Magazine - Year 1963 - Version 2
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Language: HINDI
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उठो, धनंजय की संतानों (kavita)
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सुनो पार्श्व में खड़ा शिखंडी कब से तुम्हें पुकार रहा।
भीम गदा को लिए हाथ में तेरी ओर निहार रहा॥
लिये सुदर्शन चक्र कृष्ण भी खड़े तुम्हारी पाली में।
महाकाल भैरव, चामुण्डा सब तेरी रखवाली में॥
उठो, धनंजय की संतानों!
मामनुस्मर युद्ध, आज से निखिल राष्ट्र का नारा है।
‘स्वर्गादपि गरौयसी’ माँ का कण-कण हमको प्यारा है।
आज अहिंसा कायरता का भेद तुम्हें बतलाना है॥
बलिवेदी पर आज तुम्हें फिर अपना शीश चढ़ाना है॥
उठो, धनंजय की संतानों!
नहीं अभी सूखा है पानी राजपूती तलवारों का।
खौल उठा है खून आज फिर सीमा के सरदारों का॥
यह अफीम का नहीं नशा है, कालकूट है, ज्वाला है।
उसे विश्व में एक अकेला भारत पीने वाला है॥
खाँड़-खड्ग का भेद भूलकर यदि हमसे टकरायेंगे।
तो यह चीनी धराधाम से अपना चिन्ह मिटायेंगे॥
उठो, धनंजय की संतानों!
आज राष्ट्र की रक्षा के हित वानप्रस्थ, संन्यास जगो।
ब्रह्मचर्य गार्हस्थ्य, युवा शिशुः वर्ग वर्ण विन्यास जगो॥
जगो कि जैसा क्राँतिकुमारी ज्यालमाल लेकर जगती।
जगो कि जैसे दुर्गा चण्डी महाकाल लेकर जगती॥
जगो कि जैसे प्रलयकाल का सागर तूफानी जगता।
जगो कि जैसे क्राँतिवाहिनी सरिता का पानी जगता॥
चलो कि जैसे चल पड़ता है शंकर प्रलयंकर मतवाला।
जलो कि जैसे जल उठा है युगमादिति यौवन की ज्वाला॥
उठो, धनंजय की संतानों!
राजकुमार पाण्डेय ‘कुमार’
*समाप्त*