षा में रोज दान देते रहने का निश्चय किया है। चम्बल घाटी के डाकुओं ने मोर्चे पर जाने की इच्छा प्रकट की।
जबलपुर के केन्द्रीय कारागार में बन्दियों ने अपने भोजन से बचा कर 200) भेजे हैं। रक्तदान भी दिया है। उनमें से कितने ही युद्ध मोर्चे पर जाने तथा लौट कर फिर अपनी सजा काटने के लिये तैयारी कर रहे हैं। भोपाल के 63 बन्दियों ने अपना खून दिया है। सम्भलपुर जिले के कलामती गाँव में 250 परिवारों के 1400 स्त्री पुरुषों ने उपवास करके बचत का अन्न सुरक्षा के लिए भेजा।
शिवपुरी जिले के टोडा ग्राम के 640 निवासियों ने प्रति व्यक्ति एक रुपया भेजा है और प्रत्येक तरुण ने खून देने की इच्छा प्रगट की है। पिथौरागढ़ जिले की आर्थिक दृष्टि से पिछड़ी हुई 2 लाख 60 हजार जनता ने हर व्यक्ति एक रुपये के हिसाब से उतना धन सुरक्षा कोष के लिये भेज दिया। उस जिले के सातलखेडी गाँव में हर व्यक्ति पीछे छः रु0 एक आना की औसत से सुरक्षा कोष में सहायता पहुँचाई गई है। देश भर में विभिन्न सरकारी और गैर सरकारी कार्यालय एवं उद्योग संस्थाओं के कर्मचारियों ने अपने वेतन में कटौती करा कर अतिरिक्त श्रम करके रक्षा कोष में जो बड़ी-बड़ी रकमें भेजी हैं उन्हें देखते हुए यह सहज ही स्पष्ट हो जाता है कि संघ शक्ति का प्रवाह जिधर भी मुड़ पड़ उधर आश्चर्यजनक सत्परिणाम प्रस्तुत होता है।
महिलाएँ और बच्चे भी पीछे नहीं—
भारत में महिलाओं को एक लम्बे समय से जिस अशिक्षा, संकीर्णता और बन्धनों की दयनीय स्थिति में रहना पड़ रहा है उसमें उनकी शारीरिक, मानसिक स्थिति का गया गुजरा बन जाना स्वाभाविक है। आज वे अपंग जैसी लगती हैं, फिर भी जब धर्म कर्तव्य का, त्याग, बलिदान का, प्रतिकार और प्रतिरोध का समय आया तो वे भी किसी से पीछे नहीं रहीं।
झाँसी में रोटी बनाकर पेट पालने वाली महिलाओं ने अपनी गाढ़ी कमाई में से उदारतापूर्वक दान दिया है। ललितपुर नगरपालिका की महतरानियों ने जाड़े में मिलने वाली ऊनी जर्सियाँ जिनकी कीमत 800) है रक्षा निधि में लौटा दी हैं। बिजनौर जिले के बसेड़ा गाँव की एक विधवा राजपति देवी ने रोज चर्खा कातकर उसकी आमदनी कोष में देते रहने का निश्चय किया है। उसके पास जो एकमात्र आभूषण कानों की बाली थीं सो भी उसने प्रसन्नतापूर्वक दे दीं।
देहली रेलवे स्टेशन पर मजदूरों और कुलियों की रोटी पकाकर गुजारा करने वाली 81 वर्षीय विस्थापित महिला फूलोदारी ने अपनी जीवन भर की कमाई 140 रु॰ जो कहीं जमीन में गढ़े रखे थे, लेकर कोष में दे दिये। मेरठ जिले के बहादुरपुर की एक महिला कृपादेवी ने अपनी 25 बीघा और बढ़का गाँव की सोमलता देवी ने 20 बीघा जमीन दान दी है। परभनी जिले के हिंगोली गाँव की एक नव वधू ने विवाह के कुछ घंटे बाद ही अपने समस्त कीमती स्वर्ण आभूषण उतार कर रक्षा कार्य के लिए ग्राम पंचायत के प्रधान को सौंप दिए। बुलन्दशहर जिले के सरतरा गाँव की एक महिला कस्तूरी ने हर वर्ष 12 मन गेहूँ और नेहरू जी के वजन की बराबर घी सेना के जवानों को देते रहने की घोषणा की है।
काश्मीर सचिवालय के एक कर्मचारी का विवाह सम्बंध जिस लड़की से पक्का हुआ था उसके दो भाई युद्ध मोर्चे पर लड़ रहे थे। लड़की ने अपनी शादी ऐसे व्यक्ति से करने की इच्छा प्रकट की जो युद्ध मोर्चे पर लड़े। इस पर उस कर्मचारी की भावना उमड़ी और फौज में भर्ती हो गया। उसने यह भी घोषणा की है कि युद्ध मोर्चे से लौटने पर ही शादी करेगा। लड़की भी तब तक अविवाहित रहेगी और रक्षा कार्यों में निरन्तर संलग्न रहेगी।
कानपुर जिलाधीश के पास एक ग्रामीण वृद्धा अपने इकलौते बेटे को लेकर उसे सेना में भर्ती कराने पहुँची। उसने कहा-गत युद्ध में मेरे पति ने लड़कर वीर गति पाई और मेरा यह बेटा भी अब देश की जरूरत के वक्त काम आये तो इसमें हमें प्रसन्नता ही होगी। वटाला (पंजाब) की कोष महिलाओं ने युद्ध मोर्चे पर जाने की अर्जी दी है।
यह तो व्यक्तिगत प्रयत्नों की एक झाँकी हुई महिलाओं ने सामूहिक रूप से धन, स्वर्ण, रक्त एकत्रित करने और जवानों को भर्ती कराने में जो भारी कार्य किया है उसे देखते हुए अनुमान होता है कि यदि यह सिंहनियाँ जाग पड़ें तो कायापलट होने में देर न लगे।
छोटे बच्चे और विद्यार्थियों का योग रक्षा कार्यों में कम नहीं रहा। स्कूलों के छात्र और छात्राओं ने अपना जेब खर्च बचाकर, बचत की गुल्लकें खोल कर, स्कूलों में मिलने वाला नाश्ता बन्द कर डडडडडड छात्रावासों में उपवास रख कर, मजदूरी द्वारा कुछ कमा कर रक्षा कार्य के लिए भारी योग दान दिया है। लड़कियों ने अपने नाक, कान के छोटे-छोटे आभूषणों को बड़े उत्साहपूर्वक दिया है। बच्चों के श्रमदान से कितनी ही आवश्यक सड़कों के बनने में भारी सहायता मिली है। अपने पिता और भाइयों के युद्ध मोर्चे पर जाने के या मरने के पश्चात् उनके उत्तराधिकारी अल्प वयस्कों ने प्रतिज्ञा की है कि राष्ट्र रक्षा के लिए वे भी अपना प्राण देकर दुष्टता के प्रतिकार में कटिबद्ध रहेंगे।
भारतीय विश्व विद्यालयों की राष्ट्रीय परिषद् के तत्वावधान में आयोजित एक पत्रकार गोष्ठी में विद्यार्थी नेताओं ने घोषणा की कि परिषद् के अंतर्गत 23 विश्व विद्यालयों के 50 हजार छात्र सैनिक या किसी भी प्रकार की सेवा के लिए तैयार हैं। वे 50 करोड़ सी0 सी0 रक्त भी जवानों को भेजेंगे।
दधीचि और भामाशाह के आदर्श—
धर्म और कर्तव्य की वेदी पर प्राणों की बलि चढ़ाने वाले शूरवीरों की कमी इस देश में कभी नहीं रही और न अब है। सेना में भर्ती होने के लिए आतुर हो रहे नवयुवकों की भारी भीड़ जो भरती दफ्तरों में लगी रहती है उसे देखते हुए यह अनुमान सहज ही लग जाता है कि कर्तव्य की तुलना में प्राणों को तुच्छ समझने वाले लोग अभी भी बहुत हैं, और ऐसे लोग जब युद्ध मोर्चे की तरह राष्ट्र निर्माण महत्व भी समझ लेंगे और समय आने पर उस कार्य में भी लगेंगे तो बाहरी शत्रुओं की ही तरह शत्रुओं को भी परास्त करके छोड़ेंगे।
उत्तर प्रदेश के मुख्य मन्त्री को एक वृद्ध ने पत्र लिखा है कि मेरे सातों बेटे मोर्चे पर आक्रमणकारी से लड़ रहे है। मैं बूढ़ा समझा जाता हूँ पर वस्तुतः इतना बूढ़ा नहीं हूँ कि राइफल का बोझ न सँभाल सकूँ। कृपया दिया मुझे सेना में भर्ती होने का मौका दें। इसी प्रकार एक अंधे ने उन्हें लिखा है—”अपनी बेबसी पर इस जिन्दगी भर में कभी इतना दुख नहीं हुआ जितना आज है। मैं युद्ध में भाग लेने से वंचित हूँ पर मेरा रक्त तो जवानों के लिए ले ही लिया जाय।”
भिण्ड जिले के एक छोटे गाँव रानीपुर के हर परिवार से औसतन 3 व्यक्ति सेना में हैं। गाँव की कुल आबादी 700 है जिसमें से 200 फौज में चले गये और 45 अभी और जाने वाले हैं।
राजस्थान के मुख्य मंत्री को जयपुर के निकट गोविन्दगढ़ निवासी एक 60 वर्षीय वृद्ध कान्हसिंह ने अपने सबसे छोटे 23 वर्षीय पुत्र को भी मोर्चे पर भेजने के लिए अर्पित कर दिया। वृद्ध के बड़े तीन पुत्रों में से एक शहीद हो चुका-दो लड़ रहे हैं और चौथा अब भर्ती करा दिया गया। बेटों के साथ-साथ वृद्ध ने अपनी कुल जमा पूँजी 700 रु. भी कोष में दे दी।
झुँझनू जिले के मारदाना खुर्द गाँव के 25 परिवारों ने फैसला किया है कि चीनी आक्रमणकारियों के विरुद्ध लड़ाई के लिए हर परिवार एक जवान मोर्चे पर जाने के लिए देगा। गाँव के सरपंच ने यह प्रार्थना-पत्र पं0 नेहरू के जन्म दिन पर उन्हें समर्पित किया।
रोहतक जिले के वहारन गाँव के चौधरी रूप चन्द के चार पुत्र मोर्चे पर लड़ रहे हैं। उनमें एक पुत्र के शहीद होने पर चौधरी ने अपना अन्तिम पाँचवाँ पुत्र भी सेना में भर्ती करा दिया ताकि मृत के स्थान की कमी न पड़ने पावे।
इतिहास के पृष्ठों पर अपना सर्वस्व देने वाले भामाशाह आदि के वर्णन मिलते हैं। वाजिश्रवा आदि ऐसे भी अगणित त्यागी हुए जिनने अपना सब कुछ समाज के लिये अर्पित करके सर्वमेध यज्ञ किया और अपने पास कुछ भी न रखा। आज अनीति के प्रतिरोध और राष्ट्र रक्षा के धर्म कर्तव्य को सामने उपस्थित देख कर अनेकों भावनाशील व्यक्तियों ने स्वयं साधनहीन बनना स्वीकार कर अपना सर्वस्व भारत माता के चरणों पर अर्पण किया है। प्रश्न यह नहीं कि किसने कितना दिया धन की संख्या से नहीं मानवता की उत्कृष्टता से और जो पास में था उसका कितना अंश दिया इस आधार पर त्याग का मूल्याँकन किया जाता है। इस दृष्टि से अगणित सर्वमेधी आत्मदानी आज सामने प्रस्तुत दीखते हैं। इन व्यक्तियों में से किसी ने इस बात की चिन्ता भी नहीं की कि भविष्य में उनका निर्वाह कैसे होगा।
लखीम पुर जिले के पटेला गाँव में एक व्यक्ति चौ0 साइसिंह ने अपनी समस्त सम्पत्ति सुरक्षा के लिए दान दी है। उनकी सम्पत्ति में 20 एकड़ सीरदारा भूमि, 23) हजार रुपये को गन्ने की खड़ी फसल दो भैंसें तथा अन्य घर गृहस्थी का सामान है। यह सब कुछ बेच कर सुरक्षा कोष में जमा किया जायगा। बुलन्द शहर से 13 मील दूर शिकारपुर में एक 70 वर्षीय निर्धन वृद्धा गंगा देवी ने अपनी जीवन भर की बचत एक मैली सी पोटली निकाल कर अधिकारियों को देदी। इसमें 50 वर्ष पुराने सिक्के, खेरीज रुपये आदि कुल मिला कर 525) रु. निकले। इस दान को स्वीकार करते हुए आँखों में आँसू भरे प्राप्तकर्ता ने कहा—जिस देश में इतनी उत्कट त्याग भावना हो वह किसी आक्रमण से पददलित नहीं हो सकता।
देहरादून का समाचार है कि नेफा मोर्चे पर शहीद होने वाले जगजीत सिंह की मृत्यु का समाचार जब उसकी माता को मिला तो उसने तत्काल अपनी सारी सम्पत्ति और भूमि राष्ट्र रक्षा कोष में देते हुए अधिकारियों को लिखा कि इसे बेच कर राष्ट्र के लिए शस्त्रास्त्र खरीद लिये जायं।
अकबरपुर की एक वृद्धा हरनाम कौर ने अपनी सारी सम्पत्ति 60 बीघा भूमि जिसका मूल्य 12 हजार रुपये है रक्षा कोष में दे दी। वृद्धा का एक मात्र पुत्र हाल ही में नेफा के युद्ध में शहीद हुआ है।
शाजापुर के एक रजिस्ट्री क्लर्क श्री चन्द्रमोहन सिंह और उसके परिवार के सदस्यों ने कुल मिलाकर 51 हजार रुपये दान किये हैं। यह दान भूमि, मकान, बागों, बीमा पालिसियों, प्रोविडेण्ट फण्डों और आभूषणों के रूप में है। इन लोगों के पास नकद भी 55) रु0 जमा था वह भी पूरे का पूरा उन्होंने दे दिया। परिवार के सब सदस्यों ने ब्लड बैंक में खून देने का भी फैसला किया है।
दिल्ली दरीबा कलाँ के एक छोटे से व्यापारी धनसिंह ने अपनी कुल पूँजी 11 हजार रुपया तथा एक मात्र पुत्र को राष्ट्र रक्षा के लिए अर्पण किया है।
रक्त और शरीर के विविध अंग घायल सैनिकों की जीवन रक्षा के लिए दान करने वाले सूरमा राजा शिवि की उस उदारता का स्मरण दिलाते हैं जिसमें उनने शरीर का माँस काटकर कबूतर के बदले में दे दिया था। राजा दिलीप ने भी गौ की प्राण रक्षा के लिए अपना शरीर सिंह को सौंपा था। आज अनेकों व्यक्ति इस प्रकार के दिखाई देते हैं जो अपने रक्त और शरीर के अंगों को राष्ट्र रक्षक सैनिकों की आवश्यकता के लिए प्रसन्नतापूर्वक देने को तैयार हैं।
रायपुर जिले के राजिम गाँव से एक युवक ने अपनी आँखें किसी सैनिक की आवश्यकता के लिए दान कर दी हैं। अम्बाला छावनी के महन्त नरेन्द्रदास ने किसी घायल सैनिक के प्रयोग के लिए अपनी एक आँख दी है। बर्धा के चरणदास नामक सज्जन ने भारतीय सेना के जवानों के लिए उनके शरीर का कोई भी अंग विशेष तौर से बायाँ हाथ, बायाँ आँख, बायाँ फेफड़ा आदि लेने की प्रार्थना सरकार से की है।
जालन्धर में रक्तदान करने के इतिहास में एक नया रिकार्ड स्थापित हुआ है। 25 दिसम्बर से 1 जनवरी तक राधास्वामी सम्प्रदाय के वार्षिक भंडारे में इस सम्प्रदाय के हजारों अनुयायिओं ने अपने गुरु की अपील पर 3 मन 10 सेर रक्त और 3 लाख रुपया सुरक्षा के लिए प्रदान किया।
राष्ट्रपति श्री राधा कृष्णन ने अपने एक वक्तव्य में बताया कि अकेले पंजाब राज्य से 20 लाख जवान सेना में भर्ती होने को तैयार हैं। भारत के भूतपूर्व सैनिकों के संघ ने घोषणा की है कि अवकाश प्राप्त सैनिकों में से तीस हजार व्यक्ति मोर्चे पर जाने के लिए बिलकुल तैयार हैं। द्वितीय रक्षा पंक्ति के रूप में देश के भीतर जो होम गार्ड भर्ती किये जा रहे हैं उसमें हर प्रान्त से लाखों नर नारी भारी उत्साह पूर्वक भर्ती हो रहे हैं। कर्तव्य की तुलना इन सबने प्राणों का मूल्य नगण्य माना है
कुरीतियों और आडम्बरों का बहिष्कार—
उच्च आदर्शों की ओर अमुख मनोभूमि में कुरीतियों और आडम्बरों की ओर घृणा भी सहज ही जागृत होती है। जब कोई महत्वपूर्ण काम सामने होता है तो तुच्छ बातों की उपेक्षा सहज ही बन पड़ती है। राष्ट्रीय अग्नि परीक्षा की इन घड़ियों में सामाजिक कुरीतियों और आडम्बरों का बहिष्कार करने के लिये जन साधारण की इच्छा स्वतः ही जागृत होने लगी है।
गोहाटी (आसाम) की एक विधवा गंध-मोनी देवी ने अपनी पुत्री के विवाह के लिए संचित एक हजार रुपया सुरक्षा में दे दिया और विवाह को फिर कभी के लिये टाल दिया। वाराणसी के मदनलाल कपूर ने अपने लड़के की शादी में होने वाला संभावित खर्च 11 हजार रुपया कोष में जमा किया और विवाह की रस्म बड़ी सादगी से पूरी की । सुजनागढ के एक प्रसिद्ध संगीतज्ञ ने अपनी पुत्री के विवाह में राष्ट्रीय संकट को देखते ढाई हजार खर्च करना पर्याप्त समझा। आगरा बेलनगंज के एक जैन परिवार ने विवाह में पैसे की होली फूँकने की बजाय 3100) सुरक्षा में देना श्रेयस्कर समझा। इस वर्ष दिवाली का उत्सव प्रायः सभी जगह स्थगित रहा। लोगों ने दीपदान तथा उत्सव कार्यों खर्च होने वाला धन बचा कर रक्षा कार्यों के लिए भेजा। दावतें, समारोह, प्रीतिभोज आदि में जो अन्न और धन की बर्बादी होती है उसे रोकने की लोगों के मनों में स्वयं ही प्रेरणा उत्पन्न हुई और ऐसे हजारों उत्सव या तो पूर्णतया स्थगित कर दिये गये या उन्हें बहुत किफायतशारी के साथ संक्षेप में सम्पन्न किया गया। बरातों में आने वाले लोग आये तो जरूर ही पर कम गए। ताकि समय और पैसे की बर्बादी बचे।
उज्ज्वल भविष्य की आशा—
कर्तव्य के प्रति इस प्रकार जागरुक और कटिबद्ध भारतीय जनता के लिए समस्त विश्व के भावना शील राष्ट्रों और व्यक्तियों ने अपनी आन्तरिक सहानुभूति, नैतिक सहायता और प्रचुर साधन सामग्री की वर्षा की है। मित्र राष्ट्रों ने बिना शर्त हथियार और सलाहकार दिए हैं। जगह-जगह से धन, रक्त तथा अन्यान्य प्रकार के भावना प्रतीक उपहार भेजे हैं और हमारी विजय की कामना की है। युद्ध के दूसरे मोर्चे पर लड़ने वाले, नैतिक सामाजिक एवं भावनात्मक क्षेत्रों में घुसे हुए शत्रुओं से-कुसंस्कारों से लड़ने के लिए कटिबद्ध-कर्तव्य-निष्ठों के लिए भी इसी प्रकार ऋषियों, महापुरुषों, देवताओं, भावनाशील विचारकों और परमेश्वर का आशीर्वाद मिलेगा। कर्त्तव्यपथ पर चलने वालों को बाहरी सहायता भी मिलती ही है।
यह सच है कि अनेकों साधन सम्पन्न लोगों ने इस अग्नि परीक्षा की घड़ी में भी कंजूसी और निष्ठुरता का परिचय दिया है। उनकी ओर न देखकर हमें भावनाशील जन-मानस की निष्ठा को ही महत्व देना चाहिए। इस युद्ध ने जन-मानस के भावनास्तर को कर्तव्य पालन की ओर अभिमुख किया है, उसके फल स्वरूप सतयुग जैसे सहस्रों आदर्श हमें आँखों के सामने दिखाई देते हैं। यह उज्ज्वल भविष्य के लिए एक आशाजनक चिन्ह है। लड़ाई अभी बन्द नहीं होने वाली है। चीनी हार सकते हैं पर हमारे घर के कोने-कोने में छिपकर बैठे हुए आलस्य, अनाचार, असंयम, स्वार्थपरता, फूट, फैशन, अपव्यय, ढोंग, विलासिता , पाप, कुसंस्कार आदि शत्रुओं से लड़ना तो अभी बाकी ही पड़ा है। यह युद्ध देर तक चलेगा। 8॥ वर्ष तो अभी लगने ही हैं। इसलिए आज जो सत्प्रवृत्तियाँ दुष्टता का प्रतिकार करने के लिए जागृत हुई हैं उन्हें दूने चौगुने उत्साह से जगाना चाहिए। असुरता का बाहरी ही नहीं भीतरी विनाश करके ही हम सच्चे विजयी बनेंगे। प्रगति और सुख शान्ति के राम राज्य की स्थापना के—युग निर्माण के स्वप्न साकार न होने तक हमें अभी तो युद्ध सैनिक की तरह कटिबद्ध ही रहना होगा।